Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003925
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-८

Translated Chapter :

शतक-८

Section : उद्देशक-९ प्रयोगबंध Translated Section : उद्देशक-९ प्रयोगबंध
Sutra Number : 425 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे य। जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिंदियसरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय-एगिंदियसरीरप्पयो-गबंधे? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वि-यसरीरप्पयोगबंधे य। वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च लद्धिं वा पडुच्च वेउव्वियसरीरप्पयो-गनामाए कम्मस्स उदएणं वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे। वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगपुच्छा। गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए एवं चेव जाव लद्धिं पडुच्च वाउक्काइय-एगिंदियवेउव्विय सरीरप्पयोग बंधे। रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जाव आउयं वा पडुच्च रयणप्पभापुढवि नेरइय-पंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे, एवं जाव अहेसत्तमाए। तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउव्वियसरीरपुच्छा। गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए जहा वाउक्काइयाणं। मनुस्सपंचिंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे एवं चेव। असुरकुमारभवनवासिदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे जहा रयणप्पभापुढवि-नेरइ-याणं। एवं जाव थणियकुमारा। एवं वाणमंतरा। एवं जोइसिया। एवं सोहम्मकप्पोवया वेमाणिया। एवं जाव अच्चुयगेवेज्जकप्पातीया वेमाणिया। अनुत्तरोववाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव। वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? गोयमा! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे वि एवं चेव। रयणप्पभापुढविनेरइया एवं चेव। एवं जाव अनुत्तरोववाइया। वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया। देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। रयणप्पभापुढविनेरइयपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं दसवाससहस्साइं तिसमयूणाइं, उक्कोसेणं सागरोवमं समयूणं। एवं जाव अहे सत्तमा, नवरं–देसबंधे जस्स जा जहन्निया ठिती सा तिसमयूणा कायव्वा जाव उक्कोसिया सा समयूणा। पंचिंदियतिरिक्खजो-णियाणं मनुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं, असुरकुमार-नागकुमार जाव अनुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं, नवरं–जस्स जा ठिती सा भाणियव्वा जाव अनुत्तरोववाइयाणं सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं तिसमयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। एवं देसबंधंतरं पि। वाउक्काइयवेउव्वियसरीरपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं। एवं देसबंधंतरं पि। तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधंतरं–पुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं। एवं देसबंधंतरं पि। एवं मणूसस्स वि। जीवस्स णं भंते! वाउक्काइयत्ते, नोवाउकाइयत्ते, पुनरवि वाउकाइयत्ते वाउक्काइयएगिंदिय- वेउव्वियपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। एवं देसबंधंतरं पि। जीवस्स णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइयत्ते, नोरयणप्पभापुढविनेरइयत्ते, पुनरवि रयणप्पभा-पुढविनेरइयत्ते–पुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। देसबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। एवं जाव अहेसत्तमाए, नवरं–जा जस्स ठिती जहन्निया सा सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तमब्भहिया कायव्वा, सेसं तं चेव। पंचिंदियतिरिक्खजोणिय–मनुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं। असुरकुमार-नागकुमार जाव सहस्सारदेवाणं–एएसिं जहा रयणप्पभापुढविनेरइयाणं, नवरं–सव्वबंधंतरं जस्स जा ठिती जहन्निया सा अंतोमुहुत्तमब्भहिया कायव्वा, सेसं तं चेव। जीवस्स णं भंते! आणयदेवत्ते, नोआणयदेवत्ते, पुनरवि आणयदेवत्ते पुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। एवं जाव अच्चुए, नवरं–जस्स जा ठिती सा सव्वबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तमब्भहिया कायव्वा, सेसं तं चेव। गेवेज्जाकप्पातीतापुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–वणस्सइकालो। देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। जीवस्स णं भंते! अनुत्तरोववाइयपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाइं। देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाइं। एएसि णं भंते! जीवाणं वेउव्वियसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधगा, देसबंधगा असंखेज्जगुणा, अबंधगा अनंतगुणा। आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! एगागारे पन्नत्ते। जइ एगागारे पन्नत्ते किं मनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे? अमनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे? गोयमा! मनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे, नो अमनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे। एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तसंखेज्जवासाउय- कम्मभूमागब्भ-वक्कंतियमनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे, नो अणिड्ढिपत्तपमत्त संजयसम्मदिट्ठि-पज्जत्तसंखेज्ज-वासाउयकम्मभूमागब्भवक्कंतियमनुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे। आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च लद्धिं वा पडुच्च आहारगसरीरप्पयोग-नामाए कम्मस्स उदएणं आहारगसरीरप्पयोगबंधे। आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? गोयमा! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। आहारगसरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–अवड्ढपोग्गलपरियट्टं देसूणं। एवं देसबंधंतरं पि। एएसि णं भंते! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा, देसबंधगा संखेज्जगुणा, अबंधगा अनंतगुणा।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है। एकेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध। भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है ? गौतम ! इस प्रकार के अभिलाप द्वारा अवगाहना – संस्थानपद में वैक्रियशरीर के जिस प्रकार भेद कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी – अपर्याप्त – सर्वार्थसिद्ध – अनुत्तरौपपातिक – कल्पातीत – वैमानिकदेव – पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध’ तक रहना चाहिए। भगवन् ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है। गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता, यावत् आयुष्य अथवा लब्धि की अपेक्षा तथा वैक्रियशरीर – प्रयोगनामकर्म के उदय से होता है। भगवन् ! वायुकायिक – एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता, यावत् आयुष्य और लब्धि की अपेक्षा में तथा वायुकायिक – एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी – नैरयिक – पंचेन्द्रिय – वैक्रियशरीरबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्रव्यता, यावत् आयुष्य की अपेक्षा से तथा रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक – पंचेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगनाकर्म के उदय से होता है। इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक रहना चाहिए। भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक – (पंचेन्द्रिय) वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता यावत् आयुष्य और लब्धि को लेकर तथा तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से वह होता है। भगवन् ! मनुष्य – पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम (पूर्ववत्) जानना भगवन् ! असुरकुमार – भवनवासीदेव – पंचेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता हे ? गौतम! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकों की तरह समझना। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। इसी प्रकार वाणव्यन्तर तथा ज्योतिष्कदेवों के विषय में जाना। इसी प्रकार सौधर्मकल्पोपन्नक – वैमानिकदेवों से अच्युतकल्पोपन्नक – वैमानिकदेवों ग्रैवेयककल्पातीत – वैमानिकदेवों तथा अनुत्तरोपपातिककल्पातीत – वैमानिकदेवों के विषय में भी जान लेना चाहिए। भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का देशबंध है, अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध भी है, सर्वबंध भी है। भगवन् ! वायुकायिक – एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? गौतम ! पूर्ववत। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी – नैरयिक – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध देशबंध है या सर्वबंध ? गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिककल्पातीत – वैमानिक देवों तक समझना। भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध, कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः दो समय तक रहता है और दशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है। भगवन् ! वायुकायिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः दो समय तक रहता हे तथा देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तमुहूर्त रहता है। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! इसका सर्वबंध एक समय तक और देशबंध जघन्यतः तीन समय कम दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्टतः एक समय कम एक सागरोपम तक रहता है। इसी प्रकार अधःसप्तमनरकपृथ्वी तक जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी जघन्य स्थिति हो, उसमें तीन समय कम जघन्य देशबंध तथा जिसकी जितनी उत्कृष्ट स्थिति हो, उसमें एक समय कम उत्कृष्ट देशबंध जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य का कथन वायुकायिक के समान जानना चाहिए। असुरकुमार, नागकुमार से अनुत्तरौपपातिकदेवों तक का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। परन्तु इतना विशेष है कि जिसकी स्थिति हो, उतनी कहनी चाहिए तथा अनुत्तरौपपातिकदेवों का सर्वबंध एक समय और देशबंध जघन्य तीन समय कम इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक होता है। भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्त कालतः कितने काल का होता है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल है – यावत् – आवलिका के असंख्यायतवें भाग के समयों के बराबर पुद्गलपरावर्तन</em> रहता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना चाहिए। भगवन् ! वायुकायिक – वैक्रियशरीर प्रयोगबंध संवधि पृच्छा। गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना। भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक – पंचेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध पृच्छा, गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूवृकोटि – पृथकत्व का होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जान लेना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य के विषयमें भी (पूर्ववत्) जान ना। भगवन् ! वायुकायिक – अवस्थागत जीव वायुकायिक के सिवाय अन्य काय में उत्पन्न हो कर पुनः वायुकायिक जीवों में उत्पन्न हो तो उसके वायुकायिक – एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! उसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल – वनस्पतिकाल तक होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जानना। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकरूप में रहा हुआ जीव, रत्नप्रभापृथवी के सिवाय अन्य स्थानों में उत्पन्न हो और पुनः रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप से उत्पन्न हो तो उस का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! सर्वबंध का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट अनन्तकाल – का होता हे। देशबंध का अन्तर जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल – का होता है। इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक जानना। विशेष इतना है कि सर्वबंध का जघन्य अन्तर जिस नैरयिक की जीतनी जघन्य स्थिति हो, उससे अन्तमुहूर्त अधिक जानना। शेष पूर्ववत्। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों और मनुष्यों के सर्वबंध का अन्तर वायुकायिक के समान जानना। असुरकुमार, नागकुमार स सहस्त्रार देवों तक के वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर रत्नप्रभापृथ्वी – नैरयिकों के समान जानना। विशेष इतना हे क जिसकी जो जघन्य स्थिति हो, उसके सर्वबंध का अन्तर, उससे अन्तमुहूर्त अधिक जानना। शेष पूर्ववत् भगवन् ! आनतदेवलोक के देव संबंधि पृच्छा गौतम ! उसके सर्वबंध का अन्तर जघन्य वर्ष – पृथकत्त्वअधिक अठारह सागरोपम का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का, देशबंध के अन्तर का काल जघन्य वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्टत अनंतकाल का होता है। इसी प्रकार अच्युत देवलोक तक के वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध का अन्तर जानना। विशेष इतना ही है कि जिसकी जितनी जघन्य स्थिति हो, सर्वबंधान्तर में उससे वर्षपृथक्त्व – अधिक समजना। शेष पूर्ववत्। भगवन् ! ग्रैवेयककल्पातीत – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कतने काल का होता है ? गौतम ! जघन्यतः वर्षपृथक्त्व – अधिक २२ सागरोपम और उत्कृष्टतः अनन्तकाल – । देशबंध का अन्तर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्टतः वनस्पतिकाल। अनुत्तरौपपातिकदेव संबंधि प्रश्न। गौतम ! उसके सर्वबंध का अंतर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व – अधिक इकतीस सागरोपम का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है। देशबंध का अंतर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है। भगवन् ! वैक्रियशरीर के इन देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम ! सबसे थोड़े वैक्रियशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं। भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक प्रकार का है। भगवन् ! आहारकशरीर – प्रयोगबंध एक प्रकार का है, तो वह मनुष्यों के होता है अथवा अमनुष्यों के ? गौतम ! मनुष्यों के होता है, अमनुष्यों के नहीं होता। इस प्रकार ‘अवगाहना – संस्थान – पद’ में कहे अनुसार यावत् – ऋद्धिप्राप्त – प्रमत्तसंयत – सम्यगदृष्टि – पर्याप्त – संख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिज – गर्भज – मनुष्य के आहारकशरीरप्रयोगबंध होता है, परन्तु अनृद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत – सम्यग्दृष्टि – पर्याप्त – संख्यातवर्षायुष्क के नहीं होता है। भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्द्रव्यता, यावत् (आहारक – ) लब्धि के निमित्त से आहारकशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से आहारकशरीरप्रयोगबंध होता है। भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध होता है, अथवा सर्वबंध ? गौतम ! वह देशबंध भी होता है, सर्वबंध भी। भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध, कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक, देशबंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः भी अन्तमुहूर्त तक। भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है? गौतम ! जघन्यतः अन्तमुहूर्त, उत्कृष्टतः अनन्तकाल; कालतः अनन्त – उत्सर्पिणी – अवसर्पिणीकाल होता है, क्षेत्रतः अनन्तलोक देशोन अर्द्ध पुद्गलपरावर्तन</em> होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जानना। भगवन् ! आहारकशरीर के इन देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे कम यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक संख्यातगेणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] veuvviyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–egimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe ya pamchemdiyaveuvviyasarira-ppayogabamdhe ya. Jai egimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe kim vaukkaiyaegimdiyasarirappayogabamdhe? Avaukkaiya-egimdiyasarirappayo-gabamdhe? Evam eenam abhilavenam jaha ogahanasamthane veuvviyasarirabhedo taha bhaniyavvo java pajjattasavvatthasiddhaanuttarovavaiyakappatiyavemaniyadevapamchimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe ya, apajjattasavvatthasiddha anuttarovavaiyakappatiyavemaniyadevapamchimdiyaveuvvi-yasarirappayogabamdhe ya. Veuvviyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae pamadapachchaya kammam cha jogam cha bhavam cha auyam cha laddhim va paduchcha veuvviyasarirappayo-ganamae kammassa udaenam veuvviyasarirappayogabamdhe. Vaukkaiyaegimdiyaveuvviyasarirappayogapuchchha. Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae evam cheva java laddhim paduchcha vaukkaiya-egimdiyaveuvviya sarirappayoga bamdhe. Rayanappabhapudhavineraiyapamchimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae java auyam va paduchcha rayanappabhapudhavi neraiya-pamchimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe, evam java ahesattamae. Tirikkhajoniyapamchimdiyaveuvviyasarirapuchchha. Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae jaha vaukkaiyanam. Manussapamchimdiyaveuvviyasarira-ppayogabamdhe evam cheva. Asurakumarabhavanavasidevapamchimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe jaha rayanappabhapudhavi-nerai-yanam. Evam java thaniyakumara. Evam vanamamtara. Evam joisiya. Evam sohammakappovaya vemaniya. Evam java achchuyagevejjakappatiya vemaniya. Anuttarovavaiyakappatiya vemaniya evam cheva. Veuvviyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kim desabamdhe? Savvabamdhe? Goyama! Desabamdhe vi, savvabamdhe vi. Vaukkaiyaegimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhe vi evam cheva. Rayanappabhapudhavineraiya evam cheva. Evam java anuttarovavaiya. Veuvviyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam do samaya. Desabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tettisam sagarovamaim samayunaim. Vaukkaiyaegimdiyaveuvviyapuchchha. Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam amtomuhuttam. Rayanappabhapudhavineraiyapuchchha. Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam dasavasasahassaim tisamayunaim, ukkosenam sagarovamam samayunam. Evam java ahe sattama, navaram–desabamdhe jassa ja jahanniya thiti sa tisamayuna kayavva java ukkosiya sa samayuna. Pamchimdiyatirikkhajo-niyanam manussana ya jaha vaukkaiyanam, asurakumara-nagakumara java anuttarovavaiyanam jaha neraiyanam, navaram–jassa ja thiti sa bhaniyavva java anuttarovavaiyanam savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam ekkatisam sagarovamaim tisamayunaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim samayunaim. Veuvviyasarirappayogabamdhamtaram nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam ekkam samayam, ukkosenam anamtam kalam–anamtao osappinio ussappinio kalao, khettao anamta loga–asamkhejja poggalapariyatta, te nam poggalapariyatta avaliyae asamkhejjaibhago. Evam desabamdhamtaram pi. Vaukkaiyaveuvviyasarirapuchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam paliovamassa asamkhejjaibhagam. Evam desabamdhamtaram pi. Tirikkhajoniyapamchimdiyaveuvviyasarirappayogabamdhamtaram–puchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodipuhattam. Evam desabamdhamtaram pi. Evam manusassa vi. Jivassa nam bhamte! Vaukkaiyatte, novaukaiyatte, punaravi vaukaiyatte vaukkaiyaegimdiya- veuvviyapuchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Evam desabamdhamtaram pi. Jivassa nam bhamte! Rayanappabhapudhavineraiyatte, norayanappabhapudhavineraiyatte, punaravi rayanappabha-pudhavineraiyatte–puchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam vanassaikalo. Desabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Evam