Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003322
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Translated Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 222 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, विसयसुह-तुच्छ-आसावस-दोस-मुच्छि याणं विराहिय-चरित्त-नाण-दंसण-जइगुण-विविह-प्पगार-निस्सार-सुन्नयाणं संसार-अपार-दुक्ख-दुग्गइ-भव-विविहपरंपरा-पवंचा। धीराण य जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं आराहिय-नाण-दंसण-चरित्त-जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालयमग्गमभिमुहाणं सुरभवण-विमान-सुक्खाइं अनोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि तानि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य कालक्कमच्चुयाणं जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्स-धीरकरण-करणाणि बोधण-अणुसासणाणि गुणदोसदरिस- णाणि। दिट्ठंते पच्चए य सोऊण लोगमुणिणो जह य ठिया सासणम्मि जर-मरण-नासण-करे। आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेंति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं। एए अन्ने य एवमादित्थ वित्थरेण य। नायाधम्मकहासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जा-ओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए छट्ठे अंगे दो सुअक्खंधा एगूणतीसं अज्झयणा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–चरिता य कप्पिया यदस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच-पंच अक्खाइयासयाइं। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच-पंच उवक्खा इयासयाइं। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाइं– एवामेव सपुव्वावरेणं अद्धुट्ठाओ अक्खाइयकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ। एगूणतीसं उद्देसनकाला एगूणतीसं समुद्देसनकाला संखेज्जाइं पयसय-सहस्साइ पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ताभावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से एवं आया एवं नाया एवं विन्नाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पन्नविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। सेत्तं नायाधम्मकहाओ।
Sutra Meaning : ज्ञाताधर्मकथा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात्‌ उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोक – गमन, सुकुल में पुनर्जन्म, पुनः बोधिलाभ और अन्तक्रियाएं कही जाती हैं। इनकी प्ररूपणा की गई है, दर्शायी गई है, निदर्शित की गई है और उपदर्शित की गई है। ज्ञाताधर्मकथा में प्रव्रजित पुरुषों के विनय – करण – प्रधान, प्रवर जिन भगवान के शासन की संयम – परिज्ञा के पालन करने में जिनकी धृति (धीरता) मति (बुद्धि) और व्यवसाय (पुरुषार्थ) दुर्बल है, तपश्चरण का नियम और तप का परिपालन करने रूप रण (युद्ध) के दुर्धर भार को वहन करने से भग्न है – पराङ्मुख हो गए हैं, अत एव अत्यन्त अशक्त होकर संयम – पालन करने का संकल्प छोड़कर बैठ गए हैं, घोर परीषहों से पराजित हो चूके हैं इसलिए संयम के साथ प्रारम्भ किये गए मोक्ष – मार्ग के अवरुद्ध हो जाने से जो सिद्धालय के कारणभूत महामूल्य ज्ञानादि से पतित हैं, जो इन्द्रियों के तुच्छ विषय – सुखों की आशा के वश होकर रागादि दोषों से मूर्च्छित हो रहे हैं, चारित्र, ज्ञान, दर्शन स्वरूप यति – गुणों से उनके विविध प्रकारों के अभाव से जो सर्वथा निःसार और शून्य हैं, जो संसार के अपार दुःखों की और नरक, तिर्यंचादि नाना दुर्गतियों की भव – परम्परा से प्रपंच में पड़े हुए हैं, ऐसे पतित पुरुषों की कथाएं हैं। तथा जो धीर वीर हैं, परीषहों और कषायों की सेना को जीतने वाले हैं, धैर्य के धनी हैं, संयम में उत्साह रखने और बल – वीर्य के प्रकट करने में दृढ़ निश्चय वाले हैं, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और समाधि – योग की जो आराधना करने वाले हैं, मिथ्यादर्शन, माया और निदानादि शल्यों से रहित होकर शुद्ध निर्दोष सिद्धालय के मार्ग की ओर अभिमुख हैं, ऐसे महापुरुषों की कथाएं इस अंग में कही गई हैं। तथा जो संयम – परिपालन कर देवलोक में उत्पन्न हो देव – भवनों और देव – विमानों के अनुपम सुखों को और दिव्य, महामूल्य, उत्तम भोग – उपभोगों को चिर – काल तक भोगकर कालक्रम के अनुसार वहाँ से च्युत हो पुनः यथा – योग्य मुक्ति के मार्ग को प्राप्त कर अन्तक्रिया के समाधिमरण के समय कर्म – वश विचलित हो गए हैं, उनको