Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Sr No : | 1004256 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१८ |
Translated Chapter : |
शतक-१८ |
Section : | उद्देशक-१० सोमिल | Translated Section : | उद्देशक-१० सोमिल |
Sutra Number : | 756 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य, कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति। तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इहमागए इहसंपत्ते इहसमोसढे इहेव वाणियगामे नगरे दूतिपलासए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं गच्छामि णं समणस्स नायपुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामि, इमाइं च णं एयारूवाइं अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामि, तं जइ मे से इमाइं एयारूवाइं अट्ठाइं जाव वागरणाइं वागरेहिति ततो णं वंदीहामि नमंसीहामि जाव पज्जुवासीहामि, अह मे से इमाइं अट्ठाइं जाव वागरणाइं नो वागरेहिती तो णं एएहिं चेव अट्ठेहि य जाव वागरणेहिं य निप्पट्ठ-पसिणवागरणं करेस्सामि ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ण्हाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं एगेणं खंडियसएणं सद्धिं संपरिवुडे वाणियगामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव दूतिपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी– जत्ता ते भंते? जवणिज्जं ते भंते? अव्वाबाहं ते भंते? फासुयविहारं ते भंते? सोमिला! जत्ता वि मे, जवणिज्जं पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे। किं ते भंते! जत्ता? सोमिला! जं मे तव-नियम-संजय-सज्झाय-ज्झाणावस्सगमादीएसु जोगेसु जयणा, सेत्तं जत्ता। किं ते भंते! जवणिज्जं? सोमिला! जवणिज्जे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इंदियजवणिज्जे य, नोइंदियजवणिज्जे य। से किं तं इंदियजवणिज्जे? इंदियजवणिज्जे–जं मे सोइंदिय-चक्खिंदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियाइं निरुवहयाइं वसे वट्टंति, सेत्तं इंदियजवणिज्जे। से किं तं नोइंदियजवणिज्जे? नोइंदियजवणिज्जे–जं मे कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना नो उदीरेंति, सेत्तं नोइंदियजवणिज्जे, सेत्तं जवणिज्जे। किं ते भंते! अव्वाबाहं? सोमिला! जं मे वातिय-पित्तिय-संभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता नो उदीरेंति, सेत्तं अव्वाबाहं। किं ते भंते! फासुयविहारं? सोमिला! जण्णं आरामेसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु फासुएसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि, सेत्तं फासुयविहारं सरिसवा ते भंते! किं भक्खेया? अभक्खेया? सोमिला! सरिसवा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सरिसवा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि? से नूनं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा सरिसवा पन्नत्ता, तं जहा मित्तसरिसवा य, धन्नसरिसवा य। तत्थ णं जेते मित्तसरिसवा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–सहजायया, सहवड्ढियया, सहपंसुकीलियया, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धन्नसरिसवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सत्थपरिणया य, असत्थपरिणया य। तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–एसणिज्जा य, अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–जाइया य, अजाइया य। तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–लद्धा य, अलद्धा य। तत्थ णं जेते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। से तेणट्ठेणं सोमिला! एवं वुच्चइ–सरिसवा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि। मासा ते भंते! किं भक्खेया? अभक्खेया? सोमिला! मासा मे भक्खेया वि, अभक्खेया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–मासा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि? से नूनं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा मासा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वमासा य, कालमासा य। तत्थ णं जेते कालमासा ते णं सावणादीया आसाढपज्जवसाणा दुवालस पन्नत्ता, तं जहा–सावणे, भद्दवए, आसोए, कत्तिए, मग्गसिरे, पोसे, माहे, फग्गुणे, चेत्ते, वइसाहे, जेट्ठामूले, आसाढे। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते दव्वमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थमासा य, धण्णमासा य। तत्थ णं जेते अत्थमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुवण्णमासा य, रुप्पमासा य। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सत्थपरिणया य, असत्थपरिणया य। एवं जहा धण्णसरिसवा जाव से तेणट्ठेणं जाव अभक्खेया वि। कुलत्था ते भंते! किं भक्खेया? अभक्खेया? सोमिला! कुलत्था मे भक्खेया वि अभक्खेया वि। से केणट्ठेणं जाव अभक्खेया वि? से नूनं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा कुलत्था पन्नत्ता, तं जहा–इत्थिकुलत्था य, धण्णकुलत्था य। तत्थ णं जेते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–कुलवधुया इ वा, कुलमाउया इ वा, कुलधुया इ वा। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णकुलत्था एवं जहा धण्णसरिसवा। से तेणट्ठेणं जाव अभक्खेया वि। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था। उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था। जो आढ्य यावत् अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत् अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था। वह पाँच – सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख – पूर्वक जीवनयापन करता था। उन्हीं दिनों में श्रमण भगवान महावीर स्वामी यावत् पधारे। यावत् परीषद् भगवान की पर्युपासना करनेल लगी। जब सोमिल ब्राह्मण को भगवान महावीर स्वामी के आगमन की बात मालूम हुई तो उसके मन मे इस प्रकार का यावत् विचार उत्पन्न हुआ – ‘पूर्वानुपूर्वी से विचरण करते हुए तथा ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक पदार्पण करते हुए ज्ञातपुत्र श्रमण (महावीर) यावत् यहाँ आए हैं, अतः मैं श्रमण ज्ञातपुत्र के पास जाऊं और वहाँ जाकर इन और ऐसे अर्थ यावत् व्याकरण उनसे पूछूँ। यदि वे मेरे इन और ऐसे अर्थों यावत् प्रश्नों का यथार्थ उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दन – नमस्कार करूँगा, यावत् उनकी पर्युपासना करूँगा। यदि वे मेरे इन और ऐसे अर्थों और प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकेंगे तो मैं उन्हें इन्हीं अर्थों और उत्तरों से निरुत्तर कर दूँगा।’ ऐसा विचार किया। तत्पश्चात् उसने स्नान किया, यावत् शरीर को वस्त्र और सभी अलंकारों से विभूषित किया। फिर वह अपने घर से नीकला और अपने एक सौ शिष्यों के साथ पैदल चलकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आया और न अति दूर, न अति निकट खड़े होकर उसने उनसे इस प्रकार पूछा – भन्ते ! आपके (धर्म में) यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुकविहार हैं ? सोमिल मेरे (धर्म में) यात्रा भी है, यापनीय भी है, अव्याबाध भी है और प्रासुकविहार भी है। भन्ते ! आपके यहाँ यात्रा कैसी है ? सोमिल ! तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगों में जो मेरी यतना है, वही मेरी यात्रा है। भगवन् ! आपके यापनीय क्या है ? सोमिल ! दो प्रकार का हे। इन्द्रिय – यापनीय और नो – इन्द्रिय – यापनीय। भगवन् ! वह इन्द्रिय – यापनीय क्या है ? सोमिल ! श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय, ये पाँचों इन्द्रियाँ निरुपहत और वश में हैं, यह मेरा इन्द्रिय – यापनीय है। भन्ते ! वह नोइन्द्रिय – यापनीय क्या है ? सोमिल ! जो मेरे क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों कषाय व्युच्छिन्न हो गए हैं; और उदयप्राप्त नहीं हैं, यह मेरा नोइन्द्रिय – यापनीय है। इस प्रकार मेरे ये यापनीय हैं। भगवन् ! आपके अव्याबाध क्या है ? सोमिल ! मेरे वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातजन्य तथा अनेक प्रकार के शरीर सम्बन्धी रोग, आतंक एवं शरीरगत दोष उपशान्त हो गए हैं, वे उदय में नहीं आते। यही मेरा अव्याबाध है। भगवन् ! आपके प्रासुकविहार कौन – सा है ? सोमिल ! आराम, उद्यान, देवकुल, सभा और प्रपा आदि स्थानों में स्त्री – पशु – नपुंसकवर्जित वसतियों में प्रासुक, एषणीय पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि स्वीकार करके मैं विचरता हूँ, यही मेरा प्रासुकविहार है। भगवन् ! आपके लिए ‘सरिसव’ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? सोमिल ! भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। भगवन् यह आप कैसे कहते हैं ? सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण नयों में दो प्रकार के ‘सरिसव’ कहे गए हैं, यथा – मित्र – सरिसव और धान्य – सरिसव। जो मित्र – सरिसव हैं, वह तीन प्रकार के हैं, यथा – सहजात, सहवर्धित और सहपांशुक्रीडित। ये तीनों श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो धान्यसरिसव हैं, वह भी दो प्रकार के हैं, यथा – शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत। जो अशस्त्रपरिणत हैं, वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो शस्त्रपरिणत हैं, वह भी दो प्रकार के हैं, यथा – एषणीय और अनेषणीय। अनेषणीय सरिसव तो श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। एषणीय सरिसव दो प्रकार के हैं, यथा – याचित और अयाचित। अयाचित श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। याचित भी दो प्रकार के हैं, यथा – लब्ध और अलब्ध। अलब्ध श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं और जो लब्ध हैं, वह श्रमण – निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं। इस कारण से, ऐसा कहा गया है कि – ‘सरिसव’ मेरे लिक्ष भक्ष्य भी हैं, और अभक्ष्य भी हैं। भगवन् ! आपके मत में ‘मास् भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ? सोमिल ! ‘मास’ भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण – नयों में ‘मास’ दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा – द्रव्यमास और कालमास। उनमें से जो कालमास हैं, वे श्रावण से लेकर आषाढ़ – मास – पर्यन्त बारह हैं, यथा – श्रवण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़। ये श्रमण – निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। द्रव्य – मास दो प्रकार का है। यथा – अर्थमाष और धान्यमाष। उनमें से अर्थमाष दो प्रकार का है यथा – स्वर्णमाष और रौप्यमाष। ये दोनों माष श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। धान्यमाष दो प्रकार का है – यथा – शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत। इत्यादि सभी आलापक धन्य – सरिसव के समान कहने चाहिए, यावत् इसी कारण से हे सोमिल ! कहा गया है कि ‘मास’ भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। भगवन् ! आपके लिए ‘कुलत्थ’ भक्ष्य हैं अथवा अभक्ष्य हैं ? सोमिल ! ‘कुलत्थ’ मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कुलत्थ यावत् अभक्ष्य भी हैं ? सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मणनयों में कुलत्था दो प्रकार की कही गई है, यथा – स्त्रीकुलत्था और धान्यकुलत्था। स्त्रीकुलत्था तीन प्रकार की कही गई है, यथा – कुलवधू या कुलमाता, अथवा कुलकन्या। ये तीनों श्रमण – निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। उनमें से जो धान्यकुलत्था है, उसके सभी आलापक धान्य – सरिसव के समान हैं, यावत् – ‘हे सोमिल ! इसीलिए कहा गया है कि ‘धान्यकुलत्था भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं’। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam vaniyagame namam nagare hottha–vannao. Dutipalasae cheie–vannao. Tattha nam vaniyagame nagare somile namam mahane parivasati addhe java bahujanassa aparibhue, rivveda java suparinitthie, pamchanham khamdiyasayanam, sayassa ya, kudumbassa ahevachcham porevachcham samittam bhattittam ana-isara-senavachcham karemane palemane viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire java samosadhe java parisa pajjuvasati. Tae nam tassa somilassa mahanassa imise kahae laddhatthassa samanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu samane nayaputte puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane