Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003924
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-८

Translated Chapter :

शतक-८

Section : उद्देशक-९ प्रयोगबंध Translated Section : उद्देशक-९ प्रयोगबंध
Sutra Number : 424 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं पयोगबंधे? पयोगबंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से अनादीए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं, तत्थ वि णं तिण्हं-तिण्हं अनादीए अपज्जवसिए, सेसाणं सादीए। तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पयोगबंधे। से किं तं आलावणबंधे? आलावणबंधे–जण्णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेत्तलता-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दब्भमादीएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं आलावणबंधे। से किं तं अल्लियावणबंधे? अल्लियावणबंधे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–लेसणाबंधे, उच्चयबंधे, समुच्चयबंधे, साहणणाबंधे। से किं तं लेसणाबंधे? लेसणाबंधे–जण्णं कुड्डाणं, कोट्टिमाणं, खंभाणं, पासायाणं, कट्ठाणं, चम्माणं, घडाणं, पडाणं, कडाणं छुहा-चिक्खल्ल-सिलेस-लक्ख-महुसित्थमाईएहिं लेसणएहिं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं लेसणाबंधे। से किं तं उच्चयबंधे? उच्चयबंधे–जण्णं तणरासीण वा, कट्ठरासीण वा, पत्तरासीण वा, तुसरासीण वा, भुसरा-सीण वा गोमयरासीण वा, अवगररासीण वा, उच्चत्तेणं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं उच्चयबंधे। से किं तं समुच्चयबंधे? समुच्चयबंधे– जण्णं अगड-तडाग-नदी-दह-वावी-पुक्खरिणी-दीहियाणं गुंजालियाणं, सराणं, सरपंतियाणं, सरसरपंतियाणं, बिलपंतियाणं देवकुल-सभ-प्पवथूभ-खाइयाणं, फरिहाणं, पागारट्टा-लग-चरिय-दार-गोपुर-तोरणाणं, पासाय-घर-सरण-लेण-आवणाणं, सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहमादीणं, छुहा-चिक्खल्ल-सिला-समुच्चएणं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं समुच्चयबंधे। से किं तं साहणणाबंधे? साहणणाबंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–देससाहणणाबंधे य, सव्वसाहणणाबंधे य। से किं तं देससाहणणाबंधे? देससाहणणाबंधे– जण्णं सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणी-लोही-लोहकडाह-कडच्छुय-आसन-सयन-खंभ -भंडमत्तोवगरणमादीणं देससाहणणाबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। सेत्तं देससाहणणाबंधे। से किं तं सव्वसाहणणाबंधे? सव्वसाहणणाबंधे–से णं खीरोदगमाईणं। सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे। सेत्तं साहणणाबंधे। सेत्तं अल्लियावणबंधे। से किं तं सरीरबंधे? सरीरबंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पुव्वपयोगपच्चइए य, पडुप्पन्नपयोगपच्चइए य। से किं तं पुव्वपयोगपच्चइए? पुव्वपयोगपच्चइए–जण्णं नेरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं तत्थ-तत्थ तेसु-तेसु कारणेसु समोहण्णमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पज्जइ। सेत्तं पुव्वपयोगपच्चइए। से किं तं पडुप्पन्नपयोगपच्चइए? पडुप्पन्नपयोगपच्चइए–जण्णं केवलनाणिस्स अनगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स ताओ समुग्घायाओ पडिनियत्तमाणस्स अंतरा मंथे वट्टमाणस्स तेयाकम्माणं बंधे समुप्पज्जइ। किं कारणं? ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंति। सेत्तं पडुप्पन्नपयोगपच्चइए। सेत्तं सरीरबंधे। से किं तं सरीरप्पयोगबंधे? सरीरप्पयोगबंधे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालियसरीरप्पयोगबंधे, वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधे, आहारगसरीरप्पयोगबंधे, तेयासरीरप्पयोगबंधे, कम्मासरीरप्पयोगबंधे। ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा– एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, बेइंदियओरालियसरीर-प्पयोगबंधे जाव पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे। एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे, एवं एएणं अभिलावेण भेदो जहा ओगाह-णसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तागब्भ-वक्कंतियमनुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे य, अप्पज्जत्तागब्भवक्कंतियमनुस्स पंचिंदिय-ओरालियसरीरप्पयोगबंधे य। ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पयोगनामकम्मस्स उदएणं ओरालियसरीरप्पयोगबंधे। एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव। पुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे एवं चेव, एवं जाव वणस्सइकाइया। एवं बेइंदिया, एवं तेइंदिया, एवं चउरिंदिया। तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव। मनुस्स पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च मनुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगनामकम्मस्स उदएणं मनुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोग बंधे। ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? गोयमा! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? एवं चेव। एवं पुढविक्काइया एवं जाव– मनुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे? गोयमा! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं। एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। पुढविक्काइयएगिंदियपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं सव्वबंधो एक्कं समयं, देसबंधो जेसिं नत्थि वेउव्वियसरीरं तेसिं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं जा सा ठिती सा समयूणा कायव्वा, जेसिं पुण अत्थि वेउव्वियसरीरं तेसिं देसबंधो जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा कायव्वा जाव मनुस्साणं देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं। ओरालियसरीरबंधतरं णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडिसमयाहियाइं। देसबं-धंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं तिसमयाहियाइं। एगिंदियओरालियपुच्छा। गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयाहियाइं। देसबंधंतरं जह-ण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। पुढविक्काइयएगिंदियपुच्छा। सव्वबंधंतरं जहेव एगिंदियस्स तहेव भाणियव्वं। देसबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्नि समया। जहा पुढविक्काइयाणं एवं जाव चउरिंदियाणं वाउक्काइयवज्जाणं, नवरं–सव्वबंधंतरं उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयाहिया कायव्वा। वाउक्का-इयाणं सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं तिन्नि वाससहस्साइं समयाहियाइं। देसबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियओरालियपुच्छा। सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी समयाहिया। देसबंधंतरं जहा एगिंदियाणं तहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, एवं मनुस्साण वि निरवसेसं भाणियव्वं जाव उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। जीवस्स णं भंते! एगिंदियत्ते, नोएगिंदियत्ते, पुनरवि एगिंदियत्ते एगिंदिय-ओरालियसरीर-प्पयोगबंधंतरं कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाइं तिसमयूणाइं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं देसबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं। जीवस्स णं भंते! पुढविक्काइयत्ते, नोपुढविक्काइयत्ते, पुनरवि पुढविक्काइयत्ते पुढविक्काइय-एगिंदियओरालियसरीर-प्पयोगबंधंतरं कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाइं तिसमयूणाइं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गल-परियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। देसबं-धंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जइभागो। जहा पुढविक्काइयाणं एवं वणस्सइकाइयवज्जाणं जाव मनुस्साणं। वणस्सइकाइयाणं दोन्निखुड्डाइं एवं चेव, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा, एवं देसबंधंतरं पि उक्कोसेणं पुढविकालो। एएसि णं भंते! जीवाणं ओरालियसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा, अबंधगा विसेसाहिया, देसबंधगा असंखेज्जगुणा।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार – अनादिअपर्यवसित, सादि – अपर्यवसित अथाव सादि सपर्यवसित। इनमें से जो अनादि – अपर्यवसित है, जह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन – तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादि – अपर्यवसित बंध है। शेष सभी प्रदेशो का सादि बंध है। इन तीनो में से जो सादि – अपर्यवसित बंध है, वह सिद्धों का होता है तथा इनमें से जो सादि – सपर्यवसित बंध है, वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा आलापनबंध, आल्लिकापन बंध, शरीरबंध और शरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! आलापनबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! तृण के भार, काष्ठ के भार, पत्तो के भार, पलाल के भार और बेल के भार, इन भारों को बेंत की लता, छाल, वस्त्रा, रज्जु, बेल, कुश और डाभ आदि से बांधने से आलापनबंध समुत्पन्न होता है। यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त तक और उत्कृष्टः संख्येय काल तक रहता है। भगवन् ! (आलीन) बंध किसे कहते है ? गौतम ! आलीनबंध चार प्रकार का है, – श्लेषणाबंध, उच्चयबंध, समुच्चयबंध और संहननबंध। भगवन् ! श्लेषणाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! – जो भित्तियों का, आंगन के फर्श का, स्तम्भों का, प्रसादों का, काष्ठों का, चर्मों का, घड़ों का, वस्त्रों का और चटाइयों का चूना, कीचड़ श्लेष लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बंध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबंध है। यह बंध जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल रहता है। भगवन् ! उच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! तृणरशिक, काष्ठराशि, पत्रराशि, तृषराशि, भूसे का ढेर, गोबर का ढेर अथवा कूड़े – कचरे का ढेर, इन का र्ऊंचे ढेर रूप से जो बंध सम्पन्न होता है, उसे उच्चयबंध कहते हैं। यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है। भगवन् ! समुच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! कुआ, तालाब, नदी, द्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बड़े सरोवरों की पंक्ति, बिलों की पंक्ति, देवकुल, सभा, प्रपा स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार अट्टालक, चरक, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रसाद, घर, शरणस्थान, लयन, आपण, श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वरमार्ग, चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग आदि का चूना, मिट्टी, कीचड़ एवं श्लेष के द्वारा समुच्चयरूप से जो बंध होता है, उसे समुच्चयबंध कहते हैं। उसकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयकाल की है। भगवन् ! संहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम संहननबंध दो प्रकार का है, – देशसंहननबंध और सर्वसंहननबंध। भगवन् ! देशसंहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! शकट, रथ, यान, युग्य