Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004092
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१३

Translated Chapter :

शतक-१३

Section : उद्देशक-७ भाषा Translated Section : उद्देशक-७ भाषा
Sutra Number : 592 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कतिविहे णं भंते! काये पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे काये पन्नत्ते, तं जहा–ओरालिए, ओरालियमीसए, वेउव्विए, वेउव्विय-मीसए, आहारए, आहारगमीसए, कम्मए। कतिविहे णं भंते! मरणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे मरणे पन्नत्ते, तं जहा–आवीचियमरणे, ओहिमरणे, आतियंतियमरणे, बालमरणे, पंडियमरणे। आवीचियमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वावीचियमरणे, खेत्तावीचियमरणे, कालावीचियमरणे, भवावीचियमरणे, भावावीचियमरणे। दव्वावीचियमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयदव्वावीचियमरणे, तिरिक्खजोणियदव्वावीचिय-मरणे, मनुस्सदव्वावीचियमरणे, देवदव्वावीचियमरणे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयदव्वावीचियमरणे-नेरइयदव्वावीचियमरणे? गोयमा! जण्णं नेरइया नेरइए दव्वे वट्टमाणा जाइं दव्वाइं नेरइयाउयत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाइं कडाइं पट्ठवियाइं निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाइं अभिसमण्णागयाइं भवंति ताइं दव्वाइं आवीचिमणुसमयं निरंतरं मरंति त्ति कट्टु। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइयदव्वावीचियमरणे, एवं जाव देवदव्वा-वीचियमरणे। खेत्तावीचियमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयखेत्तावीचियमरणे जाव देवखेत्तावीचियमरणे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयखेत्तावीचियमरणे-नेरइयखेत्तावीचियमरणे? गोयमा! जण्णं नेरइया नेरइयखेत्ते वट्टमाणा जाइं दव्वाइं नेरइयाउयत्ताए गहियाइं एवं जहेव दव्वावीचियमरणे तहेव खेत्तावीचियमरणे वि। एवं जाव भावावीचियमरणे। ओहिमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वोहिमरणे, खेत्तोहिमरणे, कालोहिमरणे, भवोहिमरणे, भावोहिमरणे। दव्वोहिमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयदव्वोहिमरणे जाव देवदव्वोहिमरणे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयदव्वोहिमरणे-नेरइयदव्वोहिमरणे? गोयमा! जे णं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा जाइं दव्वाइं संपयं मरंति, ते णं नेरइया ताइं दव्वाइं अणागए काले पुणो वि मरिस्संति। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव दव्वोहिमरणे। एवं तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवदव्वोहिमरणे वि। एवं एएणं गमेणं खेत्तोहि-मरणे वि, कालोहिमरणे वि, भवोहिमरणे वि, भावोहिमरणे वि। आतियंतियमरणे णं भंते! –पुच्छा। गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वातियंतियमरणे, खेत्तातियंतियमरणे जाव भावातियं-तियमरणे। दव्वातियंतियमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयदव्वातियंतियमरणे जाव देवदव्वातियंतियमरणे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयदव्वातियंतियमरणे-नेरइयदव्वातियंतियमरणे? गोयमा! जे णं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा जाइं दव्वाइं संपयं मरंति, ते णं नेरइया ताइं दव्वाइं अनागए काले नो पुणो वि मरिस्संति। से तेणट्ठेणं जाव नेरइयदव्वातियंतियमरणे। एवं तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवदव्वातियंतियमरणे। एवं खेत्तायंतियमरणे वि, एवं जाव भावातियंतियमरणे वि। बालमरणेणं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. वलयमरणे २. वसट्टमरणे ३. अंतोसल्लमरणे ४. तब्भवमरणे ५. गिरिपडणे ६. तरुपडणे ७. जलप्पवेसे ८. जलणप्पवेसे ९. विसभक्खणे १. सत्थोवाडणे ११. वेहाणसे १२. गद्धपट्ठे। पंडियमरणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य। पाओवगमणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अनीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे। भत्तपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अनीहारिमे । नियमं सपडिकम्मे। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! मरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आवीचिकमरण, अवधिमरण, आत्यन्तिक – मरण, बालमरण और पण्डितमरण। भगवन्‌ ! आवीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का। द्रव्यावीचिकमरण, क्षेत्रावीचिकमरण, कालावीचिकमरण, भवावीचिकमरण और भावावीचिकमरण। भगवन्‌ ! द्रव्यावीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! वह चार प्रकार का है। नैरयिक – द्रव्यावीचिकमरण, तिर्यग्‌योनिक द्रव्यावीचिकमरण, मनुष्य – द्रव्यावीचिकमरण और देव – द्रव्यावीचिकमरण। भगवन्‌ ! नैरयिक – द्रव्यावीचिकमरण को नैरयिक – द्रव्यावीचिकमरण किसलिए कहते हैं ? गौतम ! नारक – द्रव्य रूप से वर्तमान नैरयिक ने जिन द्रव्यों को नारकायुष्य रूप में स्पर्श रूप से ग्रहण किया है, बन्धन रूप से बाँधा है, प्रदेशरूप से प्रक्षिप्त कर पुष्ट किया है, अनुभाग रूप से विशिष्ट रसयुक्त किया है, स्थिति – सम्पादनरूप से स्थापित किया है, जीवप्रदेशों में निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट किया है तथा जो द्रव्य अभिसमन्वागत है, उन द्रव्यों को वे प्रतिसमय निरन्तर छोड़ते रहते हैं। इस कारण से हे गौतम ! यावत्‌ नैरयिकद्रव्यावीचिकमरण कहते हैं। इसी प्रकार यावत्‌ देव – द्रव्यावीचिकमरण के विषय में कहना। भगवन्‌ ! क्षेत्रावीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। यथा – नैरयिकक्षेत्रावीचिक – मरण यावत्‌ देवक्षेत्रावीचिकमरण। भगवन्‌ ! नैरयिक – क्षेत्रावीचिकमरण नैरयिक – क्षेत्रावीचिकमरण क्यों कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक क्षेत्र में रहे हुए जिन द्रव्यों को नारकायुष्यरूप में नैरयिकजीव ने स्पर्शरूप से ग्रहण किया है, यावत्‌ उन द्रव्यों को (भोगकर) वे प्रतिसमय निरन्तर छोड़ते रहते हैं, इत्यादि सब कथन द्रव्यावीचिकमरण के समान करना। इसी प्रकार भावावीचिकमरण तक कहना। भगवन्‌ ! अवधिमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का है, यथा – द्रव्यावधिमरण, क्षेत्रावधि – मरण यावत्‌ भावावधिमरण। भगवन्‌ ! द्रव्यावधिमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है – नैरयिक – द्रव्यावधिमरण, यावत्‌ देवद्रव्यावधिमरण। भगवन्‌ ! नैरयिक – द्रव्यावधिमरण नैरयिक – द्रव्यावधिमरण क्यों कहलाता है ? गौतम ! नैरयिकद्रव्य के रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस समय में छोड़ते हैं, फिर वे ही जीव पुनः नैरयिक हो कर उन्हीं द्रव्यों को ग्रहण कर भविष्य में फिर छोड़ेंगे; इस कारण हे गौतम ! यावत्‌ कहलाता है। इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक – द्रव्यावधिमरण, मनुष्य – द्रव्यावधिमरण और देव – द्रव्यावधिमरण भी कहना। इसी प्रकार के आलापक क्षेत्रावधिमरण, कालावधिमरण, भवावधिमरण और भावावधिमरण के विषय में भी कहने चाहिए। भगवन्‌ ! आत्यन्तिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, यथा – द्रव्यात्यन्तिकमरण, क्षेत्रा – त्यन्तिकमरण यावत्‌ भावात्यन्तिकमरण। भगवन्‌ ! द्रव्यात्यन्तिकमरण कितने प्रकार का है ? गोतम ! चार प्रकार का यथा – नैरयिक – द्रव्यात्यन्तिकमरण यावत्‌ देव – द्रव्यात्यन्तिकमरण। भगवन्‌ ! नैरयिक – द्रव्यात्यन्तिकमरण नैरयिक – द्रव्यात्यन्तिकमरण क्यों कहलाता है ? गौतम ! नैरयिक द्रव्य रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस समय छोड़ते हैं, वे नैरयिक जीव उन द्रव्यों को भविष्यत्काल में फिर कभी नहीं छोड़ेंगे। इस कारण हे गौतम ! यावत्‌ कहलाता है। इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक – द्रव्यात्यन्तिकमरण, मनुष्य – द्रव्यात्यन्तिकमरण एवं देवद्रव्यात्यन्ति – कमरण के विषय में कहना। इसी प्रकार क्षेत्रात्यन्तिकमरण, यावत्‌ भावात्यन्तिकमरण भी जानना। भगवन्‌ ! बालमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! बारह प्रकार का। यथा – वलयमरण इत्यादि, द्वीतिय स्कन्दकाधिकार के अनुसार, यावत्‌ गृध्रपृष्ठमरण जानना। भगवन्‌ ! पण्डितमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का, यथा – पादपोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण। भगवन्‌ ! पादपोपगमनमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का। यथा – निर्हारिम और अनिर्हारिम। (दोनों) नियमतः अप्रतिकर्म (शरीर – संस्काररहित) होता है। भगवन्‌ ! भक्तप्रत्या – ख्यानमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? पूर्ववत्‌ दो प्रकार का है, विशेषता यह है कि दोनों प्रकार का यह मरण नियमतः सप्रतिकर्म (शरीर – संस्काररहित) होता है। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है। शतक – १३ – उद्देशक – ८