java ahesattamae, navaram–ja jassa thiti jahanniya sa savvabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttamabbhahiya kayavva, sesam tam cheva. Pamchimdiyatirikkhajoniya–manussana ya jaha vaukkaiyanam. Asurakumara-nagakumara java sahassaradevanam–eesim jaha rayanappabhapudhavineraiyanam, navaram–savvabamdhamtaram jassa ja thiti jahanniya sa amtomuhuttamabbhahiya kayavva, sesam tam cheva. Jivassa nam bhamte! Anayadevatte, noanayadevatte, punaravi anayadevatte puchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam attharasa sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Desabamdhamtaram jahannenam vasapuhattam, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Evam java achchue, navaram–jassa ja thiti sa savvabamdhamtaram jahannenam vasapuhattamabbhahiya kayavva, sesam tam cheva. Gevejjakappatitapuchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam bavisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam anamtam kalam–vanassaikalo. Desabamdhamtaram jahannenam vasapuhattam, ukkosenam vanassaikalo. Jivassa nam bhamte! Anuttarovavaiyapuchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam ekkatisam sagarovamaim vasapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam samkhejjaim sagarovamaim. Desabamdhamtaram jahannenam vasapuhattam, ukkosenam samkhejjaim sagarovamaim. Eesi nam bhamte! Jivanam veuvviyasarirassa desabamdhaganam, savvabamdhaganam, abamdhagana ya kayare kayarehimto appa va? Bahuya va? Tulla va? Visesahiya va? Goyama! Savvatthova jiva veuvviyasarirassa savvabamdhaga, desabamdhaga asamkhejjaguna, abamdhaga anamtaguna. Aharagasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Egagare pannatte. Jai egagare pannatte kim manussaharagasarirappayogabamdhe? Amanussaharagasarirappayogabamdhe? Goyama! Manussaharagasarirappayogabamdhe, no amanussaharagasarirappayogabamdhe. Evam eenam abhilavenam jaha ogahanasamthane java iddhipattapamattasamjayasammaditthipajjattasamkhejjavasauya- kammabhumagabbha-vakkamtiyamanussaharagasarirappayogabamdhe, no aniddhipattapamatta samjayasammaditthi-pajjattasamkhejja-vasauyakammabhumagabbhavakkamtiyamanussaharagasarirappayogabamdhe. Aharagasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae pamadapachchaya kammam cha jogam cha bhavam cha auyam cha laddhim va paduchcha aharagasarirappayoga-namae kammassa udaenam aharagasarirappayogabamdhe. Aharagasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kim desabamdhe? Savvabamdhe? Goyama! Desabamdhe vi, savvabamdhe vi. Aharagasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam amtomuhuttam, ukkosena vi amtomuhuttam. Aharagasarirappayogabamdhamtaram nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam–anamtao osappinio ussappinio kalao, khettao anamta loga–avaddhapoggalapariyattam desunam. Evam desabamdhamtaram pi. Eesi nam bhamte! Jivanam aharagasarirassa desabamdhaganam, savvabamdhaganam, abamdhagana ya kayare kayarehimto appa va? Bahuya va? Tulla va? Visesahiya va? Goyama! Savvatthova jiva aharagasarirassa savvabamdhaga, desabamdhaga samkhejjaguna, abamdhaga anamtaguna.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Vaikriyasharira – prayogabamdha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Do prakara ka hai. Ekendriyavaikriyasharira – prayogabamdha aura pamchendriyavaikriyasharira – prayogabamdha. Bhagavan ! Yadi ekendriya – vaikriyashariraprayogabamdha hai, to kya vaha vayukayika ekendriyavaikriyashariraprayogabamdha hai athava avayukayika ekendriya – vaikriyashariraprayogabamdha hai\? Gautama ! Isa prakara ke abhilapa dvara avagahana – samsthanapada mem vaikriyasharira ke jisa prakara bheda kahe haim, usi prakara yaham bhi – aparyapta – sarvarthasiddha – anuttaraupapatika – kalpatita – vaimanikadeva – pamchendriyavaikriyashariraprayogabamdha’ taka rahana chahie. Bhagavan ! Vaikriyasharira – prayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai. Gautama ! Saviryata, sayogata, saddravyata, yavat ayushya athava labdhi ki apeksha tatha vaikriyasharira – prayoganamakarma ke udaya se hota hai. Bhagavan ! Vayukayika – ekendriya – vaikriyashariraprayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama saviryata, sayogata, saddravyata, yavat ayushya aura labdhi ki apeksha mem tatha vayukayika – ekendriya – vaikriyashariraprayoganakarma ke udaya se hota hai. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi – nairayika – pamchendriya – vaikriyasharirabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Saviryata, sayogata, saddravyata, yavat ayushya ki apeksha se tatha ratnaprabhaprithvinairayika – pamchendriya – vaikriyashariraprayoganakarma ke udaya se hota hai. Isi prakara adhahsaptama narakaprithvi taka rahana chahie. Bhagavan ! Tiryanchayonika – (pamchendriya) vaikriyashariraprayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Saviryata yavat ayushya aura labdhi ko lekara tatha tiryanchayonikapamchendriya – vaikriyashariraprayoganamakarma ke udaya se vaha hota hai. Bhagavan ! Manushya – pamchendriyavaikriyashariraprayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama (purvavat) janana Bhagavan ! Asurakumara – bhavanavasideva – pamchendriya – vaikriyashariraprayogabamdha kisa karma ke udaya se hota he\? Gautama! Ratnaprabhaprithvinairayikom ki taraha samajhana. Isi prakara stanitakumara taka kahana chahie. Isi prakara vanavyantara tatha jyotishkadevom ke vishaya mem jana. Isi prakara saudharmakalpopannaka – vaimanikadevom se achyutakalpopannaka – vaimanikadevom graiveyakakalpatita – vaimanikadevom tatha anuttaropapatikakalpatita – vaimanikadevom ke vishaya mem bhi jana lena chahie. Bhagavan ! Vaikriyashariraprayogabamdha ka deshabamdha hai, athava sarvabamdha hai\? Gautama ! Vaha deshabamdha bhi hai, sarvabamdha bhi hai. Bhagavan ! Vayukayika – ekendriya – vaikriyashariraprayogabamdha kya deshabamdha hai athava sarvabamdha hai\? Gautama ! Purvavata. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi – nairayika – vaikriyashariraprayogabamdha deshabamdha hai ya sarvabamdha\? Gautama ! Purvavat. Isi prakara anuttaraupapatikakalpatita – vaimanika devom taka samajhana. Bhagavan ! Vaikriyashariraprayogabamdha, kalatah kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Isaka sarvabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah do samaya taka rahata hai aura dashabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah eka samaya kama tetisa sagaropama taka rahata hai. Bhagavan ! Vayukayika kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Isaka sarvabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah do samaya taka rahata he tatha deshabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah antamuhurta rahata hai. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvinairayika kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Isaka sarvabamdha eka samaya taka aura deshabamdha jaghanyatah tina samaya kama dasa hajara varsha tatha utkrishtatah eka samaya kama eka sagaropama taka rahata hai. Isi prakara adhahsaptamanarakaprithvi taka janana chahie, kintu itana vishesha hai ki jisaki jitani jaghanya sthiti ho, usamem tina samaya kama jaghanya deshabamdha tatha jisaki jitani utkrishta sthiti ho, usamem eka samaya kama utkrishta deshabamdha janana chahie. Panchendriya tiryanchayonika aura manushya ka kathana vayukayika ke samana janana chahie. Asurakumara, nagakumara se anuttaraupapatikadevom taka ka kathana nairayikom ke samana janana chahie. Parantu itana vishesha hai ki jisaki sthiti ho, utani kahani chahie tatha anuttaraupapatikadevom ka sarvabamdha eka samaya aura deshabamdha jaghanya tina samaya kama ikatisa sagaropama aura utkrishta eka samaya kama tetisa sagaropama taka hota hai. Bhagavan ! Vaikriyashariraprayogabamdha ka anta kalatah kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah anantakala hai – yavat – avalika ke asamkhyayatavem bhaga ke samayom ke barabara pudgalaparavartana rahata hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi jana lena chahie. Bhagavan ! Vayukayika – vaikriyasharira prayogabamdha samvadhi prichchha. Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanya antamuhurta aura utkrishta palyopama ka asamkhyatavam bhaga hota hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi jana lena. Bhagavan ! Tiryanchayonika – pamchendriya – vaikriyashariraprayogabamdha prichchha, gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanya antamuhurta aura utkrishta puvrikoti – prithakatva ka hota hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi jana lena chahie. Isi prakara manushya ke vishayamem bhi (purvavat) jana na. Bhagavan ! Vayukayika – avasthagata jiva vayukayika ke sivaya anya kaya mem utpanna ho kara punah vayukayika jivom mem utpanna ho to usake vayukayika – ekendriya – vaikriyashariraprayogabamdha ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Usake sarvabamdha ka antara jaghanyatah antamuhurta aura utkrishtatah anantakala – vanaspatikala taka hota hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi janana. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi ke nairayikarupa mem raha hua jiva, ratnaprabhaprithavi ke sivaya anya sthanom mem utpanna ho aura punah ratnaprabhaprithvi mem nairayikarupa se utpanna ho to usa ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Sarvabamdha ka antara jaghanya antamuhurta adhika dasa hajara varsha ka aura utkrishta anantakala – ka hota he. Deshabamdha ka antara jaghanyatah antamuhurta aura utkrishtatah anantakala – ka hota hai. Isi prakara adhahsaptama narakaprithvi taka janana. Vishesha itana hai ki sarvabamdha ka jaghanya antara jisa nairayika ki jitani jaghanya sthiti ho, usase antamuhurta adhika janana. Shesha purvavat. Pamchendriyatiryanchayonika jivom aura manushyom ke sarvabamdha ka antara vayukayika ke samana janana. Asurakumara, nagakumara sa sahastrara devom taka ke vaikriyashariraprayogabamdha ka antara ratnaprabhaprithvi – nairayikom ke samana janana. Vishesha itana he ka jisaki jo jaghanya sthiti ho, usake sarvabamdha ka antara, usase antamuhurta adhika janana. Shesha purvavat Bhagavan ! Anatadevaloka ke deva sambamdhi prichchha gautama ! Usake sarvabamdha ka antara jaghanya varsha – prithakattvaadhika atharaha sagaropama ka aura utkrishta anantakala ka, deshabamdha ke antara ka kala jaghanya varshaprithaktva aura utkrishtata anamtakala ka hota hai. Isi prakara achyuta devaloka taka ke vaikriya shariraprayogabamdha ka antara janana. Vishesha itana hi hai ki jisaki jitani jaghanya sthiti ho, sarvabamdhantara mem usase varshaprithaktva – adhika samajana. Shesha purvavat. Bhagavan ! Graiveyakakalpatita – vaikriyashariraprayogabamdha ka antara katane kala ka hota hai\? Gautama ! Jaghanyatah varshaprithaktva – adhika 22 sagaropama aura utkrishtatah anantakala –\. Deshabamdha ka antara jaghanyatah varshaprithaktva aura utkrishtatah vanaspatikala. Anuttaraupapatikadeva sambamdhi prashna. Gautama ! Usake sarvabamdha ka amtara jaghanyatah varshaprithaktva – adhika ikatisa sagaropama ka aura utkrishtatah samkhyata sagaropama ka hota hai. Deshabamdha ka amtara jaghanyatah varshaprithaktva ka aura utkrishtatah samkhyata sagaropama ka hota hai. Bhagavan ! Vaikriyasharira ke ina deshabamdhaka, sarvabamdhaka aura abamdhaka jivom mem kauna kinase yavat visheshadhika haim? Gautama ! Sabase thore vaikriyasharira ke sarvabamdhaka jiva haim, unase deshabamdhaka jiva asamkhyatagune haim aura unase abamdhaka jiva anantagune haim. Bhagavan ! Aharakashariraprayogabamdha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Eka prakara ka hai. Bhagavan ! Aharakasharira – prayogabamdha eka prakara ka hai, to vaha manushyom ke hota hai athava amanushyom ke\? Gautama ! Manushyom ke hota hai, amanushyom ke nahim hota. Isa prakara ‘avagahana – samsthana – pada’ mem kahe anusara yavat – riddhiprapta – pramattasamyata – samyagadrishti – paryapta – samkhyeyavarshayushkakarmabhumija – garbhaja – manushya ke aharakashariraprayogabamdha hota hai, parantu anriddhiprapta pramattasamyata – samyagdrishti – paryapta – samkhyatavarshayushka ke nahim hota hai. Bhagavan ! Aharakashariraprayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Saviryata, sayogata aura saddravyata, yavat (aharaka – ) labdhi ke nimitta se aharakashariraprayoganamakarma ke udaya se aharakashariraprayogabamdha hota hai. Bhagavan ! Aharakashariraprayogabamdha kya deshabamdha hota hai, athava sarvabamdha\? Gautama ! Vaha deshabamdha bhi hota hai, sarvabamdha bhi. Bhagavan ! Aharakashariraprayogabamdha, kalatah kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Sarvabamdha eka samaya taka, deshabamdha jaghanyatah antamuhurta aura utkrishtatah bhi antamuhurta taka. Bhagavan ! Aharakashariraprayogabamdha ka antara kitane kala ka hota hai? Gautama ! Jaghanyatah antamuhurta, utkrishtatah anantakala; kalatah ananta – utsarpini – avasarpinikala hota hai, kshetratah anantaloka deshona arddha pudgalaparavartana hota hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi janana. Bhagavan ! Aharakasharira ke ina deshabamdhaka, sarvabamdhaka aura abamdhaka jivom mem kauna kinase kama yavat visheshadhika haim\? Gautama ! Sabase thore aharakasharira ke sarvabamdhaka jiva haim, unase deshabamdhaka samkhyatagene haim aura unase abamdhaka jiva anantagune haim.