Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004046 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१२ |
Translated Chapter : |
शतक-१२ |
Section : | उद्देशक-५ अतिपात | Translated Section : | उद्देशक-५ अतिपात |
Sutra Number : | 546 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–बहुजण णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ–एवं खलु राहू चंदं गेण्हति, एवं खलु राहू चंदं गेण्हति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि–एवं खलु राहू देवे महिड्ढीए जाव महेसक्खे वरवत्थधरे वरमल्लधरे वरगंधधरे वराभरणधारी। राहुस्स णं देवस्स नव नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–सिंघाडए जडिलए खत्तए खरए दद्दुरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्हसप्पे। राहुस्स णं देवस्स विमाना पंचवण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, नीला, लोहिया, हालिद्दा, सुक्किला। अत्थि कालए राहुविमाणे खंजणवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि नीलए राहुविमाने लाउयवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि लोहिए राहुविमाने मंजिट्ठवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि पीतए राहुविमाने हालिद्दवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि सुक्किलए राहुविमाने भासरासिवण्णाभे पन्नत्ते। जदा णं राहू आगच्छमाणे वागच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं पुरत्थिमेणं आवरेत्ता णं पच्चत्थिमेणं वीतीवयइ तदा णं पुरत्थिमेणं चंदे उवदंसेति, पच्चत्थिमेणं राहू। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं पच्चत्थिमेणं आवरेत्ता णं पुरत्थिमेणं बीतीवयइ तदा णं पच्चत्थिमेणं चंदे उवदंसेति, पुरत्थिमेणं राहू। एवं जहा पुरत्थिमेणं पच्चत्थिमेण य दो आलावगा भणिया एवं दाहिणेणं उत्तरेण य दो आलावगा भाणियव्वा। एवं उत्तरपुरत्थिमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो आलावगा भाणियव्वा। एवं दाहिणपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो आलावगा भाणियव्वा। एवं चेव जाव तदा णं उत्तरपच्चत्थिमेणं चंदे उवदंसेति, दाहिणपुरत्थिमेणं राहू। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेमाणे-आवरेमाणे चिट्ठइ तदा णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहू चंदं गेण्हति, एवं खलु राहू चंदं गेण्हति। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेत्ता णं पासेनं वीतीवयइ तदा णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना, एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेत्ता णं पच्चोसक्कइ तदा णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे वंते, एवं खलु राहुणा चंदे वंते। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारे-माणे वा चंदलेस्सं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं आवरेत्ता णं चिट्ठइ तदा णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे, एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे। कतिविहे णं भंते! राहू पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे राहू पन्नत्ते, तं जहा–धुवराहू य, पव्वराहू य। तत्थ णं जे से धुवराहू से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए पन्नरस-तिभागेणं पन्नरसतिभागं चंदलेस्सं आवरेमाणे-आवरेमाणे चिट्ठइ, तं जहा–पढमाए पढमं भागं, बितियाए बितियं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं। चरिमसमये चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते वा विरत्ते वा भवइ। तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठइ, पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं। चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते वा विरत्ते वा भवइ। तत्थ णं जे से पव्वराहू से जहन्नेणं छण्हं मासाणं उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स, अडयालीसाए संवच्छराणं सूरस्स। | ||
Sutra Meaning : | राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने प्रश्न किया – भगवन् ! बहुत से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि निश्चित ही राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है, तो हे भगवन् ! क्या यह ऐसा ही है? गौतम ! यह जो बहुत – से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ – ‘यह निश्चय है कि राहु महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न उत्तम वस्त्रधारी, श्रेष्ठ माला का धारक, उत्कृष्ट सुगन्धधर और उत्तम आभूषणधारी देव है।’ राहु देव के नौ नाम कहे हैं – (१) शृंगाटक, (२) जटिलक, (३) क्षत्रक, (४) खर, (५) दर्दुर, (६) मकर, (७) मत्स्य, (८) कच्छप और (९) कृष्णसर्प। राहुदेव के विमान पाँच वर्ण के कहे हैं – काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत। इनमें से राहु का जो काला विमान है, वह खंजन के समान कान्ति वाला है। राहुदेव का जो नीला विमान है, वह हरी तुम्बी के समान कान्ति वाला है। राहु का जो लोहित विमान है, वह मजीठ के समान प्रभा वाला है। राहु का जो पीला विमान है, वह हल्दी के समान वर्ण वाला है और राहु का जो शुक्ल विमान है, वह भस्मराशि के समान कान्ति वाला है। जब गमन – आगमन करता हुआ, विकुर्वणा करता हुआ तथा कामक्रीड़ा करता हुआ राहुदेव, पूर्व में स्थित चन्द्रमा की ज्योत्सना को ढँककर पश्चिम की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पूर्व में दिखाई देता है और पश्चिम में राहु दिखाई देता है। जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ, या कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति को पश्चिमदिशा में आच्छादित करके पूर्वदिशा की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पश्चिम में दिखाई देता है और राहु पूर्व में दिखाई देता है। इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर के दो आलापक हैं। इसी प्रकार ईशानकोण और नैऋत्यकोण के और इसी प्रकार आग्नेयकोण एवं वायव्यकोण के दो आलापक हैं। इसी प्रकार जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, बार – बार चन्द्रमा की ज्योत्सना को आवृत्त करता रहता है, तब मनुष्य कहते हैं – ‘राहु ने चन्द्रमा को ऐसे ग्रस लिया, राहु इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रस रहा है।’ जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु चन्द्रद्युति को आच्छादित करके पास से होकर नीकलता है, तब मनुष्य कहते हैं – ‘चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला, इस प्रकार चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला।’ जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की प्रभा को आवृत्त करके वापस लौटता है, तब मनुष्य कहते हैं – राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया, राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया। जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति को नीचे से, दिशाओं एवं विदिशाओं से ढँक कर रहता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं – ‘राहु ने इसी प्रकार चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।’ भगवन् ! राहु कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, यथा – ध्रुवराहु और पर्वराहु। उनमें से जो ध्रुव – राहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्रबिम्ब के पन्द्रहवे भाग को बार – बार ढँकता रहता है, यथा – प्रथमा को (चन्द्रमा) के प्रथम भाग को ढँकता है, द्वीतिया को दूसरे भाग को ढँकता है, इसी प्रकार यावत् अमावास्या को पन्द्रहवें भाग को ढँकता है। कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आवृत्त) हो जाता है, और शेष समय में चन्द्रमा रक्त और विरक्त रहता है। इसी कारण शुक्लपक्ष का प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा तक प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णतः अनाच्छादित हो जाता है, और शेष समय में वह अंशतः अनाच्छादित और अंशतः अनाच्छादित रहता है। इनमें से जो पुर्वराहु है, वह जघन्यतः छह मास में चन्द्र और सूर्य को आवृत्त करता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढँकता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] rayagihe java evam vayasi–bahujana nam bhamte! Annamannassa evamaikkhai java evam paruvei–evam khalu rahu chamdam genhati, evam khalu rahu chamdam genhati. Se kahameyam bhamte! Evam? Goyama! Jannam se bahujane annamannassa evamaikkhai java je te evamahamsu michchham te evamahamsu, aham puna goyama! Evamaikkhami java evam paruvemi–evam khalu rahu deve mahiddhie java mahesakkhe varavatthadhare varamalladhare varagamdhadhare varabharanadhari. Rahussa nam devassa nava namadhejja pannatta, tam jaha–simghadae jadilae khattae kharae daddure magare machchhe kachchhabhe kanhasappe. Rahussa nam devassa vimana pamchavanna pannatta, tam jaha–kinha, nila, lohiya, halidda, sukkila. Atthi kalae rahuvimane khamjanavannabhe pannatte, atthi nilae rahuvimane lauyavannabhe pannatte, atthi lohie rahuvimane mamjitthavannabhe pannatte, atthi pitae rahuvimane haliddavannabhe pannatte, atthi sukkilae rahuvimane bhasarasivannabhe pannatte. Jada nam rahu agachchhamane vagachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdalessam puratthimenam avaretta nam pachchatthimenam vitivayai tada nam puratthimenam chamde uvadamseti, pachchatthimenam rahu. Jada nam rahu agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdalessam pachchatthimenam avaretta nam puratthimenam bitivayai tada nam pachchatthimenam chamde uvadamseti, puratthimenam rahu. Evam jaha puratthimenam pachchatthimena ya do alavaga bhaniya evam dahinenam uttarena ya do alavaga bhaniyavva. Evam uttarapuratthimenam dahinapachchatthimena ya do alavaga bhaniyavva. Evam dahinapuratthimenam uttarapachchatthimena ya do alavaga bhaniyavva. Evam cheva java tada nam uttarapachchatthimenam chamde uvadamseti, dahinapuratthimenam rahu. Jada nam rahu agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdalessam avaremane-avaremane chitthai tada nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahu chamdam genhati, evam khalu rahu chamdam genhati. Jada nam rahu agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdalessam avaretta nam pasenam vitivayai tada nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu chamdenam rahussa kuchchhi bhinna, evam khalu chamdenam rahussa kuchchhi bhinna. Jada nam rahu agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdalessam avaretta nam pachchosakkai tada nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde vamte, evam khalu rahuna chamde vamte. Jada nam rahu agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyare-mane va chamdalessam ahe sapakkhim sapadidisim avaretta nam chitthai tada nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde ghatthe, evam khalu rahuna chamde ghatthe. Kativihe nam bhamte! Rahu pannatte? Goyama! Duvihe rahu pannatte, tam jaha–dhuvarahu ya, pavvarahu ya. Tattha nam je se dhuvarahu se nam bahulapakkhassa padivae pannarasa-tibhagenam pannarasatibhagam chamdalessam avaremane-avaremane chitthai, tam jaha–padhamae padhamam bhagam, bitiyae bitiyam bhagam java pannarasesu pannarasamam bhagam. Charimasamaye chamde ratte bhavai, avasese samaye chamde ratte va viratte va bhavai. Tameva sukkapakkhassa uvadamsemane-uvadamsemane chitthai, padhamae padhamam bhagam java pannarasesu pannarasamam bhagam. Charimasamaye chamde viratte bhavai, avasese samaye chamde ratte va viratte va bhavai. Tattha nam je se pavvarahu se jahannenam chhanham masanam ukkosenam bayalisae masanam chamdassa, adayalisae samvachchharanam surassa. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Rajagriha nagara mem yavat gautama svami ne prashna kiya – bhagavan ! Bahuta se manushya paraspara isa prakara kahate haim, yavat isa prakara prarupana karate haim ki nishchita hi rahu chandrama ko grasa leta hai, to he bhagavan ! Kya yaha aisa hi hai? Gautama ! Yaha jo bahuta – se loga paraspara isa prakara kahate haim, ve mithya kahate haim. Maim isa prakara kahata hum, yavat prarupana karata hum – ‘yaha nishchaya hai ki rahu maharddhika yavat mahasaukhyasampanna uttama vastradhari, shreshtha mala ka dharaka, utkrishta sugandhadhara aura uttama abhushanadhari deva hai.’ rahu deva ke nau nama kahe haim – (1) shrimgataka, (2) jatilaka, (3) kshatraka, (4) khara, (5) dardura, (6) makara, (7) matsya, (8) kachchhapa aura (9) krishnasarpa. Rahudeva ke vimana pamcha varna ke kahe haim – kala, nila, lala, pila aura shveta. Inamem se rahu ka jo kala vimana hai, vaha khamjana ke samana kanti vala hai. Rahudeva ka jo nila vimana hai, vaha hari tumbi ke samana kanti vala hai. Rahu ka jo lohita vimana hai, vaha majitha ke samana prabha vala hai. Rahu ka jo pila vimana hai, vaha haldi ke samana varna vala hai aura rahu ka jo shukla vimana hai, vaha bhasmarashi ke samana kanti vala hai. Jaba gamana – agamana karata hua, vikurvana karata hua tatha kamakrira karata hua rahudeva, purva mem sthita chandrama ki jyotsana ko dhamkakara pashchima ki ora chala jata hai; taba chandrama purva mem dikhai deta hai aura pashchima mem rahu dikhai deta hai. Jaba ata hua ya jata hua, athava vikriya karata hua, ya kamakrira karata hua rahu, chandrama ki dipti ko pashchimadisha mem achchhadita karake purvadisha ki ora chala jata hai; taba chandrama pashchima mem dikhai deta hai aura rahu purva mem dikhai deta hai. Isi prakara dakshina aura uttara ke do alapaka haim. Isi prakara ishanakona aura nairityakona ke aura isi prakara agneyakona evam vayavyakona ke do alapaka haim. Isi prakara jaba ata hua ya jata hua, athava vikriya karata hua ya kamakrira karata hua rahu, bara – bara chandrama ki jyotsana ko avritta karata rahata hai, taba manushya kahate haim – ‘rahu ne chandrama ko aise grasa liya, rahu isa prakara chandrama ko grasa raha hai.’ jaba ata hua ya yavat kamakrira karata hua rahu chandradyuti ko achchhadita karake pasa se hokara nikalata hai, taba manushya kahate haim – ‘chandrama ne rahu ki kukshi ka bhedana kara dala, isa prakara chandrama ne rahu ki kukshi ka bhedana kara dala.’ jaba ata hua ya yavat kamakrira karata hua rahu, chandrama ki prabha ko avritta karake vapasa lautata hai, taba manushya kahate haim – rahu ne chandrama ka vamana kara diya, rahu ne chandrama ka vamana kara diya. Jaba ata hua ya yavat kamakrira karata hua rahu, chandrama ki dipti ko niche se, dishaom evam vidishaom se dhamka kara rahata hai, taba manushyaloka mem manushya kahate haim – ‘rahu ne isi prakara chandrama ko grasita kara liya hai.’ Bhagavan ! Rahu kitane prakara ka hai\? Gautama ! Do prakara ka, yatha – dhruvarahu aura parvarahu. Unamem se jo dhruva – rahu hai, vaha krishnapaksha ki pratipada se lekara pratidina apane pandrahavem bhaga se, chandrabimba ke pandrahave bhaga ko bara – bara dhamkata rahata hai, yatha – prathama ko (chandrama) ke prathama bhaga ko dhamkata hai, dvitiya ko dusare bhaga ko dhamkata hai, isi prakara yavat amavasya ko pandrahavem bhaga ko dhamkata hai. Krishnapaksha ke antima samaya mem chandrama rakta (sarvatha avritta) ho jata hai, aura shesha samaya mem chandrama rakta aura virakta rahata hai. Isi karana shuklapaksha ka pratipada se lekara yavat purnima taka pratidina pandrahavam bhaga dikhai deta rahata hai, shuklapaksha ke antima samaya mem chandrama purnatah anachchhadita ho jata hai, aura shesha samaya mem vaha amshatah anachchhadita aura amshatah anachchhadita rahata hai. Inamem se jo purvarahu hai, vaha jaghanyatah chhaha masa mem chandra aura surya ko avritta karata hai aura utkrishta bayalisa masa mem chandra ko aura aratalisa varsha mem surya ko dhamkata hai. |