Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )

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Sr No : 1005118
Scripture Name( English ): Upasakdashang Translated Scripture Name : उपासक दशांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-१ आनंद

Translated Chapter :

अध्ययन-१ आनंद

Section : Translated Section :
Sutra Number : 18 Category : Ang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ? हंता अत्थि। जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि। अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुतं नरयं जाणामि पासामि। तए णं से भगवं गोयमे आनंदं समणोवासयं एवं वयासी–अत्थि णं आनंदा! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ। नो चेव णं एमहालए। तं णं तुमं आनंदा! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि। तए णं से आनंदे समणोवासए भगवं गोयमं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! जिनवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ निंदिज्जइ गरिहिज्जइ विउट्टिज्जइ विसोहिज्जइ अकरणयाए अब्भुट्ठिज्जइ पडिक्कमिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिज्जइ? नो इणट्ठे समट्ठे। जइ णं भंते! जिनवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ नो पडिक्कमिज्जइ नो निंदिज्जइ नो गरिहिज्जइ नो विउट्टिज्जइ नो विसोहिज्जइ अकरणयाए नो अब्भुट्ठिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते! तुब्भे चेव एयस्स ठाणस्स आलोएह पडिक्कमेह निंदेह गरिहेह विउट्टेह विसोहेह अकरणाए अब्भुट्ठेह अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेह। तए णं से भगवं गोयमे आनंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे आनंदस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमनेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु भंते! अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे वाणियगामे नयरे भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेमि, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाओ नयराओ पडिनिग्ग-च्छामि, पडिनिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजनसद्दं निसामेमि। बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिए भत्तपान-पडियाइक्खिए कालं अनवकंखमाणे विहरइ। तए णं मम बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था तं गच्छामि णं आनंदं समणोवासयं पासामि– एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे, जेणेव पोसहसाला, जेणेव आनंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छामि। तए णं से आनंदे समणोवासए ममं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ममं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु भंते! अहं इमेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए, नो संचाएमि देवानुप्पियस्स अंतियं पाउब्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु अभिवंदित्तए। तुब्भे णं भंते! इच्छक्कारेणं अनभिओगेणं इओ चेव एह, जेणं देवानुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदामि नमंसामि। तए णं अहं जेणेव आनंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छामि। तए णं से आनंदे समणोवासए ममं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ? हंता अत्थि। जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पन्ने–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि। अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीति-वाससहस्सट्ठितियं जाणामि पासामि। तए णं अहं आनंदं समणोवासयं एवं वइत्था–अत्थि णं आनंदा! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ। नो चेव णं एमहालए। तं णं तुमं आनंदा! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि। तए णं से आनंदे ममं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! जिनवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिज्जइ? नो इणट्ठे समट्ठे। जइ णं भंते! जिनवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते! तुब्भे चेव एयस्स ठाणस्स आलोएह जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेह। तए णं अहं आनंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे आनंदस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिनिक्खमामि, पडिनिक्खमित्ता जेणेव इह तेणेव हव्वमागए। तं णं भंते! किं आनंदेणं समणोवासएणं तस्स ठाणस्स आलोएयव्वं पडिक्कमेयव्वं निंदेयव्वं गरिहेयव्वं विउट्टेयव्वं विसोहेयव्वं अकरणयाए अब्भुट्ठेयव्वं अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेयव्वं? उदाहु मए? गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–गोयमा! तुमं चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि, आनंदं च समणोवासयं एयमट्ठं खामेहि। तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स तह त्ति एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स ओलाएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहइ अकरणयाए अब्भुट्ठइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जइ, आनंदं च समणोवासयं एयमट्ठं खामेइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ बहिया जनवयविहारं विहरइ।