ihamagae ihasampatte ihasamosadhe iheva vaniyagame nagare dutipalasae cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam gachchhami nam samanassa nayaputtassa amtiyam paubbhavami, imaim cha nam eyaruvaim atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhissami, tam jai me se imaim eyaruvaim atthaim java vagaranaim vagarehiti tato nam vamdihami namamsihami java pajjuvasihami, aha me se imaim atthaim java vagaranaim no vagarehiti to nam eehim cheva atthehi ya java vagaranehim ya nippattha-pasinavagaranam karessami ti kattu evam sampehei, sampehetta nhae java appamahagghabharanalamkiyasarire sao gihao padinikkhamati, padinikkhamitta payaviharacharenam egenam khamdiyasaenam saddhim samparivude vaniyagamam nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva dutipalasae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte thichcha samanam bhagavam mahaviram evam vayasi– Jatta te bhamte? Javanijjam te bhamte? Avvabaham te bhamte? Phasuyaviharam te bhamte? Somila! Jatta vi me, javanijjam pi me, avvabaham pi me, phasuyaviharam pi me. Kim te bhamte! Jatta? Somila! Jam me tava-niyama-samjaya-sajjhaya-jjhanavassagamadiesu jogesu jayana, settam jatta. Kim te bhamte! Javanijjam? Somila! Javanijje duvihe pannatte, tam jaha–imdiyajavanijje ya, noimdiyajavanijje ya. Se kim tam imdiyajavanijje? Imdiyajavanijje–jam me soimdiya-chakkhimdiya-ghanimdiya-jibbhimdiya-phasimdiyaim niruvahayaim vase vattamti, settam imdiyajavanijje. Se kim tam noimdiyajavanijje? Noimdiyajavanijje–jam me koha-mana-maya-lobha vochchhinna no udiremti, settam noimdiyajavanijje, settam javanijje. Kim te bhamte! Avvabaham? Somila! Jam me vatiya-pittiya-sambhiya-sannivaiya viviha rogayamka sariragaya dosa uvasamta no udiremti, settam avvabaham. Kim te bhamte! Phasuyaviharam? Somila! Jannam aramesu ujjanesu devakulesu sabhasu pavasu itthi-pasu-pamdagavivajjiyasu vasahisu phasuesanijjam pidha-phalaga-sejja-samtharagam uvasampajjittanam viharami, settam phasuyaviharam Sarisava te bhamte! Kim bhakkheya? Abhakkheya? Somila! Sarisava me bhakkheya vi abhakkheya vi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–sarisava me bhakkheya vi abhakkheya vi? Se nunam bhe somila! Bambhannaesu naesu duviha sarisava pannatta, tam jaha mittasarisava ya, dhannasarisava ya. Tattha nam jete mittasarisava te tiviha pannatta, tam jaha–sahajayaya, sahavaddhiyaya, sahapamsukiliyaya, te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete dhannasarisava te duviha pannatta, tam jaha–satthaparinaya ya, asatthaparinaya ya. Tattha nam jete asatthaparinaya te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete satthaparinaya te duviha pannatta, tam jaha–esanijja ya, anesanijja ya. Tattha nam jete anesanijja te samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete esanijja te duviha pannatta, tam jaha–jaiya ya, ajaiya ya. Tattha nam jete ajaiya te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete jaiya te duviha pannatta, tam jaha–laddha ya, aladdha ya. Tattha nam jete aladdha te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete laddha te nam samananam niggamthanam bhakkheya. Se tenatthenam somila! Evam vuchchai–sarisava me bhakkheya vi abhakkheya vi. Masa te bhamte! Kim bhakkheya? Abhakkheya? Somila! Masa me bhakkheya vi, abhakkheya vi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–masa me bhakkheya vi abhakkheya vi? Se nunam bhe somila! Bambhannaesu naesu duviha masa pannatta, tam jaha–davvamasa ya, kalamasa ya. Tattha nam jete kalamasa te nam savanadiya