Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003975
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१०

Translated Chapter :

शतक-१०

Section : उद्देशक-१ दिशा Translated Section : उद्देशक-१ दिशा
Sutra Number : 475 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–किमियं भंते! पाईणा ति पवुच्चइ? गोयमा! जीवा चेव, अजीवा चेव। किमियं भंते! पडीणा ति पवुच्चइ? गोयमा! एवं चेव। एवं दाहिणा, एवं उदीणा, एवं उड्ढा, एवं अहो वि। कति णं भंते! दिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! दस दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. पुरत्थिमा २. पुरत्थिमदाहिणा ३. दाहिणा ४. दाहिणपच्चत्थिमा ५. पच्चत्थिमा ६. पच्चत्थिमुत्तरा ७. उत्तरा ८. उत्तरपुरत्थिमा ९. उड्ढा १. अहो। एयासि णं भंते! दसण्हं दिसाणं कति नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! दस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– इंदा अग्गेयो जम्मा, य नेरई वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी या, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥ इंदा णं भंते! दिसा किं १. जीवा २. जीवदेसा ३. जीवपदेसा ४. अजीवा ५. अजीवदेसा ६. अजीवपदेसा? गोयमा! जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवा ते नियमा एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया, अनिंदिया। जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदियदेसा जाव अनिंदियदेसा। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिंदियपदेसा बेइंदियपदेसा जाव अनिंदियपदेसा। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवा य, अरूविअजीवा य। जे रूवीअजीवा ते चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा, खंधदेसा, खंधपदेसा, परमाणुपोग्गला। जे अरूविअजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे २. धम्मत्थिकायस्स पदेसा ३. नो-अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे ४. अधम्मत्थिकायस्स पदेसा ५. नोआगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे ६. आगासत्थि-कायस्स पदेसा ७. अद्धासमए। अग्गेयी णं भंते! दिसा किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा–पुच्छा। गोयमा! नोजीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदियदेसा, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसा, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा। अहवा एगिंदियदेसा य तेइंदियस्स य देसे। एवं चेव तियभंगो भाणियव्वो। एवं जाव अनिंदियाणं तियभंगो। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिंदियपदेसा। अहवा एगिंदियपदेसा य बेइंदियस्स पदेसा, अहवा एगिंदियपदेसा य बेइंदियाण य पदेसा। एवं आइल्लविरहिओ जाव अनिंदियाणं। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवा य, अरूविअजीवा य। जे रूविअजीवा ते चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा जाव परमाणुपोग्गला। जे अरूविअजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, एवं अधम्मत्थिकायस्स वि जाव आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। जम्मा णं भंते! दिसा किं जीवा? जहा इंदा तहेव निरवसेसं। नेरती य जहा अग्गेयी। वारुणी जहा इंदा। वायव्वा जहा अग्गेयी। सोमा जहा इंदा। ईसाणी जहा अग्गेयी। विमलाए जीवा जहा अग्गेयीए, अजीवा जहा इंदाए। एवं तमाए वि, नवरं– अरूवी छव्विहा, अद्धासमयो न भण्णति।
