Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004533
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-३४ एकेन्द्रिय

शतक-शतक-१

Translated Chapter :

शतक-३४ एकेन्द्रिय

शतक-शतक-१

Section : उद्देशक-१ Translated Section : उद्देशक-१
Sutra Number : 1033 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कइविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवमेते चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया। अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा? एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उज्जुयायता सेढी, एगओवंका, दुहओवंका, एगओखहा, दुहओखहा, चक्कवाला, अद्धचक्कवाला। उज्जुआयताए सेढीए उववज्जमाणे एगसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। एगओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। दुहओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव उववज्जेज्जा। अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते पज्जत्तासुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? गोयमा! एगसमइएण वा सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–एगसमइएणं वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। एवं अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइओ पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते बादरपुढविकाइएसु अपज्जत्तएसु उववाएयव्वो, ताहे तेसु चेव पज्जत्तएसु। एवं आउक्काइएसु चत्तारि आलावगा सुहुमेहिं अपज्जत्तएहिं, ताहे पज्जत्तएहिं, बादरेहिं अपज्जत्तएहिं, ताहे पज्जत्तएहिं उववाएयव्वो। एवं चेव सुहुमतेउकाइएहिं वि अपज्जत्तएहिं ताहे पज्जत्तएहिं उववाएयव्वो। अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए मनुस्सखेत्ते अपज्जत्ताबादरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? सेसं तं चेव। एवं पज्जत्ताबादरतेउक्काइयत्ताए उववाएयव्वो। वाउक्काइएसु सुहुमबादरेसु जहा आउक्काइएसु उववाइओ तहा उववाएयव्वो। एवं वणस्सइकाइएसु वि। पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए? एवं पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइओ वि पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता एएणं चेव कमेणं एएसु चेव वीससु ठाणेसु उववाएयव्वो जाव बादरवणस्सइकाइएसु पज्जत्तएसु वि। एवं अपज्जत्ताबादर-पुढविकाइओ वि। एवं पज्जत्ताबादर-पुढविकाइओ वि। एवं आउकाइओ वि चउसु वि गमएसु पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, एयाए चेव वत्तव्वयाए एएसु चेव वीसइठाणेसु उववाएयव्वो। सुहुमतेउकाइओ वि अपज्जत्तओ पज्जत्तओ य एएसु चेव वीसाए ठाणेसु उववाएयव्वो। अपज्जत्ताबादरतेउक्काइए णं भंते! मनुस्सखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? सेसं तहेव जाव से तेणट्ठेणं। एवं पुढविक्काइएसु चउविहेसु वि उववाएयव्वो, एवं आउकाइएसु चउविहेसु वि, तेउकाइएसु सुहुमेसु अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य एवं चेव उववाएयव्वो। अपज्जत्ताबादरतेउक्काइए णं भंते! मनुस्सखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए मनुस्सखेत्ते अपज्जत्ताबादरतेउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कतिसमइएणं? सेसं तं चेव। एवं पज्जत्ताबादरतेउक्काइयत्ताए वि उववाएयव्वो। वाउकाइयत्ताए य वणस्सइकाइयत्ताए य जहा पुढविकाइएसु तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वो। एवं पज्जत्ताबादरतेउकाइयो वि समयखेत्ते समोहणावेत्ता एएसु चेव वीसाए ठाणेसु उववाएयव्वो। जहेव अपज्जत्तओ उववाइओ, एवं सव्वत्थ वि बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते उववाएयव्वा समोहणावेयव्वा वि। वाउक्काइया वणस्सइकाइया य जहा पुढविक्काइया तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वा जाव– पज्जत्ताबादरवणस्सइकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते पज्जत्ताबादर-वणस्सइकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कतिसमइएणं? सेसं तहेव जाव से तेणट्ठेणं। अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्लं चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं? सेसं तहेव निरवसेसं। एवं जहेव पुरत्थिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेसु वि समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, जे य समयखेत्त समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, एवं एएणं चेव कमेणं पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयव्वा तेणेव गमएणं। एवं एएणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाओ। एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयव्वा तेणेव गमएणं। अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुमपुढवि-काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहेव रयणप्पभाए जाव से तेणट्ठेणं। एवं एएणं कमेणं जाव पज्जत्तएसु सुहुमतेउकाइएसु। अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्ताबादरतेउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कतिसमइएणं–पुच्छा। गोयमा! दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। से केणट्ठेणं? एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उज्जुयायता जाव अद्धचक्कवाला। एगओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। दुहओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। से तेणट्ठेणं। एवं पज्जत्तएसु वि बादरतेउक्काइएसु। सेसं जहा रयणप्पभाए। जे वि बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते समोहणित्ता दोच्चाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते पुढविकाइएसु चउव्विहेसु, आउक्काइएसु चउव्विहेसु, तेउकाइएसु दुविहेसु, वाउकाइएसु चउव्विहेसु, वणस्सइकाइएसु चउव्विहेसु उववज्जंति, ते वि एवं चेव दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववाएयव्वा। बादर तेउक्काइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य जाहे तेसु चेव उववज्जंति ताहे जहेव रयणप्पभाए तहेव एगसमइय-दुसमइय-तिसमइयवि-ग्गहा भाणियव्वा, सेसं जहेव रयणप्पभाए तहेव निरवसेसं। जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए भाणियव्वा
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक। इनके भी प्रत्येक के चार – चार भेद वनस्पतिकायिक – पर्यन्त कहने चाहिए। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्‌घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिमी चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिकरूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, तो हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! एक समय की, दो समय की अथवा तीन समय की। भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह एक समय, दो समय अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं, यथा – ऋज्वायता, एकतोवक्रा, उभयतोवक्रा, एकतः खा, उभयतः खा, चक्रवाल और अर्द्धचक्रवाल। जो पृथ्वीकायिक जीव ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह एक समय की विग्रहगति से जो एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह दो समय की विग्रहगति से जो उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से हे गौतम ! यह कहा जाता है। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्‌घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिमदिशा के चरमान्त में पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! एक समय, दो समय अथवा तीन समय की इत्यादि शेष पूर्ववत्‌, इस कारण तक कहना चाहिए। इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का पूर्व – दिशा के चरमान्त में मृत्यु प्राप्त कर पश्चिमदिशा के चरमान्त में बादर अपर्याप्त पृथ्वीकायिक – रूप से उपपात कहना। और वहीं पर्याप्त – रूप से उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार अप्कायिक जीव के भी चार आलापक कहना – सूक्ष्म अपर्याप्तक का, सूक्ष्म पर्याप्तक का, बादर – अपर्याप्तक का तथा बादर पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक और पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, जो इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरण – समुद्‌घात करके मनुष्य – क्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, तो हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌ कहना। इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप से उपपात का कथन करना। सूक्ष्म और बादर अप्कायिक समान सूक्ष्म और बादर वायुकायिक का उपपात कहना। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों के उपपात के विषय में भी कहना। भगवन्‌ ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव भी रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्‌घात से क्रमशः इन बीस स्थानों में बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक तक, उपपात कहना। इसी प्रकार अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक का उपपात भी कहना। इसी प्रकार पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक के उपपात को जानना। इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के चार गमकों द्वारा पूर्व – चरमान्त में मरणसमुद्घातपूर्वक मरकर इन्हीं पूर्वोक्त बीस स्थानों में पूर्ववत्‌ का कथन करना। अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों का भी इन्हीं बीस स्थानों में पूर्वोक्तरूप से उपपात कहना। भगवन्‌ ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्‌घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम – चरमान्त में अपर्याप्त पृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं, हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌ इस कारण से वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, तक कहना। इसी प्रकार चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में भी पूर्ववत्‌ उपपात कहना। चार प्रकार के अप्कायिकों में भी इसी प्रकार उपपात कहना। सूक्ष्मतेजस्कायिक जीव के पर्याप्तक और अपर्याप्तक में भी इसी प्रकार उपपात कहना। भगवन्‌ ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्‌घात करके मनुष्यक्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌ कहना। इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उपपात का भी कथन करना। पृथ्वीकायिक जीवों के उपपात के समान चार भेदों से, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक रूप से उपपात का कथन करना। इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक का भी समय क्षेत्र में समुद्‌घात करके इन्हीं बीस स्थानों में उपपात का कथन करना। अपर्याप्त के उपपात समान पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक के मनुष्यक्षेत्र में समुद्‌घात और उपपात का कथन करना चाहिए। पृथ्वीकायिक – उपपात के समान चार – चार भेद से वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों का उपपात कहना। यावत्‌ – भगवन्‌ ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव रत्नप्रभा – पृथ्वी के पूर्वी – चरमान्त से मरणसमुद्‌घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम – चरमान्त में बादर वनस्पतिकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो, हे भगवन्‌ ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? पूर्ववत्‌ कथन करना। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम – चरमान्त में समुद्‌घात करके रत्नप्रभा – पृथ्वी के पूर्वी – चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न हो तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌ ! पूर्वी – चरमान्त के सभी पदों में समुद्‌घात करके पश्चिम चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में और जिनका मनुष्यक्षेत्र में समुद्‌घातपूर्वक पश्चिम – चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात के समान उसी क्रम से पश्चिम – चरमान्त में मनुष्यक्षेत्र में समुद्‌घातपूर्वक पूर्वीय – चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र के उसी गमक से उपपात होता है। इसी गमक से दक्षिण के चरमान्त में समुद्‌घात करके मनुष्यक्षेत्र में और उत्तर के चरमान्त में तथा मनुष्यक्षेत्र में तथा उत्तरी – चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में समुद्‌घात करके दक्षिणी – चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पूर्वी – चरमान्त में मरणसमुद्‌घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिम – चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी कथनानुसार ‘इस कारण से ऐसा कहा है’, तक कहना। इसी क्रम से पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्यन्त कहना। भगवन्‌ ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरणसमुद्‌घात करके, मनुष्यक्षेत्र के अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! दो या तीन समय की। भगवन्‌ ! किस कारण से ? गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं, यथा – ऋज्वायता से लेकर अर्द्धचक्रवाल पर्यन्त। जो एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह दो समय की विग्रह – गति से और जो उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से मैंने पूर्वोक्त बात कही है। इस प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक – रूप से (कहना