Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003652 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Translated Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा |
Sutra Number : | 152 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे नंदने नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासि– चमरे णं भंते! असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जुतीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? केमहानुभागे? केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महासोक्खे, महानुभागे! से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं, चउसट्ठीए सामानियसाहस्सीणं, ताय-त्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, पंचण्हं अग्ग महिसीणं सपरिवाराणं, चउसट्ठीणं आय-रक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं चमरचंचा रायहाणिवत्थव्वाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमु-इंगपडुप्पवाइयर वेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजेमाणे विहरइ। एमहिड्ढीए, एमहज्जुतीए, एमहाबले, एमहायसे, एमहासोक्खे, एमहानुभागे। एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए। से जहानामए–जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया वेउव्विय समुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसि-रइ, तं जहा–रयणाणं वयराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजनपुलगाणं रयणाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परि-यायइ, परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णति। पभू णं गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिं य आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। अदुत्तरं च णं गोयमा! पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइ-ण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए। एस णं गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वति वा विकुव्विस्सति वा। जइ णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं भंते! असुरिंद-स्स असुररन्नो सामाणिया देवा केमहिड्ढीया? जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो सामाणिया देवा महिड्ढीया महज्जुतीया महाबला महायसा महासोक्खा महानुभागा। ते णं तत्थ साणं-साण भवणाणं, साणं-साणं सामाणियाणं, साणं-साणं अग्गमहिसीणं जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति। एमहिड्ढीया जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए। से जहानामए– जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो एगमेगे सामानियदेवे वेउव्विय समुग्घाएणं समोहण्णइ जाव दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ। पभू णं गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो एगमेगे सामानियदेवे केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवागाढावगाढं करेत्तए। अदुत्तरं च णं गोयमा! पभू चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो एगमेगे सामानियदेवे तिरियम-संखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए। एस णं गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो एगमेगस्स सामानियदेवस्स अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वंति वा विकुव्विस्संति वा। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समयमें ‘मोका’ नगरी थी। मोका नगरी के बाहर ईशानकोण में नन्दन चैत्य था। उस काल उस समयमें श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। परीषद् नीकली। धर्मोपदेश सूनकर परीषद् वापस चली गई उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर के द्वीतिय अन्तेवासी अग्निभूति नामक अनगार जिनका गोत्र गौतम था, तथा जो सात हाथ ऊंचे थे, यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले (पूछने लगे) – ‘भगवन् ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? कितनी बड़ी द्युति – कान्ति वाला है ? कितने महान बल से सम्पन्न है ? कितना महान यशस्वी है ? कितने महान सुखों से सम्पन्न है ? कितने महान प्रभाव वाला है ? और वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभावशाली है। वह वहाँ चौंतीस लाख भवनावासों पर, चौंसठ हजार सामानिक देवों पर और तैंतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है। इतनी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् ऐसे महाप्रभाव वाला है; तथा उसकी विक्रिया करने की शक्ति इस प्रकार है – हे गौतम ! जैसे – कोई युवा पुरुष हाथ से युवती स्त्री के हाथ को पकड़ता है, अथवा जैसे – गाड़ी के पहिये की धूरी आरों से अच्छी तरह जुड़ी हुई एवं सुसम्बद्ध होती है, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर, वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है, समवहत होकर संख्यात योजन तक लम्बा दण्ड नीकालता है। तथा उसके द्वारा रत्नों के, यावत् रिष्ट रत्नों के स्थूल पुद्गलों को झाड़ देता है और सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करता है। फिर दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है। हे गौतम ! वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा परिपूर्ण जम्बूद्वीप को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ करने में समर्थ है। हे गौतम ! इसके उपरांत वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, अनेक असुरकुमार देव – देवियों द्वारा इस तिर्यग्लोक में भी असंख्यात द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की ऐसी शक्ति है, विषय है, विषयमात्र है, परन्तु चमरेन्द्र ने इस सम्प्राप्ति