Sutra Meaning : राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! यह पूर्वदिशा क्या कहलाती है ? गौतम! यह जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है। भगवन् ! पश्चिमदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह भी पूर्वदिशा के समान जानना। इसी प्रकार दक्षिणदिशा, उत्तरदिशा, उर्ध्वदिशा और अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए। भगवन् ! दिशाऍं कितनी कही गई हैं ? गौतम ! दिशाऍं दस कही गई है। वे इस प्रकार हैं – पूर्व, पूर्व – दक्षिण, दक्षिण – पश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा। भगवन् ! इन दस दिशाओं के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! (इनके) दस नाम हैं, – ऐन्द्री (पूर्व), आग्नेयी, याम्या (दक्षिण), नैऋती, वारुणी (पश्चिम), वायव्या, सौम्या (उत्तर), ऐशानी, विमला (ऊर्ध्वदिशा) और तमा (अधोदिशा)। भगवन ! ऐन्द्री पूर्व दिशा जीवरूप है, जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप है, अथवा अजीवरूप है, अजीव के देशरूप है या अजीव के प्रदेशरूप है ? गौतम ! वह जीवरूप भी है, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह अजीवप्रदेशरूप भी है। उसमें जो जीव हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय हैं। जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के देश हैं। जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः ऐकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं। उसमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं, यता – रूपी अजीव और अरूपी अजीव। रूपी अजीवों के चार भेद हैं यथा – स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल। जो अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के हैं, यथा – धर्मास्तिकाय नहीं किन्तु धर्मास्तिकाय का देश हैं, अधर्मास्थिकाय के प्रदेश और अद्धामय अर्थात् काल है। भगवन् ! अग्नेयीदिशा क्या जीवरूप है, जीवदेशरूप है, अथवा जीवप्रदेशरूप है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! वह जीवरूप नहीं, किन्तु जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप भी है तथा अजीवरूप है और अजीव के प्रदेशरूप भी है। इसमें जीव के जो देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और द्वीन्द्रिय का एक देश हैं १, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश एवं द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं २; अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं ३. एकेन्द्रियों के बहुत देश और एक त्रीन्द्रिय का एक देश है १. इसी प्रकार से पूर्ववत् त्रीन्द्रिय के साथ तीन भंग कहने चाहिए। इसी प्रकार यावत् अनिन्द्रिय तक के भी क्रमशः तीन – तीन भंग कहने चाहिए। इसमें जीव के जो प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के बहुत प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत प्रदेश हैं। इसी प्रकार सर्वत्र प्रथम भंग को छोड़ कर दो – दो भंग जानने चाहिए, यावत् अनिन्द्रिय तक इसी प्रकार कहना चाहिए। अजीवों के दो भेद हैं, यथा – रूपी अजीव और अरूपी अजीव। जो रूपी अजीव हैं, वे चार प्रकार के हैं, यथा – स्कन्ध से लेकर यावत् परमाणु पुद्गल तक। अरूपी अजीव सात प्रकार के हैं, यथा – धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय। भगवन् ! याया (दक्षिण) – दिशा क्या जीवरूप है ? इत्यादि प्रश्न। (गौतम !) ऐन्द्रीदिशा के समान जानना। नैर्ऋती विदिशा को आग्नेयी विदिशा के समान जानना। वारुणी (पश्चिम) – दिशा को ऐन्द्रीदिशा के समान जानना। वायव्या विदिशा आग्नेयी के समान है। सौम्या (उत्तर) – दिशा ऐन्द्रीदिशा के समान जान लेना। ऐशानी आग्नेयी के समान जानना। विमला (ऊर्ध्व) – दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान है तथा अजीवों का कथन ऐन्द्रीदिशा के समान है। इसी प्रकार तमा (अधोदिशा) को भी जानना। विशेष इतना कि तमादिशा में अरूपी – अजीव के ६ भेद ही हैं, वहाँ अद्धासमय नहीं है। अतः अद्धासमय का कथन नहीं किया गया।