Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003613 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२ |
Translated Chapter : |
शतक-२ |
Section : | उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Translated Section : | उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक |
Sutra Number : | 113 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एत्थ णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स, तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ। धम्मकहा भाणियव्वा। तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए णंदि पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! – से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कट्टु समणं भगवं महावीरं वंदेइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य एगंते एडेइ, एडेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– आलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्त-पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य। से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि ज्झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए, तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ। एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव देवानुप्पिया! मज्झ वि आया एगे भंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेस्सासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, मा णं वाला, मा णं दंसा, मा णं मसया, मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसतु त्ति कट्टु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं, सयमेव सिक्खावियं, सयमेव आयार-गोयरं विनय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणसगोत्तं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, सयमेव सिक्खावेइ, सयमेव आयार-गोयरं विनय-वेणइय-चरण-करण-जायामाया-वत्तियं धम्ममाइक्खइ– एवं देवानुप्पिया! गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीइयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं, एवं भासियव्वं, एवं उट्ठाय-उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सिं च णं अट्ठे नो किंचि वि पमाइयव्वं। तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जइ–तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, तह निसीयइ, तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाय-उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमेइ, अस्सिं च णं अट्ठे नो पमायइ। तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते अनगारे जाते– इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मन-समिए वइसमिए कायसमिए मनगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्जू धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अनियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | (भगवान महावीर से समाधान पाकर) कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक को सम्बोध प्राप्त हुआ। उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार करके यों कहा – ‘भगवन् ! मैं आपके पास केवलिप्ररूपित धर्म सूनना चाहता हूँ।’ हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो, शुभकार्य में विलम्ब मत करो। पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामीने कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक को और उस बहुत बड़ी परीषद् को धर्मकथा कही। तत्पश्चात् वह कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक भगवान महावीर के श्रीमुख से धर्मकथा सूनकर एवं हृदयमें अवधारण करके अत्यन्त हर्षित हुआ, सन्तुष्ट हुआ, यावत् उसका हृदय हर्ष से विकसित हो गया। तदनन्तर खड़े होकर और श्रमण भगवान महावीर को दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा करके स्कन्दक परिव्राजक ने इस प्रकार कहा – ‘भगवन् निर्ग्रन्थप्रवचन पर मैं श्रद्धा करता हूँ, निर्ग्रन्थप्रवचन पर मैं प्रतीति करता हूँ, भगवन् ! निर्ग्रन्थ – प्रवचनमें मुझे रुचि है, भगवन् ! निर्ग्रन्थ प्रवचन में अभ्युद्यत होता हूँ। हे भगवन् ! यह (निर्ग्रन्थ प्रवचन) इसी प्रकार है, यह तथ्य है, यह सत्य है, यह असंदिग्ध है, भगवन् ! यह मुझे इष्ट है, प्रतीष्ट है, इष्ट – प्रतीष्ट है। हे भगवन् ! जैसा आप फरमाते हैं, वैसा ही है। यों कहकर स्कन्दक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। ऐसा करके उसने ईशानकोण में जाकर त्रिदण्ड, कुण्डिका, यावत् गेरुए वस्त्र आदि परिव्राजक के उपकरण एकान्त में