Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003998
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-११

Translated Chapter :

शतक-११

Section : उद्देशक-१ उत्पल Translated Section : उद्देशक-१ उत्पल
Sutra Number : 498 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे? गोयमा! एगजीवे, नो अनेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जंति ते णं नो एगजीवा अनेगजीवा। ते णं भंते! जीवा कतोहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ भाणियव्वो जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसानेति। ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। ते णं भंते! जीवा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा केवतिकालेणं अवहीरंति? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा? अबंधगा? गोयमा! नो अबंधगा, बंधए वा, बंधगा वा। एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं–आउयस्स–पुच्छा। गोयमा! १. बंधए वा २. अबंधए वा ३. बंधगा वा ४. अबंधगा वा ५. अहवा बंधए य अबंधए य ६. अहवा बंधए य अबंधगा य ७. अहवा बंधगा य अबंधए य ८. अहवा बंधगा य अबंधगा य–एते अट्ठ भंगा। ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा? अवेदगा? गोयमा! नो अवेदगा, वेदए वा, वेदगा वा। एवं जाव अंतराइयस्स। ते णं भंते! जीवा किं सायावेदगा? असायावेदगा? गोयमा! सायावेदए वा, असायावेदए वा–अट्ठ भंगा। ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं उदई? अणुदई? गोयमा! नो अनुदई, उदई वा, उदइणो वा। एवं जाव अंतराइयस्स। ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं उदीरगा? अनुदीरगा? गोयमा! नो अनुदीरगा, उदीरए वा, उदीरगा वा। एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं–वेदणिज्जाउएसु अट्ठ भंगा। ते णं भंते! जीवा किं कण्हलेसा? नीललेसा? काउलेसा? तेउलेसा? गोयमा! कण्हलेसे वा नीललेसे वा काउलेसे वा तेउलेसे वा, कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काउलेस्सा वा तेउलेस्सा वा, अहवा कण्हलेसे य नीललेसे य। एवं एए दुयासंजोग-तियासंजोग-चउक्कसंजोगेणं असीति भंगा भवंति। ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छादिट्ठी? सम्मामिच्छादिट्ठी? गोयमा! नो सम्मद्दिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी वा मिच्छादिट्ठिणो वा। ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी वा, अन्नाणिणो वा। ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा। ते णं भंते! जीवा किं सागरोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्ते वा, अनागारोवउत्ते वा–अट्ठ भंगा। तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा, कतिगंधा, कतिरसा, कतिफासा, पन्नत्ता? गोयमा! पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, अट्ठफासा पन्नत्ता। ते पुण अप्पणा अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। ते णं भंते! जीवा किं उस्सासगा? निस्सासगा? नोउस्सासनिस्सासगा? गोयमा! १. उस्सासए वा २. निस्सासए वा ३. नोउस्सासनिस्सासए वा ४. उस्सासगा वा ५. निस्सासगा वा ६. नोउस्सास-निस्सासगा वा १-४ अहवा उस्सासए य निस्सासए य १-४ अहवा उस्सासए य नो उस्सासनिस्सासए य १-४ अहवा निस्सासए य नोउस्सासनिस्सासए य १-८ अहवा उस्सासए य निस्सासए य नोउस्सासनिस्सासए य–अट्ठ भंगा। एते छव्वीसं भंगा भवंति। ते णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! आहारए वा, अनाहारए वा–अट्ठ भंगा। ते णं भंते! जीवा किं विरया? अविरया? विरयाविरया? गोयमा! नो विरया, नो विरयाविरया, अविरए वा अविरया वा। ते णं भंते! जीवा किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! नो अकिरिया, सकिरिए वा, सकिरिया वा। ते णं भंते! जीवा किं सत्तविहबंधगा? अट्ठविहबंधगा? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा–अट्ठ भंगा। ते णं भंते! जीवा किं आहारसण्णोवउत्ता? भयसण्णोवउत्ता? मेहुणसण्णोवउत्ता? परिग्गह-सण्णोवउत्ता? गोयमा! आहारसण्णोवउत्ता–असीती भंगा। ते णं भंते! जीवा किं कोहकसाई? माणकसाई? मायाकसाई? लोभकसाई? असीती भंगा। ते णं भंते! जीवा किं इत्थिवेदगा? पुरिसवेदगा? नपुंसगवेदगा? गोयमा! नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदए वा, नपुंसगवेदगा वा। ते णं भंते! जीवा किं इत्थिवेदबंधगा? पुरिसवेदबंधगा? नपुंसगवेदबंधगा? गोयमा! इत्थिवेदबंधए वा, पुरिसवेदबंधए वा, नपुंसगवेदबंधए वा–छव्वीसं भंगा। ते णं भंते! जीवा किं सण्णी? असण्णी? गोयमा! नो सण्णी, असण्णी वा असण्णिणो वा। से णं भंते! जीवा किं सइंदिया? अनिंदिया? गोयमा! नो अनिंदिया, सइंदिए वा, सइंदिया वा। से णं भंते! उप्पलजीवेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। से णं भंते! उप्पलजीवे पुढविजीवे, पुनरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागति करेज्जा? गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं असंखेज्जाइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। से णं भंते! उप्पलजीवे, आउजीवे, पुनरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा! एवं चेव। एवं जहा पुढविजीवे भणिए तहा जाव वाउजीवे भाणियव्वे। से णं भंते! उप्पलजीवे सेसवणस्सइजीवे, से पुनरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं संखेज्जा? केवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा? गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अनंताइं भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्को सेनं अनंतं कालं तरुकालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। से णं भंते! उप्पलजीवे बेइंदियजीवे, पुनरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा? गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेइंदियजीवे, एवं चउरिंदियजीवे वि। से णं भंते! उप्पलजीवे पंचिंदियतिरिक्खजोणियजीवे, पुनरवि उप्पलजीवेत्ति–पुच्छा। गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहत्तं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं मनुस्सेण वि समं जाव एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। ते णं भंते! जीवा किमाहारमाहारेंति? गोयमा! दव्वओ अनंतपदेसियाइं दव्वाइं, खेत्तओ असंखेज्जपदेसोगाढाइं, कालओ अन्नयर काल- ट्ठिइयाइं, भावओ वण्णमंताइं गंधमंताइं रसमंताइं फासमंताइं एवं जहा आहारुद्देसए वणस्सइ-काइयाणं आहारो तहेव जाव सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति, नवरं–नियमा छद्दिसिं, सेसं तं चेव। तेसि णं भंते! जीवाणं केवतियं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं। तेसि णं भंते! जीवाणं कति समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं० वेदनासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए। ते णं भंते! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहता मरंति? असमोहता मरंति? गोयमा! समोहता वि मरंति, असमोहता वि मरंति। ते णं भंते! जीवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति–किं नेरइएसु उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति? एवं जहा वक्कंतीए उव्वट्टाणाए वणस्सइकाइयाणं तहा भाणियव्वं। अह भंते! सव्वपाणा, सव्वभूता, सव्वजीवा, सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पल-नालत्ताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकण्णियत्ताए, उप्पलथिभगत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असतिं अदुवा अनंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं। उसके उपरांत जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रहकर अनेक जीव वाला बन जाता है। भगवन्‌ ! उत्पल में वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्चयोनिकों से अथवा मनुष्यों से या देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जीव नारकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, वे तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी और देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। ‘‘व्युत्क्रान्तिपद’’ के अनुसार – वनस्पतिकायिक जीवोंमें यावत्‌ ईशान – देवलोक तक के जीवों का उपपात होता है। भगवन्‌ ! उत्पलपत्र में वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कृष्टतः संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव एक – एक समय में एक – एक नीकाले जाएं तो कितने काल में पूरे नीकाले जा सकते हैं ? गौतम ! एक – एक समय में एक – एक नीकाले जाएं ओर उन्हें असंख्य उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल तक नीकाल जाए तो भी वे पूरे नीकाले नहीं जा सकते। भगवन्‌ ! उन (उत्पल के) जीवों की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन होती है। भगवन्‌ ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या अबन्धक हैं ? गौतम ! वे ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक नहीं; किन्तु एक जीव बन्धक हैं, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं। इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर अन्तराय कर्म तक समझ लेना। विशेषतः (वे जीव) आयुष्य कर्म के बन्धक हैं, या अबन्धक ? यह प्रश्न है। गौतम ! उत्पल का एक जीव बन्धक है, अथवा एक जीव अबन्धक है, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं, या अनेक जीव अबन्धक हैं, अथवा एक जीव बन्धक है, और एक अबन्धक है, अथवा एक जीव बन्धक और अनेक जीव अबन्धक हैं, या अनेक जीव बन्धक हैं और एक जीव अबन्धक है एवं अथवा अनेक जीव बन्धक हैं और अनेक जीव अबन्धक हैं। इस प्रकारये आठ भंग होते हैं। भगवन्‌ ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? गौतम ! वे जीव अवेदक नहीं, किन्तु या तो एक जीव वेदक है और अनेक जीव वेदक हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक जानना। भगवन्‌ ! वे जीव सातावेदक हैं, या असातावेदक हैं ? गौतम ! एक जीव सातावेदक है, अथवा एक असातावेदक है, इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग। भगवन्‌ ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले हैं ? गौतम ! वे जीव अनुदय वाले नहीं हैं, किन्तु एक जीव उदय वाला है, अथवा वे उदय वाले हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक समझ लेना। भगवन्‌ ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक हैं ? गौतम ! वे अनुदीरक नहीं; किन्तु एक जीव उदीरक है, अथवा अनेक जीव उदीरक हैं। इसी प्रकार अन्तरय कर्म तक जानना; परन्तु इतना विशेष है कि वेदनीय और आयुष्य कर्म में पूर्वोक्त आठ भंग कहने चाहिए। