Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004018 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-११ काल | Translated Section : | उद्देशक-११ काल |
Sutra Number : | 518 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अत्थि णं भंते! एएसिं पलिओवम-सागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। सहसंबवने उज्जाने–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे बले नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया वण्णओ जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ। तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे विचित्तउल्लोग-चिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे बहुसमसुविभत्त-देसभाए पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्कपुप्फपुंजोवयार-कलिए कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूए, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि–सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुय-उद्दाल-सालिसए ओयविय-खोमियदुगुल्लपट्ट-पडिच्छयणे सुविरइय-रयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणग-रूय-बूर-नवणीय-तूलफासे सुगं-धवरकुसुम-चुण्ण-सयणो-वयारकलिए अद्धरत्तकालमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुद्धा। हार-रयय-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेल-पंडरतरोरुरमणिज्ज-पेच्छणिज्जं थिर-लट्ठ-पउट्ठ-वट्ट-पीवर-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-तिक्खदाढाविडंबियमुहं परिकम्मियजच्चकमलकोमल -माइयसोभंतलट्ठओट्ठं रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहं मूसागय-पवरकनगतावियआवत्तायंत-वट्ट-तडिविमलसरिसनयणं विसालपीवरोरुं पडिपुण्णविपुलखंधं मिउविसयसुहुमलक्खण-पसत्थविच्छि-न्न-केसरसडोवसोभियं ऊसिय-सुनिम्मिय-सुजाय-अप्फोडियलंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंतं जंभायंतं, नहयलाओ ओवयमाणं, निययवयणमतिवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया नंदिया पोइमणा परमसोमणस्सिया हरि-सवसविसप्पमाण हियया धाराहयकलंबगं पिव समूसवियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रन्नो सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरी-याहिं मिय-महुर-मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी-संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयति, निसीयित्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव मिय-महुर-मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी-संलवमाणी एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए तं चेव जाव नियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तण्णं देवानुप्पिया! एयस्स ओरालस्स जाव महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ? तए णं से बले राया पभावईए देवीए अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमाणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चंचुमाल-इयतणुए ऊसवियरोमकूले तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभा-विएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेइ, करेत्ता पभावइं देविं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव मंगल्लाहिं मिय-महुर-सस्सिरीयाहिं वग्गूहिं संलवमाणे-संलवमाणे एवं वयासी– ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, कल्लाणे णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव सस्सिरीए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, अत्थलाभो देवानुप्पिए! भोगलाभो देवानुप्पिए! पुत्तलाभो देवानुप्पिए! रज्जलाभो देवानुप्पिए! एवं खलु तुमं देवानुप्पिए! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडेंसयं कुलतिलगं कुलकित्तिकरं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवद्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदिय-सरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विउलबल-वाहणे रज्ज-वई राया भविस्सइ। तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे त्ति कट्टु पभावतिं देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहति। तए णं सा पभावती देवी बलस्स रन्नो अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा करयल परिग्गहियं दसनहं सिर-सावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवमेयं देवानुप्पिया! तहमेयं देवानुप्पिया! अवितहमेयं देवानुप्पिया! असंदिद्धमेयं देवानुप्पिया! इच्छियमेयं देवानुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! इच्छिय-पडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कट्टु तं सुविणं सम्मं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणिरयण-भत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता सयणिज्जंसि निसीयति, निसीयित्ता एवं वयासी–मा मे से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुविणे अन्नेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्सइ त्ति कट्टु देवगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुविणजागरियं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ। तए णं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त-सुइय-संमज्जिओवलित्तं सुगंध-वरपंचवण्णपुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य सीहासणं रएह, रएत्ता ममेतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त-सुइय-संमज्जिओवलित्तं सुगंधवरपंचवण्णपुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेत्ता य कारवेत्ता य सीहासणं रएत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से बले राया पच्चूसकालसमयंसि सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, अट्टणसालं अनुपविसइ, जहा ओववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीयित्ता अप्पणो उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाइं सेयवत्थपच्चत्थुयाइं सिद्धत्थकयमंगलोवयाराइं रयावेइ, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणि-रयणमंडियं अहियपेच्छणिज्जं महग्घवरपट्टणुग्गयं सण्हपट्टभत्तिसयचित्तताणं ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर -विहग-बालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्ति-चित्तं अब्भिंतरियं जवणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता नाणामणिरयण- भत्तिचित्तं अत्थरय-मउयमसूरगोत्थयं सेयवत्थपच्चत्थुयं अंगसुहफासयं सुमउयं पभावत्तीए देवीए भद्दासणं रयावेइ, रयावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासि–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अट्ठंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं वेइयं हत्थिणपुरं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सद्दावेंति। तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रन्नो कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठतुट्ठा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकिय सरीरा सिद्धत्थगहरियालि-याकयमंगलमुद्धाणा सएहिं-सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता हत्थिणपुरं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव बलस्स रन्नो भवनवर-वडेंसए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवनवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु बलंरायं जएणं विजएणं बद्धावेंति। तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रण्णा वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्ण-त्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। तए णं से बले राया पभावतिं देविं जवणियंतरियं ठावेइ, ठावेत्ता पुप्फ-फल पडिपुण्णहत्थे परेणं विनएणं ते सुविणलक्खणपाढए एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! पभावती देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तण्णं देवानुप्पिया! एयस्स ओरालस्स जाव महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ? तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रन्नो अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा तं सुविणं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता ईहं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेंति, करेत्ता अन्नमन्नेणं सद्धिं संचालेंति, संचा-लेत्ता तस्स सुविणस्स लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विनिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा बलस्स रन्नो पुरओ सुविणसत्थाइं उच्चारेमाणा-उच्चारेमाणा एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा–बावत्तरिं सव्वसुविणा दिट्ठा। तत्थ णं देवानुप्पिया! तित्थगरमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा तित्थगरंसि वा चक्कवट्टिंसि वा गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महा-सुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति, तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? हाँ, सुदर्शन ! होता है। भगवन् ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे सुदर्शन ! उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था। वहाँ सहस्रा – म्रवन नामक उद्यान था। उस हस्तिनापुर में ‘बल’ नामक राजा था। उस बल राजा की प्रभावती नामकी देवी (पटरानी) थी। उसके हाथ – पैर सुकुमाल थे, यावत् पंचेन्द्रिय संबंधी सुखानुभव करती हुई जीवनयापन करती थी। किसी दिन प्रभावती देवी उस प्रकार के वासगृह के भीतर, उस प्रकार की अनुपम शय्या पर (सोई हुई थी।) (वह वासगृह) भीतर से चित्रकर्म से युक्त तथा बाहर से सफेद किया हुआ, एवं घिसकर चिकना बनाया हुआ था। जिसका ऊपरी भाग विविध चित्रों से युक्त तथा अधोभाग प्रकाश से देदीप्यमान था। मणियों और रत्नों के कारण उसका अन्धकार नष्ट हो गया था। उसका भूभाग बहुत सम और सुविभक्त था। पाँच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्पपुंजों के उपचार से युक्त था। उत्तम कालागुरु, कुन्दरुक और तुरुष्क के धूप से वह वासभवन चारों ओर से महक रहा था। उसकी सुगन्ध से वह अभिराम तथा सुगन्धित पदार्थों से सुवासित था। एक तरह से वह सुगन्धित द्रव्य की गुटिका के जैसा हो रहा था। ऐसे आवासभवन में जो शय्या थी, वह अपने आप में अद्वीतिय थी तथा शरीर से स्पर्श करते हुए पार्श्ववर्ती तकिये से युक्त थी। फिर उसके दोनों और तकिये रखे हुए थे। वह दोनों ओर से उन्नत थी, बीच में कुछ झुकी हुई एवं गहरी थी, एवं गंगा नदी के तटवर्ती बालू पैर रखते ही नीचे धस जाने के समान थी। वह मुलायम बनाए हुए रेशमी दुकूलपट से आच्छादित तथा सुन्दर सुरचित रजस्राण से युक्त थी। लाल रंग के सूक्ष्म वस्त्र की मच्छरदानी उस पर लगी हुई थी। वह सुरम्य आजिनक, रूई, बूर, नवनीत तथा अर्कतूल के समान कोमल स्पर्श वाली थी; तथा सुगन्धित श्रेष्ठपुरुष चूर्ण एवं शयनोपचार से युक्त थी। ऐसी शय्या पर सोती हुई प्रभावती रानी, जब अर्धरात्रिकाल के समय कुछ सोती – कुछ जागती अर्धनिद्रित अवस्था में थी, तब स्वप्न में इस प्रकार का उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलकारक एवं शोभायुक्त महास्वप्न देखा और जागृत हुई। प्रभावती रानी ने स्वप्न में एक सिंह देखा, जो हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चन्द्रकिरण, जलकण, रजतमहाशैल के समान श्वेत वर्ण वाला था, वह विशाल, रमणीय और दर्शनीय था। उसके प्रकोष्ठ स्थिर और सुन्दर थे वह अपने गोल, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट और तीक्ष्ण दाढ़ाओं से युक्त मुँह को फाड़े हुए था। उसके ओष्ठ संस्का – रित जातिमान् कमल के समान कोमल, प्रमाणोपेत एवं अत्यन्त सुशोभित थे। उसका तालु और जीभ रक्तकमल के पत्ते के समान अत्यन्त कोमल थी। उसके नेत्र, मूस में रहे हुए एवं अग्नि में तपाये हुए तथा आवर्त्त करते हुए उत्तम