Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004155 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Translated Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 655 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपु-रत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं साणकोट्ठगस्स चेइयस्स अदूर-सामंते, एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था–किण्हे किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरि-ज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठति। तत्थ णं मेंढियगामे नगरे रेवती नामं गाहावइणी परिवसति–अड्ढा जाव बहुज-णस्स अपरिभूया। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव मेंढियगामे नगरे जेणेव साणकोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ जाव परिसा पडिगया। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउब्भूए–उज्जले विउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिव्वे दुरहियासे, पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए यावि विहरति, अवि याइं लोहिय-वच्चाइं पि पकरेइ, चाउवण्णं च णं वागरेति–एवं खलु समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए छउमत्थे चेव कालं करेस्सति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहें नामं अनगारे–पगइभद्दए जाव विनीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरति। तए णं तस्स सीहस्स अनगारस्स ज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउब्भूए–उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वदिस्संति य णं अन्नतित्थिया–छउमत्थे चेव कालगए–इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो अनुपविसइ, अनुप-विसित्ता महया-महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुण्णे। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अज्जो! ममं अंते-वासी सीहे नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरति। तए णं तस्स सीहस्स अनगारस्स ज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउब्भूए–उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वदिस्संति य णं अन्नतित्थिया–छउमत्थे चेव कालगए–इमेणं एयारूवेणं महया मणो-माणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता जेणेव मालुया-कच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो अनुपविसइ अनुपविसित्ता महया-महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुण्णे। तं गच्छह णं अज्जो! इब्भे सीहं अनगारं सद्दाह। तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ साणकोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव मालुयाकच्छए, जेणेव सीहे अनगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सीहं अनगारं एवं वयासी–सीहा! धम्मायरिया सद्दावेंति। तए णं से सीहे अनगारे समणेहिं निग्गंथेहिं सद्धिं मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव साण कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं जाव पज्जुवासति। सीहादि! समणे भगवं महावीरे सीहं अनगारं एवं वयासी–से नूनं ते सीहा! ज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउब्भूए–उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वदिस्संति य णं अन्नतित्थिया–छउमत्थे चेव कालगए–इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता, जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो अनुपविसित्ता महया-महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुण्णे। से नूनं ते सीहा! अट्ठे समट्ठे? हंता अत्थि। तं नो खलु अहं सीहा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं अहण्णं अद्ध सोलस वासाइं जिने सुहत्थी विहरिस्सामि, तं गच्छह णं तुमं सीहा! मेंढिय गामं नगरं, रेवतीए गाहावतिणीए गिहं, तत्थ णं रेवतीए गाहावतिणीए ममं अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो, अत्थि से अन्ने पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए, तमाहराहि, एएणं अट्ठो। तए णं से सीहे अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमाणे पर-मसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अतुरियमचवलमसंभंतं मुहपोत्तियं