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव, कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं, या कापोतलेश्या वाले होते हैं, अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं ? गौतम ! एक जीव कृष्णलेश्या वाला होता है, यावत्‌ एक जीव तेजोलेश्या वाला होता है। अथवा अनेक जीव कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं। अथवा एक कृष्णलेश्या वाला और एक नीललेश्या वाला होता है। इस प्रकार ये द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतुःसंयोगी सब मिलाकर ८० भंग होते हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा सम्यग्‌ – मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं, सम्यग्‌ – मिथ्यादृष्टि भी नहीं, वह मात्र मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा वे अनेक भी मिथ्यादृष्टि हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव ज्ञानी हैं, अथवा अज्ञानी हैं ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु वह एक अज्ञानी है अथवा वे अनेक भी अज्ञानी हैं। भगवन्‌ ! वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ? गौतम ! वे मनोयोगी नहीं हैं, न वचनयोगी हैं, किन्तु वह एक हो तो काययोगी हैं और अनेक हों तो भी काययोगी हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव साकारोपयोगी हैं, अथवा अनाकारोपयोगी हैं ? गौतम ! वे साकारो – पयोगी भी होते हैं और अनकारोपयोगी भी। भगवन्‌ ! उन जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ? गौतम ! उनका (शरीर) पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाला है। जीव स्वयं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श – रहित है। भगवन्‌ ! वे जीव उच्छ्‌वासक हैं, निःश्वासक हैं या उच्छ्‌वासक – निःश्वासक हैं ? गौतम ! (उनमें से) कोई एक जीव उच्छ्‌वासक है, या कोई एक जीव निःश्वासक है, अथवा कोई एक जीव अनुच्छ्‌वासक – निश्वासक है, या अनेक जीव उच्छ्‌वासक हैं, या अनेक जीव निःश्वासक हैं, अथवा अनेक जीव अनुच्छ्‌वासक – निःश्वासक हैं अथवा एक उच्छ्‌वासक है और एक निःश्वासक है, इत्यादि। अथवा एक उच्छ्‌वासक और एक अनुच्छ्‌वासक – निःश्वासक हैं; इत्यादि। अथवा एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्‌वासक – निःश्वासक है, इत्यादि। अथवा एक उच्छ्‌वासक एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्‌वासक – निःश्वासक है इत्यादि आठ भंग होते हैं। ये सब मिलकर २६ भंग होते हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव आहारक हैं या अनाहारक हैं ? गौतम ! कोई एक जीव आहारक है, अथवा कोई एक जीव अनाहारक है; इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए। भगवन्‌ ! क्या वे उत्पल के जीव विरत हैं, अविरत हैं या विरताविरत हैं ? गौतम ! वे उत्पल – जीव न तो सर्वविरत हैं और न विरताविरत हैं, किन्तु एक जीव अविरत है अथवा अनेक जीव भी अविरत हैं। भगवन्‌ ! क्या वे उत्पल के जीव सक्रिय हैं या अक्रिय हैं ? गौतम ! वे अक्रिय नहीं हैं, किन्तु एक जीव भी सक्रिय है और अनेक जीव भी सक्रिय हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव सप्तविध बन्धक हैं या अष्टविध बन्धक हैं ? गौतम ! वे जीव सप्तविध – बन्धक हैं या अष्टविधबन्धक हैं। यहाँ पूर्वोक्त आठ भंग कहना। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, या भयसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, अथवा मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले हैं ? गौतम ! वे आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी भंग कहना। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव क्रोधकषायी हैं, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं अथवा लोभकषायी हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त ८० भंग कहना चाहिए। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं या नपुंसकवेदी हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद वाले नहीं, पुरुष वेद वाले भी नहीं, परन्तु एक जीव भी नपुंसकवेदी हैं और अनेक जीव भी नपुंसकवेदी हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेद के बन्धक हैं, पुरुषवेद के बन्धक हैं या नपुंसकवेद के बन्धक हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद के बन्धक हैं, या पुरुषवेद के बन्धक हैं अथवा नपुंसकवेद के बन्धक हैं। यहाँ उच्छ्‌वासद्वार के समान २६ भंग कहने चाहिए। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? गौतम ! वे संज्ञी नहीं, किन्तु एक जीव भी असंज्ञी हैं और अनेक जीव भी असंज्ञी हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव सेन्द्रिय हैं या अनिन्द्रिय ? गौतम ! वे अनिन्द्रिय नहीं, किन्तु एक जीव सेन्द्रिय हैं और अनेक जीव भी सेन्द्रिय हैं। भगवन्‌ ! वह उत्पल का जीव उत्पल के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्टतः असंख्यात काल तक रहता है। भगवन्‌ ! वह उत्पल का जीव, पृथ्वीकाय में जाए और पुनः उत्पल का जीव बने, इस प्रकार उसका कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता रहता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव करता है, कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल रहता है, इतने काल तक गतिआगति करता है। भगवन्‌ ! वह उत्पल का जीव, अप्काय के रूप में उत्पन्न होकर पुनः उत्पल में आए तो इसमें कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! पृथ्वीकाय के समान भवादेश से और कालादेश से कहना। इसी प्रकार पृथ्वीकाय के गमनागमन अनुसार वायुकाय जीव तक कहना। भगवन्‌ ! वह उत्पल का जीव, वनस्पति के जीव में जाए और वह पुनः उत्पल के जीव में आए, इस प्रकार कितने काल तक रहता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से वह जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट अनन्त भव करता है। कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त तक, उत्कृष्ट अनन्त काल तक। भगवन्‌ ! वह उत्पल का जीव, द्वीन्द्रियजीव पर्याय में जाकर पुनः उत्पल जीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! वह जीव भवादेश से जघन्य दो भव करता है, उत्कृष्ट संख्यात भव करता है। कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट संख्यात काल व्यतीत हो जाता है। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव को भी जानना। भगवन्‌ ! उत्पल का वह जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंच – योनिक जीव में जाकर पुनः उत्पल के जीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? वह कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट आठ भव। कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व काल। इसी प्रकार मनुष्ययोनि के विषय में भी जानना। यावत्‌ इतने काल उत्पल का वह जीव गमनागमन करता है। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव किस पदार्थ का आहार करते हैं ? गौतम ! वे जीव द्रव्यतः अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि, प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें पद के आहार – उद्देशक में वनस्पतिकायिक जीवों के आहार के विषय में कहा है कि वे सर्वात्मना आहार करते हैं, यहाँ तक – सब कहना। विशेष यह है कि वे नियमतः छह दिशा से आहार करते हैं। शेष पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! उन उत्पल के जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। भगवन्‌ ! उन जीवों में कितने समुद्‌घात हैं ? गौतम ! तीन समुद्‌घात, यथा – वेदनासमुद्‌घात, कषायसमुद्‌घात और मारणान्तिकसमुद्‌घात। भगवन्‌ ! वे जीव मारणान्तिकसमुद्‌घात द्वारा समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर ? गौतम ! (वे) समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं। भगवन्‌ ! वे उत्पल के जीव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत्‌ या देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिक पद के उद्वर्त्तना – प्रकरण में वनस्पति – कायिकों के वर्णन के अनुसार कहना। भगवन्‌ ! सभी प्राण, सभी भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व; क्या उत्पल के मूलरूप में, उत्पल के कन्दरूप में, उत्पल के नालरूप में, उत्पल के पत्ररूप में, उत्पल के केसररूप में, उत्पल की कर्णिका के रूप में तथा उत्पल के थिभुग के रूप में इससे पहले उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार (पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न हुए हैं)। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है !’
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe java pajjuvasamane evam vayasi–uppale nam bhamte! Egapattae kim egajive? Anegajive? Goyama! Egajive, no anegajive. Tena param je anne jiva uvavajjamti te nam no egajiva anegajiva. Te nam bhamte! Jiva katohimto uvavajjamti–kim neraiehimto uvavajjamti? Tirikkhajoniehimto uvavajjamti? Manussehimto uvavajjamti? Devehimto uvavajjamti? Goyama! No neraiehimto uvavajjamti, tirikkhajoniehimto uvavajjamti, manussehimto uvavajjamti devehimto vi uvavajjamti. Evam uvavao bhaniyavvo jaha vakkamtie vanassaikaiyanam java isaneti. Te nam bhamte! Jiva egasamae nam kevaiya uvavajjamti? Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja va asamkhejja va uvavajjamti. Te nam bhamte! Jiva samae-samae avahiramana-avahiramana kevatikalenam avahiramti? Goyama! Te nam asamkhejja samae-samae avahiramana-avahiramana asamkhejjahim osappini-ussappinihim avahiramti, no cheva nam avahiya siya. Tesi nam bhamte! Jivanam kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasahassam. Te nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kammassa kim bamdhaga? Abamdhaga? Goyama! No abamdhaga, bamdhae va, bamdhaga va. Evam java amtaraiyassa, navaram–auyassa–puchchha. Goyama! 