वाहन, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यन्दमानी, लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी, आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, पात्र नाना उपकरण आदि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध सम्पन्न होता है, वह देशसंहननबंध है। वह जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्येय काल तक रहता है। भगवन् ! सर्वसंहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! दूध और पानी आदि की तरह एकमेक हो जाना सर्वसंहननबंध कहलाता हे। भगवन् ! शरीरबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! शरीरबंध दो प्रकार का है, पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक और प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्यरिक। भगवन् ! पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! जहाँ – जहाँ जिन – जिन कारणों ने समुद्घात करते हुए नैरयिक जीवों और संसारस्थ सर्वजीवों के जीवप्रदेशों का जो बंध सम्पन्न होता है, वह पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध है। यह है पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध। भगवन् ! प्रत्युपन्नप्रयोगप्रत्ययिक किसे कहते हैं ? गौतम ! केवलीसमुद्घात द्वारा समुद्घात करते हुए और उस समुद्घात से प्रतिनिवृत्त होते हुए बीच के मार्ग में रहे हुए केवलज्ञानी अनगार के तैजस और कार्मण शरीर का जो बंध सम्पन्न होता है, वह प्रत्युपन्नप्रयोगप्रत्ययिकबंध हैं। (प्र.) (तैजस और कार्मण शरीर के बंध का) क्या कारण है ? (उ.) उस समय प्रदेश एकत्रीकृत होते हैं, जिससे यह बंध होता है। भगवन् ! शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – औदारिकशरीरप्रयोगबंध, वैक्रिय – शरीरप्रयोगबंघ, आहारकशरीरप्रयोगबंध, तैजसशरीरप्रयोगबंध और कर्मणशरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! औदारिक – शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीरप्रयोगबंध यावत् पचेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोग। भगवन् ! एकेन्द्रिय – औदारिक – शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबन्ध इत्यादि। इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के ‘अवगाहना – संस्थान – पद’ अनुसार औदारिकशरीर के भेद यहाँ भी अपर्याप्त गर्भजमनुष्य – पंचेन्द्रिय – औदारिकशरीर प्रयोगबंध’ तक कहना भगवन् ! औदारिकशरीर – प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, संयोगता और सद्द्रव्यता से, प्रमाद के कारण, कर्म, योग, भव और आयुष्य आदि हेतुओं की अपेक्षा से औदारिकशरीर – प्रयोगनामकर्म के उदय से होता है, भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिकशरीर – प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! पूर्ववत् यहाँ भी जानना। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध वनस्पतिकायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध यावत् चतुरिन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध कहना। भगवन् ! तिर्यञ्च – पंचेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! पूर्ववत् जानाना। भगवन् ! मनुष्य – पंचेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्द्रव्यता से तथा प्रमाद के कारण यावत् आयुष्य की अपेक्षा से एवं मनुष्य – पंचेन्द्रिय – औदारिकशरीर – नामकर्म के उदय से होता है भगवन् ! ओदारिकशरीर – प्रयोगबंध क्या देशबंध या सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध भी है और सर्वबंध भी है। भगवन् ! एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध क्या देशबंध है या सर्वबंध है ? गौतम ! दोनो। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध के विषय में समझना। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध के विषय में समझना। इसी प्रकार यावत् भगवन् ! मनुष्य – पंचेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध क्या देशबंध है या सर्वबंध है ? गौतम ! यह देशबंध भी है और सर्वबंध भी है। भगवन् ! औदारिकशरीर – प्रयोगबंध काल की अपेक्षा, कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक रहता है। भगवन् ! एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम २२ हजार वर्ष तक रहता हे। भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहण तथा उत्कृष्टतः एक समय कम २२ हजार वर्ष तक रहता है। इस प्रकार सभी जीवों का सर्वबंध एक समय तक रहता है। जिनके वैक्रियशरीर नहीं है, उनका देशबंध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभवग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टतः जिस जीव की जितनी उत्कृष्टतः आयुष्य – स्थिति है, उससे एक समय कम तक रहता है। जिनके वैक्रियशरीर है, उनके देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः जिसकी जितनी (आयुष्य) स्थिति है, उसमें से एक समय कम तक रहता है। इस प्रकार यावत् मनुष्यों का देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक जानना चाहिए। भगवन् ! औदारिकशरीर के बंध का अन्तर कतने काल का होता है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव – ग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि तथा तेतीस सागरोपम है। देशबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है। भगवन् ! एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – बंध का अन्तर काल कितने का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय काम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्टतः एक समय अधिक बाईस हजार वर्ष है। देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त का है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने काल का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर एकेन्द्रिय समान कहना चाहिए। देशबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः तीन समय का है। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों का शरीरबंधान्तर कहा गया है, उसी प्रकार वायुकायिका जीवों को छोड़ कर चतुरिन्द्रिय तक सभी जीबों का शरीरबंधान्तर कहना, किन्तु विशेषतः उत्कृष्ट सर्वबंधान्तर जिस जीव की जितनी स्थिति हो, उससे एक समय अधिक कहना। वायुकायिका जीवों के सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव – ग्रहण और उत्कृष्टतः समयाधिक तीन हजार वर्ष का है। इनके देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त का है। भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय – तिर्यञ्चयोनिक – औदारिकशरीरबंध का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव – ग्रहण है और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि का है। देशबंध का अन्तर एकेन्द्रिय जीवों के समान सभ पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का कहना। इसी प्रकार मनुष्यों के शरीरबंधान्तर के विषय में भी पूर्ववत् ‘उत्कृष्टतः अन्तमुहूर्त का है’ यहां तक सारा कथन करना। भगवन् ! एकेन्द्रियावस्थागत जीव नोएकेन्द्रियावस्था में रह कर पुनः एकेन्द्रियरूप में आए तो एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर – प्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता हे ? गौतम ! (ऐसे जीव का) सर्वबंधान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लक भवग्रहण काल और उत्कृष्टतः संख्यातवर्ष – अधिक दो हजार सागरोपम का होता है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक – अवस्थागत जीव नोपृथ्वीकायिका – अवस्था में उत्पन्न हो, पुनःपृथ्वीकायिकरूप में आए, तो पृथ्वीकायिक – एकेन्द्रियऔदारिकशरीर – प्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! सूर्यबंधान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लकभव ग्रहण काल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल होता है। कालतः अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल है, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्येय पुद्गलपरावर्तन हैं। वे पुद्गलपरावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भाग – प्रमाण हैं। देशबंध का अन्तर जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहणकाल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल, यावत् ‘आवलिका के असंख्यातवें भाग – प्रमाण पुद्गलपरावर्तन है’; पृथ्वीकायिक जीवों के प्रयोग – बंधान्तर समान वनस्पतिकायिक जीवों को छोड़कर यावत् मनुष्यों के प्रयोगबंधान्तर तक समझना। वनस्पति – कायिक जीवों के सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः काल की अपेक्षा से तीन समय कम दो क्षुल्लकभगवग्रहण काल और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल है, अथवा असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी है, क्षेत्रतः असंख्येय लोक है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभवग्राहण का है और उत्कृष्टतः पृथ्वीकायिक स्थितिकाल है। भगवन् ! औदारिक शरीर के इन देशबंधक सर्वबंधक और अबंधक जीवों मे कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं उनसे अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे देशबंधक जीव असंख्यात गुणे हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam payogabamdhe? Payogabamdhe tivihe pannatte, tam jaha–anadie va apajjavasie, sadie va apajjavasie, sadie va sapajjavasie. Tattha nam je se anadie apajjavasie se nam atthanham jivamajjhapaesanam, tattha vi nam tinham-tinham anadie apajjavasie, sesanam sadie. Tattha nam je se sadie apajjavasie se nam siddhanam. Tattha nam je se sadie sapajjavasie se nam chauvvihe pannatte, tam jaha–alavanabamdhe, alliyavanabamdhe, sarirabamdhe, sarirappayogabamdhe. Se kim tam alavanabamdhe? Alavanabamdhe–jannam tanabharana va, katthabharana va, pattabharana va, palalabharana va, vettalata-vaga-varatta-rajju-valli-kusa-dabbhamadiehim alavanabamdhe samuppajjai, jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Settam alavanabamdhe. Se kim tam alliyavanabamdhe? Alliyavanabamdhe chauvvihe pannatte, tam jaha–lesanabamdhe, uchchayabamdhe, samuchchayabamdhe, sahananabamdhe. Se kim tam lesanabamdhe? Lesanabamdhe–jannam kuddanam, kottimanam, khambhanam, pasayanam, katthanam, chammanam, ghadanam, padanam, kadanam chhuha-chikkhalla-silesa-lakkha-mahusitthamaiehim lesanaehim bamdhe samuppajjai, jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Settam lesanabamdhe. Se kim tam uchchayabamdhe? Uchchayabamdhe–jannam tanarasina va, kattharasina va, pattarasina va, tusarasina va, bhusara-sina va gomayarasina va, avagararasina va, uchchattenam bamdhe samuppajjai, jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Settam uchchayabamdhe. Se kim tam samuchchayabamdhe? Samuchchayabamdhe– jannam agada-tadaga-nadi-daha-vavi-pukkharini-dihiyanam gumjaliyanam, saranam, sarapamtiyanam, sarasarapamtiyanam, bilapamtiyanam