Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1004261
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१९

Translated Chapter :

शतक-१९

Section : उद्देशक-३ पृथ्वी Translated Section : उद्देशक-३ पृथ्वी
Sutra Number : 761 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच पुढविक्काइया एगयओ साधारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति? नो इणट्ठे समट्ठे। पुढविक्काइयाणं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा। ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी। ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी, नियमा दुअन्नाणी, तं जहा– मतिअन्नाणी य, सुयअन्नाणी य। ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्ता वि, अनागारोवउत्ता वि। ते णं भंते! जीवा किमाहारमाहारेंति? गोयमा! दव्वओ णं अनंतपदेसियाइं दव्वाइं–एवं जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव सव्वप्पणयाए आहारमाहारेंति। ते णं भंते! जीवा जमाहारेंति तं चिज्जति, जं नो आहारेंति तं नो चिज्जति, चिण्णे वा से ओद्दाइ पलिसप्पति वा? हंता गोयमा! ते णं जीवा जमाहारेंति तं चिज्जति, जं नो आहारेंति जाव पलिसप्पति वा। तेसि णं भंते! जीवाणं एवं सण्णाति वा पण्णाति वा मणोति वा वईति वा अम्हे णं आहारमाहारेमो? नो इणट्ठे समट्ठे, आहारेंति पुण ते। तेसि णं भंते! जीवाणं एवं सण्णाति वा पण्णाति वा मणोति वा वईति वा अम्हे णं इट्ठानिट्ठे फासे पडिसंवेदेमो? नो इणट्ठे समट्ठे, पडिसंवेदेंति पुण ते। ते णं भंते! जीवा किं पाणाइवाए उवक्खाइज्जंति, मुसावाए, अदिन्नादाने जाव मिच्छादंसणसल्ले उवक्खाइज्जंति? गोयमा! पाणाइवाए वि उवक्खाइज्जंति जाव मिच्छादंसणसल्ले वि उवक्खाइज्जंति। जेसिं पि णं जीवाणं ते जीवा एवमाहिज्जंति तेसिं पि णं जीवाणं नो विण्णाए नाणत्ते। ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? एवं जहा वक्कंतीए पुढविक्काइयाणं उववाओ तहा भाणियव्वो। तेसि णं भंते! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। तेसि णं भंते! जीवाणं कति समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं० वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए। ते णं भंते! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहया मरंति? असमोहया मरंति? गोयमा! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति। ते णं भंते! जीवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? एवं उव्वट्टणा जहा वक्कंतीए। सिय भंते! जाव चत्तारि पंच आउक्काइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति? एवं जो पुढविक्काइयाणं गमो सो चेव भाणियव्वो जाव उव्वट्टंति, नवरं–ठिती सत्त वाससहस्साइं उक्कोसेणं, सेसं तं चेव। सिय भंते! जाव चत्तारि पंच तेउक्काइया? एवं चेव, नवरं–उववाओ ठिती उव्वट्टणा य जहा पन्नवणाए सेसं तं चेव। वाउकाइयाणं एवं चेव, नाणत्तं नवरं–चत्तारि समुग्घाया। सिय भंते! जाव चत्तारि पंच वणस्सइकाइया–पुच्छा। गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। अनंता वणस्सइकाइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति। सेसं जहा तेउकाइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरं–आहारो नियमं छद्दिसिं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव।
Sutra Meaning : राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो यावत्‌ चार – पाँच पृथ्वीकायिक मिलकर साधारण शरीर बाँधते हैं, बाँधकर पीछे आहार करते हैं, फिर उस आहार का परिणमन करते हैं और फिर इसके बाद शरीर का बन्ध करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव प्रत्येक – पृथक्‌ – पृथक्‌ आहार करने वाले हैं और उस आहार को पृथक्‌ – पृथक्‌ करते हैं; इसलिए वे पृथक्‌ – पृथक्‌ शरीर बाँधते हैं। इसके पश्चात्‌ वे आहार करते हैं, उसे परिणमाते हैं और फिर शरीर बाँधते हैं। भगवन्‌ ! उन (पृथ्वीकायिक) जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! चार, यथा – कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और तेजोलेश्या। भगवन्‌ ! वे जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! वे जीव सम्यग्दृष्टि नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, वे सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि भी नहीं हैं। भगवन्‌ ! वे जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। उनमें दो अज्ञान निश्चित रूप से पाए जाते हैं – मति – अज्ञान और श्रुत – अज्ञान। भगवन्‌ ! क्या वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ? गौतम ! वे काययोगी हैं। भगवन्‌ वे जीव साकारोपयोगी हैं या अनाकारोपयोगी हैं ? गौतम ! वे साकारोपयोगी भी हैं और अनाकारोपयोगी भी हैं। भगवन्‌ ! वे (पृथ्वीकायिक) जीव क्या आहार करते हैं? गौतम! वे द्रव्य से – अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के आहारोद्देशक के अनुसार – सर्व आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं, तक (जानना)। भगवन्‌! वे जीव जो आहार करते हैं, क्या उसका चय होता है, और जिसका आहार नहीं करते, उसका चय नहीं होता? जिस आहार का चय हुआ है, वह आहार बाहर नीकलता है ? और (साररूप भाग) शरीर – इन्द्रियादि रूपमें परिणत होता है? गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! उन जीवों को – ‘हम आहार करते हैं’, ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन , वचन होते हैं ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। फिर भी वे आहार तो करते हैं। भगवन्‌ ! क्या उन जीवों को यह संज्ञा यावत्‌ वचन होता है कि हम इष्ट या अनिष्ट स्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, फिर भी वे वेदन तो करते ही हैं। भगवन्‌ ! क्या वे (पृथ्वीकायिक) जीव प्राणातिपात मृषावाद, अदत्तादान, यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं? हाँ, गौतम ! वे जीव रहे हुए हैं तथा वे जीव, दूसरे जिन पृथ्वीकायादि जीवों की हिंसादि करते हैं, उन्हें भी, ये जीव हमारी हिंसादि करने वाले हैं, ऐसा भेद ज्ञात नहीं होता। भगवन्‌ ! ये पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति – पद में पृथ्वीकायिक जीवों के उत्पाद समान यहाँ भी कहना। भगवन्‌ ! उन पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। भगवन्‌ ! उन जीवों के कितने समुद्‌घात कहे गए हैं ? गौतम ! तीन समुद्‌घात हैं, वेदनासमुद्‌घात, कषायसमुद्‌घात और मारणान्तिकसमुद्‌घात। भगवन्‌ ! क्या वे जीव मारणान्तिकसमुद्‌घात करके मरते हैं या मारणान्तिक समुद्‌घात किये बिना ही मरते हैं ? गौतम ! वे मारणान्तिक समुद्‌घात करके भी मरते हैं और समुद्‌घात किये बिना भी मरते हैं। भगवन्‌ ! वे जीव मरकर अन्तररहित कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) यहाँ व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार उनकी उद्वर्त्तना कहनी चाहिए। भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच अप्कायिक जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं और इसके पश्चात्‌ आहार करते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिकों के अनुसार उद्वर्त्तनाद्वार तक जानना। विशेष इतना ही है कि अप्कायिक जीवों की स्थिति उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। भगवन्‌ ! कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच तेजस्कायिक जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। विशेष यह है कि उनका उत्पाद, स्थिति और उद्वर्त्तना प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना। वायुकायिक जीवों भी इसी प्रकार हैं। विशेष यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्‌घात होते हैं। भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच आदि वनस्पति – कायिक जीव एकत्र मिलकर साधारण शरीर बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अनन्त वनस्पतिकायिक जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, फिर आहार करते हैं और परिणमाते हैं, इत्यादि सब अग्निकायिकों के समान उद्वर्त्तन करते हैं, विशेष यह है कि उनका आहार नियमतः छह दिशा का होता है। उनकी