छोड़ दिए। फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आकर भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा करके यावत् नमस्कार करके इस प्रकार कहा – ‘भगवन् ! वृद्धावस्था और मृत्युरूपी अग्नि से यह लोक आदीप्त – प्रदीप्त है, वह एकदम जल रहा हे और विशेष जल रहा है। जैसे किसी गृहस्थ के घर में आग लग गई हो और वह घर जल रहा हो, तब वह उस जलते घर में से बहुमूल्य और अल्प भार वाले सामान को पहले बाहर नीकालता है, और उसे लेकर वह एकान्त में जाता है। वह यह सोचता है – बाहर नीकाला हुआ यह सामान भविष्य में आगे – पीछे मेरे लिए हितरूप, सुखरूप, क्षेमकुशलरूप, कल्याणरूप एवं साथ चलने वाला होगा। इसी तरह हे देवानुप्रिय भगवन् ! मेरा आत्मा भी एक भाण्ड रूप है। यह मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय, सुन्दर, मनोज्ञ, मनोरम, स्थिरता वाला, विश्वासपात्र, सम्मत, अनुमत, बहुमत और रत्नों के पिटारे के समान है। इसलिए इसे ठंड न लगे, गर्मी न लगे, यह भूख – प्यास से पीड़ित न हो, इसे चोर, सिंह और सर्प हानि न पहुँचाए, इसे डाँस और मच्छर न सताएं, तथा वात, पित्त, कफ, सन्निपात आदि विविध रोग और आतंक परीषह और उपसर्ग इसे स्पर्श न करें, इस प्रकार मैं इनसे इसकी बराबर रक्षा करता हूँ। मेरा आत्मा मुझे परलोक में हितरूप, सुखरूप, कुशलरूप, कल्याणरूप और अनुगामीरूप होगा। इसलिए भगवन् ! मैं आपके पास स्वयं प्रव्रजित होना, स्वयं मुण्डित होना चाहता हूँ। मेरी ईच्छा है कि आप स्वयं मुझे प्रव्रजित करें, मुण्डित करें, आप स्वयं मुझे प्रतिलेखनादि क्रियाएं सिखाएं, सूत्र और अर्थ पढ़ाएं। मैं चाहता हूँ कि आप मुझे ज्ञानादि आचार, गोचर, विनय, विनय का फल, चारित्र और पिण्ड – विशुद्धि आदि करण तथा संयम यात्रा और संयमयात्रा के निर्वाहक आहारादि की मात्रा के ग्रहणरूप धर्म को कहें।’ तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने स्वयमेव कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक को प्रव्रजित किया, यावत् स्वयमेव धर्म की शिक्षा दी कि हे देवानुप्रिय ! इस प्रकार (यतना) से चलना चाहिए, इस तरह से खड़ा रहना चाहिए, इस तरह से बैठना चाहिए, इस तरह से सोना चाहिए, इस तरह से खाना चाहिए, इस तरह से बोलना चाहिए, इस प्रकार से उठकर सावधानतापूर्वक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व के प्रति संयमपूर्वक वर्ताव करना चाहिए। इस विषय में जरा भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। तब कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक मुनि ने पूर्वोक्त धार्मिक उपदेश को भलीभाँति स्वीकार किया और जिस प्रकार की भगवान महावीर की आज्ञा अनुसार श्री स्कन्दकमुनि चलने लगे, वैसे ही खड़े रहने लगे, वैसे ही बैठने, सोने, खाने, बोलने आदि क्रियाएं करने लगे; तथा तदनुसार ही प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के प्रति संयमपूर्वक बर्ताव करने लगे। इस विषय में वे जरा – सा प्रमाद नहीं करते थे। अब वह कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक अनगार हो गए। वह अब ईर्यासमिति, भाषासमिति, एकणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति, उच्चार – प्रस्रवण – खेल – जल्ल – सिंघाणपरिष्ठापनिका समिति, एवं मनःसमिति, वचनसमिति और कायसमिति, इन आठ समितियों का सम्यक् रूप से सावधानतापूर्वक पालन करने लगे। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति से गुप्त रहने लगे, वे सबको वश में रखने वाले, इन्द्रियों को गुप्त रखने वाले, गुप्तब्रह्मचारी, त्यागी, लज्जावान, धन्य, क्षमावान, जितेन्द्रिय, व्रतों आदि के शुद्धिपूर्वक आचरणकर्ता, नियाणा न करने वाले, आकांक्षारहित, उतावल से दूर, संयम से बाहर चित्त न रखने वाले, श्रेष्ठ साधुव्रतों में लीन, दान्त स्कन्दक मुनि इसी निर्ग्रन्थ प्रवचन को सम्मुख रखकर विचरण करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ettha nam se khamdae kachchayanasagotte sambuddhe samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbham amtie kevalipannattam dhammam nisamittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. Tae nam samane bhagavam mahavire khamdayassa kachchayanasagottassa, tise ya mahaimahaliyae parisae dhammam parikahei. Dhammakaha bhaniyavva. Tae nam se khamdae kachchayanasagotte samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatuttha chittamanamdie namdi piimane paramasomanassie harisavasavisappamana hiyae utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, Pattiyami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, Roemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam, Abbhutthemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitahameyam bhamte! Asamdiddhameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichchhiya-padichchhiyameyam bhamte! – se jaheyam tubbhe vadaha tti kattu samanam bhagavam mahaviram vamdei namamsai, vamditta namamsitta uttarapuratthimam disibhayam avakkamai, avakkamitta tidamdam cha kumdiyam cha java dhaurattao ya egamte edei, edetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uva gachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– alitte nam bhamte! Loe, palitte nam bhamte! Loe, alitta-palitte nam bhamte! Loe jarae maranena ya. Se jahanamae kei gahavai agaramsi jjhiyayamanamsi je se tattha bhamde bhavai appabhare mollagarue, tam gahaya ayae egamtamamtam avakkamai. Esa me nittharie samane pachchha pura ya hiyae suhae khamae nisseyasae anugamiyattae bhavissai. Evameva devanuppiya! Majjha vi aya ege bhamde itthe kamte pie manunne maname thejje vessasie sammae bahumae anumae bhamdakaramdagasamane, ma nam siyam, ma nam unham, ma nam khuha, ma nam pivasa, ma nam chora, ma nam vala, ma nam damsa, ma nam masaya, ma nam vaiya-pittiya-sembhiya-sannivaiya viviha rogayamka parisahovasagga phusatu tti kattu esa me nittharie samane paraloyassa hiyae suhae khamae nisesae anugamiyattae bhavissai. Tam ichchhami nam devanuppiya! Sayameva pavvaviyam, sayameva mumdaviyam, sayameva sehaviyam, sayameva sikkhaviyam, sayameva ayara-goyaram vinaya-venaiya-charana-karana-jayamayavattiyam dhammamaikkhiyam. Tae nam samane bhagavam mahavire khamdayam kachchayanasagottam sayameva pavvavei, sayameva mumdavei, sayameva sehavei, sayameva sikkhavei, sayameva ayara-goyaram vinaya-venaiya-charana-karana-jayamaya-vattiyam dhammamaikkhai– evam devanuppiya! Gamtavvam, evam chitthiyavvam, evam nisiiyavvam, evam tuyattiyavvam, evam bhumjiyavvam, evam bhasiyavvam, evam utthaya-utthaya panehim bhuehim jivehim sattehim samjamenam samjamiyavvam, assim cha nam atthe no kimchi vi pamaiyavvam. Tae nam se khamdae kachchayanasagotte samanassa bhagavao mahavirassa imam eyaruvam dhammiyam uvaesam sammam sampadivajjai–tamanae taha gachchhai, taha chitthai, taha nisiyai, taha tuyattai, taha bhumjai, taha bhasai, taha utthaya-utthaya panehim bhuehim jivehim sattehim samjamenam samjamei, assim cha nam atthe no pamayai. Tae nam se khamdae kachchayanasagotte anagare jate– iriyasamie bhasasamie esanasamie ayanabhamdamattanikkhevanasamie uchchara-pasavana-khela-simdhana-jalla-paritthavaniyasamie mana-samie vaisamie kayasamie managutte vaigutte kayagutte gutte guttimdie guttabambhayari chai lajju dhanne khamtikhame jiimdie sohie aniyane appussue abahillese susamannarae damte inameva niggamtham pavayanam purao kaum viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (bhagavana mahavira se samadhana pakara) katyayanagotriya skandaka parivrajaka ko sambodha prapta hua. Usane shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake yom kaha – ‘bhagavan ! Maim apake pasa kevaliprarupita dharma sunana chahata hum.’ he devanupriya ! Jaisa tumhem sukha ho, vaisa karo, shubhakarya mem vilamba mata karo. Pashchat shramana bhagavana mahavira svamine katyayanagotriya skandaka parivrajaka ko aura usa bahuta bari parishad ko dharmakatha kahi. Tatpashchat vaha katyayanagotriya skandaka parivrajaka bhagavana mahavira ke shrimukha se dharmakatha sunakara evam hridayamem avadharana karake atyanta harshita hua, santushta hua, yavat usaka hridaya harsha se vikasita ho gaya. Tadanantara khare hokara aura shramana bhagavana mahavira ko dahini ora se tina bara pradakshina karake skandaka parivrajaka ne isa prakara kaha – ‘bhagavan nirgranthapravachana para maim shraddha karata hum, nirgranthapravachana para maim pratiti karata hum, bhagavan ! Nirgrantha – pravachanamem mujhe ruchi hai, bhagavan ! Nirgrantha pravachana mem abhyudyata hota hum. He bhagavan ! Yaha (nirgrantha pravachana) isi prakara hai, yaha tathya hai, yaha