Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003327
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Translated Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 227 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं विवागसुए? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति। ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव। तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि। से किं तं दुहविवागाणि? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति। सेत्तं दुहविवागाणि। से किं तं सुहविवागाणि? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति। दुहविवागेसु णं पाणाइवाय-अलियवयण-चोरिक्क-करण-परदार-मेहुण-संसग्गयाए महति-व्वकसाय-इंदियप्पमाय-पावप्पओय-असुहज्झवसाण-संचियाणं कम्माणं पावगाणं पाव-अनुभाग-फलविवागा निरयगति-तिरिक्खजोणि-बहुविह-वसन-सय-परंपरा-पबद्धाणं, मनुयत्तेवि आगयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होंति फलविवागा। वहवसनविनास-नासकण्णोट्ठंगुट्ठकरचरणनहच्छेयण-जिब्भछेयण-अंजन-कडग्गिदाहण-गयचलण-मलणफालणउल्लंबनसू-ललयालउडलट्ठिभंजण-तउसीसग-तेल्लकलकलअभिसिंचन-कुंभिपाग-कंपण-थिरबंधन-वेह-वज्झ-कत्तण-पतिभयकर-करप-लीवणादिदारुणाणि दुक्खाणि अनोवमाणि बहुविविहपरंपरानुबद्धा न मुच्चंति पावकम्मवल्लीए। अवेयइत्ता हु नत्थि मोक्खो तवेण धिइ-धनिय-बद्ध-कच्छेण सोहणं तस्स वावि होज्जा। एत्तो य सुहविवागेसु सील-संजम-नियम-गुण-तवोवहाणेसु साहुसु सुविहिएसु अनुकंपाऽस-यप्पओग-तिकाल-मइविसुद्ध-भत्त पाणाइं पयतमनसा हिय-सुह-नीसेस-तिव्वपरिणाम-निच्छियमई पयच्छिऊणं पओगसुद्धाइं जह य निव्वत्तेंति उ बोहिलाभं, जह य परित्तीकरेंति नर-निरय-तिरिय-सुरगतिगमण-विपुलपरियट्ट-अरति-भय-विसाय-सोक-मिच्छत्त-सेल-संकडं अन्नाणतमंधकार-चिक्खिल्ल-सुदुत्तारं जर-मरण-जोणि-संखुभियचक्कवालं सोलसकसाय-सावय-पयंड-चंडं अना-इयं अनवदग्गं संसारसागरमिणं, जह य निबंधंति आउगं सुरगणेसु, जह य अनुभवंति सुरगण-विमानसोक्खाणि अनोवमाणि, ततो य कालंतरच्चुआणं इहेव नरलोगमागयाणं आउ-वउ-वण्ण-रूव-जाति-कुल-जम्म-आरोग्ग-बुद्धि-मेहा-विसेसा मित्तजण-सयण-धन-धन्न-विभव-समिद्धि-सार-समुदयवि-सेसा बहुविह-कामभोगुब्भवाण सोक्खाण सुहविवागोत्तमेसु। अनुवरयपरंपरानुबद्धा असुभाण सुभाण चेव कम्माण भासिआ बहुविहा विवागा विवागसुयम्मि भगवया जिनवरेण संवेगकारणत्था। अन्नेवि य एवमाइया, बहुविहा वित्थरेणं अत्थपरूवणया आघविज्जति। विवागसुअस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए एक्कारसमे अंगे वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसनकाला वीसं समुद्देसनकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं संखेज्जाणि अक्खराणि अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से एवं आया एवं णाया एवं विन्नाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पन्नविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं विवागसुए।