स्थिति भी अन्त – र्मुहूर्त्त की है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] rayagihe java evam vayasi–siya bhamte! Java chattari pamcha pudhavikkaiya egayao sadharanasariram bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti va parinamemti va sariram va bamdhamti? No inatthe samatthe. Pudhavikkaiyanam patteyahara patteyaparinama patteyam sariram bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti va parinamemti va sariram va bamdhamti. Tesi nam bhamte! Jivanam kati lessao pannattao? Goyama! Chattari lessao pannattao, tam jaha–kanhalessa, nilalessa, kaulessa, teulessa. Te nam bhamte! Jiva kim sammaditthi? Michchhaditthi? Sammamichchhaditthi? Goyama! No sammaditthi, michchhaditthi, no sammamichchhaditthi. Te nam bhamte! Jiva kim nani? Annani? Goyama! No nani, annani, niyama duannani, tam jaha– matiannani ya, suyaannani ya. Te nam bhamte! Jiva kim manajogi? Vaijogi? Kayajogi? Goyama! No manajogi, no vaijogi, kayajogi. Te nam bhamte! Jiva kim sagarovautta? Anagarovautta? Goyama! Sagarovautta vi, anagarovautta vi. Te nam bhamte! Jiva kimaharamaharemti? Goyama! Davvao nam anamtapadesiyaim davvaim–evam jaha pannavanae padhame aharuddesae java savvappanayae aharamaharemti. Te nam bhamte! Jiva jamaharemti tam chijjati, jam no aharemti tam no chijjati, chinne va se oddai palisappati va? Hamta goyama! Te nam jiva jamaharemti tam chijjati, jam no aharemti java palisappati va. Tesi nam bhamte! Jivanam evam sannati va pannati va manoti va vaiti va amhe nam aharamaharemo? No inatthe samatthe, aharemti puna te. Tesi nam bhamte! Jivanam evam sannati va pannati va manoti va vaiti va amhe nam itthanitthe phase padisamvedemo? No inatthe samatthe, padisamvedemti puna te. Te nam bhamte! Jiva kim panaivae uvakkhaijjamti, musavae, adinnadane java michchhadamsanasalle uvakkhaijjamti? Goyama! Panaivae vi uvakkhaijjamti java michchhadamsanasalle vi uvakkhaijjamti. Jesim pi nam jivanam te jiva evamahijjamti tesim pi nam jivanam no vinnae nanatte. Te nam bhamte! Jiva kaohimto uvavajjamti– kim neraiehimto uvavajjamti? Evam jaha vakkamtie pudhavikkaiyanam uvavao taha bhaniyavvo. Tesi nam bhamte! Jivanam kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam bavisam vasasahassaim. Tesi nam bhamte! Jivanam kati samugghaya pannatta? Goyama! Tao samugghaya pannatta, tam0 veyanasamugghae, kasayasamugghae, maranamtiyasamugghae. Te nam bhamte! Jiva maranamtiyasamugghaenam kim samohaya maramti? Asamohaya maramti? Goyama! Samohaya vi maramti, asamohaya vi maramti. Te nam bhamte! Jiva anamtaram uvvattitta kahim gachchhamti? Kahim uvavajjamti? Evam uvvattana jaha vakkamtie. Siya bhamte! Java chattari pamcha aukkaiya egayao saharanasariram bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti? Evam jo pudhavikkaiyanam gamo so cheva bhaniyavvo java uvvattamti, navaram–thiti satta vasasahassaim ukkosenam, sesam tam cheva. Siya bhamte! Java chattari pamcha teukkaiya? Evam cheva, navaram–uvavao thiti uvvattana ya jaha pannavanae sesam tam cheva. Vaukaiyanam evam cheva, nanattam navaram–chattari samugghaya. Siya bhamte! Java chattari pamcha vanassaikaiya–puchchha. Goyama! No inatthe samatthe. Anamta vanassaikaiya egayao saharanasariram bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti va parinamemti va sariram va bamdhamti. Sesam jaha teukaiyanam java uvvattamti, navaram–aharo niyamam chhaddisim, thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosena vi amtomuhuttam, sesam tam cheva.