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] rayagihe java evam vayasi–kimiyam bhamte! Paina ti pavuchchai? Goyama! Jiva cheva, ajiva cheva. Kimiyam bhamte! Padina ti pavuchchai? Goyama! Evam cheva. Evam dahina, evam udina, evam uddha, evam aho vi. Kati nam bhamte! Disao pannattao? Goyama! Dasa disao pannattao, tam jaha–1. Puratthima 2. Puratthimadahina 3. Dahina 4. Dahinapachchatthima 5. Pachchatthima 6. Pachchatthimuttara 7. Uttara 8. Uttarapuratthima 9. Uddha 1. Aho. Eyasi nam bhamte! Dasanham disanam kati namadhejja pannatta? Goyama! Dasa namadhejja pannatta, tam jaha– Imda aggeyo jamma, ya nerai varuni ya vayavva. Soma isani ya, vimala ya tama ya boddhavva. Imda nam bhamte! Disa kim 1. Jiva 2. Jivadesa 3. Jivapadesa 4. Ajiva 5. Ajivadesa 6. Ajivapadesa? Goyama! Jiva vi, jivadesa vi, jivapadesa vi, ajiva vi, ajivadesa vi, ajivapadesa vi. Je jiva te niyama egimdiya beimdiya teimdiya chaurimdiya pamchimdiya, animdiya. Je jivadesa te niyama egimdiyadesa java animdiyadesa. Je jivapadesa te niyama egimdiyapadesa beimdiyapadesa java animdiyapadesa. Je ajiva te duviha pannatta, tam jaha–ruviajiva ya, aruviajiva ya. Je ruviajiva te chauvviha pannatta, tam jaha–khamdha, khamdhadesa, khamdhapadesa, paramanupoggala. Je aruviajiva te sattaviha pannatta, tam jaha–1. Nodhammatthikae dhammatthikayassa dese 2. Dhammatthikayassa padesa 3. No-adhammatthikae adhammatthikayassa dese 4. Adhammatthikayassa padesa 5. Noagasatthikae agasatthikayassa dese 6. Agasatthi-kayassa padesa 7. Addhasamae. Aggeyi nam bhamte! Disa kim jiva, jivadesa, jivapadesa–puchchha. Goyama! Nojiva, jivadesa vi, jivapadesa vi, ajiva vi ajivadesa vi, ajivapadesa vi. Je jivadesa te niyama egimdiyadesa, ahava egimdiyadesa ya beimdiyassa ya dese, ahava egimdiyadesa ya beimdiyassa ya desa, ahava egimdiyadesa ya beimdiyana ya desa. Ahava egimdiyadesa ya teimdiyassa ya dese. Evam cheva tiyabhamgo bhaniyavvo. Evam java animdiyanam tiyabhamgo. Je jivapadesa te niyama egimdiyapadesa. Ahava egimdiyapadesa ya beimdiyassa padesa, ahava egimdiyapadesa ya beimdiyana ya padesa. Evam aillavirahio java animdiyanam. Je ajiva te duviha pannatta, tam jaha–ruviajiva ya, aruviajiva ya. Je ruviajiva te chauvviha pannatta, tam jaha–khamdha java paramanupoggala. Je aruviajiva te sattaviha pannatta, tam jaha–nodhammatthikae dhammatthikayassa dese, dhammatthikayassa padesa, evam adhammatthikayassa vi java agasatthikayassa padesa, Addhasamae. Jamma nam bhamte! Disa kim jiva? Jaha imda taheva niravasesam. Nerati ya jaha aggeyi. Varuni jaha imda. Vayavva jaha aggeyi. Soma jaha imda. Isani jaha aggeyi. Vimalae jiva jaha aggeyie, ajiva jaha imdae. Evam tamae vi, navaram– aruvi chhavviha, addhasamayo na bhannati.