स्वर्ण के समान वर्ण वाले, गोल एवं विद्युत के समान विमल (चमकीले) थे। उसकी जंघा विशाल एवं पुष्ट थी। उसके स्कन्ध परिपूर्ण और विपुल थे। वह मृदु, विशद, सूक्ष्म एवं प्रशस्त लक्षण वाली विस्तीर्ण केसर के जटा से सुशोभित था। वह सिंह अपनी सुनिर्मित, सुन्दर एवं उन्नत पूँछ को फटकारता हुआ, सौम्य आकृति वाला, लीला करता हुआ, जंभाई लेता हुआ, गगनतल से उतरता हुआ तथा अपने मुख – कमल – सरोवर में प्रवेश करता हुआ दिखाई दिया। स्वप्न में ऐसे सिंह को देखकर रानी जागृत हुई। तदनन्तर वह प्रभावती रानी इस प्रकार के उस उदार यावत् शोभायुक्त महास्वप्न को देखकर जागृत होते ही अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई; यावत् मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान रोमांचित होती हुई उस स्वप्न का स्मरण करने लगी। फिर वह अपनी शय्या से उठी और शीघ्रता से रहित तथा अचपल, असम्भ्रमित एवं अवि – लम्बित अत एव राजहंस सरीखी गति से चलकर जहाँ बल राजा की शय्या थी, वहाँ आई और उन्हें उन इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलमय तथा शोभायुक्त परिमित, मधुर एवं मंजुल वचनों से जगाने लगी। राजा जागृत हुआ। राजा की आज्ञा होने पर रानी विचित्र मणि और रत्नों की रचना से चित्रित भद्रासन पर बैठी। और उत्तम सुखासन से बैठकर आश्वस्त और विश्वस्त हुई। रानी प्रभावती, बल राजा से इष्ट, कान्त यावत् मधुर वचनों से बोली – ‘हे देवानुप्रिय ! आज मैं सो रही थी, तब मैंने यावत् अपने मुख में प्रविष्ट होते हुए सिंह को स्वप्न में देखा और मैं जाग्रत हुई हूँ। तो हे देवानुप्रिय ! मुझे इस उदार यावत् महास्वप्न का क्या कल्याणरूप फल विशेष होगा ? तदनन्तर वह बल राजा प्रभावती देवी से इस बात को सूनकर और समझकर हर्षित और सन्तुष्ट हुआ यावत् उसका हृदय आकर्षित हुआ। मेघ की धारा से विकसित कदम्ब के सुगन्धित पुष्प के समान उसका शरीर पुलकित हो उठा, रोमकूप विकसित हो गए। राजा बल उस स्वप्न के विषय में अवग्रह करके ईहा में प्रविष्ट हुआ, फिर उसने अपने स्वाभाविक बुद्धिविज्ञान से उस स्वप्न के फल का निश्चय किया। उसके बाद इष्ट, कान्त यावत् मंगलमय, परिमित, मधुर एवं शोभायुक्त सुन्दर वचन बोलता हुआ राजा बोला – ‘हे देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है। देवी ! तुमने कल्याणकारक यावत् शोभायुक्त स्वप्न देखा है। हे देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याणरूप एवं मंगलकारक स्वप्न देखा है। हे देवानुप्रिये ! (तुम्हें) अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और राज्यालाभ होगा। हे देवानुप्रिये ! नौ मास और साढ़े तीन दिन व्यतीत होने पर तुम हमारे कुल में केतु – समान, कुल के दीपक, कुल में पर्वततुल्य, कुल का शेखर, कुल का तिलक, कुल की कीर्ति फैलाने वाले, कुल को आनन्द देने वाले, कुल का यश बढ़ाने वाले, कुल के आधार, कुल में वृक्ष समान, कुल की वृद्धि करने वाले, सुकुमाल हाथ – पैर वाले, अंगहीनता – रहित, परिपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीर वाले, यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन, सुरूप एवं देवकुमार के समान कान्ति वाले पुत्र को जन्म देगी।’ वह बालक भी बालभाव से मुक्त होकर विज्ञ और कलादि में परिपक्व होगा। यौवन प्राप्त होते ही वह शूरवीर, पराक्रमी तथा विस्तीर्ण एवं विपुल बल और वाहन वाला राज्या – धिपति राजा होगा। अतः हे देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है, यावत् देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है, इस प्रकार बल राजा ने प्रभावती देवी को इष्ट यावत् मधुर वचनों से वही बात दो बार और तीन बार कही। तदनन्तर वह प्रभावती रानी, बल राजा से इस बात को सूनकर, हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई; और हाथ जोड़कर यावत् बोली – ‘हे देवानुप्रिय ! आपने जो कहा, वह यथार्थ है, देवानुप्रिय ! वह सत्य है, असंदिग्ध है। वह मुझे ईच्छित है, स्वीकृत है, पुनः पुनः ईच्छित और स्वीकृत है।’ इस प्रकार स्वप्न के फल को सम्यक् रूप से स्वीकार किया और फिर बल राजा की अनुमति लेकर अनेक मणियों और रत्नों से चित्रित भद्रासन से उठी। फिर शीघ्रता और चपलता से रहित यावत् गति से जहाँ अपनी शय्या थी, वहाँ आई और शय्या पर बैठकर कहने लगी – ‘मेरा यह उत्तम, प्रधान एवं मंगलमय स्वप्न दूसरे पापस्वप्नों से विनष्ट न हो जाए।’ इस प्रकार विचार करके देवगुरुजन – सम्बन्धी प्रशस्त और मंगलरूप धार्मिक कथाओं से स्वप्नजागरिका के रूप में वह जागरण करती हुई बैठी रही। तदनन्तर बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार का आदेश दिया – ‘देवानुप्रियो ! बाहर की उपस्थानशाला आज शीघ्र ही विशेषरूप से गन्धोदक छिड़क कर शुद्ध करो, स्वच्छ करो, लीप कर सम करो सुगन्धित और उत्तम पाँच वर्ण के फूलों से सुसज्जित करो, उत्तम कालागुरु और कुन्दरुष्क के धूप से यावत् सुगन्धित गुटिका के समान करो – कराओ, फिर वहाँ सिंहासन रखो। ये सब कार्य करके यावत् मुझे वापस निवेदन करो।’ तब यह सूनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बल राजा का आदेश शिरोधार्य किया और यावत् शीघ्र ही विशेषरूप से बाहर की उपस्थानशाला को यावत् स्वच्छ, शुद्ध, सुगन्धित किया यावत् आदेशानुसार सब कार्य करके राजा से निवेदन किया। इसके पश्चात् बल राजा प्रातःकाल के समय अपनी शय्या से उठे और पादपीठ से नीचे ऊतरे। फिर वे जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ गए। व्यायामशाला तथा स्नानगृह के कार्य का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जान लेना, यावत् चन्द्रमा के समान प्रिय – दर्शन बनकर वह नृप, स्नानगृह से नीकले और जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी वहाँ आए। सिंहासन पर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठे। फिर अपने से ईशानकोण में श्वेत वस्त्र से आच्छा – दित तथा सरसौं आदि मांगलिक पदार्थों से उपचरित आठ भद्रासन रखवाए। तत्पश्चात् अपने