से कभी विकुर्वण किया नहीं, न ही करता है और न ही करेगा। भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर जब ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तब हे भगवन् ! उस असुरराज असुरेन्द्र चमर के सामानिक देवों की कितनी बड़ी ऋद्धि है, यावत् वे कितना विकुर्वण करने में समर्थ हैं ? हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, महती ऋद्धिवाले हैं, यावत् महाप्रभावशाली हैं। वे वहाँ अपने – अपने भवनों पर, अपने – अपने सामानिक देवों पर तथा अपनी – अपनी अग्रमहिषियों पर आधिपत्य करते हुए, यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। ये इस प्रकार की बड़ी ऋद्धिवाले हैं, यावत् इतना विकुर्वण करने में समर्थ है – हे गौतम ! विकुर्वण करने के लिए असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक – एक सामानिक देव, वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है और यावत् दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है। जैसे कोई युवा पुरुष अपने हाथ से युवती स्त्री के हाथ को पकड़ता है, तो वे दोनों दृढ़ता से संलग्न मालूम होते हैं, अथवा जैसे गाड़ी के पहिये की धूरी आरों से सुसम्बद्ध होती है, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक देव इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है। इसके उपरांत हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक – एक सामानिक देव, इस तिर्यग्लोक के असंख्य द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है। हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रत्येक सामानिक देव में विकुर्वण करने की शक्ति है, वह विषयरूप है, विषयमात्र – शक्तिमात्र है, परन्तु प्रयोग करके उसने न तो कभी विकुर्वण किया है, न ही करता है और न ही करेगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam moya namam nayari hottha–vannao. Tise nam moyae nayarie bahiya uttarapuratthime disibhage namdane namam cheie hottha–vannao. Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe. Parisa niggachchhai, padigaya parisa. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa dochche amtevasi aggibhui namam anagare goyame gottenam sattussehe java pajjuvasamane evam vadasi– chamare nam bhamte! Asurimde asuraraya kemahiddhie? Kemahajjutie? Kemahabale? Kemahayase? Kemahasokkhe? Kemahanubhage? Kevaiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Chamare nam asurimde asuraraya mahiddhie, mahajjutie, mahabale, mahayase, mahasokkhe, mahanubhage! Se nam tattha chottisae bhavanavasasayasahassanam, chausatthie samaniyasahassinam, taya-ttisae tavattisaganam, chaunham logapalanam, pamchanham agga mahisinam saparivaranam, chausatthinam aya-rakkhadevasahassinam, annesim cha bahunam chamarachamcha rayahanivatthavvanam devana ya devina ya ahevachcham porevachcham samittam bhattittam ana-isara-senavachcham karemane palemane mahayahayanattagiya-vaiya-tamti-tala-tala-tudiya-ghanamu-imgapaduppavaiyara venam divvaim bhogabhogaim bhumjemane viharai. Emahiddhie, emahajjutie, emahabale, emahayase, emahasokkhe, emahanubhage. Evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae. Se jahanamae–juvati juvane hatthenam hatthe genhejja, chakkassa va nabhi aragautta siya, evameva goyama! Chamare asurimde asuraraya veuvviya samugghaenam samohannai, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nisi-rai, tam jaha–rayananam vayaranam veruliyanam lohiyakkhanam masaragallanam hamsagabbhanam pulaganam sogamdhiyanam joirasanam amjananam amjanapulaganam rayananam jayaruvanam amkanam phalihanam ritthanam ahabayare poggale parisadei, parisadetta ahasuhume poggale pari-yayai, pariyaitta dochcham pi veuvviyasamugghaenam samohannati. Pabhu nam goyama! Chamare asurimde asuraraya kevalakappam jambuddivam divam bahuhim asurakumarehim devehim devihim ya ainnam vitikinnam uvatthadam samthadam phudam avagadhavagadham karettae. Aduttaram cha nam goyama! Pabhu chamare asurimde asuraraya tiriyamasamkhejje diva-samudde bahuhim asurakumarehim devehim devihi ya ai-nne vitikinne uvatthade samthade phude avagadhavagadhe karettae. Esa nam goyama! Chamarassa asurimdassa asuraranno ayameyaruve visae visayamette buie, no cheva nam sampattie vikuvvimsu va vikuvvati va vikuvvissati va. Jai nam bhamte! Chamare asurimde asuraraya emahiddhie java evaiyam cha nam pabhu vikuvvittae, chamarassa nam bhamte! Asurimda-ssa asuraranno samaniya deva kemahiddhiya? Java kevaiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Chamarassa asurimdassa asuraranno samaniya deva mahiddhiya mahajjutiya mahabala mahayasa mahasokkha mahanubhaga. Te nam tattha sanam-sana bhavananam, sanam-sanam samaniyanam, sanam-sanam aggamahisinam java divvaim bhogabhogaim bhumjamana viharamti. Emahiddhiya java evaiyam cha nam pabhu vikuvvittae. Se jahanamae– juvati juvane hatthenam hatthe genhejja, chakkassa va nabhi aragautta siya, evameva goyama! Chamarassa asurimdassa asuraranno egamege samaniyadeve veuvviya samugghaenam samohannai java dochcham pi veuvviyasamugghaenam samohannai. Pabhu nam goyama! Chamarassa asurimdassa asuraranno egamege samaniyadeve kevalakappam jambuddivam divam bahuhim asurakumarehim devehim devihi ya ainnam vitikinnam uvatthadam samthadam phudam avagadhavagadham karettae. Aduttaram cha nam goyama! Pabhu chamarassa asurimdassa asuraranno egamege samaniyadeve tiriyama-samkhejje diva-samudde bahuhim asurakumarehim devehim devihi ya ainne vitikinne uvatthade samthade phude avagadhavagadhe karettae. Esa nam goyama! Chamarassa asurimdassa asuraranno egamegassa samaniyadevassa ayameyaruve visae visayamette buie, no cheva nam sampattie vikuvvimsu va vikuvvamti va vikuvvissamti va. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samayamem ‘moka’ nagari thi. Moka nagari ke bahara ishanakona mem nandana chaitya tha. Usa kala usa samayamem shramana bhagavana mahavira svami vaham padhare. Parishad nikali. Dharmopadesha sunakara parishad vapasa chali gai Usa kala usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke dvitiya antevasi agnibhuti namaka anagara jinaka gotra gautama tha, tatha jo sata hatha umche the, yavat paryupasana karate hue isa prakara bole (puchhane lage) – ‘bhagavan ! Asurom ka indra asuraraja chamarendra kitani bari riddhi vala hai\? Kitani bari dyuti – kanti vala hai\? Kitane mahana bala se sampanna hai\? Kitana mahana yashasvi hai\? Kitane mahana sukhom se sampanna hai\? Kitane mahana prabhava vala hai\? Aura vaha kitani vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Asurom ka indra asuraraja chamara mahan riddhi vala hai yavat mahaprabhavashali hai. Vaha vaham chaumtisa lakha bhavanavasom para, chaumsatha hajara samanika devom para aura taimtisa trayastrimshaka devom para adhipatya karata hua yavat vicharana karata hai. Itani bari riddhi vala hai, yavat aise mahaprabhava vala hai; tatha usaki vikriya karane ki shakti isa prakara hai – he gautama ! Jaise – koi yuva purusha hatha se yuvati stri ke hatha ko pakarata hai, athava jaise – gari ke pahiye ki dhuri arom se achchhi taraha juri hui evam susambaddha hoti hai, isi prakara asurendra asuraraja chamara, vaikriya samudghata dvara samavahata hota hai, samavahata hokara samkhyata yojana taka lamba danda nikalata hai. Tatha usake dvara ratnom ke, yavat rishta ratnom ke sthula pudgalom ko jhara deta hai aura sukshma pudgalom ko grahana karata hai. Phira dusari bara vaikriya samudghata dvara samavahata hota hai. He gautama ! Vaha asurendra asuraraja chamara, bahuta – se asurakumara devom aura deviyom dvara paripurna jambudvipa ko akirna, vyatikirna, upastirna, samstirna, sprishta aura garhavagarha karane mem samartha hai. He gautama ! Isake uparamta vaha asurendra asuraraja chamara, aneka asurakumara deva – deviyom dvara isa tiryagloka mem bhi asamkhyata dvipom aura samudrom taka ke sthala ko akirna, vyatikirna, upastirna, samstirna, sprishta aura garhavagarha kara sakata hai. He gautama ! Asurendra asuraraja chamara ki aisi shakti hai, vishaya hai, vishayamatra hai, parantu chamarendra ne isa samprapti se kabhi vikurvana kiya nahim, na hi karata hai aura na hi karega. Bhagavan ! Asurendra asuraraja chamara jaba aisi bari riddhi vala hai, yavat itani vikurvana karane mem samartha hai, taba he bhagavan ! Usa asuraraja asurendra chamara ke samanika devom ki kitani bari riddhi hai, yavat ve kitana vikurvana karane mem samartha haim\? He gautama ! Asurendra asuraraja chamara ke samanika deva, mahati riddhivale haim, yavat mahaprabhavashali haim. Ve vaham apane – apane bhavanom para, apane – apane samanika devom para tatha apani – apani agramahishiyom para adhipatya karate hue, yavat divya bhogom ka upabhoga karate hue vicharate haim. Ye isa prakara ki bari riddhivale haim, yavat itana vikurvana karane mem samartha hai – he gautama ! Vikurvana karane ke lie asurendra asuraraja chamara ka eka – eka samanika deva, vaikriya samudghata dvara samavahata hota hai aura yavat dusari bara bhi vaikriya samudghata dvara samavahata hota hai. Jaise koi yuva purusha apane hatha se yuvati stri ke hatha ko pakarata hai, to ve donom drirhata se samlagna maluma hote haim, athava jaise gari ke pahiye ki dhuri arom se susambaddha hoti hai, isi prakara asurendra asuraraja chamara ka pratyeka samanika deva isa sampurna jambudvipa namaka dvipa ko bahuta – se asurakumara devom aura deviyom dvara akirna, vyatikirna, upastirna, samstirna, sprishta aura garhavagarha kara sakata hai. Isake uparamta he gautama ! Asurendra asuraraja chamara ka eka – eka samanika deva, isa tiryagloka ke asamkhya dvipom aura samudrom taka ke sthala ko bahuta – se asurakumara devom aura deviyom se akirna, vyatikirna, upastirna, samstirna, sprishta aura garhavagarha kara sakata hai. He gautama ! Asurendra asuraraja chamara ke pratyeka samanika deva mem vikurvana karane ki shakti hai, vaha vishayarupa hai, vishayamatra – shaktimatra hai, parantu prayoga karake usane na to kabhi vikurvana kiya hai, na hi karata hai aura na hi karega. |