Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003615 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२ |
Translated Chapter : |
शतक-२ |
Section : | उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Translated Section : | उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक |
Sutra Number : | 115 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि, भासं भासिस्सामीति गिलामि। से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा, पत्तसगडिया इ वा, पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा, एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा–उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव अहं पि ससद्दं गच्छामि, ससद्दं चिट्ठामि। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे जिने सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मि-लियम्मि अहपंडुरे पभाए, रत्तासोयप्पकासे, किंसुय-सुयमुहगुंजद्धरागसरिसे, कमलागरसंडबोहए, उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता नच्चा-सन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासित्ता... ...समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरोवेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता तहारूवेहिं थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्ता मेहघणसंनिगासं देवसन्निवातं पुढवीसिलापट्टयं पडिलेहित्ता, दब्भसंथारगं संथरित्ता दब्भसंथारोवगयस्स संलेहणाज्झूसणा-ज्झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अनवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासइ। खंदयाइ! समणे भगवं महावीरे खंदयं अनगारं एवं वयासी– से नूनं तव खंदया! पुव्वरत्तावरत्त कालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं तवेणं ओरालेणं विउलेणं तं चेव जाव कालं अनवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वमागए। से नूनं खंदया! अट्ठे समट्ठे? हंता अत्थि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई। यावत् जनता धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म – जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस प्रकार के उदार यावत् महाप्रभावशाली तपःकर्म द्वारा शुष्क, रूक्ष यावत् कृश हो गया हूँ। यावत् मेरा शारीरिक बल क्षीण हो गया, मैं केवल आत्मबल से चलता हूँ और खड़ा रहता हूँ। यहाँ तक की बोलने के बाद, बोलते समय और बोलने से पूर्व भी मुझे ग्लानि – खिन्नता होती है यावत् पूर्वोक्त गाड़ियों की तरह चलते और खड़े रहते हुए मेरी हड्डियों से खड़ – खड़ आवाज होती है। अतः जब तक मुझमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम है, जब तक मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर सुहस्ती की तरह विचरण कर रहे हैं, तब तक मेरे लिए श्रेयस्कर है कि इस रात्रि के व्यतीत हो जाने पर कल प्रातःकाल कोमल उत्पलकमलों को विकसित करने वाले, क्रमशः पाण्डुरप्रभा से रक्त अशोक के समान प्रकाशमान, टेसू के फूल, तोते की चोंच, गुंजा के अर्द्ध भाग जैसे लाल, कमलवनों को विकसित करने वाले, सहस्त्ररश्मि, तथा तेज से जाज्वल्यमान दिनकर सूर्य के उदय होने पर मैं श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार यावत् पर्युपासना करके, आज्ञा प्राप्त करके, स्वयमेव पंचमहाव्रतों का आरोपण करके, श्रमण – श्रमणियों के साथ क्षमापना करके कृतादि तथारूप स्थविर साधुओं के साथ विपुलगिरि पर शनैः शनैः चढ़कर, मेघसमूह के समान काले, देवों के अवतरणस्थानरूप पृथ्वीशिलापट्ट की प्रतिलेखना करके, उस पर डाभ (दर्भ) का संथारा बिछाकर, उस दर्भ संस्तारक पर बैठकर आत्मा को संलेखना तथा झोषणा से युक्त करके, आहार – पानी का सर्वथा त्याग करके पादपोपगमन संथारा करके, मृत्यु की आकांक्षा न करता हुआ विचरण करूँ। इस प्रकार का सम्प्रेक्षण किया और रात्रि व्यतीत होने पर प्रातःकाल यावत् जाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर स्वामी की सेवा में आकर उन्हें वन्दना – नमस्कार करके यावत् पर्युपासना करने लगे। तत्पश्चात् ‘हे स्कन्दक !’ यों सम्बोधित करके श्रमण भगवान महावीर ने स्कन्दक अनगार से इस प्रकार कहा – ‘‘हे स्कन्दक ! रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म जागरणा करते हुए तुम्हें इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि इस उदार यावत् महाप्रभावशाली तपश्चरण से मेरा शरीर अब कृश हो गया है, यावत् अब मैं संलेखना – संथारा करके मृत्यु की आकांक्षा न करके पादपोपगमन अनशन करूँ। ऐसा विचार करके प्रातःकाल सूर्योदय होने पर तुम मेरे पास आए हो। हे स्कन्दक ! क्या यह सत्य है ?’’ हाँ, भगवन् ! यह सत्य है। हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो; इस धर्मकार्य में विलम्ब मत करो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nagare samosaranam java parisa padigaya. Tae nam tassa khamdayassa anagarassa annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– Evam khalu aham imenam eyaruvenam oralenam viulenam payattenam paggahienam kallanenam sivenam dhannenam mamgallenam sassirienam udaggenam udattenam uttamenam udarenam mahanubhagenam tavokammenam sukke lukkhe nimmamse atthichammavanaddhe kidikidiyabhue kise dhamanisamtae jae. Jivamjivenam gachchhami, jivamjivenam chitthami, bhasam bhasitta vi gilami, bhasam bhasamane gilami, bhasam bhasissamiti gilami. Se jahanamae katthasagadiya i va, pattasagadiya i