Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003660
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-३

Translated Chapter :

शतक-३

Section : उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Translated Section : उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा
Sutra Number : 160 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे? गोयमा! सरीरं गते, सरीरं अनुपविट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सरीरं गते! सरीरं अनुपविट्ठे? गोयमा! से जहानामए कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा। तीसे णं कूडागारसालाए अदूरसामंते, एत्थ णं महेगे जणसमूहे एगं महं अब्भवद्दलगं वा वासवद्दलगं वा महावायं वा एज्जमाणं पासति, पासित्ता तं कूडागारसालं अंतो अनुपविसित्ता णं चिट्ठइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–सरीरं गते, सरीरं अनुपविट्ठे। ईसानेणं भंते! देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढो दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? के वा एस आसि पुव्वभवे? किंनामए वा? किंगोत्ते वा? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा? किं वा दच्चा? किं वा भोच्चा? किं वा किच्चा? किं वा समायरित्ता? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माह-णस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म? जं णं ईसानेणं देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तामलित्ती नामं नयरी होत्था–वण्णओ तत्थ णं तामलित्तीए नयरीए तामली नामं मोरियपुत्ते गाहावई होत्था–अड्ढे दित्ते जाव बहुजनस्स अपरिभूए यावि होत्था। तए णं तस्स मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्प-ज्जित्था– अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णेणं वड्ढामि सुवण्णेणं वड्ढामि, धनेनं वड्ढामि, धन्नेणं वड्ढामि, पुत्तेहिं वड्ढामि, पसूहिं वड्ढामि, विपुलधण-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं एगंतसो खयं उवेहमाणे विहरामि? तं जावताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि जाव अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, जावं च मे मित्त-नाति-नियग-सयण-संबंधि-परियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं विनएणं चेइयं पज्जुवासइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं करेत्ता विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ-नियग-सयण, संबंधि-परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छित्ता, सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं गहाय मुंडे भवित्ता पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए। पव्वइए वि य णं समाणं इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हिस्सामि–कप्पइ मे जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावण भूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्स वि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता सुद्धोदणं पडिग्गाहेत्ता तं तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता तओ पच्छा आहारं आहारित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं करेइ, करेत्ता विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता ततो पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे भोयण-वेलाए भोयणमंडवंसि सुहासण-वरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सद्धिं तं विउलं असन-पान-खाइम-साइमं आसादेमाणे वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइब्भूए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं कुटुंबे ठावेइ, ठावेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मुंडे भवित्ता पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइए। पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– कप्पइ मे जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं जाव आहारित्तए त्ति कट्टु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता जाव-ज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। छट्ठस्स वि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडइ, अडित्ता सुद्धोयणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत्ता तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता तओ पच्छा आहारं आहारेइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– पाणामा पव्वज्जा? गोयमा! पाणामाए णं पव्वज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ–इंदं