Sutra Meaning : विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में दुष्कृतों के दुःखरूप फलों को भोगने वालों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, (गौतम स्वामी का भिक्षा के लिए) नगर – गमन, (पाप के फल से) संसार – प्रबन्ध में पड़कर दुःख परम्पराओं को भोगने का वर्णन किया जाता है। यह दुःख – विपाक है। सुख – विपाक क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? सुख – विपाक में सुकृतों के सुखरूप फलों को भोगने वालों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह तप – उपधान, दीक्षा – पर्याय, प्रतिमाएं, संलेखनाएं, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोक – गमन, सुकुल – प्रत्यागमन पुनः बोधिलाभ और उनकी अन्तक्रियाएं कही गई हैं। दुःख विपाक के प्राणातिपात, असत्य वचन, स्तेय, पर – दार – मैथुन, ससंगता (परिग्रह – संचय), महातीव्र कषाय, इन्द्रिय – विषय – सेवन, प्रमाद, पाप – प्रयोग और अशुभ अध्यवसानों (परिणामों) से संचित पापकर्मों के उन पापरूप अनुभाग – फल – विपाकों का वर्णन किया गया है जिन्हें नरकगति और तिर्यग्‌ – योनि में बहुत प्रकार के सैकड़ों संकटों की परम्परा में पड़कर भोगना पड़ता है। वहाँ से नीकलकर मनुष्य भव में आने पर भी जीवों को पाप – कर्मों के शेष रहने से अनेक पापरूप अशुभ – फल – विपाक भोगने पड़ते हैं, जैसे – वध (दण्ड आदि से ताड़न), वृषण – विनाश (नपुंसकीकरण), नासा – कर्तन, कर्ण – कर्तन, ओष्ठ – छेदन, अंगुष्ठ – छेदन, हस्त – कर्तन, चरण – छेदन, नख – छेदन, जिह्वा – छेदन, अंजन – दाह (उष्ण लोह – शलाका से आँखों को आंजना – फोड़ना), कटाग्निदाह (बाँस से बनी चटाई से शरीर को सर्व ओर से लपेटकर जलाना), हाथी के पैरों के नीचे डालकर शरीर को कुचलवाना, फरसे आदि से शरीर को फाड़ना, रस्सियों से बाँधकर वृक्षों पर लटकाना, त्रिशूल – लता, लकुट (मूँठ वाला डंडा) और लकड़ी से शरीर को भग्न करना, तपे हुए कड़कड़ाते रांगा, सीसा एवं तेल से शरीर का अभिसिंचन करना, कुम्भी (लोहभठ्ठी) में पकाना, शीतकाल में शरीर पर कंपकंपी पैदा करने वाला अतिशीतल जल डालना, काष्ठ आदि में पैर फँसाकर स्थिर (दृढ़) बाँधना, भाले आदि शस्त्रों से छेदन – भेदन करना, वर्द्धकर्तन (शरीर की खाल उधेड़ना) अति भयकारक कर – प्रदीपन (वस्त्र लपेटकर और शरीर पर तेल डालकर दोनों हाथों में अग्नि लगाना) आदि अति दारुण, अनुपम दुःख भोगने पड़ते हैं। अनेक भव – परम्परा में बंधे हुए पापी जीव पाप कर्मरूपी वल्ली के दुःख – रूप फलों को भोगे बिना नहीं छूटते हैं। क्योंकि कर्मों के फलों को भोगे बिना उनसे छूटकारा नहीं मिलता। हाँ, चित्त – समाधिरूप धैर्य के साथ जिन्होंने अपनी कमर कस ली है उनके तप द्वारा उन पापकर्मों का भी शोधन हो जाता है। अब सुख – विपाकों का वर्णन किया जाता है – जो शील (ब्रह्मचर्य या समाधि), संयम, नियम (अभिग्रह – विशेष), गुण (मूलगुण और उत्तरगुण) और तप (अन्तरंग – बहिरंग) के अनुष्ठान में संलग्न हैं, जो अपने आचार का भली भाँति से पालन करते हैं, ऐसे साधुजनों में अनेक प्रकार की अनुकम्पा का प्रयोग करते हैं, उनके प्रति तीनों ही कालों में विशुद्ध बुद्धि रखते हैं अर्थात्‌ यतिजनों को आहार दूँगा, यह विचार करके जो हर्षानुभव करते हैं, देते समय और देने के पश्चात्‌ भी हर्ष मानते हैं, उनको अति सावधान मन से हीतकारक, सुखकारक, निःश्रेयसकारक उत्तम शुभ परिणामों से प्रयोग – शुद्ध (उद्‌गमादि दोषों से रहित) भक्त – पान देते हैं, वे मनुष्य जिस प्रकार पुण्य कर्म का उपार्जन करते हैं, बोधि – लाभ को प्राप्त होते हैं और नर, नारक, तिर्यंच एवं देवगति – गमन सम्बन्धी अनेक परावर्तनों को परीत (सीमित – अल्प) करते हैं, तथा जो अरति, भय, विस्मय, शोक और मिथ्यात्वरूप शैल (पर्वत) से संकट (संकीर्ण) हैं, गहन अज्ञान – अन्धकार रूप कीचड़ से परिपूर्ण होने से जिसका पार उतरना अति कठिन है, जिसका चक्रवाल (जल – परिमंडल) जरा, मरण योनिरूप मगरमच्छों से क्षोभित हो रहा है, जो अनन्तानुबन्धी आदि सोलह कषायरूप श्वापदों (खूँखार हिंसक प्राणियों) से अति प्रचण्ड अत एव भयंकर हैं। ऐसे अनादि अनन्त इस संसार – सागर को वे जिस प्रकार पार करते हैं, और जिस प्रकार देवगणों में आयु बाँधते – देवायु का बंध करते हैं, तथा जिस प्रकार सुरगणों के अनुपम विमानोत्पन्न सुखों का अनुभव करते हैं, तत्पश्चात्‌ कालान्तर में वहाँ से च्युत होकर इसी मनुष्यलोक में आकर दीर्घ आयु, परिपूर्ण शरीर, उत्तम रूप, जाति कुल में जन्म लेकर आरोग्य, बुद्धि, मेघा – विशेष से सम्पन्न होते हैं, मित्रजन, स्वजन, धन, धान्य और वैभव से समृद्ध, एवं सारभूत सुखसम्पदा के समूह से संयुक्त होकर बहुत प्रकार के कामभोग – जनित, सुख – विपाक से प्राप्त उत्तम सुखों की अनुपरत (अविच्छिन्न) परम्परा से परिपूर्ण रहते हुए सुखों को भोगते हैं, ऐसे पुण्यशाली जीवों का इस सुख – विपाक में वर्णन किया गया है। इस प्रकार अशुभ और शुभ कर्मों के बहुत प्रकार के विपाक (फल) इस विपाकसूत्र में भगवान जिनेन्द्र देव ने संसारी जनों को संवेग उत्पन्न करने के लिए कहे हैं। इसी प्रकार से अन्य भी बहुत प्रकार की अर्थ – प्ररूपणा विस्तार से इस अंग में की गई है। विपाकसूत्र की परीत वाचनाएं हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, संख्यात वेढ़ हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात निर्युक्तियाँ हैं और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। यह विपाकसूत्र अंगरूप से ग्यारहवा अंग है। बीस अध्ययन है, बीस उद्देशन – काल है, बीस समुद्देशन – काल है, पद – गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद हैं। संख्यात अक्षर है, अनन्त गम है, अनन्त पर्याय है, परीत त्रस है, अनन्त स्थावर है। इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं। इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तुस्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। यह ग्यारहवे विपाक सूत्र अंग का परिचय है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam vivagasue? Vivagasue nam sukkadadukkadanam kammanam phalavivage aghavijjati. Te samasao duvihe pannatte, tam jaha– duhavivage cheva, suhavivage cheva. Tattha nam daha duhavivagani daha suhavivagani. Se kim tam duhavivagani? Duhavivagesu nam duhavivaganam nagaraim ujjanaim cheiyaim vanasamdaim rayano ammapiyaro samosaranaim dhammayariya dhammakahao nagaragamanaim samsarapabamdhe duhaparamparao ya aghavijjati. Settam duhavivagani. Se kim tam suhavivagani? Suhavivagesu suhavivaganam nagaraim ujjanaim cheiyaim vanasamdaim rayano ammapiyaro samosaranaim dhammayariya dhammakahao ihaloiya-paraloiya iddhivisesa bhogaparichchaya pavvajjao suyapariggaha tavovahanaim pariyaga samlehanao bhattapachchakkhanaim paovagamanaim devalogagamanaim sukulapachchayati puna bohilabho amtakiriyao ya aghavijjamti. Duhavivagesu nam panaivaya-aliyavayana-chorikka-karana-paradara-mehuna-samsaggayae mahati-vvakasaya-imdiyappamaya-pavappaoya-asuhajjhavasana-samchiyanam kammanam pavaganam pava-anubhaga-phalavivaga nirayagati-tirikkhajoni-bahuviha-vasana-saya-parampara-pabaddhanam, manuyattevi agayanam jaha pavakammasesena pavaga homti