पडिलेहेति, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेति, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जिता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ साणकोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडि-निक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंतं जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव मेंढियगामे नगरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मेंढियगामं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव रेवतीए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रेवतीए गाहावत्तिणीए गिहं अनुप्पविट्ठे। तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहं अनगारं एज्जमाणं पासति, पासित्ता हट्ठतुट्ठा खिप्पामेव आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सीहं अनगारं सत्तट्ठ पयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–संदिसंतु णं देवानुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं? तए णं से सीहे अनगारे रेवतिं गाहावइणिं एवं वयासी–एवं खलु तुमे देवानुप्पिए! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्ठाए दुवे कवोय-सरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो, अत्थि ते अन्ने पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए एयमाहराहिं, तेणं अट्ठो। तए णं सा रेवती गाहावइणी सीहं अनगारं एवं वयासी–केस णं सीहा! से नाणी वा तवस्सी वा, जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं तुमं जाणासि? तए णं से सीहे अनगारे रेवइं गाहावइणिं एवं वयासी–एवं खलु रेवई! ममं धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली तीयपच्चुप्पन्नमणा-गयवियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी जेणं मम एस अट्ठे तव ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि। तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहस्स अनगारस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पत्तगं मोएति, मोएत्ता जेणेव सीहे अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहस्स अनगारस्स पडिग्गहगंसि तं सव्वं सम्मं निस्सिरति। तए णं तीए रेवतीए गाहावतिणीए तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धेणं पडिगाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं सीहे अनगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्धे, संसारे परित्तीकए, गिहंसि य से इमाइं पंच दिव्वाइं पाउब्भूयाइं, तं जहा –वसुधारा वुट्ठा, दसद्धवण्णे कुसुमे निवातिए, चेलुक्खेवे कए, आहयाओ देवदुंदुभीओ, अंतरा वि य णं आगासे अहो दाने, अहो दाने त्ति घुट्ठे। तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–धन्ना णं देवानुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयत्था णं देवानुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयपुण्णा णं देवानुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयलक्खणा णं देवानुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कया णं लोया देवानुप्पिया! रेवतीए गाहावतिणीए, सुलद्धे णं देवानुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले रेवतीए गाहावतिणीए, जस्स णं गिहंसि तहारूवे साधु साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाइं पंच दिव्वाइं पाउब्भूयाइं, तं जहा–वसुधारा वुट्ठा जाव अहो दाणे, अहो दाने त्ति घुट्ठे, तं धन्ना कयत्था कयपुण्णा कयलक्खणा, कया णं लोया, सुलद्धे मानुस्सए जम्मजीवियफले रेवतीए गाहावतिणीए, रेवतीए गाहावतिणीए। तए णं से सीहे अनगारे रेवतीए गाहावतिणीए गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता मेंढियगामं नगरं मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जहा गोयमसामी जाव भत्तपाणं पडिदंसेति, पडिदंसेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स पाणिंसि तं सव्वं सम्मं निस्सिरति। तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं तमाहारं सरीरकोट्ठगंसि पक्खिवति। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विपुले रोगायंके खिप्पामेव उवसंते, हट्ठे जाए, अरोगे, बलियसरीरे। तुट्ठा समणा, तुट्ठाओ समणीओ, तुट्ठा सावया, तुट्ठाओ सावियाओ, तुट्ठा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमनुयासुरे लोए तुट्ठे–हट्ठे जाए समणे भगवं महावीरे, हट्ठे जाए समणे भगवं महावीरे। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर किसी दिन भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से नीकले और उससे बाहर अन्य जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल उस समय मेंढिकग्राम नगर था। उसके बाहर उत्तरपूर्व दिशा में शालकोष्ठक उद्यान था। यावत् पृथ्वी – शिलापट्टक था, उस शालकोष्ठक उद्यान के निकट एक महान् मालुकाकच्छ था वह श्याम, श्यामप्रभावाला, यावत् महामेघ मान था, पत्रित, पुष्पित, फलित और हरियाली से अत्यन्त लहलहाता हुआ, वनश्री से अतीव शोभायमान रहता था। उस मेंढिकग्राम नगरमें रेवती गाथापत्नी रहती थी। वह आढ्य यावत् अपराभूत थी। किसी दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी क्रमशः विचरण करते हुए मेंढिकग्राम नगर के बाहर, जहाँ शालकोष्ठक उद्यान था, वहाँ पधारे; यावत् परीषद् वन्दना करके लौट गई। उस समय श्रमण भगवान महावीर के शरीर में महापीड़ाकारी व्याधि उत्पन्न हुई, जो उज्ज्वल यावत् दुरधिसह्य थी। उसने पित्तज्वर से सारे शरीर को व्याप्त कर लिया था, और शरीर में अत्यन्त दाह होने लगी। तथा उन्हें रक्त – युक्त दस्तें भी लगने लगीं। भगवान के शरीर की ऐसी स्थिति जानकर चारों वर्ण के लोग इस प्रकार कहने लगे – श्रमण भगवान महावीर मंखलिपुत्र गोशालक की तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभूत होकर पित्तज्वर एवं दाह से पीड़ित होकर छह मास के अन्दर छद्मस्थ – अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त करेंगे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के एक अन्तेवासी सिंह नामक अनगार थे, जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। वे मालुकाकच्छ के निकट निरन्तर छठ – छठ तपश्चरण के साथ अपनी दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर यावत् आतापना लेते थे। उस समय की बात है, जब सिंह अनगार ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त हो रहे थे; तभी उन्हें इस प्रकार का आत्मगत यावत् चिन्तन उत्पन्न हुआ – मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर के शरीर में विपुल रोगांतक प्रकट हुआ, जो अत्यन्त दाहजनक है, इत्यादि। तब अन्यतीर्थिक कहेंगे – ‘वे छद्मस्थ अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गए।’ इस प्रकार के इस महामानसिक मनोगत दुःख से पीड़ित बने हुए सिंह अनगार आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे। फिर वे मालुकाकच्छ में आए और जोर – जोर से रोने लगे। (उस समय) श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे आर्यो ! आज मेरा अन्तेवासी प्रकृतिभद्र यावत् विनीत सिंह अनगार, इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् कहना; यावत् अत्यन्त जोर – जोर से रो रहा है।’ इसलिए, हे आर्यो ! तुम जाओ और सिंह अनगार को यहाँ बुला लाओ श्रमण भगवान महावीर ने जब उन श्रमण – निर्ग्रन्थों से इस प्रकार कहा, तो उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। फिर भगवान् महावीर के पास से मालकोष्ठक उद्यान से नीकलकर, वे मालुकाकच्छ वन में, जहाँ सिंह अनगार था, वहाँ आए और सिंह अनगार से कहा – ‘हे सिंह ! धर्माचार्य तुम्हें बुलाते हैं।’ तब सिंह अनगार उन श्रमण – निर्ग्रन्थों के साथ जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए और श्रमण भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करके यावत् पर्युपासना करने लगे। श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे सिंह ! ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त होते हुए तुम्हें इस प्रकार की चिन्ता उत्पन्न हुई यावत् तुम फूट – फूट कर रोने लगे, तो हे सिंह ! क्या यह बात सत्य है ?’ ‘हाँ, भगवन् ! सत्य है।’ हे सिंह ! मंखलिपुत्र गोशालक के तपतेज द्वारा पराभूत होकर मैं छह मास के अन्दर, यावत् काल नहीं करूँगा। मैं साढ़े पन्द्रह वर्ष तक गन्धहस्ती के समान जिन रूप में विचरूँगा। हे सिंह! तुम मेंढिकग्राम नगर में रेवती गाथापत्नी के घर जाओ और वहाँ रेवती गाथापत्नी ने मेरे लिए कोहले के दो फल संस्कारित करके तैयार किए हैं, उनसे मुझे प्रयोजन नहीं है, किन्तु उसके यहाँ मार्जार नामक वायु को शान्त करने के लिए जो बिजौरापाक है, उसे ले आओ। उसीसे मुझे प्रयोजन है। श्रमण भगवान महावीर से आदेश पाकर सिंह अनगार हर्षित सन्तुष्ट यावत् हृदय में प्रफुल्लित हुए और श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया, फिर त्वरा, चपलता और उतावली से रहित होकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन किया। गौतमस्वामी की तरह भगवान महावीर स्वामी के पास आए, वन्दन – नमस्कार करके शाल – कोष्ठक उद्यान से नीकले। फिर यावत् मेंढिकग्राम नगर के मध्य भाग में होकर रेवती गाथापत्नी के घर में प्रवेश किया तदनन्तर रेवती गाथापत्नी ने सिंह अनगार को ज्यों ही आते देखा, त्यों ही हर्षित एवं सन्तुष्ट होकर शीघ्र अपने आसन से उठी। सिंह अनगार के समक्ष सात – आठ कदम गई और तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करके वन्दन – नमस्कार कर बोली – ‘देवानुप्रिय ! कहिए, किस प्रयोजन से आपका पधारना हुआ ?’ तब सिंह अनगार ने रेवती गाथापत्नी से कहा – हे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर के लिए तुमने जो कोहले के दो फल संस्कारित करके तैयार किए हैं, उनसे प्रयोजन नहीं है, किन्तु मार्जार नामक वायु को शान्त करने वाला बिजौरापाक, जो कल का बनाया हुआ है, वह मुझे दो, उसी से प्रयोजन है।’ इस पर रेवती गाथापत्नी ने सिंह अनगार से कहा – हे सिंह अनगार ! ऐसे कौन ज्ञानी अथवा तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरे अन्तर की यह रहस्यमय बात जान ली और आप से कह दी, जिससे की आप यह जानते हैं ? सिंह अनगार ने (कहा – ) यावत् – ‘भगवान के कहने से मैं जानता हूँ।’ तब सिंह अनगार से यह बात सूनकर एवं अवधारण करके वह रेवती गाथापत्नी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। रसोईघर गई और बर्तन को लेकर सिंह अनगार के पास आई और सारा पाक सम्यक् प्रकार से डाल दिया। रेवती गाथापत्नी ने उस द्रव्यशुद्धि, दाता की शुद्धि एवं पात्र की शुद्धि से युक्त, यावत् प्रशस्त भावों से दिए गए दान से सिंह अनगार को प्रतिलाभित करने से देवायु का बन्ध किया यावत् – ‘रेवती गाथापत्नी ने जन्म और जीवन का सुफल प्राप्त किया, रेवती गाथापत्नी ने जन्म और जीवन सफल कर लिया।’ इसक पश्चात् वे सिंह अनगार, रेवती गाथापत्नी के घर से नीकले और मेंढिकग्राम नगर के मध्य में से होते हुए भगवान के पास पहुँचे और गौतम स्वामी के समान यावत् आहार – पानी दिखाया। श्रमण भगवान महावीर स्वामी के हाथ में सम्यक् प्रकार से रख (दे) दिया। तब भगवान महावीरने अमूर्च्छित यावत् लालसारहित बिलमें सर्प – प्रवेश समान उस आहार को शरीर रूपी कोठेमें डाल दिया। आहार करने के बाद महापीड़ाकारी रोगांतक शीघ्र शान्त हो गया। वे हृष्ट – पुष्ट, रोगरहित, शरीर से बलिष्ठ हो गए। इससे सभी श्रमण तुष्ट हुए, श्रमणियाँ तुष्ट हुईं, श्रावक तुष्ट हुए, श्राविकाएं तुष्ट हुईं, देव तुष्ट हुए, देवियाँ तुष्ट हुईं, देव – मनुष्य – असुरों सहित समग्र लोक तुष्ट एवं हर्षित हो गया। (कहने लगे – ) ‘श्रमण भगवान महावीर हृष्ट हुए | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam samane bhagavam mahavire annaya kadayi savatthio nagario kotthayao cheiyao padinikkhamati, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. Tenam kalenam tenam samaenam memdhiyagame namam nagare hottha–vannao. Tassa nam memdhiyagamassa nagarassa bahiya uttarapu-ratthime disibhae, ettha nam sanakotthae namam cheie hottha–vannao java pudhavisilapattao. Tassa nam sanakotthagassa cheiyassa adura-samamte, ettha nam mahege maluyakachchhae yavi hottha–kinhe kinhobhase java mahamehanikurambabhue pattie pupphie phalie hariyagareri-jjamane sirie ativa-ativa uvasobhemane chitthati. Tattha nam memdhiyagame nagare revati namam gahavaini parivasati–addha java bahuja-nassa aparibhuya. Tae nam samane bhagavam mahavire annada kadayi puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva memdhiyagame nagare jeneva sanakotthae cheie teneva uvagachchhai java parisa padigaya. Tae nam samanassa bhagavao mahavirassa sariragamsi vipule rogayamke paubbhue–ujjale viule pagadhe kakkase kadue chamde dukkhe dugge tivve durahiyase, pittajjaraparigayasarire dahavakkamtie yavi viharati, avi yaim lohiya-vachchaim pi pakarei, chauvannam cha nam vagareti–evam khalu samane bhagavam mahavire gosalassa mamkhaliputtassa tavenam teenam annaitthe samane amto chhanham masanam pittajjaraparigayasarire dahavakkamtie chhaumatthe cheva kalam karessati. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa amtevasi sihem namam anagare–pagaibhaddae java vinie maluyakachchhagassa adurasamamte chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhe ayavanabhumie ayavemane viharati. Tae nam tassa sihassa anagarassa jjhanamtariyae vattamanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu mamam dhammayariyassa dhammovadesagassa samanassa bhagavao mahavirassa sariragamsi viule rogayamke paubbhue–ujjale java chhaumatthe cheva kalam karessati, vadissamti ya nam annatitthiya–chhaumatthe cheva kalagae–imenam eyaruvenam mahaya manomanasienam dukkhenam abhibhue samane ayavanabhumio pachchorubhai, pachchorubhitta jeneva maluyakachchhae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta maluyakachchhagam amto-amto anupavisai, anupa-visitta mahaya-mahaya saddenam kuhukuhussa parunne. Ajjoti! Samane bhagavam mahavire samane niggamthe amamteti, amamtetta evam vayasi–evam khalu ajjo! Mamam amte-vasi sihe namam anagare pagaibhaddae java vinie maluyakachchhagassa adurasamamte chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhe ayavanabhumie ayavemane viharati. Tae nam tassa sihassa anagarassa jjhanamtariyae vattamanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu mamam dhammayariyassa dhammovadesagassa samanassa bhagavao mahavirassa sariragamsi viule rogayamke paubbhue–ujjale java chhaumatthe cheva kalam karessati, vadissamti ya nam annatitthiya–chhaumatthe cheva kalagae–imenam eyaruvenam mahaya mano-manasienam dukkhenam abhibhue samane ayavanabhumio pachchorubhai, pachchorubhitta jeneva maluya-kachchhae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta maluyakachchhagam amto-amto anupavisai anupavisitta mahaya-mahaya saddenam kuhukuhussa parunne. Tam gachchhaha nam ajjo! Ibbhe siham anagaram saddaha. Tae nam te samana niggamtha samanenam bhagavaya mahavirenam evam vutta samana samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao sanakotthagao cheiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva maluyakachchhae, jeneva sihe anagare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta siham anagaram evam vayasi–siha! Dhammayariya saddavemti. Tae nam se sihe anagare samanehim niggamthehim saddhim maluyakachchhagao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva sana kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam java pajjuvasati. Sihadi! Samane bhagavam mahavire siham anagaram evam vayasi–se nunam te siha! Jjhanamtariyae vattamanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu mamam dhammayariyassa dhammovadesagassa samanassa bhagavao mahavirassa sariragamsi viule rogayamke paubbhue–ujjale java chhaumatthe cheva kalam karessati, vadissamti ya nam annatitthiya–chhaumatthe cheva kalagae–imenam eyaruvenam mahaya manomanasienam dukkhenam abhibhue samane ayavanabhumio pachchorubhitta, jeneva maluyakachchhae teneva uvagachchhitta maluyakachchhagam amto-amto anupavisitta mahaya-mahaya saddenam kuhukuhussa parunne. Se nunam te siha! Atthe samatthe? Hamta atthi. Tam no khalu aham siha! Gosalassa mamkhaliputtassa tavenam teenam annaitthe samane amto chhanham masanam pittajjaraparigayasarire dahavakkamtie chhaumatthe cheva kalam karessam ahannam addha solasa vasaim jine suhatthi viharissami, tam gachchhaha nam tumam siha! Memdhiya gamam nagaram, revatie gahavatinie giham, tattha nam revatie gahavatinie mamam atthae