वा खंदं वा रुद्दं वा सिवं वा वेसमणं वा अज्जं वा कोट्ट-किरियं वा रायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुंबियं वा इब्भं वा सेट्ठिं सेणावइं वा सत्थवाहं वा काकं वा साणं वा पाणं वा–उच्चं पासइ उच्चं पणामं करेइ, नीयं पासइ नीयं पणामं करेइ, जं जहा पासइ तस्स तहा पणामं करेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ पाणामा पव्वज्जा। तए णं से तामली मोरियपुत्ते तेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था। तए णं तस्स तामलिस्स बालतवस्सिस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अनिच्च-जागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे जाव धमणिसंतए जाए, तं अत्थि जा मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते तामलित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्ठे य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिएपरियायसंगतिए य आपुच्छित्ता तामलित्तीए नगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छित्ता पादुग-कुंडिय-मादीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एगंते एडित्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणा ज्झूसणा ज्झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अनवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते तामलित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्ठे य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिएपरियायसंगतिए य आपुच्छइ, आपुच्छित्ता तामलित्तीए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पादुगकुंडिय-मादीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एगंते एडेइ, एडेत्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए नियत्तणियमंडलं आलिहइ, आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपान-पडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे।
Sutra Meaning : उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। यावत्‌ परीषद्‌ भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि वृषभ – वाहन लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीनस्वर्ण निर्मित सुन्दर, विचित्र एवं चंचल कुण्डलों से कपोल को जगमगाता हुआ यावत्‌ दसों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करता हुआ ईशानेन्द्र, ईशानकल्प में ईशानावतंसक विमान में यावत्‌ दिव्य देवऋद्धि का अनुभव करता हुआ और यावत्‌ जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापस चला गया। ‘हे भगवन्‌ !’ इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – अहो, भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी महाऋद्धि वाला है। भगवन्‌ ! ईशानेन्द्र की वह दिव्य देवऋद्धि कहाँ चली गई ? कहाँ प्रविष्ट हो गई ? गौतम ! वह दिव्य देवऋद्धि (उसके) शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे कोई कूटाकार शाला हो, जो दोनों तरफ से लीपी हुई हो, गुप्त हो, गुप्त – द्वार वाली हो, निर्यात हो, वायुप्रवेश से रहित गम्भीर हो, यावत्‌ ऐसी कूटाकार शाला का दृष्टान्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवप्रभाव किस कारण से उपलब्ध किया, किस कारण से प्राप्त किया और किस हेतु से अभिमुख किया ? यह ईशानेन्द्र पूर्वभव में कौन था ? इसका क्या नाम था, क्या गोत्र था ? यह किस ग्राम, नगर अथवा यावत्‌ किस सन्निवेश में रहता था ? इसने क्या सूनकर, क्या देकर, क्या खाकर, क्या करके, क्या सम्यक्‌ आचरण करके, अथवा किस तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य एवं धार्मिक सुवचन सूनकर तथा हृदय में धारण करके जिस से देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र ने वह दिव्य देवऋद्धि यावत्‌ उपलब्ध की है, प्राप्त की है और अभिमुख की है ? हे गौतम ! उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में ताम्रलिप्ती नगरी थी। उस नगरी में तामली नामका मौर्यपुत्र गृहपति रहता था। वह धनाढ्य था, दीप्तिमान था, और बहुत – से मनुष्यों द्वारा अपराभवनीय था। तत्पश्चात्‌ किसी एक दिन पूर्वरात्रि व्यतीत होने पर पीछली रात्रि – काल के समय कुटुम्ब जागरिका जागते हुए उस मौर्यपुत्र तामली गाथापति को इस प्रकार का यह अध्यवसाय यावत्‌ मन में संकल्प उत्पन्न हुआ कि – मेरे द्वारा पूर्वकृत, पुरातन सम्यक्‌ आचरित, सुपराक्रमयुक्त, शुभ और कल्याणरूप कृतकर्मों का कल्याणफलरूप प्रभाव अभी तक तो विद्यमान है; जिसके कारण मैं हिरण्य से बढ़ रहा हूँ, सुवर्ण से, धन से, धान्य से, पुत्रों से, पशुओं