चाहिए) शेष रत्नप्रभापृथ्वी के समान। जो बादरतेजस्कायिक अपर्याप्त और पर्याप्त जीव मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्‌घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिम चरमान्त में, चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में, चारों प्रकार के अप्कायिक जीवों में, दो प्रकार के तेजस्कायिक जीवों में और चार प्रकार के वायुकायिक जीवों में तथा चार प्रकार के वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, उनका भी दो या तीन समय की विग्रहगति से उपपात कहना चाहिए। जब पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव उन्हीं में उत्पन्न होते हैं, तब रत्नप्रभापृथ्वी अनुसार एक समय, दो समय या तीन समय की विग्रहगति कहनी। शेष सब रत्नप्रभापृथ्वी अनुसार जानना। शर्कराप्रभा – सम्बन्धी वक्तव्यता समान अधःसप्तम – पृथ्वीपर्यन्त कहनी चाहिए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kaiviha nam bhamte! Egimdiya pannatta? Goyama! Pamchaviha egimdiya pannatta, tam jaha–pudhavikkaiya java vanassaikaiya. Evamete chaukkaenam bhedenam bhaniyavva java vanassaikaiya. Apajjattasuhumapudhavikaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie pachchatthimille charimamte apajjatta-suhuma-pudhavikaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Kaisamaenam viggahenam uvavajjejja? Goyama! Egasamaiena va dusamaiena va tisamaiena va viggahenam uvavajjejja. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–egasamaiena va dusamaiena va java uvavajjejja? Evam khalu goyama! Mae satta sedhio pannattao, tam jaha–ujjuyayata sedhi, egaovamka, duhaovamka, egaokhaha, duhaokhaha, chakkavala, addhachakkavala. Ujjuayatae sedhie uvavajjamane egasamaienam viggahenam uvavajjejja. Egaovamkae sedhie uvavajjamane dusamaienam viggahenam uvavajjejja. Duhaovamkae sedhie uvavajjamane tisamaienam viggahenam uvavajjejja. Se tenatthenam goyama! Java uvavajjejja. Apajjattasuhumapudhavikaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie pachchatthimille charimamte pajjattasuhuma-pudhavikaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Kaisamaienam viggahenam uvavajjejja? Goyama! Egasamaiena va sesam tam cheva java se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–egasamaienam va dusamaiena va tisamaiena va viggahenam uvavajjejja. Evam apajjattasuhumapudhavikaio puratthimille charimamte samohanavetta pachchatthimille charimamte badarapudhavikaiesu apajjattaesu uvavaeyavvo, tahe tesu cheva pajjattaesu. Evam aukkaiesu chattari alavaga suhumehim apajjattaehim, tahe pajjattaehim, badarehim apajjattaehim, tahe pajjattaehim uvavaeyavvo. Evam cheva suhumateukaiehim vi apajjattaehim tahe pajjattaehim uvavaeyavvo. Apajjattasuhumapudhavikkaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie manussakhette apajjattabadarateukaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Kaisamaienam viggahenam uvavajjejja? Sesam tam cheva. Evam pajjattabadarateukkaiyattae uvavaeyavvo. Vaukkaiesu suhumabadaresu jaha aukkaiesu uvavaio taha uvavaeyavvo. Evam vanassaikaiesu vi. Pajjattasuhumapudhavikkaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie? Evam pajjattasuhumapudhavikkaio vi puratthimille charimamte samohanavetta eenam cheva kamenam eesu cheva visasu thanesu uvavaeyavvo java badaravanassaikaiesu pajjattaesu vi. Evam apajjattabadara-pudhavikaio vi. Evam pajjattabadara-pudhavikaio vi. Evam aukaio vi chausu vi gamaesu puratthimille charimamte samohae, eyae cheva vattavvayae eesu cheva visaithanesu uvavaeyavvo. Suhumateukaio vi apajjattao pajjattao ya eesu cheva visae thanesu uvavaeyavvo. Apajjattabadarateukkaie nam bhamte! Manussakhette samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie pachchatthimille charimamte apajjattasuhumapudhavikkaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Kaisamaienam viggahenam uvavajjejja? Sesam taheva java se tenatthenam. Evam pudhavikkaiesu chauvihesu vi uvavaeyavvo, evam aukaiesu