duve kavoyasarira uvakkhadiya, tehim no attho, atthi se anne pariyasie majjarakadae kukkudamamsae, tamaharahi, eenam attho. Tae nam se sihe anagare samanenam bhagavaya mahavirenam evam vutte samane hatthatuttha-chittamanamdie namdie piimane para-masomanassie harisavasavisappamanahiyae samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta aturiyamachavalamasambhamtam muhapottiyam padileheti, padilehetta bhayanavatthaim padileheti, padilehetta bhayanaim pamajjai, pamajjita bhayanaim uggahei, uggahetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao sanakotthagao cheiyao padinikkhamati, padi-nikkhamitta aturiyamachavalamasambhamtam jugamtarapaloyanae ditthie purao riyam sohemane-sohemane jeneva memdhiyagame nagare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta memdhiyagamam nagaram majjhammajjhenam jeneva revatie gahavainie gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta revatie gahavattinie giham anuppavitthe. Tae nam sa revati gahavatini siham anagaram ejjamanam pasati, pasitta hatthatuttha khippameva asanao abbhutthei, abbhutthetta siham anagaram sattattha payaim anugachchhai, anugachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam kareti, karetta vamdati namamsati, vamditta namamsitta evam vayasi–samdisamtu nam devanuppiya! Kimagamanappayoyanam? Tae nam se sihe anagare revatim gahavainim evam vayasi–evam khalu tume devanuppie! Samanassa bhagavao mahavirassa atthae duve kavoya-sarira uvakkhadiya, tehim no attho, atthi te anne pariyasie majjarakadae kukkudamamsae eyamaharahim, tenam attho. Tae nam sa revati gahavaini siham anagaram evam vayasi–kesa nam siha! Se nani va tavassi va, jenam tava esa atthe mama tava rahassakade havvamakkhae, jao nam tumam janasi? Tae nam se sihe anagare revaim gahavainim evam vayasi–evam khalu revai! Mamam dhammayarie dhammovadesae samane bhagavam mahavire uppannananadamsanadhare araha jine kevali tiyapachchuppannamana-gayaviyanae savvannu savvadarisi jenam mama esa atthe tava tava rahassakade havvamakkhae, jao nam aham janami. Tae nam sa revati gahavatini sihassa anagarassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha jeneva bhattaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pattagam moeti, moetta jeneva sihe anagare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihassa anagarassa padiggahagamsi tam savvam sammam nissirati. Tae nam tie revatie gahavatinie tenam davvasuddhenam dayagasuddhenam padigahagasuddhenam tivihenam tikaranasuddhenam danenam sihe anagare padilabhie samane devaue nibaddhe, samsare parittikae, gihamsi ya se imaim pamcha divvaim paubbhuyaim, tam jaha –vasudhara vuttha, dasaddhavanne kusume nivatie, chelukkheve kae, ahayao devadumdubhio, amtara vi ya nam agase aho dane, aho dane tti ghutthe. Tae nam rayagihe nagare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai evam bhasai evam pannavei evam paruvei–dhanna nam devanuppiya! Revai gahavaini, kayattha nam devanuppiya! Revai gahavaini, kayapunna nam devanuppiya! Revai gahavaini, kayalakkhana nam devanuppiya! Revai gahavaini, kaya nam loya devanuppiya! Revatie gahavatinie, suladdhe nam devanuppiya! Manussae jammajiviyaphale revatie gahavatinie, jassa nam gihamsi taharuve sadhu sadhuruve padilabhie samane imaim pamcha divvaim paubbhuyaim, tam jaha–vasudhara vuttha java aho dane, aho dane tti ghutthe, tam dhanna kayattha kayapunna kayalakkhana, kaya nam loya, suladdhe manussae jammajiviyaphale revatie gahavatinie, revatie gahavatinie. Tae nam se sihe anagare revatie gahavatinie gihao padinikkhamati, padinikkhamitta memdhiyagamam nagaram majjham-majjhenam niggachchhai, niggachchhitta jaha goyamasami java