से बढ़ रहा हूँ, तथा विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, चन्द्रकान्त वगैर शैलज मणिरूप पथ्थर, प्रवाल (मूँगा) रक्तरत्न तथा माणिक्यरूप सारभूत धन से अधिकाधिक बढ़ रहा हूँ; तो क्या मैं पूर्वकृत, पुरातन, समाचरित यावत्‌ पूर्वकृतकर्मों का एकान्तरूप से क्षय हो रहा है, इसे अपने सामने देखता रहूँ – इस क्षय की उपेक्षा करता रहूँ ? अतः जब तक मैं चाँदी – सोने यावत्‌ माणिक्य आदि सारभूत पदार्थों के रूप में सुखसामग्री द्वारा दिनानुदिन अतीत – अतीव अभिवृद्धि पा रहा हूँ और जब तक मेरे मित्र, ज्ञातिजन, स्वगोत्रीय कुटुम्बीजन, मातृपक्षीय या श्वसुरपक्षीय सम्बन्धी एवं परिजन, मेरा आदर करते हैं, मुझे स्वामी रूप में मानते हैं, मेरा सत्कार – सम्मान करते हैं, मुझे कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, और चैत्यरूप मानकर विनयपूर्वक मेरी पर्युपासना करते हैं; तब तक (मुझे अपना कल्याण कर लेना चाहिए।) यही मेर लिए श्रेयस्कर है। अतः रात्रि के व्यतीत होने पर प्रभात होते ही यावत्‌ जाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर मैं स्वयं अपने हाथ से काष्ठपात्र बनाऊं और पर्याप्त अशन, पान, खादिम और स्वादिमरूप चारों प्रकार का आहार तैयार कराकर, अपने मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन – सम्बन्धी तथा दास – दासी आदि परिजनों को आमंत्रित करके उन्हें सम्मानपूर्वक अशनादि चारों प्रकार के आहार का भोजन कराऊं; फिर वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, माला और आभूषण आदि द्वारा उनका सत्कार – सम्मान करके उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन – सम्बन्धी और परिजनों के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करके, उन मित्र – ज्ञातिजन – स्वजन – परिजनादि तथा अपने ज्येष्ठपुत्र से पूछकर, मैं स्वयमेव काष्ठ पात्र लेकर एवं मुण्डित होकर ‘प्रणामा’ नाम की प्रव्रज्या अंगीकार करूँ और प्रव्रजित होते ही मैं इस प्रकार का अभिग्रह धारण करूँ कि मैं जीवनभर निरन्तर छट्ठ – छट्ठ तपश्चरण करूँगा और सूर्य के सम्मुख दोनों भुजाएं ऊंची करके आतापना भूमि में आतापना लेता हुआ रहूँगा और छट्ठ के पारणे के दिन आतापनाभूमि से नीचे ऊतरकर स्वयं काष्ठपात्र हाथमें लेकर ताम्रलिप्ती नगरी के ऊंच, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय में भिक्षाचरी के लिए पर्यटन करके भिक्षाविधि द्वारा शुद्ध ओदन लाऊंगा और उसे २१ बार धोकर खाऊंगा। इस प्रकार तामली गृहपति ने शुभ विचार किया। इस प्रकार का विचार करके रात्रि व्यतीत होते ही प्रभात होने पर यावत्‌ तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर स्वयमेव लकड़ी का पात्र बनाया। फिर अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार तैयार करवाया। उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त किया, शुद्ध और उत्तम वस्त्रों को ठीक – से पहने, और अल्पभार तथा बहुमूल्य आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किया। भोजन के समय वह भोजन मण्डप में आकर शुभासन पर सुखपूर्वक बैठा। इसके बाद मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन सम्बन्धी एवं परिजन आदि के साथ उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप आहार का आस्वादन करता हुआ, विशेष स्वाद लेता हुआ, दूसरों को परोसता हुआ भोजन कराता हुआ – और स्वयं भोजन करता हुआ तामली गृहपति विहरण कर रहा था। भोजन करने के बाद उसने पानी से हाथ धोए और चुल्लू में पानी लेकर शीघ्र आचमन किया, मुख साफ करके स्वच्छ हुआ। फिर उन सब मित्र – ज्ञाति – स्वजन – परिजनादि का विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्प, वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य, माला, अलंकार आदि से सत्कार – सम्मान किया। फिर उन्हीं के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित किया। उन्हीं मित्र – स्वजन आदि तथा अपने ज्येष्ठ पुत्र को पूछकर और मुण्डित होकर ‘प्रणामा’ नामकी प्रव्रज्या अंगीकार की और अभिग्रह ग्रहण किया – आज से मेरा कल्प यह होगा कि मैं आजीवन निरन्तर छट्ठ – छट्ठ तप करूँगा, यावत्‌ पूर्वकथितानुसार भिक्षाविधि से केवल भात लाकर उन्हें २१ बार पानी से धोकर उनका आहार करूँगा। इस प्रकार अभिग्रह धारण करके वह तामली तापस यावज्जीवन निरन्तर बेले – बेले तप करके दोनों भुजाएं ऊंची करके आतापनाभूमि में सूर्य के सम्मुख आतापना लेता हुआ विचरण करने लगा। बेले के पारणे के दिन आतापना भूमि से नीचे ऊतरकर स्वयं काष्ठपात्र लेकर ताम्रलिप्ती नगरी में ऊंच, नीच और मध्यम कुलों के गृह – समुदाय से