Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004058 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१२ |
Translated Chapter : |
शतक-१२ |
Section : | उद्देशक-९ देव | Translated Section : | उद्देशक-९ देव |
Sutra Number : | 558 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] भवियदव्वदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उवज्जंति–किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति। जइ देवेसु उववज्जंति? सव्वदेवेसु उववज्जंति जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति। नरदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता–पुच्छा। गोयमा! नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, नो देवेसु उववज्जंति। जइ नेरइएसु उववज्जंति? सत्तसु वि पुढवीसु उववज्जंति। धम्मदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता–पुच्छा। गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, नो मनुस्सेसु, देवेसु उववज्जंति। जइ देवेसु उववज्जंति किं भवनवासि–पुच्छा। गोयमा! नो भवनवासिदेवेसु उववज्जंति, नो वाणमंतरदेवेसु उववज्जंति, नो जोइसियदेवेसु उववज्जंति, वेमानियदेवेसु उववज्जंति। सव्वेसु वेमाणिएसु उववज्जंति जाव सव्वट्ठसिद्धअनुत्तरो-ववाइय वेमानियदेवेसु उववज्जंति, अत्थेगतिया सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। देवातिदेवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। भावदेवा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता–पुच्छा। जहा वक्कंतीए असुरकुमाराणं उव्वट्टणा तहा भाणियव्वा। भवियदव्वदेवे णं भंते! भवियदव्वदेवे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स, नवरं –धम्मदेवस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। भवियदव्वदेवस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो नरदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं सातिरेगं सागरोवमं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। धम्मदेवस्स णं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमपुहत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। देवातिदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! नत्थि अंतरं। भावदेवस्स णं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, यावत् अथवा देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु (एकमात्र) देवों में उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं (तो भवनपति आदि किन देवों में उत्पन्न होते हैं ?) (गौतम !) वे सर्वदेवों में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! नरदेव मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकोंमें होते हैं, (किन्तु) तिर्यञ्चों, मनुष्यों और देवों में उत्पन्न नहीं होते। भगवन् ! नैरयिकों कौन – सी नरकों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सातों पृथ्वीयों में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! धर्मदेव आयुष्य पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों में उत्पन्न होते हैं। (भगवन् !) यदि वे देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो भवनवासियों में उत्पन्न होते हैं, न वाणव्यन्तर देवों में और न ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु वैमानिक देवों में – सभी वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। उनमें से कोई – कोई धर्मदेव सिद्ध – बुद्ध – मुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं। भगवन् ! देवाधिदीव आयुष्य पूर्ण कर दूसरे ही क्षण कहाँ ते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। भगवन् ! भावदेव, आयु पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्तिपद में जिस प्रकार असुरकुमारों की उद्वर्त्तना कही है, उसी प्रकार यहाँ भावदेवों की भी उद्वर्त्तना कहना। भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेवरूप से कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम। इसी प्रकार जिसकी जो (भव – )स्थिति कही है, उसी प्रकार उसकी संस्थिति भी यावत् भावदेव तक कहनी चाहिए। विशेष यह है कि धर्मदेव की (संस्थिति) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्व – कोटि वर्ष है। भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अनन्तकाल – वनस्पतिकाल। भगवन् ! नरदेवों का कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य सागरोपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट अनन्त काल, देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त – काल। भगवन् ! धर्मदेव का अन्तर कितने काल तक का होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम – पृथक्त्व तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त। भगवन् ! देवाधिदेवों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! देवाधिदेवों का अन्तर नहीं होता। भगवन् ! भावदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल – वनस्पतिकाल। भगवन् ! इन भव्यद्रव्यदेव, नरदेव यावत् भावदेव में से कौन (देव) किन (देवों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े नरदेव होते हैं, उनसे देवाधिदेव संख्यात – गुणा (अधिक) होते हैं, उनसे धर्मदेव संख्यातगुण होते हैं, उनसे भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे होते हैं, और उनसे भी भावदेव असंख्यात गुणे होते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] bhaviyadavvadeva nam bhamte! Anamtaram uvvattitta kahim gachchhamti? Kahim uvajjamti–kim neraiesu uvavajjamti java devesu uvavajjamti? Goyama! No neraiesu uvavajjamti, no tirikkhajoniesu, no manussesu, devesu uvavajjamti. Jai devesu uvavajjamti? Savvadevesu uvavajjamti java savvatthasiddhatti. Naradeva nam bhamte! Anamtaram uvvattitta–puchchha. Goyama! Neraiesu