Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003341 | ||
Scripture Name( English ): | Samavayang | Translated Scripture Name : | समवयांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवाय प्रकीर्णक |
Translated Chapter : |
समवाय प्रकीर्णक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 241 | Category : | Ang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] केवइया णं भंते! पुढवीकाइयावासा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा पुढवीकाइयावासा पन्नत्ता। एवं जाव मनुस्सत्ति। केवइया णं भंते! वाणमंतरावासा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसयं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता। ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा, एवं जहा भवनवासीणं तहेव नेयव्वा, नवरं–पडागमालाउला सुरम्मा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। केवइया णं भंते! जोइसियाणं विमानावासा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउयाइं जोयणसयाइ उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेज्जा जोइसियविमनावासा पन्नत्ता। ते णं जोइसियविमानावासा अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया विविहमणि-रयण-भत्तिचित्ता वाउद्धुय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्तातिछत्तकलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण-पंजरुम्मिलितव्व मणि-कणग-थूभियागा विगसित-सयपत्त-पुंडरीय-तिलय-रयणड्ढचंद-चित्ता अंतो बहिं च सण्हा तवणिज्ज-वालुगा-पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। केवइया णं भंते! वेमानियावासा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं वीइवइत्ता बहूणि जोयणाणि बहूणि जोयणसयाणि बहूणि जोयणसहस्साणि बहूणि जोयणसयसहस्साणि बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाओ जोयकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं वीइवइत्ता, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरणच्चुएसु गेवेज्जमनुत्तरेसु य चउरासीइं विमानावाससयसहस्सा सत्ताणउइं सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते णं विमाणा अच्चिमालिप्पभा भासरासिवण्णाभा अरया नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा सव्व-रयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवइया विमनावासा पन्नत्ता? गोयमा! बत्तीसं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं ईसाणाइसु–अट्ठावीसं बारस अट्ठ चत्तारि–एयाइं सयसहस्साइं, पन्नासं चत्तालीसं छ–एयाइं सहस्साइं, आणए पाणए चत्तारि, आरणच्चुए तिन्निएयाणि सयाणि। एवं गाहाहिं भाणियव्वं– | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के आवास कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात आवास कहे गए हैं। इसी प्रकार जलकायिक जीवों से लेकर यावत् मनुष्यों तक के जानना चाहिए। भगवन् ! वाणव्यन्तरों के आवास कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय कांड के एक सौ योजन ऊपर से अवगाहन कर और एक सौ योजन नीचे के भाग को छोड़कर मध्य के आठ सौ योजनों में वाणव्यन्तर देवों के तीरछे फैले हुए असंख्यात लाख भौमेयक नगरावास कहे गए हैं। वे भौमेयक नगर बाहर गोल और भीतर चौकोर हैं। इस प्रकार जैसा भवनवासी देवों के भवनों का वर्णन किया गया है, वैसा ही वर्णन वाणव्यन्तर देवों के भवनों का जानना चाहिए। केवल इतनी विशेषता है कि ये पताका – मालाओं से व्याप्त हैं। यावत् सुरम्य हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमानावास कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जाकर एक सौ दश योजन बाहल्य वाले तीरछे ज्योतिष्क – विषयक आकाशभाग में ज्योतिष्क देवों के असंख्यात विमानावास कहे गए हैं। वे अपने में से नीकलती हुई और सर्व दिशाओं में फैलती हुई प्रभा से उज्ज्वल हैं, अनेक प्रकार के मणि और रत्नों की चित्रकारी से युक्त हैं, वायु से उड़ती हुई विजय – वैजयन्ती पताकाओं से और छत्रातिछत्रों से युक्त हैं, गगनतल को स्पर्श करने वाले ऊंचे शिखर वाले हैं, उनकी जालियों के भीतर रत्न लगे हुए हैं। जैसे पंजर (प्रच्छादन) से तत्काल नीकाली वस्तु सश्रीक – चमचमाती है वैसे ही वे सश्रीक हैं। मणि और सुवर्ण की स्तूपिकाओं से युक्त हैं, विकसित शतपत्रों एवं पुण्डरीकों (श्वेत कमलों) से, तिलकों से, रत्नों के