विधिपूर्वक भिक्षा के लिए घूमता था। भिक्षा में वह केवल भात लाता और उन्हें २१ बार पानी से धोता था, तत्पश्चात्‌ आहार करता था। भगवन्‌ ! तामली द्वारा ग्रहण की हुई प्रव्रज्या ‘प्राणामा’ कहलाती है, इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! प्राणामा प्रव्रज्या में प्रव्रजित होने पर वह व्यक्ति जिसे जहाँ देखता है, (उसे वहीं प्रणाम करता है।) (अर्थात्‌ – ) इन्द्र को, स्कन्द को, रुद्र को, शिव को, वैश्रमण को, आर्या को, रौद्ररूपा चण्डिका को, राजा को, यावत्‌ सार्थवाह को, अथवा कौआ, कुत्ता और श्वपाक (आदि सबको प्रणाम करता है।) इनमें से उच्च व्यक्ति को देखता है, उच्च – रीति से प्रणाम करता है, नीच को देखकर नीची रीति से प्रणाम करता है। इस कारण हे गौतम ! इस प्रव्रज्या का नाम ‘प्राणामा’ प्रव्रज्या है। तत्पश्चात्‌ वह मौर्यपुत्र तामली तापस उस उदार, विपुल, प्रदत्त और प्रगृहीत बाल तप द्वारा सूख गया, रूक्ष हो गया, यावत्‌ उसके समस्त नाड़ियों का जाल बाहर दिखाई देने लगा। तदनन्तर किसी एक दिन पूर्वरात्रि व्यतीत होने के बाद अपररात्रिकाल के समय अनित्य जागरिका करते हुए उस बालतपस्वी तामली को इस प्रकार का आध्यात्मिक चिन्तन यावत्‌ मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि ‘मैं इस उदार विपुल यावत्‌ उदग्र, उदात्त, उत्तम और महाप्रभावशाली तपःकर्म करने से शुष्क और रूक्ष हो गया हूँ, यावत्‌ मेरा शरीर इतना कृश हो गया है कि नाड़ियों का जाल बाहर दिखाई देने लग गया है। इसलिए जब तक मुझमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम है, तब तक मेरे लिए (यही) श्रेयस्कर है कि कल प्रातःकाल यावत्‌ जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मैं ताम्रलिप्ती नगरी में जाऊं। वहाँ जो दृष्टभाषित व्यक्ति हैं, जो पापण्ड (व्रतों में) स्थित हैं, या जो गृहस्थ हैं, जो पूर्वपरिचित हैं, या जो पश्चात्‌परिचित हैं, तथा जो समकालीन प्रव्रज्या – पर्याय से युक्त पुरुष हैं, उनसे पूछकर, ताम्रलिप्ती नगरी के बीचोंबीच से नीकलकर पादुका, कुण्डी आदि उपकरणों तथा काष्ठ – पात्र को एकान्त में रखकर, ताम्रलिप्ती नगरी के ईशान कोण में निवर्तनिक मंडल का आलेखन करके, संलेखना तप से आत्मा को सेवित कर आहार – पानी का सर्वथा त्याग करके पादपोपगमन संथारा करूँ और मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ विचरण करूँ; मेरे लिए यही उचित है। यों विचार करके प्रभातकाल होते ही यावत्‌ जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर यावत्‌ पूछा। उस ने एकान्त स्थान में उपकरण छोड़ दिए। फिर यावत्‌ आहार – पानी का सर्वथा प्रत्याख्यान किया और पादपोपगमन नामक अनशन अंगीकार किया।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare hottha–vannao java parisa pajjuvasai. Tenam kalenam tenam samaenam isane devimde devaraya isane kappe isanavademsae vimane jaheva rayappasenaijje java divvam deviddhim divvam devajutim divvam devanubhagam divvam battisaibaddham nattavihim uvadamsitta java jameva disim paubbhue, tameva disim padigae. Bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta. Evam vadasi–aho nam bhamte! Isane devimde devaraya mahiddhie java mahanubhage. Isanassa nam bhamte! Sa divva deviddhi divva devajjuti divve devanubhage kahim gate? Kahim anupavitthe? Goyama! Sariram gate, sariram anupavitthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–sariram gate! Sariram anupavitthe? Goyama! Se jahanamae kudagarasala siya duhao litta gutta guttaduvara nivaya nivayagambhira. Tise nam kudagarasalae adurasamamte, ettha nam mahege janasamuhe egam maham abbhavaddalagam va vasavaddalagam va mahavayam va ejjamanam pasati, pasitta tam kudagarasalam amto anupavisitta nam chitthai. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchati–sariram gate, sariram anupavitthe. Isanenam bhamte! Devimdenam devaranna sa divva deviddho divva devajjuti divve devanubhage kinna laddhe? Kinna patte? Kinna abhisamannagae? Ke va esa asi puvvabhave? Kimnamae va? Kimgotte va? Kayaramsi va gamamsi va nagaramsi va java sannivesamsi va? Kim va dachcha? Kim va bhochcha? Kim va kichcha? Kim va samayaritta? Kassa va taharuvassa samanassa va maha-nassa va amtie egamavi ariyam dhammiyam suvayanam sochcha nisamma? Jam nam isanenam devimdenam devaranna sa divva deviddhi divva devajjuti divve devanubhage laddhe patte abhisamannagae? Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase tamalitti namam nayari hottha–vannao Tattha nam tamalittie nayarie tamali namam moriyaputte gahavai hottha–addhe ditte java bahujanassa aparibhue yavi hottha. Tae nam tassa moriyaputtassa tamalissa gahavaissa annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi kutumbajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppa-jjittha– atthi ta me pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kallananam kadanam kammanam kallanaphalavittivisese, jenaham hirannenam vaddhami suvannenam vaddhami, dhanenam vaddhami, dhannenam vaddhami, puttehim vaddhami, pasuhim vaddhami, vipuladhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-rattarayana-samtasarasavaejjenam ativa-ativa abhivaddhami, tam kim nam aham pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kallananam kadanam kammanam egamtaso khayam uvehamane viharami? Tam javatava aham hirannenam vaddhami java ativa-ativa abhivaddhami, javam cha me mitta-nati-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyano adhati pariyanai sakkarei sammanei kallanam mamgalam devayam vinaenam cheiyam pajjuvasai, tavata me seyam kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte sayameva darumayam padiggahagam karetta viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavetta, mitta-nai-niyaga-sayana, sambamdhi-pariyanam amamtetta, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam viulenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-gamdha-mallalamkarena ya sakkaretta sammanetta, tasseva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanassa purao jetthaputtam kutumbe thavetta, tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam jetthaputtam cha apuchchhitta, sayameva darumayam padiggahagam gahaya mumde bhavitta panamae pavvajjae pavvaittae. Pavvaie vi ya nam samanam imam eyaruvam abhiggaham abhiginhissami–kappai me javajjivae chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhassa ayavana bhumie ayavemanassa viharittae, chhatthassa vi ya nam paranayamsi ayavanabhumio pachchorubhitta sayameva darumayam padiggahagam gahaya tamalittie nayarie uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae aditta suddhodanam padiggahetta tam tisattakkhutto udaenam pakkhaletta tao pachchha aharam aharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte sayameva darumayam padiggahagam karei, karetta viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta tato pachchha nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie appamahagghabharanalamkiyasarire bhoyana-velae bhoyanamamdavamsi suhasana-varagae tenam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanenam saddhim tam viulam asana-pana-khaima-saimam asademane visademane paribhaemane paribhumjemane viharai. Jimiyabhuttuttaragae vi ya nam samane ayamte chokkhe paramasuibbhue tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam viulenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-gamdha-mallalamkarena ya sakkarei sammanei, tasseva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi pariyanassa purao jetthaputtam kutumbe thavei, thavetta tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam jetthaputtam cha apuchchhai, apuchchhitta mumde bhavitta panamae pavvajjae pavvaie. Pavvaie vi ya nam samane imam eyaruvam abhiggaham abhiginhai– kappai me javajjivae chhatthamchhatthenam java aharittae tti kattu imam eyaruvam abhiggaham abhiginhitta java-jjivae chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhe ayavanabhumie ayavemane viharai. Chhatthassa vi ya nam paranayamsi ayavanabhumio pachchorubhai, pachchorubhitta sayameva darumayam padiggahagam gahaya tamalittie nayarie uchcha niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adai, aditta suddhoyanam padiggahei, padiggahetta tisattakkhutto udaenam pakkhalei, pakkhaletta tao pachchha aharam aharei. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai– panama pavvajja? Goyama! Panamae nam pavvajjae pavvaie samane jam jattha pasai–imdam va khamdam va ruddam va sivam va vesamanam va ajjam va kotta-kiriyam va rayam va isaram va talavaram va madambiyam va kodumbiyam va ibbham va setthim senavaim va satthavaham va kakam va sanam va panam va–uchcham pasai uchcham panamam karei, niyam pasai niyam panamam karei, jam jaha pasai tassa taha panamam karei. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai panama pavvajja. Tae nam se tamali moriyaputte tenam oralenam vipulenam payattenam paggahienam balatavokammenam sukke lukkhe nimmamse atthichammavanaddhe kidikidiyabhue kise dhamanisamtae jae yavi hottha. Tae nam tassa tamalissa balatavassissa annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi anichcha-jagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– Evam khalu aham imenam oralenam vipulenam payattenam paggahienam kallanenam sivenam dhannenam mamgallenam sassirienam udaggenam udattenam uttamenam mahanubhagenam tavokammenam sukke lukkhe java dhamanisamtae jae, tam atthi ja me utthane kamme bale virie purisakkara-parakkame tavata me seyam kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte tamalittie nagarie ditthabhatthe ya pasamdatthe ya gihatthe ya puvvasamgatie ya pariyayasamgatie ya apuchchhitta tamalittie nagarie majjhammajjhenam niggachchhitta paduga-kumdiya-madiyam uvagaranam darumayam cha padiggahagam egamte editta tamalittie nagarie uttarapuratthime disibhae niyattaniyamamdalam alihitta samlehana jjhusana jjhusiyassa bhattapanapadiyaikkhiyassa paovagayassa kalam anavakamkhamanassa viharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte tamalittie nagarie ditthabhatthe ya pasamdatthe ya gihatthe ya puvvasamgatie ya pariyayasamgatie ya apuchchhai, apuchchhitta tamalittie nayarie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta padugakumdiya-madiyam uvagaranam darumayam cha padiggahagam egamte edei, edetta tamalittie nagarie uttarapuratthime disibhae niyattaniyamamdalam alihai, alihitta samlehanajjhusanajjhusie bhattapana-padiyaikkhie paovagamanam nivanne.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Yavat parishad bhagavana ki paryupasana karane lagi. Usa kala usa samaya mem devendra devaraja, shulapani vrishabha – vahana loka ke uttararddha ka svami, atthaisa lakha vimanom ka adhipati, akasha ke samana rajarahita nirmala vastradharaka, sira para mala se sushobhita mukutadhari, navinasvarna nirmita sundara, vichitra evam chamchala kundalom se kapola ko jagamagata hua yavat dasom dishaom ko udyotita evam prabhasita karata hua ishanendra, ishanakalpa mem ishanavatamsaka vimana mem yavat divya devariddhi ka anubhava karata hua aura yavat jisa disha se aya tha usi disha mem vapasa chala gaya. ‘He bhagavan !’ isa prakara sambodhita karake bhagavana gautama svami ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake isa prakara kaha – aho, bhagavan ! Devendra devaraja ishana itani mahariddhi vala hai. Bhagavan ! Ishanendra ki vaha divya devariddhi kaham chali gai\? Kaham pravishta ho gai\? Gautama ! Vaha divya devariddhi (usake) sharira mem chali gai, sharira mem pravishta ho gai hai. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kaha jata hai\? Gautama ! Jaise koi kutakara shala ho, jo donom tarapha se lipi hui ho, gupta ho, gupta – dvara vali ho, niryata ho, vayupravesha se rahita gambhira ho, yavat aisi kutakara shala ka drishtanta kahana chahie. Bhagavan ! Devendra devaraja ishana ne vaha divya devariddhi, divya devadyuti aura divya devaprabhava kisa karana se upalabdha kiya, kisa karana se prapta kiya aura kisa hetu se abhimukha kiya\? Yaha ishanendra purvabhava mem kauna tha\? Isaka kya nama tha, kya gotra tha\? Yaha kisa grama, nagara athava yavat kisa sannivesha mem rahata tha\? Isane kya sunakara, kya dekara, kya khakara, kya karake, kya samyak acharana