phalavivaga. Vahavasanavinasa-nasakannotthamgutthakaracharananahachchheyana-jibbhachheyana-amjana-kadaggidahana-gayachalana-malanaphalanaullambanasu-lalayalaudalatthibhamjana-tausisaga-tellakalakalaabhisimchana-kumbhipaga-kampana-thirabamdhana-veha-vajjha-kattana-patibhayakara-karapa-livanadidarunani dukkhani anovamani bahuvivihaparamparanubaddha na muchchamti pavakammavallie. Aveyaitta hu natthi mokkho tavena dhii-dhaniya-baddha-kachchhena sohanam tassa vavi hojja. Etto ya suhavivagesu sila-samjama-niyama-guna-tavovahanesu sahusu suvihiesu anukampasa-yappaoga-tikala-maivisuddha-bhatta panaim payatamanasa hiya-suha-nisesa-tivvaparinama-nichchhiyamai payachchhiunam paogasuddhaim jaha ya nivvattemti u bohilabham, jaha ya parittikaremti nara-niraya-tiriya-suragatigamana-vipulapariyatta-arati-bhaya-visaya-soka-michchhatta-sela-samkadam annanatamamdhakara-chikkhilla-suduttaram jara-marana-joni-samkhubhiyachakkavalam solasakasaya-savaya-payamda-chamdam ana-iyam anavadaggam samsarasagaraminam, jaha ya nibamdhamti augam suraganesu, jaha ya anubhavamti suragana-vimanasokkhani anovamani, tato ya kalamtarachchuanam iheva naralogamagayanam au-vau-vanna-ruva-jati-kula-jamma-arogga-buddhi-meha-visesa mittajana-sayana-dhana-dhanna-vibhava-samiddhi-sara-samudayavi-sesa bahuviha-kamabhogubbhavana sokkhana suhavivagottamesu. Anuvarayaparamparanubaddha asubhana subhana cheva kammana bhasia bahuviha vivaga vivagasuyammi bhagavaya jinavarena samvegakaranattha. Annevi ya evamaiya, bahuviha vittharenam atthaparuvanaya aghavijjati. Vivagasuassa nam paritta vayana samkhejja anuogadara samkhejjao padivattio samkhejja vedha samkhejja siloga samkhejjao nijjuttio samkhejjao samgahanio. Se nam amgatthayae ekkarasame amge visam ajjhayana visam uddesanakala visam samuddesanakala samkhejjaim payasayasahassaim payaggenam samkhejjani akkharani anamta gama anamta pajjava paritta tasa anamta thavara sasaya kada nibaddha nikaiya jinapannatta bhava aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsijjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Se evam aya evam naya evam vinnaya evam charana-karana-paruvanaya aghavijjati pannavijjati paruvijjati damsijjati nidamsijjati uvadamsijjati. Settam vivagasue.
Sutra Meaning Transliteration : Vipakasutra kya hai – isamem kya varnana hai\? Vipakasutra mem sukrita (punya) aura dushkrita (papa) karmom ka vipaka kaha gaya hai. Yaha vipaka samkshepa se do prakara ka hai – duhkha vipaka aura sukha – vipaka. Inamem duhkha – vipaka mem dasha adhyayana haim aura sukha – vipaka mem bhi dasha adhyayana haim. Yaha duhkha vipaka kya hai – isamem kya varnana hai\? Duhkha – vipaka mem dushkritom ke duhkharupa phalom ko bhogane valom ke nagara, udyana, chaitya, vanakhanda, raja, mata – pita, samavasarana, dharmacharya, dharmakathaem, (gautama svami ka bhiksha ke lie) nagara – gamana, (papa ke phala se) samsara – prabandha mem parakara duhkha paramparaom ko bhogane ka varnana kiya jata hai. Yaha duhkha – vipaka hai. Sukha – vipaka kya