satya hai, yaha asamdigdha hai, bhagavan ! Yaha mujhe ishta hai, pratishta hai, ishta – pratishta hai. He bhagavan ! Jaisa apa pharamate haim, vaisa hi hai. Yom kahakara skandaka ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Aisa karake usane ishanakona mem jakara tridanda, kundika, yavat gerue vastra adi parivrajaka ke upakarana ekanta mem chhora die. Phira jaham shramana bhagavana mahavira svami virajamana the, vaham akara bhagavana mahavira ko tina bara pradakshina karake yavat namaskara karake isa prakara kaha – ‘bhagavan ! Vriddhavastha aura mrityurupi agni se yaha loka adipta – pradipta hai, vaha ekadama jala raha he aura vishesha jala raha hai. Jaise kisi grihastha ke ghara mem aga laga gai ho aura vaha ghara jala raha ho, taba vaha usa jalate ghara mem se bahumulya aura alpa bhara vale samana ko pahale bahara nikalata hai, aura use lekara vaha ekanta mem jata hai. Vaha yaha sochata hai – bahara nikala hua yaha samana bhavishya mem age – pichhe mere lie hitarupa, sukharupa, kshemakushalarupa, kalyanarupa evam satha chalane vala hoga. Isi taraha he devanupriya bhagavan ! Mera atma bhi eka bhanda rupa hai. Yaha mujhe ishta, kanta, priya, sundara, manojnya, manorama, sthirata vala, vishvasapatra, sammata, anumata, bahumata aura ratnom ke pitare ke samana hai. Isalie ise thamda na lage, garmi na lage, yaha bhukha – pyasa se pirita na ho, ise chora, simha aura sarpa hani na pahumchae, ise damsa aura machchhara na sataem, tatha vata, pitta, kapha, sannipata adi vividha roga aura atamka parishaha aura upasarga ise sparsha na karem, isa prakara maim inase isaki barabara raksha karata hum. Mera atma mujhe paraloka mem hitarupa, sukharupa, kushalarupa, kalyanarupa aura anugamirupa hoga. Isalie bhagavan ! Maim apake pasa svayam pravrajita hona, svayam mundita hona chahata hum. Meri ichchha hai ki apa svayam mujhe pravrajita karem, mundita karem, apa svayam mujhe pratilekhanadi kriyaem sikhaem, sutra aura artha parhaem. Maim chahata hum ki apa mujhe jnyanadi achara, gochara, vinaya, vinaya ka phala, charitra aura pinda – vishuddhi adi karana tatha samyama yatra aura samyamayatra ke nirvahaka aharadi ki matra ke grahanarupa dharma ko kahem.’ Tadanantara shramana bhagavana mahavira svami ne svayameva katyayanagotriya skandaka parivrajaka ko pravrajita kiya, yavat svayameva dharma ki shiksha di ki he devanupriya ! Isa prakara (yatana) se chalana chahie, isa taraha se khara rahana chahie, isa taraha se baithana chahie, isa taraha se sona chahie, isa taraha se khana chahie, isa taraha se bolana chahie, isa prakara se uthakara savadhanatapurvaka prana, bhuta, jiva aura sattva ke prati samyamapurvaka vartava karana chahie. Isa vishaya mem jara bhi pramada nahim karana chahie. Taba katyayanagotriya skandaka muni ne purvokta dharmika upadesha ko bhalibhamti svikara kiya aura jisa prakara ki bhagavana mahavira ki ajnya anusara shri skandakamuni chalane lage, vaise hi khare rahane lage, vaise hi baithane, sone, khane, bolane adi kriyaem karane lage; tatha tadanusara hi pranom, bhutom, jivom aura sattvom ke prati samyamapurvaka bartava karane lage. Isa vishaya mem ve jara – sa pramada nahim karate the. Aba vaha katyayanagotriya skandaka anagara ho gae. Vaha aba iryasamiti, bhashasamiti, ekanasamiti, adanabhandamatranikshepanasamiti, uchchara – prasravana – khela – jalla – simghanaparishthapanika samiti, evam manahsamiti, vachanasamiti aura kayasamiti, ina atha samitiyom ka samyak rupa se savadhanatapurvaka palana karane lage. Manogupti, vachanagupti aura kayagupti se gupta rahane lage, ve sabako vasha mem rakhane vale, indriyom ko gupta rakhane vale, guptabrahmachari, tyagi, lajjavana, dhanya, kshamavana, jitendriya, vratom adi ke shuddhipurvaka acharanakarta, niyana na karane vale, akamksharahita, utavala se dura, samyama se bahara chitta na rakhane vale, shreshtha sadhuvratom mem lina, danta skandaka muni isi nirgrantha pravachana ko sammukha rakhakara vicharana karane lage. |