chauvihesu vi, teukaiesu suhumesu apajjattaesu pajjattaesu ya evam cheva uvavaeyavvo. Apajjattabadarateukkaie nam bhamte! Manussakhette samohae, samohanitta je bhavie manussakhette apajjattabadarateukkaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Katisamaienam? Sesam tam cheva. Evam pajjattabadarateukkaiyattae vi uvavaeyavvo. Vaukaiyattae ya vanassaikaiyattae ya jaha pudhavikaiesu taheva chaukkaenam bhedenam uvavaeyavvo. Evam pajjattabadarateukaiyo vi samayakhette samohanavetta eesu cheva visae thanesu uvavaeyavvo. Jaheva apajjattao uvavaio, evam savvattha vi badarateukaiya apajjattaga ya pajjattaga ya samayakhette uvavaeyavva samohanaveyavva vi. Vaukkaiya vanassaikaiya ya jaha pudhavikkaiya taheva chaukkaenam bhedenam uvavaeyavva java– Pajjattabadaravanassaikaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie pachchatthimille charimamte pajjattabadara-vanassaikaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Katisamaienam? Sesam taheva java se tenatthenam. Apajjattasuhumapudhavikkaie nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie pachchatthimillam charimamte samohae, samohanitta je bhavie imise rayanappabhae pudhavie puratthimille charimamte apajjattasuhuma-pudhavikaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Kaisamaienam? Sesam taheva niravasesam. Evam jaheva puratthimille charimamte savvapadesu vi samohaya pachchatthimille charimamte samayakhette ya uvavaiya, je ya samayakhetta samohaya pachchatthimille charimamte samayakhette ya uvavaiya, evam eenam cheva kamenam pachchatthimille charimamte samayakhette ya samohaya puratthimille charimamte samayakhette ya uvavaeyavva teneva gamaenam. Evam eenam gamaenam dahinille charimamte samohayanam uttarille charimamte samayakhette ya uvavao. Evam cheva uttarille charimamte samayakhette ya samohaya dahinille charimamte samayakhette ya uvavaeyavva teneva gamaenam. Apajjattasuhumapudhavikaie nam bhamte! Sakkarappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie sakkarappabhae pudhavie pachchatthimille charimamte apajjattasuhumapudhavi-kaiyattae uvavajjittae? Evam jaheva rayanappabhae java se tenatthenam. Evam eenam kamenam java pajjattaesu suhumateukaiesu. Apajjattasuhumapudhavikkaie nam bhamte! Sakkarappabhae pudhavie puratthimille charimamte samohae, samohanitta je bhavie samayakhette apajjattabadarateukkaiyattae uvavajjittae, se nam bhamte! Katisamaienam–puchchha. Goyama! Dusamaiena va tisamaiena va viggahenam uvavajjejja. Se kenatthenam? Evam khalu goyama! Mae satta sedhio pannattao, tam jaha–ujjuyayata java addhachakkavala. Egaovamkae sedhie uvavajjamane dusamaienam viggahenam uvavajjejja. Duhaovamkae sedhie uvavajjamane tisamaienam viggahenam uvavajjejja. Se tenatthenam. Evam pajjattaesu vi badarateukkaiesu. Sesam jaha rayanappabhae. Je vi badarateukaiya apajjattaga ya pajjattaga ya samayakhette samohanitta dochchae pudhavie pachchatthimille charimamte pudhavikaiesu chauvvihesu, aukkaiesu chauvvihesu, teukaiesu duvihesu, vaukaiesu chauvvihesu, vanassaikaiesu chauvvihesu uvavajjamti, te vi evam cheva dusamaiena va tisamaiena va viggahenam uvavaeyavva. Badara teukkaiya apajjattaga ya pajjattaga ya jahe tesu cheva uvavajjamti tahe jaheva rayanappabhae taheva egasamaiya-dusamaiya-tisamaiyavi-ggaha bhaniyavva, sesam jaheva rayanappabhae taheva niravasesam. Jaha sakkarappabhae vattavvaya bhaniya evam java ahesattamae bhaniyavva