asadhapajjavasana duvalasa pannatta, tam jaha–savane, bhaddavae, asoe, kattie, maggasire, pose, mahe, phaggune, chette, vaisahe, jetthamule, asadhe. Te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete davvamasa te duviha pannatta, tam jaha–atthamasa ya, dhannamasa ya. Tattha nam jete atthamasa te duviha pannatta, tam jaha–suvannamasa ya, ruppamasa ya. Te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete dhannamasa te duviha pannatta, tam jaha–satthaparinaya ya, asatthaparinaya ya. Evam jaha dhannasarisava java se tenatthenam java abhakkheya vi. Kulattha te bhamte! Kim bhakkheya? Abhakkheya? Somila! Kulattha me bhakkheya vi abhakkheya vi. Se kenatthenam java abhakkheya vi? Se nunam bhe somila! Bambhannaesu naesu duviha kulattha pannatta, tam jaha–itthikulattha ya, dhannakulattha ya. Tattha nam jete itthikulattha te tiviha pannatta, tam jaha–kulavadhuya i va, kulamauya i va, kuladhuya i va. Te nam samananam niggamthanam abhakkheya. Tattha nam jete dhannakulattha evam jaha dhannasarisava. Se tenatthenam java abhakkheya vi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samaya mem vanijyagrama namaka nagara tha. Vaham dyutipalasha nama ka (chaitya) tha. Usa vanijya grama nagara mem somila brahmana rahata tha. Jo adhya yavat aparabhuta tha tatha rigveda yavat atharvaveda, tatha shiksha, kalpa adi vedamgom mem nishnata tha. Vaha pamcha – sau shishyom aura apane kutumba para adhipatya karata hua yavat sukha – purvaka jivanayapana karata tha. Unhim dinom mem shramana bhagavana mahavira svami yavat padhare. Yavat parishad bhagavana ki paryupasana karanela lagi. Jaba somila brahmana ko bhagavana mahavira svami ke agamana ki bata maluma hui to usake mana me isa prakara ka yavat vichara utpanna hua – ‘purvanupurvi se vicharana karate hue tatha gramanugrama sukhapurvaka padarpana karate hue jnyataputra shramana (mahavira) yavat yaham ae haim, atah maim shramana jnyataputra ke pasa jaum aura vaham jakara ina aura aise artha yavat vyakarana unase puchhum. Yadi ve mere ina aura aise arthom yavat prashnom ka yathartha uttara demge to maim unhem vandana – namaskara karumga, yavat unaki paryupasana karumga. Yadi ve mere ina aura aise arthom aura prashnom ke uttara nahim de sakemge to maim unhem inhim arthom aura uttarom se niruttara kara dumga.’ aisa vichara kiya. Tatpashchat usane snana kiya, yavat sharira ko vastra aura sabhi alamkarom se vibhushita kiya. Phira vaha apane ghara se nikala aura apane eka sau shishyom ke satha paidala chalakara jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham unake pasa aya aura na ati dura, na ati nikata khare hokara usane unase isa prakara puchha – bhante ! Apake (dharma mem) yatra, yapaniya, avyabadha aura prasukavihara haim\? Somila mere (dharma mem) yatra bhi hai, yapaniya bhi hai, avyabadha bhi hai aura prasukavihara bhi hai. Bhante ! Apake yaham yatra kaisi hai\? Somila ! Tapa, niyama, samyama, svadhyaya, dhyana aura avashyaka adi yogom mem jo meri yatana hai, vahi meri yatra hai. Bhagavan ! Apake yapaniya kya hai\? Somila ! Do prakara ka he. Indriya – yapaniya aura no – indriya – yapaniya. Bhagavan ! Vaha indriya – yapaniya kya hai\? Somila ! Shrotrendriya, chakshurindriya, ghranendriya, jihvendriya aura sparshendriya, ye pamchom indriyam nirupahata aura vasha mem haim, yaha mera indriya – yapaniya hai. Bhante ! Vaha noindriya – yapaniya kya hai\? Somila ! Jo mere krodha, mana, maya aura lobha ye charom kashaya vyuchchhinna ho gae haim; aura udayaprapta nahim haim, yaha mera noindriya – yapaniya hai. Isa