अर्धचन्द्राकार चित्रों से व्याप्त हैं, भीतर और बाहर अत्यन्त चिकने हैं, तपाये हुए स्वर्ण के समान वालुकामयी प्रस्तटों या प्रस्तारों वाले हैं। सुखद स्पर्श वाले हैं, शोभायुक्त हैं, मन को प्रसन्न करने वाले और दर्शनीय हैं भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने आवास कहे गए हैं ? गौतम ! इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारकाओं को उल्लंघन कर अनेक योजन, अनेक शत योजन, अनेक सहस्र योजन (अनेक शत – सहस्र योजन) अनेक कोटि योजन, अनेक कोटाकोटी योजन, और असंख्यात कोटाकोटी योजन ऊपर बहुत दूर तक आकाश का उल्लंघन कर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्पों में, ग्रैवेयकों में और अनुत्तरों में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवे हजार और तेईस विमान हैं, ऐसा कहा गया है। वे विमान सूर्य की प्रभा के समान प्रभा वाले हैं, प्रकाशों की राशियों (पुंजों) के समान भासुर हैं, अरज (स्वाभाविक रज से रहित) हैं, नीरज (आगन्तुक रज से विहीन) हैं, निर्मल हैं, अन्धकाररहित हैं, विशुद्ध हैं, मरीची – युक्त हैं, उद्योत – सहित हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। भगवन् ! सौधर्म कल्प में कितने विमानावास कहे गए हैं ? गौतम ! सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास कहे गए हैं। इसी प्रकार ईशानादि शेष कल्पों में सहस्रार तक क्रमशः पूर्वोक्त गाथाओं के अनुसार अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार, छह सौ तथा आनत प्राणत कल्प में चार सौ और आरण – अच्युत कल्प में तीन सौ विमान कहना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kevaiya nam bhamte! Pudhavikaiyavasa pannatta? Goyama! Asamkhejja pudhavikaiyavasa pannatta. Evam java manussatti. Kevaiya nam bhamte! Vanamamtaravasa pannatta? Goyama! Imise nam rayanappabhae pudhavie rayanamayassa kamdassa joyanasahassabahallassa uvarim egam joyanasayam ogahetta hettha chegam joyanasayam vajjetta majjhe atthasu joyanasaesu, ettha nam vanamamtaranam devanam tiriyamasamkhejja bhomejjanagaravasasayasahassa pannatta. Te nam bhomejja nagara bahim vatta amto chauramsa, evam jaha bhavanavasinam taheva neyavva, navaram–padagamalaula suramma pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Kevaiya nam bhamte! Joisiyanam vimanavasa pannatta? Goyama! Imise nam rayanappabhae pudhavie bahusamaramanijjao bhumibhagao sattanauyaim joyanasayai uddham uppaitta, ettha nam dasuttarajoyanasayabahalle tiriyam joisavisae joisiyanam devanam asamkhejja joisiyavimanavasa pannatta. Te nam joisiyavimanavasa abbhuggayamusiya-pahasiya vivihamani-rayana-bhattichitta vauddhuya-vijaya-vejayamti-padaga-chhattatichhattakaliya tumga gaganatalamanulihamtasihara jalamtararayana-pamjarummilitavva mani-kanaga-thubhiyaga vigasita-sayapatta-pumdariya-tilaya-rayanaddhachamda-chitta amto bahim cha sanha tavanijja-valuga-patthada suhaphasa sassiriyaruva pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Kevaiya nam bhamte! Vemaniyavasa pannatta? Goyama! Imise nam rayanappabhae pudhavie bahusamaramanijjao bhumibhagao uddham chamdima-suriya-gahagana-nakkhatta-tararuvanam viivaitta bahuni joyanani bahuni joyanasayani bahuni joyanasahassani bahuni joyanasayasahassani bahuo joyanakodio bahuo joyanakodakodio asamkhejjao joyakodakodio uddham duram viivaitta, ettha nam vemaniyanam devanam sohammisana-sanamkumara-mahimda-bambha-lamtaga-sukka-sahassara-anaya-panaya-aranachchuesu gevejjamanuttaresu ya chaurasiim vimanavasasayasahassa sattanauim sahassa tevisam cha vimana bhavamtiti makkhaya. Te nam vimana achchimalippabha bhasarasivannabha araya niraya nimmala vitimira visuddha savva-rayanamaya achchha sanha lanha ghattha mattha nippamka nikkamkadachchhaya sappabha samiriya saujjoya pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Sohamme nam bhamte! Kappe kevaiya vimanavasa pannatta? Goyama! Battisam vimanavasasayasahassa pannatta. Evam isanaisu–atthavisam barasa attha