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Ekendriya kitane prakara ke kahe gae haim\? Gautama ! Pamcha prakara ke, yatha – prithvikayika yavat vanaspatikayika. Inake bhi pratyeka ke chara – chara bheda vanaspatikayika – paryanta kahane chahie. Bhagavan ! Aparyapta sukshmaprithvikayika jiva isa ratnaprabhaprithvi ke purvadisha ke charamanta mem maranasamudghata karake isa ratnaprabhaprithvi ke pashchimi charamanta mem aparyapta sukshmaprithvikayikarupa mem utpanna hone yogya haim, to he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Eka samaya ki, do samaya ki athava tina samaya ki. Bhagavan ! Aisa kyom kaha jata hai ki vaha eka samaya, do samaya athava tina samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? He gautama ! Maimne sata shreniyam kahi haim, yatha – rijvayata, ekatovakra, ubhayatovakra, ekatah kha, ubhayatah kha, chakravala aura arddhachakravala. Jo prithvikayika jiva rijvayata shreni se utpanna hota hai, vaha eka samaya ki vigrahagati se jo ekatovakra shreni se utpanna hota hai, vaha do samaya ki vigrahagati se jo ubhayatovakra shreni se utpanna hota hai, vaha tina samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai. Isa karana se he gautama ! Yaha kaha jata hai. Bhagavan ! Aparyapta sukshmaprithvikayika jiva jo ratnaprabhaprithvi ke purvadisha ke charamanta mem maranasamudghata karake isa ratnaprabhaprithvi ke pashchimadisha ke charamanta mem paryapta sukshmaprithvikayika – rupa se utpanna hone yogya hai, to he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Eka samaya, do samaya athava tina samaya ki ityadi shesha purvavat, isa karana taka kahana chahie. Isi prakara aparyapta sukshmaprithvikayika jiva ka purva – disha ke charamanta mem mrityu prapta kara pashchimadisha ke charamanta mem badara aparyapta prithvikayika – rupa se upapata kahana. Aura vahim paryapta – rupa se upapata kahana chahie. Isi prakara apkayika jiva ke bhi chara alapaka kahana – sukshma aparyaptaka ka, sukshma paryaptaka ka, badara – aparyaptaka ka tatha badara paryaptaka ka upapata kahana chahie. Isi prakara sukshma tejaskayika aparyaptaka aura paryaptaka ka upapata kahana chahie. Bhagavan ! Aparyapta sukshma prithvikayika jiva, jo isa ratnaprabhaprithvi ke purvadisha ke charamanta mem marana – samudghata karake manushya – kshetra mem aparyapta badaratejaskayika rupa mem utpanna hone yogya haim, to he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Purvavat kahana. Isi prakara paryapta badaratejaskayika rupa se upapata ka kathana karana. Sukshma aura badara apkayika samana sukshma aura badara vayukayika ka upapata kahana. Isi prakara vanaspatikayika jivom ke upapata ke vishaya mem bhi kahana. Bhagavan ! Paryapta sukshma prithvikayika jiva, isa ratnaprabha prithvi ke ityadi prashna\? Gautama ! Paryapta sukshma prithvikayika jiva bhi ratnaprabha prithvi ke purvadisha ke charamanta mem maranasamudghata se kramashah ina bisa sthanom mem badara paryapta vanaspatikayika taka, upapata kahana. Isi prakara aparyapta badara prithvikayika ka upapata bhi kahana. Isi prakara paryapta badara prithvikayika ke upapata ko janana. Isi prakara apkayika jivom ke chara gamakom dvara purva – charamanta mem maranasamudghatapurvaka marakara inhim purvokta bisa sthanom mem purvavat ka kathana karana. Aparyapta aura paryapta sukshma tejaskayika jivom ka bhi inhim bisa sthanom mem purvoktarupa se upapata kahana. Bhagavan ! Aparyapta badara tejaskayika jiva, jo manushyakshetra mem maranasamudghata karake ratnaprabhaprithvi ke pashchima – charamanta mem aparyapta prithvikayika – rupa se utpanna hone yogya haim, he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Purvavat isa karana se vaha tina samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai, taka kahana. Isi prakara charom prakara ke prithvikayika jivom mem bhi purvavat upapata kahana. Chara prakara ke apkayikom mem bhi isi prakara upapata kahana. Sukshmatejaskayika jiva ke paryaptaka aura aparyaptaka mem bhi isi prakara upapata kahana. Bhagavan ! Aparyapta badara tejaskayika jiva, jo manushyakshetra mem maranasamudghata karake manushyakshetra mem aparyapta badara tejaskayika rupa se utpanna hone yogya hai, to he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Purvavat kahana. Isi prakara