से न अति दूर और न अति निकट अनेक प्रकार के मणिरत्नों से सुशोभित, अत्यधिक दर्शनीय, बहुमूल्य श्रेष्ठ पट्टन में निर्मित सूक्ष्म पट पर सैकड़ोंचित्रों की रचना से व्याप्त, ईहामृग, वृषभ आदि के यावत् पद्मलता के चित्र से युक्त एक आभ्यन्तरिक यवनिका लगवाई। (उस पर्दे के अन्दर) अनेक प्रकार के मणिरत्नों से एवं चित्र से रचित विचित्र खोली वाले, कोमल वस्त्र से आच्छादित, तथा श्वेत वस्त्र चढ़ाया हुआ, अंगों को सुखद स्पर्श वाला तथा सुकोमल गद्दीयुक्त एक भद्रासन रखवा दिया। फिर बल राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें कहा – हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही अष्टांग महानिमित्त के सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्न – शास्त्र के पाठकों को बुला लाओ। इस पर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् राजा का आदेश स्वीकार किया और राजा के पास से नीकले। फिर वे शीघ्र, चपलता युक्त, त्वरित, उग्र एवं वेगवाली तीव्र गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर जहाँ उन स्वप्न – लक्षण पाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और उन्हें राजाज्ञा सूनाई। इस प्रकार स्वप्नलक्षणपाठकों को उन्होंने बुलाया। वे स्वप्नलक्षण – पाठक भी बलराजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाए जाने पर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत किया। फिर वे अपने मस्तक पर सरसों और हरी दूब से मंगल करके अपने – अपने घर से नीकले, और जहाँ बलराजा का उत्तम शिखररूप राज्य – प्रासाद था, वहाँ आए। उस उत्तम राजभवन के द्वार पर एकत्रित होकर मिले और जहाँ राजा की बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ सभी मिलकर आए। बलराजा के पास आकर, उन्होंने हाथ जोड़कर बलराजा को ‘जय हो, विजय हो’ आदि शब्दों से बधाया। बलराजा द्वारा वन्दित, पूजित, सत्कारित एवं सम्मानित किए गए वे स्वप्नलक्षण – पाठक प्रत्येक के लिए पहले से बिछाए हुए उन भद्रासनों पर बैठे। तत्पश्चात् बल राजा ने प्रभावती देवी को यवनिका की आड़ में बिठाया। फिर पुष्प और फल हाथों में भरकर बल राजा ने अत्यन्त विनयपूर्वक उन स्वप्नलक्षणपाठकों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! आज प्रभावती देवी तथारूप उस वासगृह में शयन करते हुए यावत् स्वप्न में सिंह देखकर जागृत हुई है। इस उदार यावत् कल्याणकारक स्वप्न का क्या फलविशेष होगा ? इस पर बल राजा से इस प्रश्न को सूनकर एवं हृदय में अवधारण कर वे स्वप्नलक्षणपाठक प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने उस स्वप्न के विषय में सामान्य विचार किया, फिर विशेष विचार में प्रविष्ट हुए, तत्पश्चात् उस स्वप्न के अर्थ का निश्चय किया। फिर परस्पर एक – दूसरे के साथ विचार – चर्चा की, फिर उस स्वप्न का अर्थ स्वयं जाना, दूसरे से ग्रहण किया, एक दूसरे से पूछकर शंका – समाधान किया, अर्थ का निश्चय किया और अर्थ पूर्णतया मस्तिष्क में जमाया। फिर बल राजा के समक्ष स्वप्नशास्त्रों का उच्चारण करते हुए इस प्रकार बोले – ‘हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्न शास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न और तीस महास्वप्न, इस प्रकार कुल बहत्तर स्वप्न बताये हैं। तीर्थंकर की माताएं या चक्रवर्ती की माताएं, जब तीर्थंकर या चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं, तब इन तीस महास्वप्नों में से ये १४ महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं। जैसे – (१) गज, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) अभिषिक्त लक्ष्मी, (५) पुष्पमाला, (६) चन्द्रमा, (७) सूर्य, (८) ध्वजा, (९) कुम्भ (कलश), (१०) पद्म – सरोवर, (११) सागर, (१२) विमान या भवन, (१३) रत्नराशि और (१४) निर्धूम अग्नि। सूत्र – ५१८, ५१९ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] atthi nam bhamte! Eesim paliovama-sagarovamanam khaeti va avachaeti va? Hamta atthi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthi nam eesim paliovamasagarovamanam khaeti va avachaeti va? Evam khalu sudamsana! Tenam kalenam tenam samaenam hatthinapure namam nagare hottha–vannao. Sahasambavane ujjane–vannao. Tattha nam hatthinapure nagare bale namam raya hottha–vannao. Tassa nam balassa ranno pabhavai namam devi hottha–sukumalapanipaya vannao java pamchavihe manussae kamabhoge pachchanubhavamani viharai. Tae nam sa pabhavai devi annaya kayai tamsi tarisagamsi vasagharamsi abbhimtarao sachittakamme, bahirao dumiya-ghattha-matthe vichittaulloga-chilliyatale manirayanapanasiyamdhayare bahusamasuvibhatta-desabhae pamchavanna-sarasasurabhi-mukkapupphapumjovayara-kalie kalagaru-pavara-kumdurukka-turukka-dhuva-maghamaghemta-gamdhuddhayabhirame sugamdhavaragamdhie gamdhavattibhue, Tamsi tarisagamsi sayanijjamsi–salimganavattie ubhao vibboyane duhao unnae majjhe naya-gambhire gamgapulinavaluya-uddala-salisae oyaviya-khomiyadugullapatta-padichchhayane suviraiya-rayattane rattamsuyasamvue suramme ainaga-ruya-bura-navaniya-tulaphase sugam-dhavarakusuma-chunna-sayano-vayarakalie addharattakalamayamsi suttajagara ohiramani-ohiramani ayameyaruvam oralam kallanam sivam dhannam mamgallam sassiriyam mahasuvinam pasitta nam padibuddha. Hara-rayaya-khirasagara-sasamkakirana-dagaraya-rayayamahasela-pamdarataroruramanijja-pechchhanijjam thira-lattha-pauttha-vatta-pivara-susilittha-visittha-tikkhadadhavidambiyamuham parikammiyajachchakamalakomala -maiyasobhamtalatthaottham rattuppalapattamauyasukumalatalujiham musagaya-pavarakanagataviyaavattayamta-vatta-tadivimalasarisanayanam visalapivarorum padipunnavipulakhamdham