Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )

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Sr No : 1005138
Scripture Name( English ): Upasakdashang Translated Scripture Name : उपासक दशांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Translated Chapter :

अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 38 Category : Ang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ वा, कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा। तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं सम-णस्स भगवओ महावीरस्स धम्म-पन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अनियता सव्वभावा, तुमे णं देवानुप्पिया! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमण्णागए? किं उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं? उदाहु अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कार-परक्कमेणं? तए णं से देवे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मए इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! तुमे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं० अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार०-परक्कमे इ वा, ते किं न देवा? अह तुब्भे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अनियत्ता सव्वभावा, तं ते मिच्छा। तए णं से देवे कुंडकोलिएणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छा-समावण्णे कलुससमावण्णे नो संचाएइ कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स किंचि पमोक्खमा-इक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहा-पडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए मनुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणं उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ।
Sutra Meaning : एक दिन श्रमणोपासक कुंडकोलिक दोपहर के समय अशोक – वाटिका में गया। पृथ्वी – शिलापट्टक पहुँचा। अपने नाम से अंकित अंगूठी और दुपट्टा उतारा। उन्हें पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा। श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – अनुरूप उपासना – रत हुआ। श्रमणोपासक कुंडकोलिक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने कुंडकोलिक की नामांकित मुद्रिका और दुपट्टा पृथ्वीशिलापट्टक से उठा लिया। वस्त्रों में लगी छोटी – छोटी घंटियों की झनझनाहट के साथ वह आकाश में अवस्थित हुआ, श्रमणोपासक कुंडकोलिक से बोला – देवानुप्रिय ! मंखलिपुत्र गोशालक की धर्म – प्रज्ञप्ति – सुन्दर है। उसके अनुसार उत्थान – कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, उपक्रम। सभी भाव – नियत है। उत्थान पराक्रम इन सबका अपना अस्तित्व है, सभी भाव नियत नहीं है – भगवान महावीर की यह धर्म – प्रज्ञप्ति – असुन्दर है। तब श्रमणोपासक कुंडकोलिक ने देव से कहा – उत्थान का कोई अस्तित्व नहीं है, सभी भाव नियत हैं – गोशालक की यह धर्म – शिक्षा यदि उत्तम है तो उत्थान आदि का अपना महत्त्व है, सभी भाव नियत नही है – भगवान महावीर की यह धर्म – प्ररूपणा अनुत्तम है – तो देव ! तुम्हें जो ऐसा दिव्य ऋद्धि, द्युति तथा प्रभाव उपलब्ध, संप्राप्त और स्वायत्त है, वह सब क्या उत्थान, पौरुष और पराक्रम से प्राप्त हुआ है, अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य, अपौरुष या अपराक्रम से ? वह देव श्रमणोपासक कुंडकोलिक से बोला – देवानुप्रिय ! मुझे यह दिव्य ऋद्धि, द्युति एवं प्रभाव – यह सब बिना उत्थान, पौरुष एवं पराक्रम से ही उपलब्ध हुआ है। तब श्रमणोपासक कुंडकोलिक ने उस देव से कहा – देव ! यदि तुम्हें यह दिव्य ऋद्धि प्रयत्न, पुरुषार्थ, पराक्रम आदि किए बिना ही प्राप्त हो गई, तो जिन जीवों में उत्थान, पराक्रम आदि नहीं हैं, वे देव क्यों नहीं हुए ? देव ! तुमने यदि दिव्य ऋद्धि उत्थान, पराक्रम आदि द्वारा प्राप्त कि है तो ‘‘उत्थान आदि का जिसमें स्वीकार नहीं है, सभी भाव नियत हैं, गोशालक की यह धर्म – शिक्षा सुन्दर है तथा जिसमें उत्थान आदि का स्वीकार है, सभी भाव नियत नहीं है, भगवान महावीर की वह शिक्षा असुन्दर है।’’ तुम्हारा यह कथन असत्य है। श्रमणोपासक कुंडकोलिक द्वारा यों कहे जाने पर वह देव शंकायुक्त तथा कालुष्य युक्त – हो गया, कुछ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुंडकोलिक की नामांकित अंगूठी और दुपट्टा वापस पृथ्वीशिलापट्टक पर रख दिया तथा जिस दिशा से आया था, उसी दिशा की ओर लौट गया। उस काल और उस समय भगवान महावीर का काम्पिल्य – पुर में पदार्पण हुआ। श्रमणोपासक कुंडकोलिक ने जब यह सूना तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ और भगवान के दर्शन के लिए कामदेव की तरह गया, भगवान की पर्युपासना की, धर्म – देशना सूनी।