prakara mere ye yapaniya haim. Bhagavan ! Apake avyabadha kya hai\? Somila ! Mere vataja, pittaja, kaphaja aura sannipatajanya tatha aneka prakara ke sharira sambandhi roga, atamka evam shariragata dosha upashanta ho gae haim, ve udaya mem nahim ate. Yahi mera avyabadha hai. Bhagavan ! Apake prasukavihara kauna – sa hai\? Somila ! Arama, udyana, devakula, sabha aura prapa adi sthanom mem stri – pashu – napumsakavarjita vasatiyom mem prasuka, eshaniya pitha, phalaka, shayya, samstaraka adi svikara karake maim vicharata hum, yahi mera prasukavihara hai. Bhagavan ! Apake lie ‘sarisava’ bhakshya haim ya abhakshya\? Somila ! Bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim. Bhagavan yaha apa kaise kahate haim\? Somila ! Tumhare brahmana nayom mem do prakara ke ‘sarisava’ kahe gae haim, yatha – mitra – sarisava aura dhanya – sarisava. Jo mitra – sarisava haim, vaha tina prakara ke haim, yatha – sahajata, sahavardhita aura sahapamshukridita. Ye tinom shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Jo dhanyasarisava haim, vaha bhi do prakara ke haim, yatha – shastraparinata aura ashastraparinata. Jo ashastraparinata haim, ve shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Jo shastraparinata haim, vaha bhi do prakara ke haim, yatha – eshaniya aura aneshaniya. Aneshaniya sarisava to shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Eshaniya sarisava do prakara ke haim, yatha – yachita aura ayachita. Ayachita shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Yachita bhi do prakara ke haim, yatha – labdha aura alabdha. Alabdha shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim aura jo labdha haim, vaha shramana – nirgranthom ke lie bhakshya haim. Isa karana se, aisa kaha gaya hai ki – ‘sarisava’ mere liksha bhakshya bhi haim, aura abhakshya bhi haim. Bhagavan ! Apake mata mem ‘mas bhakshya haim ya abhakshya haim\? Somila ! ‘masa’ bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim. Bhagavan ! Aisa kyom kahate haim\? Somila ! Tumhare brahmana – nayom mem ‘masa’ do prakara ke kahe gae haim. Yatha – dravyamasa aura kalamasa. Unamem se jo kalamasa haim, ve shravana se lekara asharha – masa – paryanta baraha haim, yatha – shravana, bhadrapada, ashvina, kartika, margashirsha, pausha, magha, phalguna, chaitra, vaishakha, jyeshtha aura asharha. Ye shramana – nirgranthom ke lie abhakshya haim. Dravya – masa do prakara ka hai. Yatha – arthamasha aura dhanyamasha. Unamem se arthamasha do prakara ka hai yatha – svarnamasha aura raupyamasha. Ye donom masha shramana nirgranthom ke lie abhakshya haim. Dhanyamasha do prakara ka hai – yatha – shastraparinata aura ashastraparinata. Ityadi sabhi alapaka dhanya – sarisava ke samana kahane chahie, yavat isi karana se he somila ! Kaha gaya hai ki ‘masa’ bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim. Bhagavan ! Apake lie ‘kulattha’ bhakshya haim athava abhakshya haim\? Somila ! ‘kulattha’ mere lie bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim. Bhagavan ! Aisa kyom kahate haim ki kulattha yavat abhakshya bhi haim\? Somila ! Tumhare brahmananayom mem kulattha do prakara ki kahi gai hai, yatha – strikulattha aura dhanyakulattha. Strikulattha tina prakara ki kahi gai hai, yatha – kulavadhu ya kulamata, athava kulakanya. Ye tinom shramana – nirgranthom ke lie abhakshya haim. Unamem se jo dhanyakulattha hai, usake sabhi alapaka dhanya – sarisava ke samana haim, yavat – ‘he somila ! Isilie kaha gaya hai ki ‘dhanyakulattha bhakshya bhi haim aura abhakshya bhi haim’. |