miuvisayasuhumalakkhana-pasatthavichchhi-nna-kesarasadovasobhiyam usiya-sunimmiya-sujaya-apphodiyalamgulam somam somakaram lilayamtam jambhayamtam, nahayalao ovayamanam, niyayavayanamativayamtam siham suvine pasitta nam padibuddha samani hatthatuttha chittamanamdiya namdiya poimana paramasomanassiya hari-savasavisappamana hiyaya dharahayakalambagam piva samusaviyaromakuva tam suvinam oginhai, oginhitta sayanijjao abbhutthei, Abbhutthetta aturiyamachavalamasambhamtae avilambiyae rayahamsasarisie gaie jeneva balassa ranno sayanijje teneva uvagachchhai, uvagachchhitta balam rayam tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim oralahim kallanahim sivahim dhannahim mamgallahim sassiri-yahim miya-mahura-mamjulahim girahim samlavamani-samlavamani padibohei, padibohetta balenam ranna abbhanunnaya samani nanamani-rayanabhattichittamsi bhaddasanamsi nisiyati, nisiyitta asattha visattha suhasanavaragaya balam rayam tahim itthahim kamtahim java miya-mahura-mamjulahim girahim samlavamani-samlavamani evam vayasi–evam khalu aham devanuppiya! Ajja tamsi tarisagamsi sayanijjamsi salimganavattie tam cheva java niyagavayanamaivayamtam siham suvine pasitta nam padibuddha, tannam devanuppiya! Eyassa oralassa java mahasuvinassa ke manne kallane phalavittivisese bhavissai? Tae nam se bale raya pabhavaie devie amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha chittamanamdie namdie piimane parama-somanassie harisavasavisappamana hiyae dharahayanivasurabhikusuma-chamchumala-iyatanue usaviyaromakule tam suvinam oginhai, oginhitta iham pavisai, pavisitta appano sabha-vienam maipuvvaenam buddhivinnanenam tassa suvinassa atthoggahanam karei, karetta pabhavaim devim tahim itthahim kamtahim java mamgallahim miya-mahura-sassiriyahim vagguhim samlavamane-samlavamane evam vayasi– Orale nam tume devi! Suvine ditthe, kallane nam tume devi! Suvine ditthe java sassirie nam tume devi! Suvine ditthe, arogga-tutthi-dihau-kallana-mamgallakarae nam tume devi! Suvine ditthe, atthalabho devanuppie! Bhogalabho devanuppie! Puttalabho devanuppie! Rajjalabho devanuppie! Evam khalu tumam devanuppie! Navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam amham kulakeum kuladivam kulapavvayam kulavademsayam kulatilagam kulakittikaram kulanamdikaram kulajasakaram kuladharam kulapayavam kulavivaddhanakaram sukumalapanipayam ahinapadipunnapamchimdiya-sariram lakkhana-vamjana-gunovaveyam manummana-ppamana-padipunna-sujaya-savvamgasudaramgam sasisomakaram kamtam piyadamsanam suruvam devakumarasamappabham daragam payahisi. Se vi ya nam darae ummukkabalabhave vinnaya-parinayamette jovvanagamanuppatte sure vire vikkamte vitthinna-viulabala-vahane rajja-vai raya bhavissai. Tam orale nam tume devi! Suvine ditthe java arogga-tutthi-dihau-kallana-mamgallakarae nam tume devi! Suvine ditthe tti kattu pabhavatim devim tahim itthahim java vagguhim dochcham pi tachcham pi anubuhati. Tae nam sa pabhavati devi balassa ranno amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha karayala pariggahiyam dasanaham sira-savattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evameyam devanuppiya! Tahameyam devanuppiya! Avitahameyam devanuppiya! Asamdiddhameyam devanuppiya! Ichchhiyameyam devanuppiya! Padichchhiyameyam devanuppiya! Ichchhiya-padichchhiyameyam devanuppiya! Se jaheyam tubbhe vadaha tti kattu tam suvinam sammam padichchhai, padichchhitta balenam ranna abbhanunnaya samani nanamanirayana-bhattichittao bhaddasanao abbhutthei, abbhutthetta aturiyamachavalamasambhamtae avilambiyae rayahamsa-sarisie gaie jeneva sae sayanijje teneva uvagachchhai, uva-gachchhitta sayanijjamsi nisiyati, nisiyitta evam vayasi–ma me se uttame pahane mamgalle suvine annehim pavasuminehim padihammissai tti kattu devagurujanasambaddhahim pasatthahim mamgallahim dhammiyahim kahahim suvinajagariyam padijagaramani-padijagaramani viharai. Tae nam se bale raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Ajja savisesam bahiriyam uvatthanasalam gamdhodayasitta-suiya-sammajjiovalittam sugamdha-varapamchavannapupphovayarakaliyam kalagaru-pavarakumdurukka-turukka-dhuva-maghamaghemta-gamdhuddhuyabhiramam sugamdhavaragamdhiyam gamdhavattibhuyam kareha ya karaveha ya, karetta ya karavetta ya sihasanam raeha, raetta mametamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa java padisunetta khippameva savisesam bahiriyam uvatthanasalam gamdhodayasitta-suiya-sammajjiovalittam sugamdhavarapamchavannapupphovayarakaliyam kalagaru-pavara-kumdurukka-turukka-dhuva-maghamaghemta-gamdhuddhuyabhiramam sugamdhavaragamdhiyam gamdhavattibhuyam karetta ya karavetta ya sihasanam raetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se bale raya pachchusakalasamayamsi sayanijjao abbhutthei, abbhutthetta payapidhao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva attanasala teneva uvagachchhai, attanasalam anupavisai, jaha ovavaie taheva attanasala taheva majjanaghare java sasivva piyadamsane naravai jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaramsi puratthabhimuhe