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se kumdakolie samanovasae annada kadai pachchavaranhakalasamayamsi jeneva asogavaniya, jeneva pudhavisilapattae, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta namamuddagam cha uttarijjagam cha pudhavisilapattae thavei, thavetta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannatti uvasampajjitta nam viharai. Tae nam tassa kumdakoliyassa samanovasayassa ege deve amtiyam paubbhavittha. Tae nam se deve namamuddagam cha uttarijjagam cha pudhavisilapattayao genhai, genhitta amtalikkhapadivanne sakhimkhiniyaim pamchavannaim vatthaim pavara parihie kumdakoliyam samanovasayam evam vayasi–hambho! Kumdakoliya! Samanovasaya! Sumdari nam devanuppiya! Gosalassa mamkhaliputtassa dhammapannatti–natthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va niyata savvabhava, mamguli nam samanassa bhagavao mahavirassa dhammapannatti–atthi utthane i va, kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va aniyata savvabhava. Tae nam se kumdakolie samanovasae tam devam evam vayasi–jai nam devanuppiya! Sumdari nam gosalassa mamkhaliputtassa dhammapannatti–natthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va niyata savvabhava, mamguli nam sama-nassa bhagavao mahavirassa dhamma-pannatti–atthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va aniyata savvabhava, tume nam devanuppiya! Ima eyaruva divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave kinna laddhe? Kinna patte? Kinna abhisamannagae? Kim utthanenam kammenam balenam virienam purisakkara-parakkamenam? Udahu anutthanenam akammenam abalenam avirienam apurisakkara-parakkamenam? Tae nam se deve kumdakoliyam samanovasayam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mae ima eyaruva divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave anutthanenam akammenam abalenam avirienam apurisakkaraparakkamenam laddhe patte abhisamannagae. Tae nam se kumdakolie samanovasae tam devam evam vayasi–jai nam devanuppiya! Tume ima eyaruva divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave anutthanenam akammenam abalenam avirienam0 apurisakkaraparakkamenam laddhe patte abhisamannagae, jesi nam jivanam natthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara0-parakkame i va, te kim na deva? Aha tubbhe ima eyaruva divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave utthanenam kammenam balenam virienam purisakkara-parakkamenam laddhe patte abhisamannagae, to jam vadasi sumdari nam gosalassa mamkhaliputtassa dhammapannatti–natthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va niyata savvabhava, mamguli nam samanassa bhagavao mahavirassa dhammapannatti–atthi utthane i va kamme i va bale i va virie i va purisakkara-parakkame i va aniyatta savvabhava, tam te michchha. Tae nam se deve kumdakolienam samanovasaenam evam vutte samane samkie kamkhie vitigichchha-samavanne kalusasamavanne no samchaei kumdakoliyassa samanovasayassa kimchi pamokkhama-ikkhittae, namamuddagam cha uttarijjayam cha pudhavisilapattae thavei, thavetta jameva disam paubbhue, tameva disam padigae. Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe. Tae nam se kumdakolie samanovasae imise kahae laddhatthe samane–evam khalu samane bhagavam mahavire puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva kampillapurassa nayarassa bahiya sahassambavane ujjane aha-padiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam seyam khalu mama samanam bhagavam mahaviram vamditta namamsitta tato padiniyattassa posaham parettae tti kattu evam sampehei, sampehetta posahasalao padinikkhamai, padinikkhamitta suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie manussavagguraparikkhitte sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta kampillapuram nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva sahassambavanam ujjane, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta tivihae pajjuvasanae pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire kumdakoliyassa samanovasayassa tise ya mahaimahaliyae parisae java dhammam parikahei.
