Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003563 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१ |
Translated Chapter : |
शतक-१ |
Section : | उद्देशक-५ पृथ्वी | Translated Section : | उद्देशक-५ पृथ्वी |
Sutra Number : | 63 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठितीए वट्ठमाणा नेरइया किं– कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य। कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ता य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ता य। एवं असीतिभंगा नेयव्वा। एवं जाव संखेज्जसमयाहियाए ठितीए, असंखेज्जसमयाहियाए ठितीए तप्पाउग्गुक्को-सियाए ठितीए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ओगाहणाठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ओगाहणाठाणा पन्नत्ता, तं जहा–जहन्निया ओगाहणा, पदेसाहिया जहन्निया ओगाहणा, दुपदेसाहिया जहन्निया ओगाहणा जाव असंखेज्जपएसाहिया जहन्निया ओगाहणा। तप्पाउग्गुक्कोसिया ओगाहणा। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहन्नियाए ओगाहणाए वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? असीइभंगा भाणियव्वा जाव संखेज्जपदेसाहिया जहन्निया ओगाहणा। असंखेज्जपदेसाहियाए जहन्नियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं, तप्पाउग्गुक्कोसियाए ओगा-हणाए वट्टमाणाणं सत्तावीसं भंगा। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं कइ सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए, तेयए, कम्मए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव वेउव्वियसरीरे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। एएणं गमेणं तिन्नि सरीरया भाणियव्वा। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइयाणं सरीरया किंसंघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी नेवट्ठी, नेव छिरा, नेव ण्हारूणि। जे पोग्गला अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुहा अमणुन्ना अमणामा एतेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। इमीसे णं भंते? रयणप्पभाए जाव छण्हं संघयणाणं असंघयणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। इमीसे णं भंते? रयणप्पभाए जाव नेरइयाणं सरीरया किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य, उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पन्नत्ता, तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते वि हुंडसंठिया पन्नत्ता। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव हुंडसंठाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहीवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइयाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एगा काउलेस्सा पन्नत्ता। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव काउलेस्साए वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं। जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना जानना। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! जघन्य अवगाहना वालों में अस्सी भंग कहने चाहिए, यावत् संख्यात देश अधिक जघन्य अवगाहना वालों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए। असंख्यात – प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वाले और उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले, इन दोनों प्रकार के नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में बसने वाले नारक जीवों के शरीर कितने हैं ? गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – वैक्रिय, तैजस और कार्मण। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में बसने वाले वैक्रिय शरीरी नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं इत्यादि ? गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। और इस प्रकार शेष दोनों शरीरों (तैजस और कार्मण) सहित तीनों के संबंध में यही बात (आलापक) कहनी चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास बसनेवाले नैरयिकों के शरीरों का कौन – सा संहनन है ? गौतम ! उनका शरीर संहननरहित है, उनके शरीर में हड्डी, शिरा और स्नायु नहीं होती। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल नारकों के शरीर – संघात रूप परिणत होते हैं। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासोंमें से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छ संहननोंमें जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् अथवा लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके सत्ताईस भंग कहने चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ? गौतम ! उन नारकों का शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है – भव – धारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, और जो शरीर उत्तरवैक्रियरूप हैं, वे भी हुण्डकसंस्थान वाले कहे गए हैं। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डकसंस्थान में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त इत्यादि हैं ? गौतम ! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! उनमें केवल एक कापोतलेश्या कही गई है। भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले कापोतलेश्या वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके भी सत्ताईस भंग कहने चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasasayasahassesu egamegamsi nirayavasamsi samayahiyae jahannatthitie vatthamana neraiya kim– kohovautta? Manovautta? Mayovautta? Lobhovautta? Goyama! Kohovautte ya, manovautte ya, mayovautte ya, lobhovautte ya. Kohovautta ya, manovautta ya, mayovautta ya, lobhovautta ya. Ahava kohovautte ya, manovautte ya. Ahava kohovautte ya, manovautta ya. Evam asitibhamga neyavva. Evam java samkhejjasamayahiyae thitie, asamkhejjasamayahiyae thitie tappauggukko-siyae thitie sattavisam bhamga bhaniyavva Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasasayasahassesu egamegamsi nirayavasamsi neraiyanam kevaiya ogahanathana pannatta? Goyama! Asamkhejja ogahanathana pannatta, tam jaha–jahanniya ogahana, padesahiya jahanniya ogahana, dupadesahiya jahanniya ogahana java asamkhejjapaesahiya jahanniya ogahana. Tappauggukkosiya ogahana. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasasayasahassesu egamegamsi nirayavasamsi jahanniyae ogahanae vattamana neraiya kim kohovautta? Asiibhamga bhaniyavva java samkhejjapadesahiya jahanniya ogahana. Asamkhejjapadesahiyae jahanniyae ogahanae vattamananam, tappauggukkosiyae oga-hanae vattamananam sattavisam bhamga. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie tisae nirayavasasayasahassesu egamegamsi nirayavasamsi neraiyanam kai sariraya pannatta? Goyama! Tinni sariraya pannatta, tam jaha–veuvvie, teyae, kammae. Imise nam bhamte! Rayanappabhae java veuvviyasarire vattamana neraiya kim kohovautta? Sattavisam bhamga. Eenam gamenam tinni sariraya bhaniyavva. Imise nam bhamte! Rayanappabhae java neraiyanam sariraya kimsamghayana pannatta? Goyama! Chhanham samghayananam asamghayani nevatthi, neva chhira, neva nharuni. Je poggala anittha akamta appiya asuha amanunna amanama etesim sarirasamghayattae parinamamti. Imise nam bhamte? Rayanappabhae java chhanham samghayananam asamghayane vattamana neraiya kim kohovautta? Sattavisam bhamga. Imise nam bhamte? Rayanappabhae java neraiyanam sariraya kimsamthiya pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya, uttaraveuvviya ya. Tattha nam je te bhavadharanijja te humdasamthiya pannatta, tattha nam je te uttaraveuvviya te vi humdasamthiya pannatta. Imise nam bhamte! Rayanappabhae java humdasamthane vattamana neraiya kim kohivautta? Sattavisam bhamga. Imise nam bhamte! Rayanappabhae java neraiyanam kati lessao pannattao? Goyama! Ega kaulessa pannatta. Imise nam bhamte! Rayanappabhae java kaulessae vattamana neraiya kim kohovautta? Sattavisam bhamga | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se eka – eka narakavasa mem rahane vale narakom ke avagahana sthana kitane haim\? Gautama ! Unake avagahana sthana asamkhyata haim. Jaghanya avagahana (amgula ke asamkhyatavem bhaga), (madhyama avagahana) eka pradeshadhika jaghanya avagahana, dvipradeshadhika jaghanya avagahana, yavat asamkhyata pradeshadhika jaghanya avagahana, tatha usake yogya utkrishta avagahana janana. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se eka – eka narakavasa mem jaghanya avagahana vale nairayika kya krodhopayukta haim, manopayukta haim, mayopayukta haim athava lobhopayukta haim\? Gautama ! Jaghanya avagahana valom mem assi bhamga kahane chahie, yavat samkhyata desha adhika jaghanya avagahana valom ke bhi assi bhamga kahane chahie. Asamkhyata – pradesha adhika jaghanya avagahana vale aura usake yogya utkrishta avagahana vale, ina donom prakara ke narakom mem sattaisa bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se eka – eka narakavasa mem basane vale naraka jivom ke sharira kitane haim\? Gautama ! Unake tina sharira kahe gae haim. Ve isa prakara haim – vaikriya, taijasa aura karmana. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se pratyeka narakavasa mem basane vale vaikriya shariri naraka kya krodhopayukta haim ityadi\? Gautama ! Unake krodhopayukta adi 27 bhamga kahane chahie. Aura isa prakara shesha donom sharirom (taijasa aura karmana) sahita tinom ke sambamdha mem yahi bata (alapaka) kahani chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se pratyeka narakavasa basanevale nairayikom ke sharirom ka kauna – sa samhanana hai\? Gautama ! Unaka sharira samhananarahita hai, unake sharira mem haddi, shira aura snayu nahim hoti. Jo pudgala anishta, akanta, apriya, ashubha, amanojnya aura amanohara haim, ve pudgala narakom ke sharira – samghata rupa parinata hote haim. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasommem se pratyeka narakavasa mem rahane vale aura chha samhananommem jinake eka bhi samhanana nahim hai, ve nairayika kya krodhopayukta haim, yavat athava lobhopayukta haim\? Gautama ! Inake sattaisa bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke tisa lakha narakavasom mem se pratyeka narakavasa mem rahane vale nairayikom ke sharira kisa samsthana vale haim\? Gautama ! Una narakom ka sharira do prakara ka kaha gaya hai, vaha isa prakara hai – bhava – dharaniya aura uttaravaikriya. Unamem jo bhavadharaniya sharira vale haim, ve hundaka samsthana vale hote haim, aura jo sharira uttaravaikriyarupa haim, ve bhi hundakasamsthana vale kahe gae haim. Bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi mem yavat hundakasamsthana mem vartamana naraka kya krodhopayukta ityadi haim\? Gautama ! Inake bhi krodhopayukta adi 27 bhamga kahane chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi mem basane vale nairayikom mem kitani leshyaem haim\? Gautama ! Unamem kevala eka kapotaleshya kahi gai hai. Bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi mem basane vale kapotaleshya vale naraka jiva kya krodhopayukta haim, yavat lobhopayukta haim\? Gautama ! Inake bhi sattaisa bhamga kahane chahie. |