nisiyai, nisiyitta appano uttarapuratthime disibhae attha bhaddasanaim seyavatthapachchatthuyaim siddhatthakayamamgalovayaraim rayavei, rayavetta appano adurasamamte nanamani-rayanamamdiyam ahiyapechchhanijjam mahagghavarapattanuggayam sanhapattabhattisayachittatanam ihamiya-usabha-turaga-nara-magara -vihaga-balaga-kinnara-ruru-sarabha-chamara-kumjara-vanalaya-paumalaya-bhatti-chittam abbhimtariyam javaniyam amchhavei, amchhavetta nanamanirayana- bhattichittam attharaya-mauyamasuragotthayam seyavatthapachchatthuyam amgasuhaphasayam sumauyam pabhavattie devie bhaddasanam rayavei, rayavetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Atthamgamahanimittasuttatthadharae vivihasatthakusale suvinalakkhanapadhae saddaveha. Tae nam te kodumbiyapurisa java padisunetta balassa ranno amtiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta siggham turiyam chavalam chamdam veiyam hatthinapuram nagaram majjhammajjhenam jeneva tesim suvinalakkhanapadhaganam gihaim teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta te suvinalakkhanapadhae saddavemti. Tae nam te suvinalakkhanapadhaga balassa ranno kodumbiyapurisehim saddaviya samana hatthatuttha nhaya kayabalikamma kayakouya-mamgala-payachchhitta suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihiya appamahagghabharanalamkiya sarira siddhatthagahariyali-yakayamamgalamuddhana saehim-saehim gehehimto niggachchhamti, niggachchhitta hatthinapuram nagaram majjhammajjhenam jeneva balassa ranno bhavanavara-vademsae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhavanavaravademsagapadiduvaramsi egao milamti, militta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva bale raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu balamrayam jaenam vijaenam baddhavemti. Tae nam te suvinalakkhanapadhaga balenam ranna vamdiya-puiya-sakkariya-sammaniya samana patteyam-patteyam puvvanna-tthesu bhaddasanesu nisiyamti. Tae nam se bale raya pabhavatim devim javaniyamtariyam thavei, thavetta puppha-phala padipunnahatthe parenam vinaenam te suvinalakkhanapadhae evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Pabhavati devi ajja tamsi tarisagamsi vasagharamsi java siham suvine pasitta nam padibuddha, tannam devanuppiya! Eyassa oralassa java mahasuvinassa ke manne kallane phalavittivisese bhavissai? Tae nam te suvinalakkhanapadhaga balassa ranno amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha tam suvinam oginhamti, oginhitta iham anuppavisamti, anuppavisitta tassa suvinassa atthoggahanam karemti, karetta annamannenam saddhim samchalemti, samcha-letta tassa suvinassa laddhattha gahiyattha puchchhiyattha vinichchhiyattha abhigayattha balassa ranno purao suvinasatthaim uchcharemana-uchcharemana evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amham suvinasatthamsi bayalisam suvina, tisam mahasuvina–bavattarim savvasuvina dittha. Tattha nam devanuppiya! Titthagaramayaro va chakkavattimayaro va titthagaramsi va chakkavattimsi va gabbham vakkamamanamsi eesim tisae maha-suvinanam ime choddasa mahasuvine pasitta nam padibujjhamti, tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya ina palyopama aura sagaropama ka kshaya ya apachaya hota hai\? Ham, sudarshana ! Hota hai. Bhagavan aisa kisa karana se kahate haim\? He sudarshana ! Usa kala aura usa samaya mem hastinapura namaka nagara tha. Vaham sahasra – mravana namaka udyana tha. Usa hastinapura mem ‘bala’ namaka raja tha. Usa bala raja ki prabhavati namaki devi (patarani) thi. Usake hatha – paira sukumala the, yavat pamchendriya sambamdhi sukhanubhava karati hui jivanayapana karati thi. Kisi dina prabhavati devi usa prakara ke vasagriha ke bhitara, usa prakara ki anupama shayya para (soi hui thi.) (vaha vasagriha) bhitara se chitrakarma se yukta tatha bahara se sapheda kiya hua, evam ghisakara chikana banaya hua tha. Jisaka upari bhaga vividha chitrom se yukta tatha adhobhaga prakasha se dedipyamana tha. Maniyom aura ratnom ke karana usaka andhakara nashta ho gaya tha. Usaka bhubhaga bahuta sama aura suvibhakta tha. Pamcha varna ke sarasa aura sugandhita pushpapumjom ke upachara se yukta tha. Uttama kalaguru, kundaruka aura turushka ke dhupa se vaha vasabhavana charom ora se mahaka raha tha. Usaki sugandha se vaha abhirama tatha sugandhita padarthom se suvasita tha. Eka taraha se vaha sugandhita dravya ki gutika ke jaisa ho raha tha. Aise avasabhavana mem jo shayya thi, vaha apane apa mem advitiya thi tatha sharira se sparsha karate hue parshvavarti takiye se yukta thi. Phira usake donom aura takiye rakhe hue the. Vaha donom ora se unnata thi, bicha mem kuchha jhuki hui evam gahari thi, evam gamga nadi ke tatavarti balu paira rakhate hi niche dhasa jane ke samana thi. Vaha mulayama banae hue reshami dukulapata se achchhadita tatha sundara surachita rajasrana se yukta thi. Lala ramga ke sukshma vastra ki machchharadani usa para lagi hui thi. Vaha suramya ajinaka, rui, bura, navanita tatha arkatula ke samana komala sparsha vali thi; tatha sugandhita shreshthapurusha churna evam shayanopachara se yukta thi. Aisi