bhattapanam padidamseti, padidamsetta samanassa bhagavao mahavirassa panimsi tam savvam sammam nissirati. Tae nam samane bhagavam mahavire amuchchhie agiddhe agadhie anajjhovavanne bilamiva pannagabhuenam appanenam tamaharam sarirakotthagamsi pakkhivati. Tae nam samanassa bhagavao mahavirassa tamaharam ahariyassa samanassa se vipule rogayamke khippameva uvasamte, hatthe jae, aroge, baliyasarire. Tuttha samana, tutthao samanio, tuttha savaya, tutthao saviyao, tuttha deva, tutthao devio, sadevamanuyasure loe tutthe–hatthe jae samane bhagavam mahavire, hatthe jae samane bhagavam mahavire. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara kisi dina bhagavana mahavira shravasti nagari ke koshthaka udyana se nikale aura usase bahara anya janapadom mem vicharana karane lage. Usa kala usa samaya memdhikagrama nagara tha. Usake bahara uttarapurva disha mem shalakoshthaka udyana tha. Yavat prithvi – shilapattaka tha, usa shalakoshthaka udyana ke nikata eka mahan malukakachchha tha vaha shyama, shyamaprabhavala, yavat mahamegha mana tha, patrita, pushpita, phalita aura hariyali se atyanta lahalahata hua, vanashri se ativa shobhayamana rahata tha. Usa memdhikagrama nagaramem revati gathapatni rahati thi. Vaha adhya yavat aparabhuta thi. Kisi dina shramana bhagavana mahavira svami kramashah vicharana karate hue memdhikagrama nagara ke bahara, jaham shalakoshthaka udyana tha, vaham padhare; yavat parishad vandana karake lauta gai. Usa samaya shramana bhagavana mahavira ke sharira mem mahapirakari vyadhi utpanna hui, jo ujjvala yavat duradhisahya thi. Usane pittajvara se sare sharira ko vyapta kara liya tha, aura sharira mem atyanta daha hone lagi. Tatha unhem rakta – yukta dastem bhi lagane lagim. Bhagavana ke sharira ki aisi sthiti janakara charom varna ke loga isa prakara kahane lage – shramana bhagavana mahavira mamkhaliputra goshalaka ki tapojanya tejoleshya se parabhuta hokara pittajvara evam daha se pirita hokara chhaha masa ke andara chhadmastha – avastha mem hi mrityu prapta karemge. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke eka antevasi simha namaka anagara the, jo prakriti se bhadra yavat vinita the. Ve malukakachchha ke nikata nirantara chhatha – chhatha tapashcharana ke satha apani donom bhujaem upara uthakara yavat atapana lete the. Usa samaya ki bata hai, jaba simha anagara dhyanantarika mem pravritta ho rahe the; tabhi unhem isa prakara ka atmagata yavat chintana utpanna hua – mere dharmacharya dharmopadeshaka shramana bhagavana mahavira ke sharira mem vipula rogamtaka prakata hua, jo atyanta dahajanaka hai, ityadi. Taba anyatirthika kahemge – ‘ve chhadmastha avastha mem hi kaladharma ko prapta ho gae.’ isa prakara ke isa mahamanasika manogata duhkha se pirita bane hue simha anagara atapanabhumi se niche utare. Phira ve malukakachchha mem ae aura jora – jora se rone lage. (usa samaya) shramana bhagavana mahavira ne kaha – ‘he aryo ! Aja mera antevasi prakritibhadra yavat vinita simha anagara, ityadi saba varnana purvavat kahana; yavat atyanta jora – jora se ro raha hai.’ isalie, he aryo ! Tuma jao aura simha anagara ko yaham bula lao Shramana bhagavana mahavira ne jaba una shramana – nirgranthom se isa prakara kaha, to unhomne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Phira bhagavan mahavira ke pasa se malakoshthaka udyana se nikalakara, ve malukakachchha vana mem, jaham simha anagara tha, vaham ae aura simha anagara se kaha – ‘he simha ! Dharmacharya tumhem bulate haim.’ taba simha anagara una shramana – nirgranthom ke satha jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham ae aura shramana bhagavana mahavira ko tina bara dahini ora se pradakshina karake yavat paryupasana karane lage. Shramana bhagavana mahavira ne kaha – ‘he simha ! Dhyanantarika mem pravritta hote hue tumhem isa prakara ki chinta utpanna hui yavat tuma phuta – phuta kara rone lage, to he simha ! Kya yaha bata satya hai\?’ ‘ham, bhagavan ! Satya hai.’ he simha ! Mamkhaliputra goshalaka ke tapateja dvara parabhuta hokara maim chhaha masa ke andara, yavat kala nahim karumga. Maim sarhe pandraha varsha taka gandhahasti ke samana jina rupa mem vicharumga. He simha! Tuma memdhikagrama nagara mem revati gathapatni ke ghara jao aura vaham revati gathapatni ne mere lie kohale ke do phala samskarita karake taiyara kie haim, unase mujhe prayojana nahim hai, kintu usake yaham marjara namaka vayu ko shanta karane ke lie jo bijaurapaka hai, use le ao. Usise mujhe prayojana hai. Shramana bhagavana mahavira se adesha pakara simha anagara harshita santushta yavat hridaya mem praphullita hue aura shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya, phira tvara, chapalata aura utavali se rahita hokara mukhavastrika ka pratilekhana kiya. Gautamasvami ki taraha bhagavana mahavira svami ke pasa ae, vandana – namaskara karake shala – koshthaka udyana se nikale. Phira yavat memdhikagrama nagara ke madhya bhaga mem hokara revati gathapatni ke ghara mem pravesha kiya tadanantara revati gathapatni ne simha anagara ko jyom hi ate dekha, tyom hi harshita evam santushta hokara shighra apane asana se uthi. Simha anagara ke samaksha sata – atha kadama gai aura tina bara dahini ora se pradakshina karake vandana – namaskara kara boli – ‘devanupriya ! Kahie, kisa prayojana se apaka padharana hua\?’ taba simha anagara ne revati gathapatni se kaha – he devanupriye ! Shramana bhagavana mahavira ke lie tumane jo kohale ke do phala samskarita karake taiyara kie haim, unase prayojana nahim hai, kintu marjara namaka vayu ko shanta karane vala bijaurapaka, jo kala ka banaya hua hai, vaha mujhe do, usi se prayojana hai.’ isa para revati gathapatni ne simha anagara se kaha – he simha anagara ! Aise kauna jnyani athava tapasvi haim, jinhomne mere antara ki yaha rahasyamaya bata jana li aura apa se kaha di, jisase ki apa yaha janate haim\? Simha anagara ne (kaha – ) yavat – ‘bhagavana ke kahane se maim janata hum.’ Taba simha anagara se yaha bata sunakara evam avadharana karake vaha revati gathapatni harshita evam santushta hui. Rasoighara gai aura bartana ko lekara simha anagara ke pasa ai aura sara paka samyak prakara se dala diya. Revati gathapatni ne usa dravyashuddhi, data ki shuddhi evam patra ki shuddhi se yukta, yavat prashasta bhavom se die gae dana se simha anagara ko pratilabhita karane se devayu ka bandha kiya yavat – ‘revati gathapatni ne janma aura jivana ka suphala prapta kiya, revati gathapatni ne janma aura jivana saphala kara liya.’ isaka pashchat ve simha anagara, revati gathapatni ke ghara se nikale aura memdhikagrama nagara ke madhya mem se hote hue bhagavana ke pasa pahumche aura gautama svami ke samana yavat ahara – pani dikhaya. Shramana bhagavana mahavira svami ke hatha mem samyak prakara se rakha (de) diya. Taba bhagavana mahavirane amurchchhita yavat lalasarahita bilamem sarpa – pravesha samana usa ahara ko sharira rupi kothemem dala diya. Ahara karane ke bada mahapirakari rogamtaka shighra shanta ho gaya. Ve hrishta – pushta, rogarahita, sharira se balishtha ho gae. Isase sabhi shramana tushta hue, shramaniyam tushta huim, shravaka tushta hue, shravikaem tushta huim, deva tushta hue, deviyam tushta huim, deva – manushya – asurom sahita samagra loka tushta evam harshita ho gaya. (kahane lage – ) ‘shramana bhagavana mahavira hrishta hue |