1. Bamdhae va 2. Abamdhae va 3. Bamdhaga va 4. Abamdhaga va 5. Ahava bamdhae ya abamdhae ya 6. Ahava bamdhae ya abamdhaga ya 7. Ahava bamdhaga ya abamdhae ya 8. Ahava bamdhaga ya abamdhaga ya–ete attha bhamga. Te nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kammassa kim vedaga? Avedaga? Goyama! No avedaga, vedae va, vedaga va. Evam java amtaraiyassa. Te nam bhamte! Jiva kim sayavedaga? Asayavedaga? Goyama! Sayavedae va, asayavedae va–attha bhamga. Te nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kammassa kim udai? Anudai? Goyama! No anudai, udai va, udaino va. Evam java amtaraiyassa. Te nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kammassa kim udiraga? Anudiraga? Goyama! No anudiraga, udirae va, udiraga va. Evam java amtaraiyassa, navaram–vedanijjauesu attha bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim kanhalesa? Nilalesa? Kaulesa? Teulesa? Goyama! Kanhalese va nilalese va kaulese va teulese va, kanhalessa va nilalessa va kaulessa va teulessa va, ahava kanhalese ya nilalese ya. Evam ee duyasamjoga-tiyasamjoga-chaukkasamjogenam asiti bhamga bhavamti. Te nam bhamte! Jiva kim sammaditthi? Michchhaditthi? Sammamichchhaditthi? Goyama! No sammadditthi, no sammamichchhaditthi, michchhaditthi va michchhaditthino va. Te nam bhamte! Jiva kim nani? Annani? Goyama! No nani, annani va, annanino va. Te nam bhamte! Jiva kim manajogi? Vaijogi? Kayajogi? Goyama! No manajogi, no vaijogi, kayajogi va, kayajogino va. Te nam bhamte! Jiva kim sagarovautta? Anagarovautta? Goyama! Sagarovautte va, anagarovautte va–attha bhamga. Tesi nam bhamte! Jivanam sariraga kativanna, katigamdha, katirasa, katiphasa, pannatta? Goyama! Pamchavanna, pamcharasa, dugamdha, atthaphasa pannatta. Te puna appana avanna, agamdha, arasa, aphasa pannatta. Te nam bhamte! Jiva kim ussasaga? Nissasaga? Noussasanissasaga? Goyama! 1. Ussasae va 2. Nissasae va 3. Noussasanissasae va 4. Ussasaga va 5. Nissasaga va 6. Noussasa-nissasaga va 1-4 ahava ussasae ya nissasae ya 1-4 ahava ussasae ya no ussasanissasae ya 1-4 ahava nissasae ya noussasanissasae ya 1-8 ahava ussasae ya nissasae ya noussasanissasae ya–attha bhamga. Ete chhavvisam bhamga bhavamti. Te nam bhamte! Jiva kim aharaga? Anaharaga? Goyama! Aharae va, anaharae va–attha bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim viraya? Aviraya? Virayaviraya? Goyama! No viraya, no virayaviraya, avirae va aviraya va. Te nam bhamte! Jiva kim sakiriya? Akiriya? Goyama! No akiriya, sakirie va, sakiriya va. Te nam bhamte! Jiva kim sattavihabamdhaga? Atthavihabamdhaga? Goyama! Sattavihabamdhae va, atthavihabamdhae va–attha bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim aharasannovautta? Bhayasannovautta? Mehunasannovautta? Pariggaha-sannovautta? Goyama! Aharasannovautta–asiti bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim kohakasai? Manakasai? Mayakasai? Lobhakasai? Asiti bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim itthivedaga? Purisavedaga? Napumsagavedaga? Goyama! No itthivedaga, no purisavedaga, napumsagavedae va, napumsagavedaga va. Te nam bhamte! Jiva kim itthivedabamdhaga? Purisavedabamdhaga? Napumsagavedabamdhaga? Goyama! Itthivedabamdhae va, purisavedabamdhae va, napumsagavedabamdhae va–chhavvisam bhamga. Te nam bhamte! Jiva kim sanni? Asanni? Goyama! No sanni, asanni va asannino va. Se nam bhamte! Jiva kim saimdiya? Animdiya? Goyama! No animdiya, saimdie va, saimdiya va. Se nam bhamte! Uppalajivetti kalao kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam asamkhejjam kalam. Se nam bhamte! Uppalajive pudhavijive, punaravi uppalajivetti kevatiyam kalam sevejja? Kevatiyam kalam gatiragati karejja? Goyama! Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam asamkhejjaim bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukkosenam asamkhejjam kalam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Se nam bhamte! Uppalajive, aujive, punaravi uppalajivetti kevatiyam kalam sevejja? Kevatiyam kalam gatiragatim karejja! Evam cheva. Evam jaha pudhavijive bhanie taha java vaujive bhaniyavve. Se nam bhamte! Uppalajive sesavanassaijive, se punaravi uppalajivetti kevatiyam kalam samkhejja? Kevatiyam kalam gatiragatim karejja? Goyama! Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam anamtaim bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukko senam anamtam kalam tarukalam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Se nam bhamte! Uppalajive beimdiyajive, punaravi uppalajivetti kevatiyam kalam sevejja? Kevatiyam kalam gatiragatim karejja? Goyama! Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam samkhejjaim bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukkosenam samkhejjam kalam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam teimdiyajive, evam chaurimdiyajive vi. Se nam bhamte! Uppalajive pamchimdiyatirikkhajoniyajive, punaravi uppalajivetti–puchchha. Goyama! Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukkosenam puvvakodipuhattam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam manussena vi samam java evatiyam kalam gatiragatim karejja. Te nam bhamte! Jiva kimaharamaharemti? Goyama! Davvao anamtapadesiyaim davvaim, khettao asamkhejjapadesogadhaim, kalao annayara kala- tthiiyaim, bhavao vannamamtaim gamdhamamtaim rasamamtaim phasamamtaim evam jaha aharuddesae vanassai-kaiyanam aharo taheva java savvappanayae aharamahareti, navaram–niyama chhaddisim, sesam tam cheva. Tesi nam bhamte! Jivanam kevatiyam kalam thii pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam dasa vasasahassaim. Tesi nam bhamte! Jivanam kati samugghaya pannatta? Goyama! Tao samugghaya pannatta, tam0 vedanasamugghae, kasayasamugghae, maranamtiyasamugghae. Te nam bhamte! Jiva maranamtiyasamugghaenam kim samohata maramti? Asamohata maramti? Goyama! Samohata vi maramti, asamohata vi maramti. Te nam bhamte! Jiva anamtaram uvvattitta kahim gachchhamti? Kahim uvavajjamti–kim neraiesu uvavajjamti? Tirikkhajoniesu uvavajjamti? Evam jaha vakkamtie uvvattanae vanassaikaiyanam taha bhaniyavvam. Aha bhamte! Savvapana, savvabhuta, savvajiva, savvasatta uppalamulattae, uppalakamdattae, uppala-nalattae, uppalapattattae, uppalakesarattae, uppalakanniyattae, uppalathibhagattae uvavannapuvva? Hamta goyama! Asatim aduva anamtakhutto. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Vaham paryupasana karate hue gautama svami ne yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Eka patra vala utpala eka jiva vala hai ya aneka jiva vala\? Gautama ! Eka jiva vala hai, aneka jiva vala nahim. Usake uparamta jaba usa utpala mem dusare jiva utpanna hote haim, taba vaha eka jiva vala nahim rahakara aneka jiva vala bana jata hai. Bhagavan ! Utpala mem ve jiva kaham se akara utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom se akara utpanna hote haim, ya tiryanchayonikom se athava manushyom se ya devom mem se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve jiva narakom se akara utpanna nahim hote, ve tiryanchayonikom se akara utpanna hote haim, manushyom se bhi aura devom se bhi akara utpanna hote haim. ‘‘vyutkrantipada’’ ke anusara – vanaspatikayika jivommem yavat ishana – devaloka taka ke jivom ka upapata hota hai. Bhagavan ! Utpalapatra mem ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Jaghanyatah eka, do ya tina aura utkrishtatah samkhyata ya asamkhyata utpanna hote haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva eka – eka samaya mem eka – eka nikale jaem to kitane kala mem pure nikale ja sakate haim\? Gautama ! Eka – eka samaya mem eka – eka nikale jaem ora unhem asamkhya utsarpini aura avasarpini kala taka nikala jae to bhi ve pure nikale nahim ja sakate. Bhagavan ! Una (utpala ke) jivom ki avagahana kitani bari hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta kuchha adhika eka hajara yojana hoti hai. Bhagavan ! Ve (utpala ke) jiva jnyanavaraniya karma ke bandhaka haim ya abandhaka haim\? Gautama ! Ve jnyanavaraniya karma ke abandhaka nahim; kintu eka jiva bandhaka haim, athava aneka jiva bandhaka haim. Isa prakara ayushyakarma ko chhora kara antaraya karma taka samajha lena. Visheshatah (ve jiva) ayushya karma ke bandhaka haim, ya abandhaka\? Yaha prashna hai. Gautama ! Utpala ka eka jiva bandhaka hai, athava eka jiva abandhaka hai, athava aneka jiva bandhaka haim, ya aneka jiva abandhaka haim, athava eka jiva bandhaka hai, aura eka abandhaka hai, athava eka jiva bandhaka aura aneka jiva abandhaka haim, ya aneka jiva bandhaka haim aura eka jiva abandhaka hai evam athava aneka jiva bandhaka haim aura aneka jiva abandhaka haim. Isa prakaraye atha bhamga hote haim. Bhagavan ! Ve (utpala ke) jiva jnyanavaraniya karma ke vedaka haim ya avedaka haim\? Gautama ! Ve jiva avedaka nahim, kintu ya to eka jiva vedaka hai aura aneka jiva vedaka haim. Isi prakara antaraya karma taka janana. Bhagavan ! Ve jiva satavedaka haim, ya asatavedaka haim\? Gautama ! Eka jiva satavedaka hai, athava eka asatavedaka hai, ityadi purvokta atha bhamga. Bhagavan ! Ve jiva jnyanavaraniya karma ke udaya vale haim ya anudaya vale haim\? Gautama ! Ve jiva anudaya