shayya para soti hui prabhavati rani, jaba ardharatrikala ke samaya kuchha soti – kuchha jagati ardhanidrita avastha mem thi, taba svapna mem isa prakara ka udara, kalyanarupa, shiva, dhanya, mamgalakaraka evam shobhayukta mahasvapna dekha aura jagrita hui. Prabhavati rani ne svapna mem eka simha dekha, jo hara, rajata, kshirasamudra, chandrakirana, jalakana, rajatamahashaila ke samana shveta varna vala tha, vaha vishala, ramaniya aura darshaniya tha. Usake prakoshtha sthira aura sundara the vaha apane gola, pushta, sushlishta, vishishta aura tikshna darhaom se yukta mumha ko phare hue tha. Usake oshtha samska – rita jatiman kamala ke samana komala, pramanopeta evam atyanta sushobhita the. Usaka talu aura jibha raktakamala ke patte ke samana atyanta komala thi. Usake netra, musa mem rahe hue evam agni mem tapaye hue tatha avartta karate hue uttama svarna ke samana varna vale, gola evam vidyuta ke samana vimala (chamakile) the. Usaki jamgha vishala evam pushta thi. Usake skandha paripurna aura vipula the. Vaha mridu, vishada, sukshma evam prashasta lakshana vali vistirna kesara ke jata se sushobhita tha. Vaha simha apani sunirmita, sundara evam unnata pumchha ko phatakarata hua, saumya akriti vala, lila karata hua, jambhai leta hua, gaganatala se utarata hua tatha apane mukha – kamala – sarovara mem pravesha karata hua dikhai diya. Svapna mem aise simha ko dekhakara rani jagrita hui. Tadanantara vaha prabhavati rani isa prakara ke usa udara yavat shobhayukta mahasvapna ko dekhakara jagrita hote hi atyanta harshita evam santushta hui; yavat megha ki dhara se vikasita kadambapushpa ke samana romamchita hoti hui usa svapna ka smarana karane lagi. Phira vaha apani shayya se uthi aura shighrata se rahita tatha achapala, asambhramita evam avi – lambita ata eva rajahamsa sarikhi gati se chalakara jaham bala raja ki shayya thi, vaham ai aura unhem una ishta, kanta, priya, manojnya, manama, udara, kalyanarupa, shiva, dhanya, mamgalamaya tatha shobhayukta parimita, madhura evam mamjula vachanom se jagane lagi. Raja jagrita hua. Raja ki ajnya hone para rani vichitra mani aura ratnom ki rachana se chitrita bhadrasana para baithi. Aura uttama sukhasana se baithakara ashvasta aura vishvasta hui. Rani prabhavati, bala raja se ishta, kanta yavat madhura vachanom se boli – ‘he devanupriya ! Aja maim so rahi thi, taba maimne yavat apane mukha mem pravishta hote hue simha ko svapna mem dekha aura maim jagrata hui hum. To he devanupriya ! Mujhe isa udara yavat mahasvapna ka kya kalyanarupa phala vishesha hoga\? Tadanantara vaha bala raja prabhavati devi se isa bata ko sunakara aura samajhakara harshita aura santushta hua yavat usaka hridaya akarshita hua. Megha ki dhara se vikasita kadamba ke sugandhita pushpa ke samana usaka sharira pulakita ho utha, romakupa vikasita ho gae. Raja bala usa svapna ke vishaya mem avagraha karake iha mem pravishta hua, phira usane apane svabhavika buddhivijnyana se usa svapna ke phala ka nishchaya kiya. Usake bada ishta, kanta yavat mamgalamaya, parimita, madhura evam shobhayukta sundara vachana bolata hua raja bola – ‘he devi ! Tumane udara svapna dekha hai. Devi ! Tumane kalyanakaraka yavat shobhayukta svapna dekha hai. He devi ! Tumane arogya, tushti, dirghayu, kalyanarupa evam mamgalakaraka svapna dekha hai. He devanupriye ! (tumhem) arthalabha, bhogalabha, putralabha aura rajyalabha hoga. He devanupriye ! Nau masa aura sarhe tina dina vyatita hone para tuma hamare kula mem ketu – samana, kula ke dipaka, kula mem parvatatulya, kula ka shekhara, kula ka tilaka, kula ki kirti phailane vale, kula ko ananda dene vale, kula ka yasha barhane vale, kula ke adhara, kula mem vriksha samana, kula ki vriddhi karane vale, sukumala hatha – paira vale, amgahinata – rahita, paripurna pamchendriyayukta sharira vale, yavat chandrama ke samana saumya akriti vale, kanta, priyadarshana, surupa evam devakumara ke samana kanti vale putra ko janma degi.’ vaha balaka bhi balabhava se mukta hokara vijnya aura kaladi mem paripakva hoga. Yauvana prapta hote hi vaha shuravira, parakrami tatha vistirna evam vipula bala aura vahana vala rajya – dhipati raja hoga. Atah he devi ! Tumane udara svapna dekha hai, yavat devi ! Tumane arogya, tushti yavat mamgalakaraka svapna dekha hai, isa prakara bala raja ne prabhavati devi ko ishta yavat madhura vachanom se vahi bata do bara aura tina bara kahi. Tadanantara vaha prabhavati rani, bala raja se isa bata ko sunakara, hridaya mem dharana karake harshita aura santushta hui; aura hatha jorakara yavat boli – ‘he devanupriya ! Apane jo kaha, vaha yathartha hai, devanupriya ! Vaha satya hai, asamdigdha hai. Vaha mujhe ichchhita hai, svikrita hai, punah punah ichchhita aura svikrita hai.’ isa prakara svapna ke phala ko samyak rupa se svikara kiya aura phira bala raja ki anumati lekara aneka maniyom aura ratnom se chitrita bhadrasana se uthi. Phira shighrata aura chapalata se rahita yavat gati se jaham apani shayya thi, vaham ai aura shayya para baithakara kahane lagi – ‘mera yaha