devakula-sabha-ppavathubha-khaiyanam, pharihanam, pagaratta-laga-chariya-dara-gopura-torananam, pasaya-ghara-sarana-lena-avananam, simghadaga-tiya-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahamadinam, chhuha-chikkhalla-sila-samuchchaenam bamdhe samuppajai, jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Settam samuchchayabamdhe. Se kim tam sahananabamdhe? Sahananabamdhe duvihe pannatte, tam jaha–desasahananabamdhe ya, savvasahananabamdhe ya. Se kim tam desasahananabamdhe? Desasahananabamdhe– jannam sagada-raha-jana-jugga-gilli-thilli-siya-samdamani-lohi-lohakadaha-kadachchhuya-asana-sayana-khambha -bhamdamattovagaranamadinam desasahananabamdhe samuppajjai, jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Settam desasahananabamdhe. Se kim tam savvasahananabamdhe? Savvasahananabamdhe–se nam khirodagamainam. Settam savvasahananabamdhe. Settam sahananabamdhe. Settam alliyavanabamdhe. Se kim tam sarirabamdhe? Sarirabamdhe duvihe pannatte, tam jaha–puvvapayogapachchaie ya, paduppannapayogapachchaie ya. Se kim tam puvvapayogapachchaie? Puvvapayogapachchaie–jannam neraiyanam samsaratthanam savvajivanam tattha-tattha tesu-tesu karanesu samohannamananam jivappadesanam bamdhe samuppajjai. Settam puvvapayogapachchaie. Se kim tam paduppannapayogapachchaie? Paduppannapayogapachchaie–jannam kevalananissa anagarassa kevalisamugghaenam samohayassa tao samugghayao padiniyattamanassa amtara mamthe vattamanassa teyakammanam bamdhe samuppajjai. Kim karanam? Tahe se paesa egattigaya bhavamti. Settam paduppannapayogapachchaie. Settam sarirabamdhe. Se kim tam sarirappayogabamdhe? Sarirappayogabamdhe pamchavihe pannatte, tam jaha–oraliyasarirappayogabamdhe, veuvviyasarirappayoga bamdhe, aharagasarirappayogabamdhe, teyasarirappayogabamdhe, kammasarirappayogabamdhe. Oraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Pamchavihe pannatte, tam jaha– egimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe, beimdiyaoraliyasarira-ppayogabamdhe java pamchimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe. Egimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Pamchavihe pannatte, tam jaha–pudhavikkaiyaegimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe, evam eenam abhilavena bhedo jaha ogaha-nasamthane oraliyasarirassa taha bhaniyavvo java pajjattagabbha-vakkamtiyamanussapamchimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe ya, appajjattagabbhavakkamtiyamanussa pamchimdiya-oraliyasarirappayogabamdhe ya. Oraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae pamadapachchaya kammam cha jogam cha bhavam cha auyam cha paduchcha oraliyasarirappayoganamakammassa udaenam oraliyasarirappayogabamdhe. Egimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Evam cheva. Pudhavikkaiyaegimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe evam cheva, evam java vanassaikaiya. Evam beimdiya, evam teimdiya, evam chaurimdiya. Tirikkhajoniyapamchimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Evam cheva. Manussa pamchimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kassa kammassa udaenam? Goyama! Viriya-sajoga-saddavvayae pamadapachchaya kammam cha jogam cha bhavam cha auyam cha paduchcha manussapamchimdiyaoraliyasarirappayoganamakammassa udaenam manussapamchimdiyaoraliyasarirappayoga bamdhe. Oraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kim desabamdhe? Savvabamdhe? Goyama! Desabamdhe vi, savvabamdhe vi. Egimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kim desabamdhe? Savvabamdhe? Evam cheva. Evam pudhavikkaiya evam java– Manussapamchimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kim desabamdhe? Savvabamdhe? Goyama! Desabamdhe vi, savvabamdhe vi. Oraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tinni paliovamaim samayunaim. Egimdiyaoraliyasarirappayogabamdhe nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam bavisam vasasahassaim samayunaim. Pudhavikkaiyaegimdiyapuchchha. Goyama! Savvabamdhe ekkam samayam, desabamdhe jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam bavisam vasasahassaim samayunaim. Evam savvesim savvabamdho ekkam samayam, desabamdho jesim natthi veuvviyasariram tesim jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam ja sa thiti sa samayuna kayavva, jesim puna atthi veuvviyasariram tesim desabamdho jahannenam ekkam samayam, ukkosenam ja jassa thiti sa samayuna kayavva java manussanam desabamdhe jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tinni paliovamaim samayunaim. Oraliyasarirabamdhataram nam bhamte! Kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam tettisam sagarovamaim puvvakodisamayahiyaim. Desabam-dhamtaram jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tettisam sagarovamaim tisamayahiyaim. Egimdiyaoraliyapuchchha. Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam bavisam vasasahassaim samayahiyaim. Desabamdhamtaram jaha-nnenam ekkam samayam, ukkosenam amtomuhuttam. Pudhavikkaiyaegimdiyapuchchha. Savvabamdhamtaram jaheva egimdiyassa taheva bhaniyavvam. Desabamdhamtaram jahannenam ekkam samayam, ukkosenam tinni samaya. Jaha pudhavikkaiyanam evam java chaurimdiyanam vaukkaiyavajjanam, navaram–savvabamdhamtaram ukkosenam ja jassa thiti sa samayahiya kayavva. Vaukka-iyanam savvabamdhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam tinni vasasahassaim samayahiyaim. Desabamdhamtaram jahannenam ekkam samayam, ukkosenam amtomuhuttam. Pamchimdiyatirikkhajoniyaoraliyapuchchha. Savvabamdhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam tisamayunam, ukkosenam puvvakodi samayahiya. Desabamdhamtaram jaha egimdiyanam taha pamchimdiyatirikkhajoniyanam, evam manussana vi niravasesam bhaniyavvam java ukkosenam amtomuhuttam. Jivassa nam bhamte! Egimdiyatte, noegimdiyatte, punaravi egimdiyatte egimdiya-oraliyasarira-ppayogabamdhamtaram kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam do khuddaim bhavaggahanaim tisamayunaim, ukkosenam do sagarovamasahassaim samkhejjavasamabbhahiyaim desabamdhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam samayahiyam, ukkosenam do sagarovamasahassaim samkhejjavasamabbhahiyaim. Jivassa nam bhamte! Pudhavikkaiyatte, nopudhavikkaiyatte, punaravi pudhavikkaiyatte pudhavikkaiya-egimdiyaoraliyasarira-ppayogabamdhamtaram kalao kevachchiram hoi? Goyama! Savvabamdhamtaram jahannenam do khuddaim bhavaggahanaim tisamayunaim, ukkosenam anamtam kalam–anamtao osappinio ussappinio kalao, khettao anamta loga–asamkhejja poggala-pariyatta, te nam poggalapariyatta avaliyae asamkhejjaibhago. Desabam-dhamtaram jahannenam khuddagam bhavaggahanam samayahiyam, ukkosenam anamtam kalam java avaliyae asamkhejjaibhago. Jaha pudhavikkaiyanam evam vanassaikaiyavajjanam java manussanam. Vanassaikaiyanam donnikhuddaim evam cheva, ukkosenam asamkhejjam kalam–asamkhejjao osappinio ussappinio kalao, khettao asamkhejja loga, evam desabamdhamtaram pi ukkosenam pudhavikalo. Eesi nam bhamte! Jivanam oraliyasarirassa desabamdhaganam, savvabamdhaganam, abamdhagana ya kayare kayarehimto appa va? Bahuya va? Tulla va? Visesahiya va? Goyama! Savvatthova jiva oraliyasarirassa savvabamdhaga, abamdhaga visesahiya, desabamdhaga asamkhejjaguna.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Prayogabamdha kisa prakara ka hai\? Gautama ! Prayogabamdha tina prakara ka kaha gaya hai. Vaha isa prakara – anadiaparyavasita, sadi – aparyavasita athava sadi saparyavasita. Inamem se jo anadi – aparyavasita hai, jaha jiva ke atha madhyapradeshom ka hota hai. Una atha pradeshom mem bhi tina – tina pradeshom ka jo bamdha hota hai, vaha anadi – aparyavasita bamdha hai. Shesha sabhi pradesho ka sadi bamdha hai. Ina tino mem se jo sadi – aparyavasita bamdha hai, vaha siddhom ka hota hai tatha inamem se jo sadi – saparyavasita bamdha hai, vaha chara prakara ka kaha gaya hai, yatha alapanabamdha, allikapana bamdha, sharirabamdha aura shariraprayogabamdha. Bhagavan ! Alapanabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Trina ke bhara, kashtha ke bhara, patto ke bhara, palala ke bhara aura bela ke bhara, ina bharom ko bemta ki lata, chhala, vastra, rajju, bela, kusha aura dabha adi se bamdhane se alapanabamdha samutpanna hota hai. Yaha bamdha jaghanyatah antamuhurta taka aura utkrishtah samkhyeya kala taka rahata hai. Bhagavan ! (alina) bamdha kise kahate hai\? Gautama ! Alinabamdha chara prakara ka hai, – shleshanabamdha, uchchayabamdha, samuchchayabamdha aura samhananabamdha. Bhagavan ! Shleshanabamdha kise kahate haim\? Gautama ! – jo bhittiyom ka, amgana ke pharsha ka, stambhom ka, prasadom ka, kashthom ka, charmom ka, gharom ka, vastrom ka aura chataiyom ka chuna, kichara shlesha lakha, moma adi shleshana dravyom se bamdha sampanna hota hai, vaha shleshanabamdha hai. Yaha bamdha jaghanya antamuhurta aura utkrishta samkhyatakala rahata hai. Bhagavan ! Uchchayabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Trinarashika, kashtharashi, patrarashi, trisharashi, bhuse ka dhera, gobara ka dhera athava kure – kachare ka dhera, ina ka rumche dhera rupa se jo bamdha sampanna hota hai, use uchchayabamdha kahate haim. Yaha bamdha jaghanyatah antamuhurta aura utkrishtatah samkhyatakala taka rahata hai. Bhagavan ! Samuchchayabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Kua, talaba, nadi, draha, vapi, pushkarini, dirghika, gumjalika, sarovara, sarovarom ki pamkti, bare sarovarom ki pamkti, bilom ki pamkti, devakula, sabha, prapa stupa, khai, parikha, prakara attalaka, charaka, dvara, gopura, torana, prasada, ghara, sharanasthana, layana, apana, shrrimgataka, trika, chatushka, chatvaramarga, chaturmukha marga aura rajamarga adi ka chuna, mitti, kichara evam