va, patta-tila-bhamdagasagadiya i va, eramdakatthasagadiya i va, imgalasagadiya i va–unhe dinna sukka samani sasaddam gachchhai, sasaddam chitthai, evameva aham pi sasaddam gachchhami, sasaddam chitthami. Tam atthi ta me utthane kamme bale virie purisakkara-parakkame tam javata me atthi utthane kamme bale virie purisakkara-parakkame java ya me dhammayarie dhammovadesae samane bhagavam mahavire jine suhatthi viharai, tavata me seyam kallam pauppabhayae rayanie, phulluppalakamalakomalummi-liyammi ahapamdure pabhae, rattasoyappakase, kimsuya-suyamuhagumjaddharagasarise, kamalagarasamdabohae, utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte samanam bhagavam mahaviram vamditta namamsitta nachcha-sanne natidure sussusamane abhimuhe vinaenam pamjaliyade pajjuvasitta.. ..Samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnae samane sayameva pamcha mahavvayani arovetta, samana ya samanio ya khametta taharuvehim therehim kadaihim saddhim vipulam pavvayam saniyam-saniyam duruhitta mehaghanasamnigasam devasannivatam pudhavisilapattayam padilehitta, dabbhasamtharagam samtharitta dabbhasamtharovagayassa samlehanajjhusana-jjhusiyassa bhattapanapadiyaikkhiyassa paovagayassa kalam anavakamkhamanassa viharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliyade pajjuvasai. Khamdayai! Samane bhagavam mahavire khamdayam anagaram evam vayasi– se nunam tava khamdaya! Puvvarattavaratta kalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– Evam khalu aham imenam eyaruvenam tavenam oralenam viulenam tam cheva java kalam anavakamkhamanassa viharittae tti kattu evam sampehesi, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva mamam amtie teneva havvamagae. Se nunam khamdaya! Atthe samatthe? Hamta atthi. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samaya mem shramana bhagavana mahavira rajagriha nagara mem padhare. Samavasarana ki rachana hui. Yavat janata dharmopadesha sunakara vapisa lauta gai. Tadanantara kisi eka dina ratri ke pichhale prahara mem dharma – jagarana karate hue skandaka anagara ke mana mem isa prakara ka adhyavasaya, chintana yavat samkalpa utpanna hua ki maim isa prakara ke udara yavat mahaprabhavashali tapahkarma dvara shushka, ruksha yavat krisha ho gaya hum. Yavat mera sharirika bala kshina ho gaya, maim kevala atmabala se chalata hum aura khara rahata hum. Yaham taka ki bolane ke bada, bolate samaya aura bolane se purva bhi mujhe glani – khinnata hoti hai yavat purvokta gariyom ki taraha chalate aura khare rahate hue meri haddiyom se khara – khara avaja hoti hai. Atah jaba taka mujhamem utthana, karma, bala, virya, purushakara, parakrama hai, jaba taka mere dharmacharya, dharmopadeshaka, tirthamkara shramana bhagavana mahavira suhasti ki taraha vicharana kara rahe haim, taba taka mere lie shreyaskara hai ki isa ratri ke vyatita ho jane para kala pratahkala komala utpalakamalom ko vikasita karane vale, kramashah panduraprabha se rakta ashoka ke samana prakashamana, tesu ke phula, tote ki chomcha, gumja ke arddha bhaga jaise lala, kamalavanom ko vikasita karane vale, sahastrarashmi, tatha teja se jajvalyamana dinakara surya ke udaya hone para maim shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara yavat paryupasana karake, ajnya prapta karake, svayameva pamchamahavratom ka aropana karake, shramana – shramaniyom ke satha kshamapana karake kritadi tatharupa sthavira sadhuom ke satha vipulagiri para shanaih shanaih charhakara, meghasamuha ke samana kale, devom ke avataranasthanarupa prithvishilapatta ki pratilekhana karake, usa para dabha (darbha) ka samthara bichhakara, usa darbha samstaraka para baithakara atma ko samlekhana tatha jhoshana se yukta karake, ahara – pani ka sarvatha tyaga karake padapopagamana samthara karake, mrityu ki akamksha na karata hua vicharana karum. Isa prakara ka samprekshana kiya aura ratri vyatita hone para pratahkala yavat jajvalyamana surya ke udaya hone para skandaka anagara shramana bhagavana mahavira svami ki seva mem akara unhem vandana – namaskara karake yavat paryupasana karane lage. Tatpashchat ‘he skandaka !’ yom sambodhita karake shramana bhagavana mahavira ne skandaka anagara se isa prakara kaha – ‘‘he skandaka ! Ratri ke pichhale prahara mem dharma jagarana karate hue tumhem isa prakara ka adhyavasaya yavat samkalpa utpanna hua ki isa udara yavat mahaprabhavashali tapashcharana se mera sharira aba krisha ho gaya hai, yavat aba maim samlekhana – samthara karake mrityu ki akamksha na karake padapopagamana anashana karum. Aisa vichara karake pratahkala suryodaya hone para tuma mere pasa ae ho. He skandaka ! Kya yaha satya hai\?’’ ham, bhagavan ! Yaha satya hai. He devanupriya! Jaisa tumhem sukha ho, vaisa karo; isa dharmakarya mem vilamba mata karo. |