uttama, pradhana evam mamgalamaya svapna dusare papasvapnom se vinashta na ho jae.’ isa prakara vichara karake devagurujana – sambandhi prashasta aura mamgalarupa dharmika kathaom se svapnajagarika ke rupa mem vaha jagarana karati hui baithi rahi. Tadanantara bala raja ne kautumbika purushom ko bulaya aura unako isa prakara ka adesha diya – ‘devanupriyo ! Bahara ki upasthanashala aja shighra hi vishesharupa se gandhodaka chhiraka kara shuddha karo, svachchha karo, lipa kara sama karo sugandhita aura uttama pamcha varna ke phulom se susajjita karo, uttama kalaguru aura kundarushka ke dhupa se yavat sugandhita gutika ke samana karo – karao, phira vaham simhasana rakho. Ye saba karya karake yavat mujhe vapasa nivedana karo.’ taba yaha sunakara una kautumbika purushom ne bala raja ka adesha shirodharya kiya aura yavat shighra hi vishesharupa se bahara ki upasthanashala ko yavat svachchha, shuddha, sugandhita kiya yavat adeshanusara saba karya karake raja se nivedana kiya. Isake pashchat bala raja pratahkala ke samaya apani shayya se uthe aura padapitha se niche utare. Phira ve jaham vyayamashala thi, vaham gae. Vyayamashala tatha snanagriha ke karya ka varnana aupapatika sutra ke anusara jana lena, yavat chandrama ke samana priya – darshana banakara vaha nripa, snanagriha se nikale aura jaham bahara ki upasthanashala thi vaham ae. Simhasana para purvadisha ki ora mukha karake baithe. Phira apane se ishanakona mem shveta vastra se achchha – dita tatha sarasaum adi mamgalika padarthom se upacharita atha bhadrasana rakhavae. Tatpashchat apane se na ati dura aura na ati nikata aneka prakara ke maniratnom se sushobhita, atyadhika darshaniya, bahumulya shreshtha pattana mem nirmita sukshma pata para saikaromchitrom ki rachana se vyapta, ihamriga, vrishabha adi ke yavat padmalata ke chitra se yukta eka abhyantarika yavanika lagavai. (usa parde ke andara) aneka prakara ke maniratnom se evam chitra se rachita vichitra kholi vale, komala vastra se achchhadita, tatha shveta vastra charhaya hua, amgom ko sukhada sparsha vala tatha sukomala gaddiyukta eka bhadrasana rakhava diya. Phira bala raja ne apane kautumbika purushom ko bulaya aura unhem kaha – he devanupriyo ! Tuma shighra hi ashtamga mahanimitta ke sutra aura artha ke jnyata, vividha shastrom mem kushala svapna – shastra ke pathakom ko bula lao. Isa para una kautumbika purushom ne yavat raja ka adesha svikara kiya aura raja ke pasa se nikale. Phira ve shighra, chapalata yukta, tvarita, ugra evam vegavali tivra gati se hastinapura nagara ke madhya mem hokara jaham una svapna – lakshana pathakom ke ghara the, vaham pahumche aura unhem rajajnya sunai. Isa prakara svapnalakshanapathakom ko unhomne bulaya. Ve svapnalakshana – pathaka bhi balaraja ke kautumbika purushom dvara bulae jane para atyanta harshita evam santushta hue. Unhomne snanadi karake yavat sharira ko alamkrita kiya. Phira ve apane mastaka para sarasom aura hari duba se mamgala karake apane – apane ghara se nikale, aura jaham balaraja ka uttama shikhararupa rajya – prasada tha, vaham ae. Usa uttama rajabhavana ke dvara para ekatrita hokara mile aura jaham raja ki bahari upasthanashala thi, vaham sabhi milakara ae. Balaraja ke pasa akara, unhomne hatha jorakara balaraja ko ‘jaya ho, vijaya ho’ adi shabdom se badhaya. Balaraja dvara vandita, pujita, satkarita evam sammanita kie gae ve svapnalakshana – pathaka pratyeka ke lie pahale se bichhae hue una bhadrasanom para baithe. Tatpashchat bala raja ne prabhavati devi ko yavanika ki ara mem bithaya. Phira pushpa aura phala hathom mem bharakara bala raja ne atyanta vinayapurvaka una svapnalakshanapathakom se kaha – ‘devanupriyo ! Aja prabhavati devi tatharupa usa vasagriha mem shayana karate hue yavat svapna mem simha dekhakara jagrita hui hai. Isa udara yavat kalyanakaraka svapna ka kya phalavishesha hoga\? Isa para bala raja se isa prashna ko sunakara evam hridaya mem avadharana kara ve svapnalakshanapathaka prasanna evam santushta hue. Unhomne usa svapna ke vishaya mem samanya vichara kiya, phira vishesha vichara mem pravishta hue, tatpashchat usa svapna ke artha ka nishchaya kiya. Phira paraspara eka – dusare ke satha vichara – charcha ki, phira usa svapna ka artha svayam jana, dusare se grahana kiya, eka dusare se puchhakara shamka – samadhana kiya, artha ka nishchaya kiya aura artha purnataya mastishka mem jamaya. Phira bala raja ke samaksha svapnashastrom ka uchcharana karate hue isa prakara bole – ‘he devanupriya ! Hamare svapna shastra mem bayalisa samanya svapna aura tisa mahasvapna, isa prakara kula bahattara svapna bataye haim. Tirthamkara ki mataem ya chakravarti ki mataem, jaba tirthamkara ya chakravarti garbha mem ate haim, taba ina tisa mahasvapnom mem se ye 14 mahasvapna dekhakara jagrita hoti haim. Jaise – (1) gaja, (2) vrishabha, (3) simha, (4) abhishikta lakshmi, (5) pushpamala, (6) chandrama, (7) surya, (8) dhvaja, (9) kumbha (kalasha), (10) padma – sarovara, (11) sagara, (12) vimana ya bhavana, (13) ratnarashi aura (14) nirdhuma agni. Sutra – 518, 519 |