shlesha ke dvara samuchchayarupa se jo bamdha hota hai, use samuchchayabamdha kahate haim. Usaki sthiti jaghanya antamuhurta aura utkrishta samkhyeyakala ki hai. Bhagavan ! Samhananabamdha kise kahate haim\? Gautama samhananabamdha do prakara ka hai, – deshasamhananabamdha aura sarvasamhananabamdha. Bhagavan ! Deshasamhananabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Shakata, ratha, yana, yugya vahana, gilli, thilli, shibika, syandamani, lorhi, lohe ki karahi, kurachhi, asana, shayana, stambha, bhanda, patra nana upakarana adi padarthom ke satha jo sambandha sampanna hota hai, vaha deshasamhananabamdha hai. Vaha jaghanyatah antamuhurta aura utkrishtatah samkhyeya kala taka rahata hai. Bhagavan ! Sarvasamhananabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Dudha aura pani adi ki taraha ekameka ho jana sarvasamhananabamdha kahalata he. Bhagavan ! Sharirabamdha kisa prakara ka hai\? Gautama ! Sharirabamdha do prakara ka hai, purvaprayogapratyayika aura pratyutpannaprayogapratyarika. Bhagavan ! Purvaprayogapratyayikabamdha kise kahate haim\? Gautama ! Jaham – jaham jina – jina karanom ne samudghata karate hue nairayika jivom aura samsarastha sarvajivom ke jivapradeshom ka jo bamdha sampanna hota hai, vaha purvaprayogapratyayikabamdha hai. Yaha hai purvaprayogapratyayikabamdha. Bhagavan ! Pratyupannaprayogapratyayika kise kahate haim\? Gautama ! Kevalisamudghata dvara samudghata karate hue aura usa samudghata se pratinivritta hote hue bicha ke marga mem rahe hue kevalajnyani anagara ke taijasa aura karmana sharira ka jo bamdha sampanna hota hai, vaha pratyupannaprayogapratyayikabamdha haim. (pra.) (taijasa aura karmana sharira ke bamdha ka) kya karana hai\? (u.) usa samaya pradesha ekatrikrita hote haim, jisase yaha bamdha hota hai. Bhagavan ! Shariraprayogabamdha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka – audarikashariraprayogabamdha, vaikriya – shariraprayogabamgha, aharakashariraprayogabamdha, taijasashariraprayogabamdha aura karmanashariraprayogabamdha. Bhagavan ! Audarika – shariraprayogabamdha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka – ekendriya – audarikashariraprayogabamdha yavat pachendriya – audarikasharira – prayoga. Bhagavan ! Ekendriya – audarika – shariraprayogabamdha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka – prithvikayika – ekendriya – audarikasharira – prayogabandha ityadi. Isa prakara prajnyapanasutra ke ‘avagahana – samsthana – pada’ anusara audarikasharira ke bheda yaham bhi aparyapta garbhajamanushya – pamchendriya – audarikasharira prayogabamdha’ taka kahana Bhagavan ! Audarikasharira – prayogabandha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Saviryata, samyogata aura saddravyata se, pramada ke karana, karma, yoga, bhava aura ayushya adi hetuom ki apeksha se audarikasharira – prayoganamakarma ke udaya se hota hai, bhagavan ! Ekendriya audarikasharira – prayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Purvavat yaham bhi janana. Isi prakara prithvikayika – ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha vanaspatikayika – ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha yavat chaturindriya – audarikasharira – prayogabamdha kahana. Bhagavan ! Tiryancha – pamchendriya – audarikasharira – prayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Purvavat janana. Bhagavan ! Manushya – pamchendriya – audarikasharira – prayogabamdha kisa karma ke udaya se hota hai\? Gautama ! Saviryata, sayogata aura saddravyata se tatha pramada ke karana yavat ayushya ki apeksha se evam manushya – pamchendriya – audarikasharira – namakarma ke udaya se hota hai Bhagavan ! Odarikasharira – prayogabamdha kya deshabamdha ya sarvabamdha hai\? Gautama ! Vaha deshabamdha bhi hai aura sarvabamdha bhi hai. Bhagavan ! Ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha kya deshabamdha hai ya sarvabamdha hai\? Gautama ! Dono. Isi prakara prithvikayika – ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha ke vishaya mem samajhana. Isi prakara prithvikayika – ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha ke vishaya mem samajhana. Isi prakara yavat bhagavan ! Manushya – pamchendriya – audarikasharira – prayogabamdha kya deshabamdha hai ya sarvabamdha hai\? Gautama ! Yaha deshabamdha bhi hai aura sarvabamdha bhi hai. Bhagavan ! Audarikasharira – prayogabamdha kala ki apeksha, kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Sarvabamdha eka samaya taka rahata hai aura deshabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah eka samaya kama tina palyopama taka rahata hai. Bhagavan ! Ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha kalatah kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Sarvabamdha eka samaya taka rahata hai aura deshabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah eka samaya kama 22 hajara varsha taka rahata he. Bhagavan ! Prithvikayika kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Sarvabamdha eka samaya taka rahata hai aura deshabamdha jaghanyatah tina samaya kama kshullaka bhavagrahana tatha utkrishtatah eka samaya kama 22 hajara varsha taka rahata hai. Isa prakara sabhi jivom ka sarvabamdha eka samaya taka rahata hai. Jinake vaikriyasharira nahim hai, unaka deshabamdha jaghanyatah tina samaya kama kshullakabhavagrahana paryanta aura utkrishtatah jisa jiva ki jitani utkrishtatah ayushya – sthiti hai, usase eka samaya kama taka rahata hai. Jinake vaikriyasharira hai, unake deshabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah jisaki jitani (ayushya) sthiti hai, usamem se eka samaya kama taka rahata hai. Isa prakara yavat manushyom ka deshabamdha jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah eka samaya kama tina palyopama taka janana chahie. Bhagavan ! Audarikasharira ke bamdha ka antara katane kala ka hota hai\? Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanyatah tina samaya kama kshullakabhava – grahana paryanta aura utkrishtatah samayadhika purvakoti tatha tetisa sagaropama hai. Deshabamdha ka antara jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah tina samaya adhika tetisa sagaropama hai. Bhagavan ! Ekendriya – audarikasharira – bamdha ka antara kala kitane ka hai\? Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanyatah tina samaya kama kshullakabhavagrahana aura utkrishtatah eka samaya adhika baisa hajara varsha hai. Deshabamdha ka antara jaghanya eka samaya ka aura utkrishta antamuhurta ka hai. Bhagavan ! Prithvikayika kitane kala ka hai\? Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara ekendriya samana kahana chahie. Deshabamdha ka antara jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah tina samaya ka hai. Jisa prakara prithvikayika jivom ka sharirabamdhantara kaha gaya hai, usi prakara vayukayika jivom ko chhora kara chaturindriya taka sabhi jibom ka sharirabamdhantara kahana, kintu visheshatah utkrishta sarvabamdhantara jisa jiva ki jitani sthiti ho, usase eka samaya adhika kahana. Vayukayika jivom ke sarvabamdha ka antara jaghanyatah tina samaya kama kshullakabhava – grahana aura utkrishtatah samayadhika tina hajara varsha ka hai. Inake deshabamdha ka antara jaghanya eka samaya ka aura utkrishta antamuhurta ka hai. Bhagavan ! Panchendriya – tiryanchayonika – audarikasharirabamdha ka antara kitane kala ka hai\? Gautama ! Isake sarvabamdha ka antara jaghanyatah tina samaya kama kshullakabhava – grahana hai aura utkrishtatah samayadhika purvakoti ka hai. Deshabamdha ka antara ekendriya jivom ke samana sabha pamchendriyatiryanchayonikom ka kahana. Isi prakara manushyom ke sharirabamdhantara ke vishaya mem bhi purvavat ‘utkrishtatah antamuhurta ka hai’ yaham taka sara kathana karana. Bhagavan ! Ekendriyavasthagata jiva noekendriyavastha mem raha kara punah ekendriyarupa mem ae to ekendriya – audarikasharira – prayogabamdha ka antara kitane kala ka hota he\? Gautama ! (aise jiva ka) sarvabamdhantara jaghanyatah tina samaya kama do kshullaka bhavagrahana kala aura utkrishtatah samkhyatavarsha – adhika do hajara sagaropama ka hota hai. Bhagavan ! Prithvikayika – avasthagata jiva noprithvikayika – avastha mem utpanna ho, punahprithvikayikarupa mem ae, to prithvikayika – ekendriyaaudarikasharira – prayogabamdha ka antara kitane kala ka hota hai\? Gautama ! Suryabamdhantara jaghanyatah tina samaya kama do kshullakabhava grahana kala aura utkrishtatah anantakala hota hai. Kalatah ananta utsarpini avasarpini kala hai, kshetratah ananta loka, asamkhyeya pudgala – paravartana haim. Ve pudgala – paravartana avalika ke asamkhyatavem bhaga – pramana haim. Deshabamdha ka antara jaghanyatah samayadhika kshullakabhavagrahanakala aura utkrishtatah anantakala, yavat ‘avalika ke asamkhyatavem bhaga – pramana pudgala – paravartana hai’; prithvikayika jivom ke prayoga – bamdhantara samana vanaspatikayika jivom ko chhorakara yavat manushyom ke prayogabamdhantara taka samajhana. Vanaspati – kayika jivom ke sarvabamdha ka antara jaghanyatah kala ki apeksha se tina samaya kama do kshullakabhagavagrahana kala aura utkrishtatah asamkhyeyakala hai, athava asamkhyeya utsarpini – avasarpini hai, kshetratah asamkhyeya loka hai. Isi prakara deshabamdha ka antara bhi jaghanyatah samayadhika kshullakabhavagrahana ka hai aura utkrishtatah prithvikayika sthitikala hai. Bhagavan ! Audarika sharira ke ina deshabamdhaka sarvabamdhaka aura abamdhaka jivom me kauna kinase alpa yavat visheshadhika haim\? Gautama ! Sabase thore audarikasharira ke sarvabamdhaka jiva haim unase abamdhaka jiva visheshadhika haim aura unase deshabamdhaka jiva asamkhyata gune haim.