Sutra Meaning Transliteration : Eka dina shramanopasaka kumdakolika dopahara ke samaya ashoka – vatika mem gaya. Prithvi – shilapattaka pahumcha. Apane nama se amkita amguthi aura dupatta utara. Unhem prithvishilapattaka para rakha. Shramana bhagavana mahavira ke pasa amgikrita dharma – prajnyapti – anurupa upasana – rata hua. Shramanopasaka kumdakolika ke samaksha eka deva prakata hua. Usa deva ne kumdakolika ki namamkita mudrika aura dupatta prithvishilapattaka se utha liya. Vastrom mem lagi chhoti – chhoti ghamtiyom ki jhanajhanahata ke satha vaha akasha mem avasthita hua, shramanopasaka kumdakolika se bola – devanupriya ! Mamkhaliputra goshalaka ki dharma – prajnyapti – sundara hai. Usake anusara utthana – karma, bala, virya, purushakara, parakrama, upakrama. Sabhi bhava – niyata hai. Utthana parakrama ina sabaka apana astitva hai, sabhi bhava niyata nahim hai – bhagavana mahavira ki yaha dharma – prajnyapti – asundara hai. Taba shramanopasaka kumdakolika ne deva se kaha – utthana ka koi astitva nahim hai, sabhi bhava niyata haim – goshalaka ki yaha dharma – shiksha yadi uttama hai to utthana adi ka apana mahattva hai, sabhi bhava niyata nahi hai – bhagavana mahavira ki yaha dharma – prarupana anuttama hai – to deva ! Tumhem jo aisa divya riddhi, dyuti tatha prabhava upalabdha, samprapta aura svayatta hai, vaha saba kya utthana, paurusha aura parakrama se prapta hua hai, athava anutthana, akarma, abala, avirya, apaurusha ya aparakrama se\? Vaha deva shramanopasaka kumdakolika se bola – devanupriya ! Mujhe yaha divya riddhi, dyuti evam prabhava – yaha saba bina utthana, paurusha evam parakrama se hi upalabdha hua hai. Taba shramanopasaka kumdakolika ne usa deva se kaha – deva ! Yadi tumhem yaha divya riddhi prayatna, purushartha, parakrama adi kie bina hi prapta ho gai, to jina jivom mem utthana, parakrama adi nahim haim, ve deva kyom nahim hue\? Deva ! Tumane yadi divya riddhi utthana, parakrama adi dvara prapta ki hai to ‘‘utthana adi ka jisamem svikara nahim hai, sabhi bhava niyata haim, goshalaka ki yaha dharma – shiksha sundara hai tatha jisamem utthana adi ka svikara hai, sabhi bhava niyata nahim hai, bhagavana mahavira ki vaha shiksha asundara hai.’’ tumhara yaha kathana asatya hai. Shramanopasaka kumdakolika dvara yom kahe jane para vaha deva shamkayukta tatha kalushya yukta – ho gaya, kuchha uttara nahim de saka. Usane kumdakolika ki namamkita amguthi aura dupatta vapasa prithvishilapattaka para rakha diya tatha jisa disha se aya tha, usi disha ki ora lauta gaya. Usa kala aura usa samaya bhagavana mahavira ka kampilya – pura mem padarpana hua. Shramanopasaka kumdakolika ne jaba yaha suna to vaha atyanta prasanna hua aura bhagavana ke darshana ke lie kamadeva ki taraha gaya, bhagavana ki paryupasana ki, dharma – deshana suni.