Sutra Meaning : श्रमणोपासक आनन्त ने भगवान्‌ गौतम को आते हुए देखा। देखकर वह (यावत्‌) अत्यन्त प्रसन्न हुआ, भगवान गौतम को वन्दन – नमस्कार कर बोला – भगवन्‌ ! मैं घोर तपश्चर्या से इतना क्षीण हो गया हूँ कि नाड़ियाँ दीखने लगी हैं। इसलिए देवानुप्रिय के – आपके पास आने तथा चरणों में वन्दना करने में असमर्थ हूँ। अत एव प्रभो ! आप ही स्वेच्छापूर्वक, अनभियोग से – यहाँ पधारें, जिससे मैं वन्दन, नमस्कार कर सकूँ। तब भगवान्‌ गौतम, जहाँ आनन्द श्रमणोपासक था, वहाँ गए। श्रमणोपासक आनन्द ने तीन बार मस्तक झुकाकर भगवान गौतम के चरणों में वन्दन, नमस्कार किया। वन्दन, नमस्कार कर वह यों बोला – भगवन्‌ ! क्या घर में रहते हुए एक गृहस्थ को अवधि – ज्ञान उत्पन्न हो सकता है ? गौतम ने कहा – हो सकता है। आनन्द बोला – भगवन्‌ ! एक गृहस्थ की भूमिका में विद्यमान मुझे भी अवधिज्ञान हुआ है, जिससे मैं पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में पाँच – सौ, पाँच – सौ योजन तक का लवणसमुद्र का क्षेत्र, उत्तर दिशा में हिमवान्‌ – वर्षधर पर्वत तक का क्षेत्र, ऊर्ध्व दिशा में सौधर्म कल्प – तक तथा अधोदिशा में प्रथम नारक – भूमि रत्न – प्रभा में लोलुपा – च्युत नामक नरक तक जानता हूँ, देखता हूँ। तब भगवान गौतम ने श्रमणोपासक आनन्द से कहा – गृहस्थ को अवधि – ज्ञान उत्पन्न हो सकता है, पर इतना विशाल नहीं। इसलिए आनन्द ! तुम इस स्थान की – आलोचना करो, तदर्थ तपःकर्म स्वीकार करो। श्रमणोपासक आनन्द भगवान गौतम से बोला – भगवन्‌ ! क्या जिन – शासन में सत्य, तथ्य – सद्‌भूत भावों के लिए भी आलोचना स्वीकार करनी होती है ? गौतम ने कहा – ऐसा नहीं होता। आनन्द बोला – भगवन्‌ ! जिनशासन में सत्य भावों के लिए आलोचना स्वीकार नहीं करनी होती तो भन्ते ! इस स्थान – के लिए आप ही आलोचना स्वीकार करें। श्रमणोपासक आनन्द के यों कहने पर भगवान गौतम के मन में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा – उत्पन्न हुआ। वे आनन्द के पास से रवाना हुए। जहाँ दूतीपलाश चैत्य था, भगवान महावीर थे, वहाँ आए। श्रमण भगवान महावीर के न अधिक दूर, न अधिक नजदीक गमन – आगमन का प्रतिक्रमण किया, एषणीय – अनेषणीय की आलोचना की। आहारपानी भगवान को दिखलाकर वन्दन – नमस्कार कर वह सब कहा जो भगवान से आज्ञा लेकर भिक्षा के लिए जाने के पश्चात्‌ घटित हुआ था। भगवन्‌ ! उक्त स्थान – के लिए क्या श्रमणोपासक आनन्द को आलोचना स्वीकार करनी चाहिए या मुझे ? भगवान महावीर बोले – गौतम ! इस स्थान – के लिए तुम ही आलोचना करो तथा इसके लिए श्रमणोपासक आनन्द से क्षमापना भी। भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर का कथन, ‘आप ठीक फरमाते हैं’, कहकर विनयपूर्वक सूना। उस स्थान – के लिए आलोचना स्वीकार की एवं श्रमणोपासक आनन्द से क्षमा – याचना की। तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर किसी समय अन्य जनपदों में विहार कर गए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se anamde samanovasae bhagavao goyamassa tikkhutto muddhanenam padesu vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–atthi nam bhamte! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai? Hamta atthi. Jai nam bhamte! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai, evam khalu bhamte! Mama vi gihino gihamajjhavasamtassa ohi nane samuppanne–puratthime nam lavanasamudde pamchajoyanasayaim khettam janami pasami. Dakkhine nam lavanasamudde pamcha joyanasayaim khettam janami pasami. Pachchatthime nam lavanasamudde pamcha joyanasayaim khettam janami pasami. Uttare nam java chullahimavamtam vasadharapavvayam janami pasami. Uddham java sohammam kappam janami pasami. Ahe java imise rayanappabhae pudhavie loluyachchutam narayam janami pasami. Tae nam se bhagavam goyame anamdam samanovasayam evam vayasi–atthi nam anamda! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai. No cheva nam emahalae. Tam nam tumam anamda! Eyassa thanassa aloehi padikkamahi nimdahi garihahi viuttahi visohehi akaranae abbhutthahi ahariham payachchhittam tavokammam padivajjahi. Tae nam se anamde samanovasae bhagavam goyamam evam vayasi–atthi nam bhamte! Jinavayane samtanam tachchanam tahiyanam sabbhuyanam bhavanam aloijjai nimdijjai garihijjai viuttijjai visohijjai akaranayae abbhutthijjai padikkamijjai ahariham payachchhittam tavokammam padivajjijjai? No inatthe samatthe. Jai nam bhamte! Jinavayane samtanam tachchanam tahiyanam sabbhuyanam bhavanam no aloijjai no padikkamijjai no nimdijjai no garihijjai no viuttijjai no visohijjai akaranayae no abbhutthijjai ahariham payachchhittam tavokammam no padivajjijjai, tam nam bhamte! Tubbhe cheva eyassa thanassa aloeha padikkameha nimdeha gariheha viutteha visoheha akaranae abbhuttheha ahariham payachchhittam tavokammam padivajjeha. Tae nam se bhagavam goyame anamdenam samanovasaenam evam vutte samane samkie kamkhie vitigichchhasamavanne anamdassa samanovasagassa amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva duipalase cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte gamanagamanae padikkamai, padikkamitta esanamanesanam aloei, aloetta bhattapanam padidamsei, padidamsitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Evam khalu bhamte! Aham tubbhehim abbhanunnae samane vaniyagame nayare bhikkhayariyae adamane ahapajjattam bhattapanam padiggahemi, padiggahetta vaniyagamao nayarao padinigga-chchhami, padiniggachchhitta kollayassa sannivesassa adurasamamtenam viivayamane bahujanasaddam nisamemi. Bahujano annamannassa evamaikkhai, evam bhasai, evam pannavei, evam paruvei– Evam khalu devanuppiya! Samanassa bhagavao mahavirassa amtevasi anamde namam samanovasae posahasalae apachchhima-maranamtiya-samlehana-jjhusana-jjhusie bhattapana-padiyaikkhie kalam anavakamkhamane viharai. Tae nam mama bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha tam gachchhami nam anamdam samanovasayam pasami– evam sampehemi, sampehetta jeneva kollae sannivese, jeneva posahasala, jeneva anamde samanovasae teneva uvagachchhami. Tae nam se anamde samanovasae mamam ejjamanam pasai, pasitta hatthatuttha-chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae mamam vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu bhamte! Aham imenam oralenam viulenam payattenam paggahienam tavokammenam sukke lukkhe nimmamse atthichammavanaddhe kidikidiyabhue kise dhamanisamtae jae, no samchaemi devanuppiyassa amtiyam paubbhavitta nam tikkhutto muddhanenam padesu abhivamdittae. Tubbhe nam bhamte! Ichchhakkarenam anabhiogenam io cheva eha, jenam devanuppiyanam tikkhutto muddhanenam padesu vamdami namamsami. Tae nam aham jeneva anamde samanovasae, teneva uvagachchhami. Tae nam se anamde samanovasae mamam tikkhutto muddhanenam padesu vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– atthi nam bhamte! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai? Hamta atthi. Jai nam bhamte! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai, evam khalu bhamte! Mama vi gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppanne–puratthime nam lavanasamudde pamchajoyanasayaim khettam janami pasami. Dakkhine nam lavanasamudde pamchajoyanasayaim khettam janami pasami. Pachchatthime nam lavanasamudde pamchajoyanasayaim khettam janami pasami. Uttare nam java chullahimavamtam vasadharapavvayam janami pasami. Uddham java sohammam kappam janami pasami. Ahe java imise rayanappabhae pudhavie loluyachchuyam narayam chaurasiti-vasasahassatthitiyam janami pasami. Tae nam aham anamdam samanovasayam evam vaittha–atthi nam anamda! Gihino gihamajjhavasamtassa ohinane samuppajjai. No cheva nam emahalae. Tam nam tumam anamda! Eyassa thanassa aloehi java ahariham payachchhittam tavokammam padivajjahi. Tae nam se anamde mamam evam vayasi–atthi nam bhamte! Jinavayane samtanam tachchanam tahiyanam sabbhuyanam bhavanam aloijjai java ahariham payachchhittam tavokammam padivajjijjai? No inatthe samatthe. Jai nam bhamte! Jinavayane samtanam tachchanam tahiyanam sabbhuyanam bhavanam no aloijjai java ahariham payachchhittam tavokammam no padivajjijjai, tam nam bhamte! Tubbhe cheva eyassa thanassa aloeha java ahariham payachchhittam tavokammam padivajjeha. Tae nam aham anamdenam samanovasaenam evam vutte samane samkie kamkhie vitigichchhasamavanne anamdassa samanovasagassa amtiyao padinikkhamami, padinikkhamitta jeneva iha teneva havvamagae. Tam nam bhamte! Kim anamdenam samanovasaenam tassa thanassa aloeyavvam padikkameyavvam nimdeyavvam gariheyavvam viutteyavvam visoheyavvam akaranayae abbhuttheyavvam ahariham payachchhittam tavokammam padivajjeyavvam? Udahu mae? Goyamai! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–goyama! Tumam cheva nam tassa thanassa aloehi java ahariham payachchhittam tavokammam padivajjahi, anamdam cha samanovasayam eyamattham khamehi. Tae nam se bhagavam goyame samanassa bhagavao mahavirassa taha tti eyamattham vinaenam padisunei, padisunetta tassa thanassa olaei padikkamai nimdai garihai viuttai visohai akaranayae abbhutthai ahariham payachchhittam tavokammam padivajjai, anamdam cha samanovasayam eyamattham khamei. Tae nam samane bhagavam mahavire annada kadai bahiya janavayaviharam viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Shramanopasaka ananta ne bhagavan gautama ko ate hue dekha. Dekhakara vaha (yavat) atyanta prasanna hua, bhagavana gautama ko vandana – namaskara kara bola – bhagavan ! Maim ghora tapashcharya se itana kshina ho gaya hum ki nariyam dikhane lagi haim. Isalie devanupriya ke – apake pasa ane tatha charanom mem vandana karane mem asamartha hum. Ata eva prabho ! Apa hi svechchhapurvaka, anabhiyoga se – yaham padharem, jisase maim vandana, namaskara kara sakum. Taba bhagavan gautama, jaham ananda shramanopasaka tha, vaham gae. Shramanopasaka ananda ne tina bara mastaka jhukakara bhagavana gautama ke charanom mem vandana, namaskara kiya. Vandana, namaskara kara vaha yom bola – bhagavan ! Kya ghara mem rahate hue eka grihastha ko avadhi – jnyana utpanna ho sakata hai\? Gautama ne kaha – ho sakata hai. Ananda bola – bhagavan ! Eka grihastha ki bhumika mem vidyamana mujhe bhi avadhijnyana hua hai, jisase maim purva, pashchima tatha dakshina disha mem pamcha – sau, pamcha – sau yojana taka ka lavanasamudra ka kshetra, uttara disha mem himavan – varshadhara parvata taka ka kshetra, urdhva disha mem saudharma kalpa – taka tatha adhodisha mem prathama naraka – bhumi ratna – prabha mem lolupa – chyuta namaka naraka taka janata hum, dekhata hum. Taba bhagavana gautama ne shramanopasaka ananda se kaha – grihastha ko avadhi – jnyana utpanna ho sakata hai, para itana vishala nahim. Isalie ananda ! Tuma isa sthana ki – alochana karo, tadartha tapahkarma svikara karo. Shramanopasaka ananda bhagavana gautama se bola – bhagavan ! Kya jina – shasana mem satya, tathya – sadbhuta bhavom ke lie bhi alochana svikara karani hoti hai\? Gautama ne kaha – aisa nahim hota. Ananda bola – bhagavan ! Jinashasana mem satya bhavom ke lie alochana svikara nahim karani hoti to bhante ! Isa sthana – ke lie apa hi alochana svikara karem. Shramanopasaka ananda ke yom kahane para bhagavana gautama ke mana mem shamka, kamksha, vichikitsa – utpanna hua. Ve ananda ke pasa se ravana hue. Jaham dutipalasha chaitya tha, bhagavana mahavira the, vaham ae. Shramana bhagavana mahavira ke na adhika dura, na adhika najadika gamana – agamana ka pratikramana kiya, eshaniya – aneshaniya ki alochana ki. Aharapani bhagavana ko dikhalakara vandana – namaskara kara vaha saba kaha jo bhagavana se ajnya lekara bhiksha ke lie jane ke pashchat ghatita hua tha. Bhagavan ! Ukta sthana – ke lie kya shramanopasaka ananda ko alochana svikara karani chahie ya mujhe\? Bhagavana mahavira bole – gautama ! Isa sthana – ke lie tuma hi alochana karo tatha isake lie shramanopasaka ananda se kshamapana bhi. Bhagavana gautama ne shramana bhagavana mahavira ka kathana, ‘apa thika pharamate haim’, kahakara vinayapurvaka suna. Usa sthana – ke lie alochana svikara ki evam shramanopasaka ananda se kshama – yachana ki. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira kisi samaya anya janapadom mem vihara kara gae.