chattari–eyaim sayasahassaim, pannasam chattalisam chha–eyaim sahassaim, anae panae chattari, aranachchue tinnieyani sayani. Evam gahahim bhaniyavvam– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Prithvikayika jivom ke avasa kitane kahe gae haim\? Gautama ! Prithvikayika jivom ke asamkhyata avasa kahe gae haim. Isi prakara jalakayika jivom se lekara yavat manushyom taka ke janana chahie. Bhagavan ! Vanavyantarom ke avasa kitane kahe gae haim\? Gautama ! Isa ratnaprabha prithvi ke eka hajara yojana mote ratnamaya kamda ke eka sau yojana upara se avagahana kara aura eka sau yojana niche ke bhaga ko chhorakara madhya ke atha sau yojanom mem vanavyantara devom ke tirachhe phaile hue asamkhyata lakha bhaumeyaka nagaravasa kahe gae haim. Ve bhaumeyaka nagara bahara gola aura bhitara chaukora haim. Isa prakara jaisa bhavanavasi devom ke bhavanom ka varnana kiya gaya hai, vaisa hi varnana vanavyantara devom ke bhavanom ka janana chahie. Kevala itani visheshata hai ki ye pataka – malaom se vyapta haim. Yavat suramya haim, mana ko prasanna karane vale haim, darshaniya haim, abhirupa haim aura pratirupa haim. Bhagavan ! Jyotishka devom ke vimanavasa kitane kahe gae haim\? Gautama ! Isa ratnaprabha prithvi ke bahusama ramaniya bhumibhaga se sata sau nabbe yojana upara jakara eka sau dasha yojana bahalya vale tirachhe jyotishka – vishayaka akashabhaga mem jyotishka devom ke asamkhyata vimanavasa kahe gae haim. Ve apane mem se nikalati hui aura sarva dishaom mem phailati hui prabha se ujjvala haim, aneka prakara ke mani aura ratnom ki chitrakari se yukta haim, vayu se urati hui vijaya – vaijayanti patakaom se aura chhatratichhatrom se yukta haim, gaganatala ko sparsha karane vale umche shikhara vale haim, unaki jaliyom ke bhitara ratna lage hue haim. Jaise pamjara (prachchhadana) se tatkala nikali vastu sashrika – chamachamati hai vaise hi ve sashrika haim. Mani aura suvarna ki stupikaom se yukta haim, vikasita shatapatrom evam pundarikom (shveta kamalom) se, tilakom se, ratnom ke ardhachandrakara chitrom se vyapta haim, bhitara aura bahara atyanta chikane haim, tapaye hue svarna ke samana valukamayi prastatom ya prastarom vale haim. Sukhada sparsha vale haim, shobhayukta haim, mana ko prasanna karane vale aura darshaniya haim Bhagavan ! Vaimanika devom ke kitane avasa kahe gae haim\? Gautama ! Isi ratnaprabha prithvi ke bahusama ramaniya bhumibhaga se upara, chandra, surya, grahagana, nakshatra aura tarakaom ko ullamghana kara aneka yojana, aneka shata yojana, aneka sahasra yojana (aneka shata – sahasra yojana) aneka koti yojana, aneka kotakoti yojana, aura asamkhyata kotakoti yojana upara bahuta dura taka akasha ka ullamghana kara saudharma, ishana, sanatkumara, mahendra, brahma, lantaka, shukra, sahasrara, anata, pranata, arana, achyuta kalpom mem, graiveyakom mem aura anuttarom mem vaimanika devom ke chaurasi lakha sattanave hajara aura teisa vimana haim, aisa kaha gaya hai. Ve vimana surya ki prabha ke samana prabha vale haim, prakashom ki rashiyom (pumjom) ke samana bhasura haim, araja (svabhavika raja se rahita) haim, niraja (agantuka raja se vihina) haim, nirmala haim, andhakararahita haim, vishuddha haim, marichi – yukta haim, udyota – sahita haim, mana ko prasanna karane vale haim, darshaniya haim, abhirupa haim aura pratirupa haim. Bhagavan ! Saudharma kalpa mem kitane vimanavasa kahe gae haim\? Gautama ! Saudharma kalpa mem battisa lakha vimanavasa kahe gae haim. Isi prakara ishanadi shesha kalpom mem sahasrara taka kramashah purvokta gathaom ke anusara atthaisa lakha, baraha lakha, atha lakha, chara lakha, pachasa hajara, chhaha sau tatha anata pranata kalpa mem chara sau aura arana – achyuta kalpa mem tina sau vimana kahana chahie. |