karake, athava kisa tatharupa shramana ya mahana ke pasa se eka bhi arya evam dharmika suvachana sunakara tatha hridaya mem dharana karake jisa se devendra devaraja ishanendra ne vaha divya devariddhi yavat upalabdha ki hai, prapta ki hai aura abhimukha ki hai\? He gautama ! Usa kala usa samaya mem isi jambudvipa namaka dvipa mem bharatavarsha mem tamralipti nagari thi. Usa nagari mem tamali namaka mauryaputra grihapati rahata tha. Vaha dhanadhya tha, diptimana tha, aura bahuta – se manushyom dvara aparabhavaniya tha. Tatpashchat kisi eka dina purvaratri vyatita hone para pichhali ratri – kala ke samaya kutumba jagarika jagate hue usa mauryaputra tamali gathapati ko isa prakara ka yaha adhyavasaya yavat mana mem samkalpa utpanna hua ki – mere dvara purvakrita, puratana samyak acharita, suparakramayukta, shubha aura kalyanarupa kritakarmom ka kalyanaphalarupa prabhava abhi taka to vidyamana hai; jisake karana maim hiranya se barha raha hum, suvarna se, dhana se, dhanya se, putrom se, pashuom se barha raha hum, tatha vipula dhana, kanaka, ratna, mani, moti, shamkha, chandrakanta vagaira shailaja manirupa paththara, pravala (mumga) raktaratna tatha manikyarupa sarabhuta dhana se adhikadhika barha raha hum; to kya maim purvakrita, puratana, samacharita yavat purvakritakarmom ka ekantarupa se kshaya ho raha hai, ise apane samane dekhata rahum – isa kshaya ki upeksha karata rahum\? Atah jaba taka maim chamdi – sone yavat manikya adi sarabhuta padarthom ke rupa mem sukhasamagri dvara dinanudina atita – ativa abhivriddhi pa raha hum aura jaba taka mere mitra, jnyatijana, svagotriya kutumbijana, matripakshiya ya shvasurapakshiya sambandhi evam parijana, mera adara karate haim, mujhe svami rupa mem manate haim, mera satkara – sammana karate haim, mujhe kalyanarupa, mamgalarupa, devarupa, aura chaityarupa manakara vinayapurvaka meri paryupasana karate haim; taba taka (mujhe apana kalyana kara lena chahie.) yahi mera lie shreyaskara hai. Atah ratri ke vyatita hone para prabhata hote hi yavat jajvalyamana surya ke udaya hone para maim svayam apane hatha se kashthapatra banaum aura paryapta ashana, pana, khadima aura svadimarupa charom prakara ka ahara taiyara karakara, apane mitra, jnyatijana, svajana – sambandhi tatha dasa – dasi adi parijanom ko amamtrita karake unhem sammanapurvaka ashanadi charom prakara ke ahara ka bhojana karaum; phira vastra, sugandhita padartha, mala aura abhushana adi dvara unaka satkara – sammana karake unhim mitra, jnyatijana, svajana – sambandhi aura parijanom ke samaksha apane jyeshtha putra ko kutumba mem sthapita karake, una mitra – jnyatijana – svajana – parijanadi tatha apane jyeshthaputra se puchhakara, maim svayameva kashtha patra lekara evam mundita hokara ‘pranama’ nama ki pravrajya amgikara karum aura pravrajita hote hi maim isa prakara ka abhigraha dharana karum ki maim jivanabhara nirantara chhattha – chhattha tapashcharana karumga aura surya ke sammukha donom bhujaem umchi karake atapana bhumi mem atapana leta hua rahumga aura chhattha ke parane ke dina atapanabhumi se niche utarakara svayam kashthapatra hathamem lekara tamralipti nagari ke umcha, nicha aura madhyama kulom ke grihasamudaya mem bhikshachari ke lie paryatana karake bhikshavidhi dvara shuddha odana laumga aura use 21 bara dhokara khaumga. Isa prakara tamali grihapati ne shubha vichara kiya. Isa prakara ka vichara karake ratri vyatita hote hi prabhata hone para yavat teja se jajvalyamana surya ke udaya hone para svayameva lakari ka patra banaya. Phira ashana, pana, khadima, svadima rupa ahara taiyara karavaya. Usane snana kiya, balikarma kiya, kautuka mamgala aura prayashchitta kiya, shuddha aura uttama vastrom ko thika – se pahane, aura alpabhara tatha bahumulya abhushanom se apane sharira ko alamkrita kiya. Bhojana ke samaya vaha bhojana mandapa mem akara shubhasana para sukhapurvaka baitha. Isake bada