hai\? Isamem kya varnana hai\? Sukha – vipaka mem sukritom ke sukharupa phalom ko bhogane valom ke nagara, udyana, chaitya, vanakhanda, raja, mata – pita, samavasarana, dharmacharya, dharmakathaem, ihalaukika – paralaukika riddhivishesha, bhogaparityaga, pravrajya, shruta – parigraha tapa – upadhana, diksha – paryaya, pratimaem, samlekhanaem, bhaktapratyakhyana, padapopagamana, devaloka – gamana, sukula – pratyagamana punah bodhilabha aura unaki antakriyaem kahi gai haim. Duhkha vipaka ke pranatipata, asatya vachana, steya, para – dara – maithuna, sasamgata (parigraha – samchaya), mahativra kashaya, indriya – vishaya – sevana, pramada, papa – prayoga aura ashubha adhyavasanom (parinamom) se samchita papakarmom ke una paparupa anubhaga – phala – vipakom ka varnana kiya gaya hai jinhem narakagati aura tiryag – yoni mem bahuta prakara ke saikarom samkatom ki parampara mem parakara bhogana parata hai. Vaham se nikalakara manushya bhava mem ane para bhi jivom ko papa – karmom ke shesha rahane se aneka paparupa ashubha – phala – vipaka bhogane parate haim, jaise – vadha (danda adi se tarana), vrishana – vinasha (napumsakikarana), nasa – kartana, karna – kartana, oshtha – chhedana, amgushtha – chhedana, hasta – kartana, charana – chhedana, nakha – chhedana, jihva – chhedana, amjana – daha (ushna loha – shalaka se amkhom ko amjana – phorana), katagnidaha (bamsa se bani chatai se sharira ko sarva ora se lapetakara jalana), hathi ke pairom ke niche dalakara sharira ko kuchalavana, pharase adi se sharira ko pharana, rassiyom se bamdhakara vrikshom para latakana, trishula – lata, lakuta (mumtha vala damda) aura lakari se sharira ko bhagna karana, tape hue karakarate ramga, sisa evam tela se sharira ka abhisimchana karana, kumbhi (lohabhaththi) mem pakana, shitakala mem sharira para kampakampi paida karane vala atishitala jala dalana, kashtha adi mem paira phamsakara sthira (drirha) bamdhana, bhale adi shastrom se chhedana – bhedana karana, varddhakartana (sharira ki khala udherana) ati bhayakaraka kara – pradipana (vastra lapetakara aura sharira para tela dalakara donom hathom mem agni lagana) adi ati daruna, anupama duhkha bhogane parate haim. Aneka bhava – parampara mem bamdhe hue papi jiva papa karmarupi valli ke duhkha – rupa phalom ko bhoge bina nahim chhutate haim. Kyomki karmom ke phalom ko bhoge bina unase chhutakara nahim milata. Ham, chitta – samadhirupa dhairya ke satha jinhomne apani kamara kasa li hai unake tapa dvara una papakarmom ka bhi shodhana ho jata hai. Aba sukha – vipakom ka varnana kiya jata hai – jo shila (brahmacharya ya samadhi), samyama, niyama (abhigraha – vishesha), guna (mulaguna aura uttaraguna) aura tapa (antaramga – bahiramga) ke anushthana mem samlagna haim, jo apane achara ka bhali bhamti se palana karate haim, aise sadhujanom mem aneka prakara ki anukampa ka prayoga karate haim, unake prati tinom hi kalom mem vishuddha buddhi rakhate haim arthat