Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003325 | ||
Scripture Name( English ): | Samavayang | Translated Scripture Name : | समवयांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवाय प्रकीर्णक |
Translated Chapter : |
समवाय प्रकीर्णक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 225 | Category : | Ang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ? अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति। अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं अनगार-महरिसीणं अनगारगुणाण वण्णओ, उत्तमवरतव-विसिट्ठणाण-जोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा य रिद्धिविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउब्भावा य जिनसमीवं, जह य उवासंति जिनवरं, जह य परिकहेंति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं, सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्म-विसयविरत्ता नरा जह अब्भुवेंति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं, जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहिय-नाण-दंसण-चरित्त-जोगा जिनवयणमनुगय-महियभासिया जिनवराण हियएणमनुनेत्ता, जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता लद्धूण य समाहिमुत्तमं ज्झाणजोगजुत्ता उववन्ना मुनिवरोत्तमा जह अनुत्तरेसु पावंति जह अनुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं, तत्तो य चुया कमेणं काहिंति संजया जह य अंतकिरियं। एए अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण। अनुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा तिन्नि वग्गा दस उद्देसनकाला दस समुद्देसनकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से एवं आया एवं णाया एवं विन्नाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पन्नविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदं-सिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं अनुत्तरोववाइयदसाओ। | ||
Sutra Meaning : | अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अनुत्तर विमानों में उत्पाद, फिर सुकुल में जन्म, पुनः बोधि – लाभ और अन्तक्रियाएं कही गई हैं, उनकी प्ररूपणा की गई हैं, उनका दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन कराया गया है। अनुत्तरोपपातिकदशा में परम मंगलकारी, जगत् – हीतकारी तीर्थंकरों के समवसरण और बहुत प्रकार के जिन – अतिशयों का वर्णन है। तथा जो श्रमणजनों में प्रवरगन्धहस्ती के समान श्रेष्ठ हैं, स्थिर यश वाले हैं, परीषह – सेना रूपी शत्रु – बल के मर्दन करने वाले हैं, तप से दीप्त हैं, जो चारित्र, ज्ञान, सम्यक्त्वरूप सार वाले अनेक प्रकार के विशाल प्रशस्त गुणों से संयुक्त हैं, ऐसे अनगार महर्षियों के अनगार – गुणों का अनुत्तरोपपातिकदशा में वर्णन है। अतीव, श्रेष्ठ तपोविशेष से और विशिष्ट ज्ञान – योग से युक्त हैं, जिन्होंने जगत् हीतकारी भगवान तीर्थंकरों की जैसी परम आश्चर्यकारिणी ऋद्धियों की विशेषताओं को और देव, असुर, मनुष्यों की सभाओं के प्रादुर्भाव को देखा है, वे महापुरुष जिस प्रकार जिनवर के समीप जाकर उनकी जिस प्रकार से उपासना करते हैं, तथा अमर, नर, सुरगणों के लोकगुरु वे जिनवर जिस प्रकार से उनको धर्म का उपदेश देते हैं, वे क्षीणकर्मा महापुरुष उनके द्वारा उपदिष्ट धर्म को सूनकर के अपने समस्त कामभोगों से और इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होकर जिस प्रकार से उदार धर्म को और विविध प्रकार से संयम और तप को स्वीकार करते हैं। तथा जिस प्रकार से बहुत वर्षों तक उनका आचरण करके, ज्ञान, दर्शन, चारित्र योग की आराधना कर जिन – वचन के अनुगत (अनुकूल) पूजित धर्म का दूसरे भव्य जीवों को उपदेश देकर और अपने शिष्यों को अध्ययन करवा तथा जिनवरों की हृदय से आराधना कर वे उत्तम मुनिवर जहाँ पर जितने भक्तों का अनशन के द्वारा छेदन कर, समाधि को प्राप्त कर और उत्तम ध्यान – योग से युक्त होते हुए जिस प्रकार से अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं और वहाँ जैसे अनुपम विषय – सौख्य को भोगते हैं, उस सब का अनुत्तरोपपातिकदशा में वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् वहाँ से च्युत होकर वे जिस प्रकार से संयम को धारण कर अन्तक्रिया करेंगे और मोक्ष को प्राप्त करेंगे, इन सबका तथा इसी प्रकार के अन्य अर्थों का विस्तार से इस अंग में वर्णन किया गया है। अनुत्तरोपपातिकदशा में परीत वाचनाएं हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, संख्यात वेढ़ हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात निर्युक्तियाँ हैं और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। यह अनुत्तरोपपातिकदशा अंगरूप से नौवा अंग है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दश अध्ययन हैं, तीन वर्ग हैं, दश उद्देशन – काल हैं, दश समुद्देशन – काल हैं, तथा पद – गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद कहे गए हैं। इसमें संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, अनन्त पर्याय हैं, परिमित त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। ये सब शाश्वत कृत, निबद्ध, निकाचित, जिन – प्रज्ञप्त भाव इस अंग में कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं। इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तु – स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। यह नौवें अनुत्तरोपपातिकदशा अंग का परिचय है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam anuttarovavaiyadasao? Anuttarovavaiyadasasu nam anuttarovavaiyanam nagaraim ujjanaim cheiyaim vanasamdaim rayano ammapiyaro samosaranaim dhammayariya dhammakahao ihaloiya-paraloiya iddhivisesa bhogaparichchaya pavvajjao suyapariggaha tavovahanaim pariyaga samlehanao bhatta pachchakkhanaim paovagamanaim anuttarovavatti sukula-pachchayati puna bohilabho amtakiriyao ya aghavijjamti. Anuttarovavatiyadasasu nam titthakarasamosaranaim paramamamgallajagahiyani jinatisesa ya bahuvisesa jinasisanam cheva samanaganapavaragamdhahatthinam thirajasanam parisahasenna-riu-bala-pamaddananam tava-ditta-charitta-nana-sammattasara-viviha-ppagara-vitthara-pasatthaguna-samjuyanam anagara-maharisinam anagaragunana vannao, uttamavaratava-visitthanana-jogajuttanam jaha ya jagahiyam bhagavao jarisa ya riddhivisesa devasuramanusanam parisanam paubbhava ya jinasamivam, jaha ya uvasamti jinavaram, jaha ya parikahemti dhammam logaguru amaranarasuragananam, souna ya tassa bhasiyam avasesakamma-visayaviratta nara jaha abbhuvemti dhammamuralam samjamam tavam chavi bahuvihappagaram, jaha bahuni vasani anucharitta arahiya-nana-damsana-charitta-joga jinavayanamanugaya-mahiyabhasiya jinavarana hiyaenamanunetta, je ya jahim jattiyani bhattani chheyaitta laddhuna ya samahimuttamam jjhanajogajutta uvavanna munivarottama jaha anuttaresu pavamti jaha anuttaram tattha visayasokkham, tatto ya chuya kamenam kahimti samjaya jaha ya amtakiriyam. Ee anne ya evamaiattha vittharena. Anuttarovavaiyadasasu nam paritta vayana samkhejja anuogadara samkhejjao padivattio samkhejja vedha samkhejja siloga samkhejjao nijjuttio samkhejjao samgahanio. Se nam amgatthayae navame amge ege suyakkhamdhe dasa ajjhayana tinni vagga dasa uddesanakala dasa samuddesanakala samkhejjaim payasayasahassaim payaggenam, samkhejjani akkharani anamta gama anamta pajjava paritta tasa anamta thavara sasaya kada nibaddha nikaiya jinapannatta bhava aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsijjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Se evam aya evam naya evam vinnaya evam charana-karana-paruvanaya aghavijjati pannavijjati paruvijjati damsijjati nidam-sijjati uvadamsijjati. Settam anuttarovavaiyadasao. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Anuttaropapatikadasha kya hai\? Isamem kya varnana hai\? Anuttaropapatikadasha mem anuttara vimanom mem utpanna hone vale maha anagarom ke nagara, udyana, chaitya, vanakhamda, rajagana, mata – pita, samavasarana, dharmacharya, dharmakathaem, ihalaukika paralaukika vishishta riddhiyam, bhoga – parityaga, pravrajya, shruta ka parigrahana, tapa – upadhana, paryaya, pratima, samlekhana, bhaktapratyakhyana, padapopagamana, anuttara vimanom mem utpada, phira sukula mem janma, punah bodhi – labha aura antakriyaem kahi gai haim, unaki prarupana ki gai haim, unaka darshana, nidarshana aura upadarshana karaya gaya hai. Anuttaropapatikadasha mem parama mamgalakari, jagat – hitakari tirthamkarom ke samavasarana aura bahuta prakara ke jina – atishayom ka varnana hai. Tatha jo shramanajanom mem pravaragandhahasti ke samana shreshtha haim, sthira yasha vale haim, parishaha – sena rupi shatru – bala ke mardana karane vale haim, tapa se dipta haim, jo charitra, jnyana, samyaktvarupa sara vale aneka prakara ke vishala prashasta gunom se samyukta haim, aise anagara maharshiyom ke anagara – gunom ka anuttaropapatikadasha mem varnana hai. Ativa, shreshtha tapovishesha se aura vishishta jnyana – yoga se yukta haim, jinhomne jagat hitakari bhagavana tirthamkarom ki jaisi parama ashcharyakarini riddhiyom ki visheshataom ko aura deva, asura, manushyom ki sabhaom ke pradurbhava ko dekha hai, ve mahapurusha jisa prakara jinavara ke samipa jakara unaki jisa prakara se upasana karate haim, tatha amara, nara, suraganom ke lokaguru ve jinavara jisa prakara se unako dharma ka upadesha dete haim, ve kshinakarma mahapurusha unake dvara upadishta dharma ko sunakara ke apane samasta kamabhogom se aura indriyom ke vishayom se virakta hokara jisa prakara se udara dharma ko aura vividha prakara se samyama aura tapa ko svikara karate haim. Tatha jisa prakara se bahuta varshom taka unaka acharana karake, jnyana, darshana, charitra yoga ki aradhana kara jina – vachana ke anugata (anukula) pujita dharma ka dusare bhavya jivom ko upadesha dekara aura apane shishyom ko adhyayana karava tatha jinavarom ki hridaya se aradhana kara ve uttama munivara jaham para jitane bhaktom ka anashana ke dvara chhedana kara, samadhi ko prapta kara aura uttama dhyana – yoga se yukta hote hue jisa prakara se anuttara vimanom mem utpanna hote haim aura vaham jaise anupama vishaya – saukhya ko bhogate haim, usa saba ka anuttaropapatikadasha mem varnana kiya gaya hai. Tatpashchat vaham se chyuta hokara ve jisa prakara se samyama ko dharana kara antakriya karemge aura moksha ko prapta karemge, ina sabaka tatha isi prakara ke anya arthom ka vistara se isa amga mem varnana kiya gaya hai. Anuttaropapatikadasha mem parita vachanaem haim, samkhyata anuyogadvara haim, samkhyata pratipattiyam haim, samkhyata verha haim, samkhyata shloka haim, samkhyata niryuktiyam haim aura samkhyata samgrahaniyam haim. Yaha anuttaropapatikadasha amgarupa se nauva amga hai. Isamem eka shrutaskandha hai, dasha adhyayana haim, tina varga haim, dasha uddeshana – kala haim, dasha samuddeshana – kala haim, tatha pada – ganana ki apeksha samkhyata lakha pada kahe gae haim. Isamem samkhyata akshara haim, ananta gama haim, ananta paryaya haim, parimita trasa haim, ananta sthavara haim. Ye saba shashvata krita, nibaddha, nikachita, jina – prajnyapta bhava isa amga mem kahe jate haim, prajnyapita kiye jate haim, prarupita kiye jate haim, nidarshita kiye jate haim aura upadarshita kiye jate haim. Isa amga ke dvara atma jnyata hota hai, vijnyata hota hai. Isa prakara charana aura karana ki prarupana ke dvara vastu – svarupa ka kathana, prajnyapana, prarupana, nidarshana aura upadarshana kiya jata hai. Yaha nauvem anuttaropapatikadasha amga ka parichaya hai. |