mitra, jnyatijana, svajana sambandhi evam parijana adi ke satha usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima rupa ahara ka asvadana karata hua, vishesha svada leta hua, dusarom ko parosata hua bhojana karata hua – aura svayam bhojana karata hua tamali grihapati viharana kara raha tha. Bhojana karane ke bada usane pani se hatha dhoe aura chullu mem pani lekara shighra achamana kiya, mukha sapha karake svachchha hua. Phira una saba mitra – jnyati – svajana – parijanadi ka vipula ashana, pana, khadima, svadima, pushpa, vastra, sugandhita dravya, mala, alamkara adi se satkara – sammana kiya. Phira unhim ke samaksha apane jyeshtha putra ko kutumba mem sthapita kiya. Unhim mitra – svajana adi tatha apane jyeshtha putra ko puchhakara aura mundita hokara ‘pranama’ namaki pravrajya amgikara ki aura abhigraha grahana kiya – aja se mera kalpa yaha hoga ki maim ajivana nirantara chhattha – chhattha tapa karumga, yavat purvakathitanusara bhikshavidhi se kevala bhata lakara unhem 21 bara pani se dhokara unaka ahara karumga. Isa prakara abhigraha dharana karake vaha tamali tapasa yavajjivana nirantara bele – bele tapa karake donom bhujaem umchi karake atapanabhumi mem surya ke sammukha atapana leta hua vicharana karane laga. Bele ke parane ke dina atapana bhumi se niche utarakara svayam kashthapatra lekara tamralipti nagari mem umcha, nicha aura madhyama kulom ke griha – samudaya se vidhipurvaka bhiksha ke lie ghumata tha. Bhiksha mem vaha kevala bhata lata aura unhem 21 bara pani se dhota tha, tatpashchat ahara karata tha. Bhagavan ! Tamali dvara grahana ki hui pravrajya ‘pranama’ kahalati hai, isaka kya karana hai\? He gautama ! Pranama pravrajya mem pravrajita hone para vaha vyakti jise jaham dekhata hai, (use vahim pranama karata hai.) (arthat – ) indra ko, skanda ko, rudra ko, shiva ko, vaishramana ko, arya ko, raudrarupa chandika ko, raja ko, yavat sarthavaha ko, athava kaua, kutta aura shvapaka (adi sabako pranama karata hai.) inamem se uchcha vyakti ko dekhata hai, uchcha – riti se pranama karata hai, nicha ko dekhakara nichi riti se pranama karata hai. Isa karana he gautama ! Isa pravrajya ka nama ‘pranama’ pravrajya hai. Tatpashchat vaha mauryaputra tamali tapasa usa udara, vipula, pradatta aura pragrihita bala tapa dvara sukha gaya, ruksha ho gaya, yavat usake samasta nariyom ka jala bahara dikhai dene laga. Tadanantara kisi eka dina purvaratri vyatita hone ke bada apararatrikala ke samaya anitya jagarika karate hue usa balatapasvi tamali ko isa prakara ka adhyatmika chintana yavat manogata samkalpa utpanna hua ki ‘maim isa udara vipula yavat udagra, udatta, uttama aura mahaprabhavashali tapahkarma karane se shushka aura ruksha ho gaya hum, yavat mera sharira itana krisha ho gaya hai ki nariyom ka jala bahara dikhai dene laga gaya hai. Isalie jaba taka mujhamem utthana, karma, bala, virya aura purushakara – parakrama hai, taba taka mere lie (yahi) shreyaskara hai ki kala pratahkala yavat jajvalyamana suryodaya hone para maim tamralipti nagari mem jaum. Vaham jo drishtabhashita vyakti haim, jo papanda (vratom mem) sthita haim, ya jo grihastha haim, jo purvaparichita haim, ya jo pashchatparichita haim, tatha jo samakalina pravrajya – paryaya se yukta purusha haim, unase puchhakara, tamralipti nagari ke bichombicha se nikalakara paduka, kundi adi upakaranom tatha kashtha – patra ko ekanta mem rakhakara, tamralipti nagari ke ishana kona mem nivartanika mamdala ka alekhana karake, samlekhana tapa se atma ko sevita kara ahara – pani ka sarvatha tyaga karake padapopagamana samthara karum aura mrityu ki akamksha nahim karata hua vicharana karum; mere lie yahi uchita hai. Yom vichara karake prabhatakala hote hi yavat jajvalyamana suryodaya hone para yavat puchha. Usa ne ekanta sthana mem upakarana chhora die. Phira yavat ahara – pani ka sarvatha pratyakhyana kiya aura padapopagamana namaka anashana amgikara kiya.