Sutra Meaning Transliteration : Rajagriha nagara mem gautama svami ne yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Yaha purvadisha kya kahalati hai\? Gautama! Yaha jivarupa bhi hai aura ajivarupa bhi hai. Bhagavan ! Pashchimadisha kya kahalati hai\? Gautama ! Yaha bhi purvadisha ke samana janana. Isi prakara dakshinadisha, uttaradisha, urdhvadisha aura adhodisha ke vishaya mem bhi janana chahie. Bhagavan ! Dishaam kitani kahi gai haim\? Gautama ! Dishaam dasa kahi gai hai. Ve isa prakara haim – purva, purva – dakshina, dakshina – pashchima, pashchima, pashchimottara, uttara, uttarapurva, urdhvadisha aura adhodisha. Bhagavan ! Ina dasa dishaom ke kitane nama kahe gae haim\? Gautama ! (inake) dasa nama haim, – aindri (purva), agneyi, yamya (dakshina), nairiti, varuni (pashchima), vayavya, saumya (uttara), aishani, vimala (urdhvadisha) aura tama (adhodisha). Bhagavana ! Aindri purva disha jivarupa hai, jiva ke desharupa hai, jiva ke pradesharupa hai, athava ajivarupa hai, ajiva ke desharupa hai ya ajiva ke pradesharupa hai\? Gautama ! Vaha jivarupa bhi hai, ityadi purvavat janana chahie, yavat vaha ajivapradesharupa bhi hai. Usamem jo jiva haim, ve niyamatah ekendriya, dvindriya, yavat pamchendriya tatha anindriya haim. Jo jiva ke desha haim, ve niyamatah ekendriya yavat anindriya jiva ke desha haim. Jo jiva ke pradesha haim, ve niyamatah aikendriya yavat anindriya jiva ke pradesha haim. Usamem jo ajiva haim, ve do prakara ke haim, yata – rupi ajiva aura arupi ajiva. Rupi ajivom ke chara bheda haim yatha – skandha, skandhadesha, skandhapradesha aura paramanupudgala. Jo arupi ajiva haim, ve sata prakara ke haim, yatha – dharmastikaya nahim kintu dharmastikaya ka desha haim, adharmasthikaya ke pradesha aura addhamaya arthat kala hai. Bhagavan ! Agneyidisha kya jivarupa hai, jivadesharupa hai, athava jivapradesharupa hai\? Ityadi purvavat prashna. Gautama ! Vaha jivarupa nahim, kintu jiva ke desharupa hai, jiva ke pradesharupa bhi hai tatha ajivarupa hai aura ajiva ke pradesharupa bhi hai. Isamem jiva ke jo desha haim ve niyamatah ekendriya jivom ke desha haim, athava ekendriyom ke bahuta desha aura dvindriya ka eka desha haim 1, athava ekendriyom ke bahuta desha evam dvindriyom ke bahuta desha haim 2; athava ekendriyom ke bahuta desha aura bahuta dvindriyom ke bahuta desha haim 3. Ekendriyom ke bahuta desha aura eka trindriya ka eka desha hai 1. Isi prakara se purvavat trindriya ke satha tina bhamga kahane chahie. Isi prakara yavat anindriya taka ke bhi kramashah tina – tina bhamga kahane chahie. Isamem jiva ke jo pradesha haim, ve niyama se ekendriyom ke pradesha haim. Athava ekendriyom ke bahuta pradesha aura eka dvindriya ke bahuta pradesha haim, athava ekendriyom ke bahuta pradesha aura bahuta dvindriyom ke bahuta pradesha haim. Isi prakara sarvatra prathama bhamga ko chhora kara do – do bhamga janane chahie, yavat anindriya taka isi prakara kahana chahie. Ajivom ke do bheda haim, yatha – rupi ajiva aura arupi ajiva. Jo rupi ajiva haim, ve chara prakara ke haim, yatha – skandha se lekara yavat paramanu pudgala taka. Arupi ajiva sata prakara ke haim, yatha – dharmastikaya nahim, kintu dharmastikaya ka desha, dharmastikaya ke pradesha, adharmastikaya nahim, kintu adharmastikaya ka desha, adharmastikaya ke pradesha, akashastikaya nahim, kintu akashastikaya ka desha, akashastikaya ke pradesha aura addhasamaya. Bhagavan ! Yaya (dakshina) – disha kya jivarupa hai\? Ityadi prashna. (gautama !) aindridisha ke samana janana. Nairriti vidisha ko agneyi vidisha ke samana janana. Varuni (pashchima) – disha ko aindridisha ke samana janana. Vayavya vidisha agneyi ke samana hai. Saumya (uttara) – disha aindridisha ke samana jana lena. Aishani agneyi ke samana janana. Vimala (urdhva) – disha mem jivom ka kathana agneyi ke samana hai tatha ajivom ka kathana aindridisha ke samana hai. Isi prakara tama (adhodisha) ko bhi janana. Vishesha itana ki tamadisha mem arupi – ajiva ke 6 bheda hi haim, vaham addhasamaya nahim hai. Atah addhasamaya ka kathana nahim kiya gaya.