yatijanom ko ahara dumga, yaha vichara karake jo harshanubhava karate haim, dete samaya aura dene ke pashchat bhi harsha manate haim, unako ati savadhana mana se hitakaraka, sukhakaraka, nihshreyasakaraka uttama shubha parinamom se prayoga – shuddha (udgamadi doshom se rahita) bhakta – pana dete haim, ve manushya jisa prakara punya karma ka uparjana karate haim, bodhi – labha ko prapta hote haim aura nara, naraka, tiryamcha evam devagati – gamana sambandhi aneka paravartanom ko parita (simita – alpa) karate haim, tatha jo arati, bhaya, vismaya, shoka aura mithyatvarupa shaila (parvata) se samkata (samkirna) haim, gahana ajnyana – andhakara rupa kichara se paripurna hone se jisaka para utarana ati kathina hai, jisaka chakravala (jala – parimamdala) jara, marana yonirupa magaramachchhom se kshobhita ho raha hai, jo anantanubandhi adi solaha kashayarupa shvapadom (khumkhara himsaka praniyom) se ati prachanda ata eva bhayamkara haim. Aise anadi ananta isa samsara – sagara ko ve jisa prakara para karate haim, aura jisa prakara devaganom mem ayu bamdhate – devayu ka bamdha karate haim, tatha jisa prakara suraganom ke anupama vimanotpanna sukhom ka anubhava karate haim, tatpashchat kalantara mem vaham se chyuta hokara isi manushyaloka mem akara dirgha ayu, paripurna sharira, uttama rupa, jati kula mem janma lekara arogya, buddhi, megha – vishesha se sampanna hote haim, mitrajana, svajana, dhana, dhanya aura vaibhava se samriddha, evam sarabhuta sukhasampada ke samuha se samyukta hokara bahuta prakara ke kamabhoga – janita, sukha – vipaka se prapta uttama sukhom ki anuparata (avichchhinna) parampara se paripurna rahate hue sukhom ko bhogate haim, aise punyashali jivom ka isa sukha – vipaka mem varnana kiya gaya hai. Isa prakara ashubha aura shubha karmom ke bahuta prakara ke vipaka (phala) isa vipakasutra mem bhagavana jinendra deva ne samsari janom ko samvega utpanna karane ke lie kahe haim. Isi prakara se anya bhi bahuta prakara ki artha – prarupana vistara se isa amga mem ki gai hai. Vipakasutra ki parita vachanaem haim, samkhyata anuyogadvara haim, samkhyata pratipattiyam haim, samkhyata verha haim, samkhyata shloka haim, samkhyata niryuktiyam haim aura samkhyata samgrahaniyam haim. Yaha vipakasutra amgarupa se gyarahava amga hai. Bisa adhyayana hai, bisa uddeshana – kala hai, bisa samuddeshana – kala hai, pada – ganana ki apeksha samkhyata lakha pada haim. Samkhyata akshara hai, ananta gama hai, ananta paryaya hai, parita trasa hai, ananta sthavara hai. Isamem shashvata, krita, nibaddha, nikachita bhava kahe jate haim, prajnyapita kiye jate haim, prarupita kiye jate haim, nidarshita kiye jate haim aura upadarshita kiye jate haim. Isa amga ke dvara atma jnyata hota hai, vijnyata hota hai. Isa prakara charana aura karana ki prarupana ke dvara vastusvarupa ka kathana, prajnyapana, nidarshana aura upadarshana kiya jata hai. Yaha gyarahave vipaka sutra amga ka parichaya hai.