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kativihe nam bhamte! Kaye pannatte? Goyama! Sattavihe kaye pannatte, tam jaha–oralie, oraliyamisae, veuvvie, veuvviya-misae, aharae, aharagamisae, kammae. Kativihe nam bhamte! Marane pannatte? Goyama! Pamchavihe marane pannatte, tam jaha–avichiyamarane, ohimarane, atiyamtiyamarane, balamarane, pamdiyamarane. Avichiyamarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Pamchavihe pannatte, tam jaha–davvavichiyamarane, khettavichiyamarane, kalavichiyamarane, bhavavichiyamarane, bhavavichiyamarane. Davvavichiyamarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Chauvvihe pannatte, tam jaha– neraiyadavvavichiyamarane, tirikkhajoniyadavvavichiya-marane, manussadavvavichiyamarane, devadavvavichiyamarane. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiyadavvavichiyamarane-neraiyadavvavichiyamarane? Goyama! Jannam neraiya neraie davve vattamana jaim davvaim neraiyauyattae gahiyaim baddhaim putthaim kadaim patthaviyaim nivitthaim abhinivitthaim abhisamannagayaim bhavamti taim davvaim avichimanusamayam niramtaram maramti tti kattu. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–neraiyadavvavichiyamarane, evam java devadavva-vichiyamarane. Khettavichiyamarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Chauvvihe pannatte, tam jaha–neraiyakhettavichiyamarane java devakhettavichiyamarane. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiyakhettavichiyamarane-neraiyakhettavichiyamarane? Goyama! Jannam neraiya neraiyakhette vattamana jaim davvaim neraiyauyattae gahiyaim evam jaheva davvavichiyamarane taheva khettavichiyamarane vi. Evam java bhavavichiyamarane. Ohimarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Pamchavihe pannatte, tam jaha–davvohimarane, khettohimarane, kalohimarane, bhavohimarane, bhavohimarane. Davvohimarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Chauvvihe pannatte, tam jaha–neraiyadavvohimarane java devadavvohimarane. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiyadavvohimarane-neraiyadavvohimarane? Goyama! Je nam neraiya neraiyadavve vattamana jaim davvaim sampayam maramti, te nam neraiya taim davvaim anagae kale puno vi marissamti. Se tenatthenam goyama! Java davvohimarane. Evam tirikkhajoniya-manussa-devadavvohimarane vi. Evam eenam gamenam khettohi-marane vi, kalohimarane vi, bhavohimarane vi, bhavohimarane vi. Atiyamtiyamarane nam bhamte! –puchchha. Goyama! Pamchavihe pannatte, tam jaha–davvatiyamtiyamarane, khettatiyamtiyamarane java bhavatiyam-tiyamarane. Davvatiyamtiyamarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Chauvvihe pannatte, tam jaha–neraiyadavvatiyamtiyamarane java devadavvatiyamtiyamarane. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiyadavvatiyamtiyamarane-neraiyadavvatiyamtiyamarane? Goyama! Je nam neraiya neraiyadavve vattamana jaim davvaim sampayam maramti, te nam neraiya taim davvaim anagae kale no puno vi marissamti. Se tenatthenam java neraiyadavvatiyamtiyamarane. Evam tirikkhajoniya-manussa-devadavvatiyamtiyamarane. Evam khettayamtiyamarane vi, evam java bhavatiyamtiyamarane vi. Balamaranenam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Duvalasavihe pannatte, tam jaha–1. Valayamarane 2. Vasattamarane 3. Amtosallamarane 4. Tabbhavamarane 5. Giripadane 6. Tarupadane 7. Jalappavese 8. Jalanappavese 9. Visabhakkhane 1. Satthovadane 11. Vehanase 12. Gaddhapatthe. Pamdiyamarane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–paovagamane ya, bhattapachchakkhane ya. Paovagamane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–niharime ya, aniharime ya. Niyamam apadikamme. Bhattapachchakkhane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–niharime ya, aniharime. Niyamam sapadikamme. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Marana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka – avichikamarana, avadhimarana, atyantika – marana, balamarana aura panditamarana. Bhagavan ! Avichikamarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka. Dravyavichikamarana, kshetravichikamarana, kalavichikamarana, bhavavichikamarana aura bhavavichikamarana. Bhagavan ! Dravyavichikamarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Vaha chara prakara ka hai. Nairayika – dravyavichikamarana, tiryagyonika dravyavichikamarana, manushya – dravyavichikamarana aura deva – dravyavichikamarana. Bhagavan ! Nairayika – dravyavichikamarana ko nairayika – dravyavichikamarana kisalie kahate haim\? Gautama ! Naraka – dravya rupa se vartamana nairayika ne jina dravyom ko narakayushya rupa mem sparsha rupa se grahana kiya hai, bandhana rupa se bamdha hai, pradesharupa se prakshipta kara pushta kiya hai, anubhaga rupa se vishishta rasayukta kiya hai, sthiti – sampadanarupa se sthapita kiya hai, jivapradeshom mem nivishta kiya hai, abhinivishta kiya hai tatha jo dravya abhisamanvagata hai, una dravyom ko ve pratisamaya nirantara chhorate rahate haim. Isa karana se he gautama ! Yavat nairayikadravyavichikamarana kahate haim. Isi prakara yavat deva – dravyavichikamarana ke vishaya mem kahana. Bhagavan ! Kshetravichikamarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Chara prakara ka. Yatha – nairayikakshetravichika – marana yavat devakshetravichikamarana. Bhagavan ! Nairayika – kshetravichikamarana nairayika – kshetravichikamarana kyom kaha jata hai\? Gautama ! Nairayika kshetra mem rahe hue jina dravyom ko narakayushyarupa mem nairayikajiva ne sparsharupa se grahana kiya hai, yavat una dravyom ko (bhogakara) ve pratisamaya nirantara chhorate rahate haim, ityadi saba kathana dravyavichikamarana ke samana karana. Isi prakara bhavavichikamarana taka kahana. Bhagavan ! Avadhimarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka hai, yatha – dravyavadhimarana, kshetravadhi – marana yavat bhavavadhimarana. Bhagavan ! Dravyavadhimarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Chara prakara ka hai – nairayika – dravyavadhimarana, yavat devadravyavadhimarana. Bhagavan ! Nairayika – dravyavadhimarana nairayika – dravyavadhimarana kyom kahalata hai\? Gautama ! Nairayikadravya ke rupa mem rahe hue nairayika jiva jina dravyom ko isa samaya mem chhorate haim, phira ve hi jiva punah nairayika ho kara unhim dravyom ko grahana kara bhavishya mem phira chhoremge; isa karana he gautama ! Yavat kahalata hai. Isi prakara tiryanchayonika – dravyavadhimarana, manushya – dravyavadhimarana aura deva – dravyavadhimarana bhi kahana. Isi prakara ke alapaka kshetravadhimarana, kalavadhimarana, bhavavadhimarana aura bhavavadhimarana ke vishaya mem bhi kahane chahie. Bhagavan ! Atyantikamarana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka, yatha – dravyatyantikamarana, kshetra – tyantikamarana yavat bhavatyantikamarana. Bhagavan ! Dravyatyantikamarana kitane prakara ka hai\? Gotama ! Chara prakara ka yatha – nairayika – dravyatyantikamarana yavat deva – dravyatyantikamarana. Bhagavan ! Nairayika – dravyatyantikamarana nairayika – dravyatyantikamarana kyom kahalata hai\? Gautama ! Nairayika dravya rupa mem rahe hue nairayika jiva jina dravyom ko isa samaya chhorate haim, ve nairayika jiva una dravyom ko bhavishyatkala mem phira kabhi nahim chhoremge. Isa karana he gautama ! Yavat kahalata hai. Isi prakara tiryanchayonika – dravyatyantikamarana, manushya – dravyatyantikamarana evam devadravyatyanti – kamarana ke vishaya mem kahana. Isi prakara kshetratyantikamarana, yavat bhavatyantikamarana bhi janana. Bhagavan ! Balamarana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Baraha prakara ka. Yatha – valayamarana ityadi, dvitiya skandakadhikara ke anusara, yavat gridhraprishthamarana janana. Bhagavan ! Panditamarana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Do prakara ka, yatha – padapopagamanamarana aura bhaktapratyakhyanamarana. Bhagavan ! Padapopagamanamarana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Do prakara ka. Yatha – nirharima aura anirharima. (donom) niyamatah apratikarma (sharira – samskararahita) hota hai. Bhagavan ! Bhaktapratya – khyanamarana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Purvavat do prakara ka hai, visheshata yaha hai ki donom prakara ka yaha marana niyamatah sapratikarma (sharira – samskararahita) hota hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai. Shataka – 13 – uddeshaka – 8