uvavajjamti, no tirikkhajoniesu, no manussesu, no devesu uvavajjamti. Jai neraiesu uvavajjamti? Sattasu vi pudhavisu uvavajjamti. Dhammadeva nam bhamte! Anamtaram uvvattitta–puchchha. Goyama! No neraiesu uvavajjamti, no tirikkhajoniesu, no manussesu, devesu uvavajjamti. Jai devesu uvavajjamti kim bhavanavasi–puchchha. Goyama! No bhavanavasidevesu uvavajjamti, no vanamamtaradevesu uvavajjamti, no joisiyadevesu uvavajjamti, vemaniyadevesu uvavajjamti. Savvesu vemaniesu uvavajjamti java savvatthasiddhaanuttaro-vavaiya vemaniyadevesu uvavajjamti, atthegatiya sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti. Devatideva anamtaram uvvattitta kahim gachchhamti? Kahim uvavajjamti? Goyama! Sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti. Bhavadeva nam bhamte! Anamtaram uvvattitta–puchchha. Jaha vakkamtie asurakumaranam uvvattana taha bhaniyavva. Bhaviyadavvadeve nam bhamte! Bhaviyadavvadeve tti kalao kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliovamaim. Evam jachcheva thii sachcheva samchitthana vi java bhavadevassa, navaram –dhammadevassa jahannenam ekkam samayam, ukkosenam desuna puvvakodi. Bhaviyadavvadevassa nam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Goyama! Jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo Naradevanam–puchchha. Goyama! Jahannenam satiregam sagarovamam, ukkosenam anamtam kalam–avaddham poggalapariyattam desunam. Dhammadevassa nam–puchchha. Goyama! Jahannenam paliovamapuhattam, ukkosenam anamtam kalam java avaddham poggalapariyattam desunam. Devatidevanam–puchchha. Goyama! Natthi amtaram. Bhavadevassa nam–puchchha. Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Bhavyadravyadeva marakara turanta kaham jate haim, kaham utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom mem utpanna hote haim, yavat athava devom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Na to nairayikom mem utpanna hote haim, na tiryanchom mem aura na manushyom mem utpanna hote haim, kintu (ekamatra) devom mem utpanna hote haim. Yadi (ve) devom mem utpanna hote haim (to bhavanapati adi kina devom mem utpanna hote haim\?) (gautama !) ve sarvadevom mem utpanna hote haim. Bhagavan ! Naradeva marakara kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Nairayikommem hote haim, (kintu) tiryanchom, manushyom aura devom mem utpanna nahim hote. Bhagavan ! Nairayikom kauna – si narakom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Ve satom prithviyom mem utpanna hote haim. Bhagavan ! Dharmadeva ayushya purna kara tatkala kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Na to nairayikom mem utpanna hote haim, na tiryanchom mem aura na manushyom mem utpanna hote haim, kintu devom mem utpanna hote haim. (bhagavan !) yadi ve devom mem utpanna hote haim to kya bhavanavasi devom mem utpanna hote haim, athava vanavyantara, jyotishka ya vaimanika devom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Ve na to bhavanavasiyom mem utpanna hote haim, na vanavyantara devom mem aura na jyotishka devom mem utpanna hote haim, kintu vaimanika devom mem – sabhi vaimanika devom mem utpanna hote haim. Unamem se koi – koi dharmadeva siddha – buddha – mukta hote haim yavat sarva duhkhom ka anta kara dete haim. Bhagavan ! Devadhidiva ayushya purna kara dusare hi kshana kaham te haim, kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Ve siddha hote haim, yavat sarva duhkhom ka anta karate haim. Bhagavan ! Bhavadeva, ayu purna kara tatkala kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Vyutkrantipada mem jisa prakara asurakumarom ki udvarttana kahi hai, usi prakara yaham bhavadevom ki bhi udvarttana kahana. Bhagavan ! Bhavyadravyadeva, bhavyadravyadevarupa se kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta tina palyopama. Isi prakara jisaki jo (bhava – )sthiti kahi hai, usi prakara usaki samsthiti bhi yavat bhavadeva taka kahani chahie. Vishesha yaha hai ki dharmadeva ki (samsthiti) jaghanya eka samaya aura utkrishta deshona purva – koti varsha hai. Bhagavan ! Bhavyadravyadeva ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta anantakala – vanaspatikala. Bhagavan ! Naradevom ka kitane kala ka antara hota hai\? Gautama ! Jaghanya sagaropama se kuchha adhika aura utkrishta ananta kala, deshona aparddha pudgalaparavartta – kala. Bhagavan ! Dharmadeva ka antara kitane kala taka ka hota hai\? Gautama ! Jaghanya palyopama – prithaktva taka aura utkrishta anantakala yavat deshona aparddha pudgalaparavartta. Bhagavan ! Devadhidevom ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Devadhidevom ka antara nahim hota. Bhagavan ! Bhavadeva ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta anantakala – vanaspatikala. Bhagavan ! Ina bhavyadravyadeva, naradeva yavat bhavadeva mem se kauna (deva) kina (devom) se alpa, bahuta, tulya ya visheshadhika hote haim\? Gautama ! Sabase thore naradeva hote haim, unase devadhideva samkhyata – guna (adhika) hote haim, unase dharmadeva samkhyataguna hote haim, unase bhavyadravyadeva asamkhyatagune hote haim, aura unase bhi bhavadeva asamkhyata gune hote haim. |