Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1004567 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Translated Chapter : |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1067 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एवं नीललेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असं-खेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं काउलेस्ससतं पि, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि। एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं तेउलेस्सेसु वि सतं, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाइं। एवं ठितीवि, नवरं– नोसण्णोवउत्ता वा। एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। जहा तेउलेस्ससतं तहा पम्हलेस्ससतं पि, नवरं–संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं। एवं ठितीवि नवरं–अंतोमुहुत्तं न भण्णति, सेसं तं चेव। एवं एएसु पंचसु सतेसु जहा कण्हलेस्ससते गमओ तहा नेयव्वो जाव अनंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। सुक्कलेस्ससतं जहा ओहियसतं, नवरं–संचिट्ठणा ठिती य जहा कण्हलेस्ससते, सेसं तहेव जाव अनंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। भवसिद्धीयकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा पढमं सण्णिसतं तहा नेयव्वं भवसिद्धीयाभिलावेणं, नवरं– सव्वे पाणा? नो तिणट्ठे समट्ठे, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। कण्हलेस्सभवसिद्धीयकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहियकण्हलेस्ससतं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं नीललेस्सभवसिद्धीए वि सतं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं जहा ओहियाणि सण्णिपंचिंदियाणं सत्त सताणि भणियाणि, एवं भवसिद्धीएहिं वि सत्त सताणि कायव्वाणि, नवरं–सत्तसु वि सतेसु सव्वे पाणा जाव नो तिणट्ठे समट्ठे, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। अभवसिद्धीयकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ तहेव अनुत्तरविमानवज्जो परिमाणं अवहारो उच्चतं बंधो वेदो वेदनं उदओ उदीरणा य जहा कण्ह-लेस्ससते। कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा। नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नो नाणी, अन्नाणी, एवं जहा कण्हलेस्ससते, नवरं– नो विरया, अविरया, नो विरया-विरया। संचिट्ठणा ठिती य जहा ओहिउद्देसए। समुग्घाया आदिल्लगा पंच। उव्वट्टणा तहेव अनुत्तरविमानवज्जं। सव्वे पाणा? नो तिणट्ठे समट्ठे, सेसं जहा कण्हलेस्ससते जाव अनंतखुत्तो। एवं सोलससु वि जुम्मेसु। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। पढमसमयअभवसिद्धीयकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा सण्णीणं पढमसमयउद्देसए तहेव, नवरं–सम्मत्तं सम्मामिच्छत्तं नाणं च सव्वत्थ नत्थि, सेसं तहेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा कायव्वा पढम-तइय-पंचमा एक्कगमा, सेसा अट्ठ वि एक्कगमा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। कण्हलेस्सअभवसिद्धीयकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा एएसिं चेव ओहिय-सतं तहा कण्हलेस्ससयं पि, नवरं– ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा? हंता कण्हलेस्सा। ठिती, संचिट्ठणा य जहा कण्हलेस्ससते, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं छहि वि लेस्साहिं छ सता कायव्वा जहा कण्हलेस्ससतं, नवरं–संचिट्ठणा ठिती य जहेव ओहियसते तहेव भाणियव्वा, नवरं–सुक्कलेस्साए उक्कोसेणं इक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त-मब्भहियाइं। ठिती एवं चेव, नवरं–अंतोमुहुत्तं नत्थि जहन्नगं तहेव सव्वत्थ सम्मत्त-नाणाणि नत्थि। विरई विरयाविरई अनुत्तरविमाणोववत्ति–एयाणि नत्थि। सव्वे पाणा? नो तिणट्ठे समट्ठे। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं एयाणि सत्त अभवसिद्धीयमहाजुम्मसताइं भवंति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। एवं सयाणि एक्कवीसं सण्णिमहाजुम्मसताणि। सव्वाणि वि एकासीतिमहाजुम्मसताइं। | ||
Sutra Meaning : | नीललेश्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है। पहले, तीसरे, पाँचवे इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ इसी प्रकार कापोतलेश्या शतक के विषय में समझ लेना चाहिए। विशेष – संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है तथा इसी प्रकार तीनों उद्देशक जानना। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ तेजोलेश्याविशिष्ट (संज्ञी पंचेन्द्रिय) का शतक भी इसी प्रकार है। विशेष यह है कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवे भाग अधिक दो सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है। किन्तु यहाँ नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं। इसी प्रकार तीनों उद्देशकों के विषय में समझना चाहिए। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन्! यह इसी प्रकार है०।’ तेजोलेश्या शतक के समान पद्मलेश्या शतक है। विशेष – संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इतनी ही है, किन्तु इसमें अन्तर्मुहूर्त्त अधिक नहीं कहना। शेष पूर्ववत्। इस प्रकार इन पाँचों शतकों में कृष्णलेश्या शतक के समान गमक पहले अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं, तक जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ शुक्ललेश्या शतक भी औघिक शतक के समान है। इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति कृष्णलेश्या शतक के समान है। शेष पूर्ववत्, पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक कहना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त भवसिद्धिकसंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथम संज्ञीशतक के अनुसार भवसिद्धिक के आलापक से यह शतक जानना चाहिए। विशेष में – भगवन् ! क्या सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष पूर्ववत्। ’हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! कृष्णलेश्यी – भवसिद्धिक कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिक संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न। गौतम ! कृष्णलेश्यी औघिक शतक के अनुसार कहना। ‘भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ नीललेश्यी भवसिद्धिक शतक भी इसी प्रकार जानना। ‘भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सात औघिक शतक समान भवसिद्धिक सम्बन्धी सातों शतक कहने चाहिए। विशेष यह है – सातों शतकों में क्या इससे पूर्व सर्व प्राण, यावत् सर्व सत्त्व उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! अभवसिद्धिक – कृतयुग्म – कृतयुग्मराशि – संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! अनुत्तरविमानों को छोड़कर शेष सभी स्थानों में पूर्ववत् उपपात जानना। इनका परिमाण, अपहार, ऊंचाई, बन्ध, वेद, वेदन, उदय और उदीरणा कृष्णलेश्या शतक के समान है। कृष्णलेश्यी से लेकर यावत् शुक्ल – लेश्यी होते हैं। केवल मिथ्यादृष्टि होते हैं। अज्ञानी हैं। इसी प्रकार सब कृष्णलेश्या शतक के समान है। विशेष यह है कि वे अविरत होते हैं। इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति औघिक उद्देशक के अनुसार जानना। इनमें प्रथम के पाँच समुद्घात हैं। उद्वर्त्तना अनुत्तरविमानों को छोड़कर पूर्ववत् जानना चाहिए। तथा – क्या सभी प्राण यावत् सत्त्व पहले इनमें उत्पन्न हुए हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं। शेष कृष्णलेश्या शतक के समान पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक कहना। इसी प्रकार सोलह ही युग्मों के विषय में जानना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न अभवसिद्धिक कृतयुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! प्रथमसमय के संज्ञी – उद्देशक के अनुसार जानना। विशेष – सम्यक्त्व, सम्यग् मिथ्यात्व और ज्ञान सर्वत्र नहीं होता। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ इस प्रकार इस शतक में भी ग्यारह उद्देशक होते हैं। इनमें से प्रथम, तृतीय एवं पंचम, ये तीनों उद्देशक समान पाठ वाले हैं तथा शेष आठ उद्देशक भी एक समान हैं। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ भगवन् ! कृष्णलेश्यी – अभवसिद्धिक – कृतयुग्म – कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औघिक शतक है, अनुसार कृष्णलेश्या – शतक जानना चाहिए। विशेष – भगवन् ! वे जीव कृष्ण – लेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। इनकी स्थिति और संचिट्ठणाकाल कृष्णलेश्या शतक समान। शेष पूर्ववत्। ‘भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ कृष्णलेश्या – सम्बन्धी शतक अनुसार छहों लेश्या – सम्बन्धी छह शतक कहने चाहिए। विशेष – संचिट्ठणा – काल और स्थिति का कथन औघिक शतक के समान है, किन्तु शुक्ललेश्यी का उत्कृष्ट संचिट्ठणाकाल अन्तर्मुहूर्त्त अधिक इकतीस सागरोपम होता है और स्थिति भी पूर्वोक्त ही होती है, किन्तु उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त अधिक नहीं कहना चाहिए। इनमें सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता तथा इनमें विरति, विरताविरति तथा अनुत्तरविमानो – त्पत्ति नहीं होती। इसके पश्चात् – भगवन् ! सभी प्राण यावत् सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ इस प्रकार ये सात अभवसिद्धिकमहायुग्म शतक होते हैं। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ इस प्रकार ये इक्कीस महायुग्मशतक संज्ञीपंचेन्द्रिय के हुए। सभी मिलाकर महायुग्म – सम्बन्धी ८१ शतक सम्पूर्ण हुए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] evam nilalessesu vi satam, navaram–samchitthana jahannenam ekkam samayam, ukkosenam dasa sagarovamaim paliovamassa asam-khejjaibhagamabbhahiyaim. Evam thiti vi. Evam tisu uddesaesu, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam kaulessasatam pi, navaram–samchitthana jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tinni sagarovamaim paliovamassa asamkhejjaibhagamabbhahiyaim. Evam thitivi. Evam tisu vi uddesaesu, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam teulessesu vi satam, navaram–samchitthana jahannenam ekkam samayam, ukkosenam do sagarovamaim paliovamassa asamkhejjaibhagamabbhahiyaim. Evam thitivi, navaram– nosannovautta va. Evam tisu vi uddesaesu, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Jaha teulessasatam taha pamhalessasatam pi, navaram–samchitthana jahannenam ekkam samayam, ukkosenam dasa sagarovamaim amtomuhuttamabbhahiyaim. Evam thitivi navaram–amtomuhuttam na bhannati, sesam tam cheva. Evam eesu pamchasu satesu jaha kanhalessasate gamao taha neyavvo java anamtakhutto. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Sukkalessasatam jaha ohiyasatam, navaram–samchitthana thiti ya jaha kanhalessasate, sesam taheva java anamtakhutto. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Bhavasiddhiyakadajummakadajummasannipamchimdiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Jaha padhamam sannisatam taha neyavvam bhavasiddhiyabhilavenam, navaram– Savve pana? No tinatthe samatthe, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Kanhalessabhavasiddhiyakadajummakadajummasannipamchimdiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Evam eenam abhilavenam jaha ohiyakanhalessasatam. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam nilalessabhavasiddhie vi satam. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam jaha ohiyani sannipamchimdiyanam satta satani bhaniyani, evam bhavasiddhiehim vi satta satani kayavvani, navaram–sattasu vi satesu savve pana java no tinatthe samatthe, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Abhavasiddhiyakadajummakadajummasannipamchimdiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Uvavao taheva anuttaravimanavajjo parimanam avaharo uchchatam bamdho vedo vedanam udao udirana ya jaha kanha-lessasate. Kanhalessa va java sukkalessa va. No sammaditthi, michchhaditthi, no sammamichchhaditthi. No nani, annani, evam jaha kanhalessasate, navaram– no viraya, aviraya, no viraya-viraya. Samchitthana thiti ya jaha ohiuddesae. Samugghaya adillaga pamcha. Uvvattana taheva anuttaravimanavajjam. Savve pana? No tinatthe samatthe, sesam jaha kanhalessasate java anamtakhutto. Evam solasasu vi jummesu. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Padhamasamayaabhavasiddhiyakadajummakadajummasannipamchimdiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Jaha sanninam padhamasamayauddesae taheva, navaram–sammattam sammamichchhattam nanam cha savvattha natthi, sesam taheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam ettha vi ekkarasa uddesaga kayavva padhama-taiya-pamchama ekkagama, sesa attha vi ekkagama. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Kanhalessaabhavasiddhiyakadajummakadajummasannipamchimdiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Jaha eesim cheva ohiya-satam taha kanhalessasayam pi, navaram– Te nam bhamte! Jiva kanhalessa? Hamta kanhalessa. Thiti, samchitthana ya jaha kanhalessasate, sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam chhahi vi lessahim chha sata kayavva jaha kanhalessasatam, navaram–samchitthana thiti ya jaheva ohiyasate taheva bhaniyavva, navaram–sukkalessae ukkosenam ikkatisam sagarovamaim amtomuhutta-mabbhahiyaim. Thiti evam cheva, navaram–amtomuhuttam natthi jahannagam taheva savvattha sammatta-nanani natthi. Virai virayavirai anuttaravimanovavatti–eyani natthi. Savve pana? No tinatthe samatthe. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam eyani satta abhavasiddhiyamahajummasataim bhavamti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. Evam sayani ekkavisam sannimahajummasatani. Savvani vi ekasitimahajummasataim. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Nilaleshya vale samjnyi ki vaktavyata bhi isi prakara samajhana. Vishesha yaha ki samchitthanakala jaghanya eka samaya aura utkrishta palyopama ke asamkhyatavem bhaga adhika dasa sagaropama hai. Sthiti bhi isi prakara hai. Pahale, tisare, pamchave ina tina uddeshakom ke vishaya mem janana chahie. Shesha purvavat. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ isi prakara kapotaleshya shataka ke vishaya mem samajha lena chahie. Vishesha – samchitthanakala jaghanya eka samaya aura utkrishta palyopama ke asamkhyatavem bhaga adhika tina sagaropama hai. Sthiti bhi isi prakara hai tatha isi prakara tinom uddeshaka janana. Shesha purvavat. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Tejoleshyavishishta (samjnyi pamchendriya) ka shataka bhi isi prakara hai. Vishesha yaha hai ki samchitthanakala jaghanya eka samaya aura utkrishta palyopama ke asamkhyatave bhaga adhika do sagaropama hai. Sthiti bhi isi prakara hai. Kintu yaham nosamjnyopayukta bhi hote haim. Isi prakara tinom uddeshakom ke vishaya mem samajhana chahie. Shesha purvavat. ‘he bhagavan! Yaha isi prakara hai0.’ tejoleshya shataka ke samana padmaleshya shataka hai. Vishesha – samchitthanakala jaghanya eka samaya aura utkrishta antarmuhurtta adhika dasa sagaropama hai. Sthiti bhi itani hi hai, kintu isamem antarmuhurtta adhika nahim kahana. Shesha purvavat. Isa prakara ina pamchom shatakom mem krishnaleshya shataka ke samana gamaka pahale ananta bara utpanna ho chuke haim, taka janana. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Shuklaleshya shataka bhi aughika shataka ke samana hai. Inaka samchitthanakala aura sthiti krishnaleshya shataka ke samana hai. Shesha purvavat, pahale ananta bara utpanna hue haim, taka kahana. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ bhagavan ! Kritayugma – kritayugmarashiyukta bhavasiddhikasamjnyi pamchendriya jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Prathama samjnyishataka ke anusara bhavasiddhika ke alapaka se yaha shataka janana chahie. Vishesha mem – bhagavan ! Kya sabhi prana, bhuta, jiva aura sattva yaham pahale utpanna hue haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Shesha purvavat. ’he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Bhagavan ! Krishnaleshyi – bhavasiddhika kritayugma – kritayugmarashika samjnyi pamchendriya jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Ityadi samagra prashna. Gautama ! Krishnaleshyi aughika shataka ke anusara kahana. ‘bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ nilaleshyi bhavasiddhika shataka bhi isi prakara janana. ‘bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ samjnyi pamchendriya jivom ke sata aughika shataka samana bhavasiddhika sambandhi satom shataka kahane chahie. Vishesha yaha hai – satom shatakom mem kya isase purva sarva prana, yavat sarva sattva utpanna hue haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Shesha purvavat. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Bhagavan ! Abhavasiddhika – kritayugma – kritayugmarashi – samjnyi pamchendriya jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Anuttaravimanom ko chhorakara shesha sabhi sthanom mem purvavat upapata janana. Inaka parimana, apahara, umchai, bandha, veda, vedana, udaya aura udirana krishnaleshya shataka ke samana hai. Krishnaleshyi se lekara yavat shukla – leshyi hote haim. Kevala mithyadrishti hote haim. Ajnyani haim. Isi prakara saba krishnaleshya shataka ke samana hai. Vishesha yaha hai ki ve avirata hote haim. Inaka samchitthanakala aura sthiti aughika uddeshaka ke anusara janana. Inamem prathama ke pamcha samudghata haim. Udvarttana anuttaravimanom ko chhorakara purvavat janana chahie. Tatha – kya sabhi prana yavat sattva pahale inamem utpanna hue haim\? Yaha artha samartha nahim. Shesha krishnaleshya shataka ke samana pahale ananta bara utpanna hue haim, taka kahana. Isi prakara solaha hi yugmom ke vishaya mem janana chahie. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Bhagavan ! Prathamasamayotpanna abhavasiddhika kritayugma – kritayugmarashiyukta samjnyipamchendriya jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Prathamasamaya ke samjnyi – uddeshaka ke anusara janana. Vishesha – samyaktva, samyag mithyatva aura jnyana sarvatra nahim hota. Shesha purvavat. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ isa prakara isa shataka mem bhi gyaraha uddeshaka hote haim. Inamem se prathama, tritiya evam pamchama, ye tinom uddeshaka samana patha vale haim tatha shesha atha uddeshaka bhi eka samana haim. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Bhagavan ! Krishnaleshyi – abhavasiddhika – kritayugma – kritayugmarashiyukta samjnyipamchendriya jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Aughika shataka hai, anusara krishnaleshya – shataka janana chahie. Vishesha – bhagavan ! Ve jiva krishna – leshya vale haim\? Ham, gautama ! Haim. Inaki sthiti aura samchitthanakala krishnaleshya shataka samana. Shesha purvavat. ‘bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ Krishnaleshya – sambandhi shataka anusara chhahom leshya – sambandhi chhaha shataka kahane chahie. Vishesha – samchitthana – kala aura sthiti ka kathana aughika shataka ke samana hai, kintu shuklaleshyi ka utkrishta samchitthanakala antarmuhurtta adhika ikatisa sagaropama hota hai aura sthiti bhi purvokta hi hoti hai, kintu utkrishta aura antarmuhurtta adhika nahim kahana chahie. Inamem sarvatra samyaktva aura jnyana nahim hota tatha inamem virati, viratavirati tatha anuttaravimano – tpatti nahim hoti. Isake pashchat – bhagavan ! Sabhi prana yavat sattva yaham pahale utpanna hue haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ isa prakara ye sata abhavasiddhikamahayugma shataka hote haim. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai0.’ isa prakara ye ikkisa mahayugmashataka samjnyipamchendriya ke hue. Sabhi milakara mahayugma – sambandhi 81 shataka sampurna hue. |