vale nahim haim, kintu eka jiva udaya vala hai, athava ve udaya vale haim. Isi prakara antaraya karma taka samajha lena. Bhagavan ! Ve jiva jnyanavaraniya karma ke udiraka haim ya anudiraka haim\? Gautama ! Ve anudiraka nahim; kintu eka jiva udiraka hai, athava aneka jiva udiraka haim. Isi prakara antaraya karma taka janana; parantu itana vishesha hai ki vedaniya aura ayushya karma mem purvokta atha bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva, krishnaleshya vale hote haim, nilaleshya vale hote haim, ya kapotaleshya vale hote haim, athava tejoleshya vale hote haim\? Gautama ! Eka jiva krishnaleshya vala hota hai, yavat eka jiva tejoleshya vala hota hai. Athava aneka jiva krishnaleshya vale, nilaleshya vale, kapotaleshya vale athava tejoleshya vale hote haim. Athava eka krishnaleshya vala aura eka nilaleshya vala hota hai. Isa prakara ye dvikasamyogi, trikasamyogi aura chatuhsamyogi saba milakara 80 bhamga hote haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva samyagdrishti haim, mithyadrishti haim, athava samyag – mithyadrishti haim\? Gautama ! Ve samyagdrishti nahim, samyag – mithyadrishti bhi nahim, vaha matra mithyadrishti haim, athava ve aneka bhi mithyadrishti haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva jnyani haim, athava ajnyani haim\? Gautama ! Ve jnyani nahim haim, kintu vaha eka ajnyani hai athava ve aneka bhi ajnyani haim. Bhagavan ! Ve jiva manoyogi haim, vachanayogi haim, athava kayayogi haim\? Gautama ! Ve manoyogi nahim haim, na vachanayogi haim, kintu vaha eka ho to kayayogi haim aura aneka hom to bhi kayayogi haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva sakaropayogi haim, athava anakaropayogi haim\? Gautama ! Ve sakaro – payogi bhi hote haim aura anakaropayogi bhi. Bhagavan ! Una jivom ka sharira kitane varna, kitane gandha, kitane rasa aura kitane sparsha vala hai\? Gautama ! Unaka (sharira) pamcha varna, pamcha rasa, do gandha aura atha sparsha vala hai. Jiva svayam varna, gandha, rasa aura sparsha – rahita hai. Bhagavan ! Ve jiva uchchhvasaka haim, nihshvasaka haim ya uchchhvasaka – nihshvasaka haim\? Gautama ! (unamem se) koi eka jiva uchchhvasaka hai, ya koi eka jiva nihshvasaka hai, athava koi eka jiva anuchchhvasaka – nishvasaka hai, ya aneka jiva uchchhvasaka haim, ya aneka jiva nihshvasaka haim, athava aneka jiva anuchchhvasaka – nihshvasaka haim athava eka uchchhvasaka hai aura eka nihshvasaka hai, ityadi. Athava eka uchchhvasaka aura eka anuchchhvasaka – nihshvasaka haim; ityadi. Athava eka nihshvasaka aura eka anuchchhvasaka – nihshvasaka hai, ityadi. Athava eka uchchhvasaka eka nihshvasaka aura eka anuchchhvasaka – nihshvasaka hai ityadi atha bhamga hote haim. Ye saba milakara 26 bhamga hote haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva aharaka haim ya anaharaka haim\? Gautama ! Koi eka jiva aharaka hai, athava koi eka jiva anaharaka hai; ityadi atha bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Kya ve utpala ke jiva virata haim, avirata haim ya viratavirata haim\? Gautama ! Ve utpala – jiva na to sarvavirata haim aura na viratavirata haim, kintu eka jiva avirata hai athava aneka jiva bhi avirata haim. Bhagavan ! Kya ve utpala ke jiva sakriya haim ya akriya haim\? Gautama ! Ve akriya nahim haim, kintu eka jiva bhi sakriya hai aura aneka jiva bhi sakriya haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva saptavidha bandhaka haim ya ashtavidha bandhaka haim\? Gautama ! Ve jiva saptavidha – bandhaka haim ya ashtavidhabandhaka haim. Yaham purvokta atha bhamga kahana. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva aharasamjnya ke upayoga vale haim, ya bhayasamjnya ke upayoga vale haim, athava maithuna samjnya ke upayoga vale haim ya parigrahasamjnya ke upayoga vale haim\? Gautama ! Ve aharasamjnya ke upayoga vale haim, ityadi (leshyadvara ke samana) assi bhamga kahana. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva krodhakashayi haim, manakashayi haim, mayakashayi haim athava lobhakashayi haim\? Gautama ! Yaham purvokta 80 bhamga kahana chahie. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva strivedi haim, purushavedi haim ya napumsakavedi haim\? Gautama ! Ve striveda vale nahim, purusha veda vale bhi nahim, parantu eka jiva bhi napumsakavedi haim aura aneka jiva bhi napumsakavedi haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva striveda ke bandhaka haim, purushaveda ke bandhaka haim ya napumsakaveda ke bandhaka haim\? Gautama ! Ve striveda ke bandhaka haim, ya purushaveda ke bandhaka haim athava napumsakaveda ke bandhaka haim. Yaham uchchhvasadvara ke samana 26 bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva samjnyi haim ya asamjnyi\? Gautama ! Ve samjnyi nahim, kintu eka jiva bhi asamjnyi haim aura aneka jiva bhi asamjnyi haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva sendriya haim ya anindriya\? Gautama ! Ve anindriya nahim, kintu eka jiva sendriya haim aura aneka jiva bhi sendriya haim. Bhagavan ! Vaha utpala ka jiva utpala ke rupa mem kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Vaha jaghanyatah antarmuhurtta aura utkrishtatah asamkhyata kala taka rahata hai. Bhagavan ! Vaha utpala ka jiva, prithvikaya mem jae aura punah utpala ka jiva bane, isa prakara usaka kitana kala vyatita ho jata hai\? Kitane kala taka gamanagamana karata rahata hai\? Gautama ! Bhava ki apeksha se jaghanya do bhava aura utkrishta asamkhyata bhava karata hai, kaladesha se jaghanya do antarmuhurtta aura utkrishta asamkhyata kala rahata hai, itane kala taka gati – agati karata hai. Bhagavan ! Vaha utpala ka jiva, apkaya ke rupa mem utpanna hokara punah utpala mem ae to isamem kitana kala vyatita ho jata hai\? Kitane kala taka gamanagamana karata hai\? Gautama ! Prithvikaya ke samana bhavadesha se aura kaladesha se kahana. Isi prakara prithvikaya ke gamanagamana anusara vayukaya jiva taka kahana. Bhagavan ! Vaha utpala ka jiva, vanaspati ke jiva mem jae aura vaha punah utpala ke jiva mem ae, isa prakara kitane kala taka rahata hai\? Kitane kala taka gamanagamana karata hai\? Gautama ! Bhavadesha se vaha jaghanya do bhava karata hai aura utkrishta ananta bhava karata hai. Kaladesha se jaghanya do antarmuhurtta taka, utkrishta ananta kala taka. Bhagavan ! Vaha utpala ka jiva, dvindriyajiva paryaya mem jakara punah utpala jiva mem ae to usaka kitana kala vyatita hota hai\? Kitane kala taka gamanagamana karata hai\? Gautama ! Vaha jiva bhavadesha se jaghanya do bhava karata hai, utkrishta samkhyata bhava karata hai. Kaladesha se jaghanya do antarmuhurtta, utkrishta samkhyata kala vyatita ho jata hai. Isi prakara trindriya aura chaturindriya jiva ko bhi janana. Bhagavan ! Utpala ka vaha jiva, pamchendriyatiryamcha – yonika jiva mem jakara punah utpala ke jiva mem ae to usaka kitana kala vyatita hota hai\? Vaha kitane kala taka gamanagamana karata hai\? Gautama ! Bhavadesha se jaghanya do bhava karata hai aura utkrishta atha bhava. Kaladesha se jaghanya do antamuhurtta taka aura utkrishta purvakotiprithaktva kala. Isi prakara manushyayoni ke vishaya mem bhi janana. Yavat itane kala utpala ka vaha jiva gamanagamana karata hai. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva kisa padartha ka ahara karate haim\? Gautama ! Ve jiva dravyatah anantapradeshi dravyom ka ahara karate haim, ityadi, prajnyapanasutra ke atthaisavem pada ke ahara – uddeshaka mem vanaspatikayika jivom ke ahara ke vishaya mem kaha hai ki ve sarvatmana ahara karate haim, yaham taka – saba kahana. Vishesha yaha hai ki ve niyamatah chhaha disha se ahara karate haim. Shesha purvavat. Bhagavan ! Una utpala ke jivom ki sthiti kitane kala ki hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta dasa hajara varsha ki hai. Bhagavan ! Una jivom mem kitane samudghata haim\? Gautama ! Tina samudghata, yatha – vedanasamudghata, kashayasamudghata aura maranantikasamudghata. Bhagavan ! Ve jiva maranantikasamudghata dvara samavahata hokara marate haim ya asamavahata hokara\? Gautama ! (ve) samavahata hokara bhi marate haim aura asamavahata hokara bhi marate haim. Bhagavan ! Ve utpala ke jiva marakara turanta kaham jate haim\? Kaham utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom mem utpanna hote haim\? Athava yavat ya devom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Prajnyapana sutra ke chhathe vyutkrantika pada ke udvarttana – prakarana mem vanaspati – kayikom ke varnana ke anusara kahana. Bhagavan ! Sabhi prana, sabhi bhuta, samasta jiva aura samasta sattva; kya utpala ke mularupa mem, utpala ke kandarupa mem, utpala ke nalarupa mem, utpala ke patrarupa mem, utpala ke kesararupa mem, utpala ki karnika ke rupa mem tatha utpala ke thibhuga ke rupa mem isase pahale utpanna hue haim\? Ham, gautama ! Aneka bara athava ananta bara (purvokta rupa se utpanna hue haim). ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai ! Yaha isi prakara hai !’