paryapta badara tejaskayika rupa se upapata ka bhi kathana karana. Prithvikayika jivom ke upapata ke samana chara bhedom se, vayukayika tatha vanaspatikayika rupa se upapata ka kathana karana. Isi prakara paryapta badara tejaskayika ka bhi samaya kshetra mem samudghata karake inhim bisa sthanom mem upapata ka kathana karana. Aparyapta ke upapata samana paryapta aura aparyapta badara tejaskayika ke manushyakshetra mem samudghata aura upapata ka kathana karana chahie. Prithvikayika – upapata ke samana chara – chara bheda se vayukayika aura vanaspatikayika jivom ka upapata kahana. Yavat – bhagavan ! Paryapta badara vanaspatikayika jiva ratnaprabha – prithvi ke purvi – charamanta se maranasamudghata karake isa ratnaprabhaprithvi ke pashchima – charamanta mem badara vanaspatikayika rupa mem utpanna hone yogya ho to, he bhagavan ! Vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Purvavat kathana karana. Bhagavan ! Aparyapta sukshma prithvikayika ratnaprabhaprithvi ke pashchima – charamanta mem samudghata karake ratnaprabha – prithvi ke purvi – charamanta mem aparyapta sukshma prithvikayika rupa se utpanna ho to kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Purvavat ! Purvi – charamanta ke sabhi padom mem samudghata karake pashchima charamanta mem aura manushyakshetra mem aura jinaka manushyakshetra mem samudghatapurvaka pashchima – charamanta mem aura manushyakshetra mem upapata ke samana usi krama se pashchima – charamanta mem manushyakshetra mem samudghatapurvaka purviya – charamanta mem aura manushyakshetra ke usi gamaka se upapata hota hai. Isi gamaka se dakshina ke charamanta mem samudghata karake manushyakshetra mem aura uttara ke charamanta mem tatha manushyakshetra mem tatha uttari – charamanta mem aura manushyakshetra mem samudghata karake dakshini – charamanta mem aura manushyakshetra mem upapata kahana chahie. Bhagavan ! Aparyapta sukshma prithvikayika jiva sharkaraprabhaprithvi ke purvi – charamanta mem maranasamudghata karake sharkaraprabhaprithvi ke pashchima – charamanta mem aparyapta sukshma prithvikayika rupa se utpanna hone yogya ho to vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Ratnaprabhaprithvi kathananusara ‘isa karana se aisa kaha hai’, taka kahana. Isi krama se paryapta sukshma tejaskayika paryanta kahana. Bhagavan ! Aparyapta sukshma prithvikayika jiva sharkaraprabhaprithvi ke purva charamanta mem maranasamudghata karake, manushyakshetra ke aparyapta badara tejaskayika – rupa se utpanna hone yogya ho, to vaha kitane samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai\? Gautama ! Do ya tina samaya ki. Bhagavan ! Kisa karana se\? Gautama ! Maimne sata shreniyam kahi haim, yatha – rijvayata se lekara arddhachakravala paryanta. Jo ekatovakra shreni se utpanna hota hai, vaha do samaya ki vigraha – gati se aura jo ubhayatovakra shreni se utpanna hota hai, vaha tina samaya ki vigrahagati se utpanna hota hai. Isa karana se maimne purvokta bata kahi hai. Isa prakara paryapta badara tejaskayika – rupa se (kahana chahie) shesha ratnaprabhaprithvi ke samana. Jo badaratejaskayika aparyapta aura paryapta jiva manushyakshetra mem maranasamudghata karake sharkaraprabhaprithvi ke pashchima charamanta mem, charom prakara ke prithvikayika jivom mem, charom prakara ke apkayika jivom mem, do prakara ke tejaskayika jivom mem aura chara prakara ke vayukayika jivom mem tatha chara prakara ke vanaspatikayika jivom mem utpanna hote haim, unaka bhi do ya tina samaya ki vigrahagati se upapata kahana chahie. Jaba paryapta aura aparyapta badara tejaskayika jiva unhim mem utpanna hote haim, taba ratnaprabhaprithvi anusara eka samaya, do samaya ya tina samaya ki vigrahagati kahani. Shesha saba ratnaprabhaprithvi anusara janana. Sharkaraprabha – sambandhi vaktavyata samana adhahsaptama – prithviparyanta kahani chahie.