Sutra Meaning Transliteration : Rajagriha nagara mem yavat puchha – bhagavan ! Kya kadachit do yavat chara – pamcha prithvikayika milakara sadharana sharira bamdhate haim, bamdhakara pichhe ahara karate haim, phira usa ahara ka parinamana karate haim aura phira isake bada sharira ka bandha karate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Kyomki prithvikayika jiva pratyeka – prithak – prithak ahara karane vale haim aura usa ahara ko prithak – prithak karate haim; isalie ve prithak – prithak sharira bamdhate haim. Isake pashchat ve ahara karate haim, use parinamate haim aura phira sharira bamdhate haim. Bhagavan ! Una (prithvikayika) jivom ke kitani leshyaem haim\? Gautama ! Chara, yatha – krishnaleshya, nilaleshya, kapotaleshya aura tejoleshya. Bhagavan ! Ve jiva samyagdrishti haim, mithyadrishti haim, ya samyagmithyadrishti haim\? Gautama ! Ve jiva samyagdrishti nahim haim, mithyadrishti haim, ve samyagmithyadrishti bhi nahim haim. Bhagavan ! Ve jiva jnyani haim athava ajnyani haim? Gautama ! Ve jnyani nahim haim, ajnyani haim. Unamem do ajnyana nishchita rupa se pae jate haim – mati – ajnyana aura shruta – ajnyana. Bhagavan ! Kya ve jiva manoyogi haim, vachanayogi haim, athava kayayogi haim\? Gautama ! Ve kayayogi haim. Bhagavan ve jiva sakaropayogi haim ya anakaropayogi haim\? Gautama ! Ve sakaropayogi bhi haim aura anakaropayogi bhi haim. Bhagavan ! Ve (prithvikayika) jiva kya ahara karate haim? Gautama! Ve dravya se – anantapradeshi dravyom ka ahara karate haim, ityadi varnana prajnyapanasutra ke aharoddeshaka ke anusara – sarva atmapradeshom se ahara karate haim, taka (janana). Bhagavan! Ve jiva jo ahara karate haim, kya usaka chaya hota hai, aura jisaka ahara nahim karate, usaka chaya nahim hota? Jisa ahara ka chaya hua hai, vaha ahara bahara nikalata hai\? Aura (sararupa bhaga) sharira – indriyadi rupamem parinata hota hai? Gautama ! Aisa hi hai. Bhagavan ! Una jivom ko – ‘hama ahara karate haim’, aisi samjnya, prajnya, mana, vachana hote haim\? He gautama ! Yaha artha samartha nahim. Phira bhi ve ahara to karate haim. Bhagavan ! Kya una jivom ko yaha samjnya yavat vachana hota hai ki hama ishta ya anishta sparsha ka anubhava karate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai, phira bhi ve vedana to karate hi haim. Bhagavan ! Kya ve (prithvikayika) jiva pranatipata mrishavada, adattadana, yavat mithyadarshanashalya mem rahe hue haim? Ham, gautama ! Ve jiva rahe hue haim tatha ve jiva, dusare jina prithvikayadi jivom ki himsadi karate haim, unhem bhi, ye jiva hamari himsadi karane vale haim, aisa bheda jnyata nahim hota. Bhagavan ! Ye prithvikayika jiva kaham se akara utpanna hote haim? Kya ve nairayikom se akara utpanna hote haim, ityadi prashna. Gautama ! Prajnyapanasutra ke chhathe vyutkranti – pada mem prithvikayika jivom ke utpada samana yaham bhi kahana. Bhagavan ! Una prithvikayika jivom ki sthiti kitane kala ki kahi hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta ki, utkrishta baisa hajara varsha ki hai. Bhagavan ! Una jivom ke kitane samudghata kahe gae haim\? Gautama ! Tina samudghata haim, vedanasamudghata, kashayasamudghata aura maranantikasamudghata. Bhagavan ! Kya ve jiva maranantikasamudghata karake marate haim ya maranantika samudghata kiye bina hi marate haim\? Gautama ! Ve maranantika samudghata karake bhi marate haim aura samudghata kiye bina bhi marate haim. Bhagavan ! Ve jiva marakara antararahita kaham jate haim, kaham utpanna hote haim\? (gautama !) yaham vyutkrantipada ke anusara unaki udvarttana kahani chahie. Bhagavan ! Kya kadachit do, tina, chara ya pamcha apkayika jiva milakara eka sadharana sharira bamdhate haim aura isake pashchat ahara karate haim\? Gautama ! Prithvikayikom ke anusara udvarttanadvara taka janana. Vishesha itana hi hai ki apkayika jivom ki sthiti utkrishta sata hajara varsha ki hai. Bhagavan ! Kadachit do, tina, chara ya pamcha tejaskayika jiva milakara eka sadharana sharira bamdhate haim\? Gautama ! Purvavat. Vishesha yaha hai ki unaka utpada, sthiti aura udvarttana prajnyapanasutra ke anusara janana. Vayukayika jivom bhi isi prakara haim. Vishesha yaha hai ki vayukayika jivom mem chara samudghata hote haim. Bhagavan ! Kya kadachit do, tina, chara ya pamcha adi vanaspati – kayika jiva ekatra milakara sadharana sharira bamdhate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Ananta vanaspatikayika jiva milakara eka sadharana sharira bamdhate haim, phira ahara karate haim aura parinamate haim, ityadi saba agnikayikom ke samana udvarttana karate haim, vishesha yaha hai ki unaka ahara niyamatah chhaha disha ka hota hai. Unaki sthiti bhi anta – rmuhurtta ki hai.