देवों और मनुष्यों के द्वारा धैर्य धारण कराने में कारणभूत, संबोधनों और अनुशासनों को, संयम के गुण और संयम से पतित होने के दोष – दर्शक दृष्टान्तों को, तथा प्रत्ययों को, अर्थात्‌ बोधि के कारणभूत वाक्यों को सूनकर शुकपरि – व्राजक आदि लौकिक मुनिजन भी जरा – मरण का नाश करने वाले जिन – शासन में जिस प्रकार से स्थित हुए, उन्होंने जिस प्रकार से संयम की आराधना की, पुनः देवलोक में उत्पन्न हुए, वहाँ से आकर मनुष्य हो जिस प्रकार शाश्वत सुख को और सर्वदुःख विमोक्ष को प्राप्त किया, उनकी तथा इसी प्रकार के अन्य महापुरुषों की कथाएं इस अंग में विस्तार से कही गई हैं। ज्ञाताधर्मकथा में परीत वाचनाएं हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, संख्यात वेढ़ हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात निर्युक्तियाँ हैं और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। यह ज्ञाताधर्मकथा अंगरूप से छठा अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं और उन्नीस अध्ययन हैं। वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे गए हैं – चरित और कल्पित। धर्मकथाओं के दश वर्ग हैं। उनमें से एक – एक धर्मकथा में पाँच – पाँच सौ आख्यायिकाएं हैं, एक – एक आख्यायिका में पाँच – पाँच सौ उपाख्यायिकाएं हैं, एक – एक उपाख्यायिका में पाँच – पाँच सौ आख्यायिका – उपाख्या – यिकाएं हैं। इस प्रकार ये सब पूर्वापर से गुणित होकर एक सौ इक्कीस करोड़, पचास लाख होती हैं। धर्मकथा विभाग के दश वर्ग कहे गए हैं। अतः उक्त राशि को दश से गुणित करने पर एक सौ पच्चीस करोड़ संख्या होती है। उसमें समान लक्षण वाली पुनरुक्त कथाओं को घटा देने पर साढ़े तीन करोड़ अपुनरुक्त कथाएं हैं। ज्ञाताधर्मकथा में उनतीस उद्देशन काल हैं, उनतीस समुद्देशन – काल हैं, पद – गणना की अपेक्षा संख्यात हजार पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। ये सब शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित, जिन – प्रज्ञप्त भाव इस ज्ञाताधर्मकथा में कहे गए हैं, प्रज्ञापित किये गए हैं, निदर्शित किये गए हैं, और उपदर्शित किये गए हैं। इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा (कथाओं के माध्यम से) वस्तु – स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। यह छठे ज्ञाताधर्मकथा अंग का परिचय है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam nayadhammakahao? Nayadhammakahasu nam nayanam nagaraim ujjanaim cheiaim vanasamdaim rayano ammapiyaro samosaranaim dhammayariya dhammakahao ihaloiya-paraloiya iddhivisesa bhogaparichchaya pavvajjao suyapariggaha tavovahanaim pariyaga samlehanao bhattapachchakkhanaim paovagamanaim devalogagamanaim sukulapachchayati puna bohilabho amtakiriyao ya aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsi-jjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Nayadhammakahasu nam pavvaiyanam vinayakarana-jinasami-sasanavare samjama-painna-palana-dhii-mai-vavasaya-dullabhanam, tava-niyama-tavovahana-rana-duddharabhara-bhagga-nisaha-nisatthanam, ghora parisaha-parajiya-saha-paraddha-ruddha-siddhalayamagga-niggayanam, visayasuha-tuchchha-asavasa-dosa-muchchhi yanam virahiya-charitta-nana-damsana-jaiguna-viviha-ppagara-nissara-sunnayanam samsara-apara-dukkha-duggai-bhava-vivihaparampara-pavamcha. Dhirana ya jiya-parisaha-kasaya-senna-dhii-dhaniya-samjama-uchchhaha-nichchhiyanam arahiya-nana-damsana-charitta-joga-nissalla-suddha-siddhalayamaggamabhimuhanam surabhavana-vimana-sukkhaim anovamaim bhuttuna chiram cha bhogabhogani tani divvani maharihani tato ya kalakkamachchuyanam jaha ya puno laddhasiddhimagganam amtakiriya. Chaliyana ya sadeva-manussa-dhirakarana-karanani bodhana-anusasanani gunadosadarisa- nani. Ditthamte pachchae ya souna logamunino jaha ya thiya sasanammi jara-marana-nasana-kare. Arahiya-samjama ya suralogapadiniyatta ovemti jaha sasayam sivam savvadukkhamokkham. Ee anne ya evamadittha vittharena ya. Nayadhammakahasu nam paritta vayana samkhejja anuogadara samkhejjao padivattio samkhejja vedha samkhejja siloga samkhejja-o nijjuttio samkhejjao samgahanio. Se nam amgatthayae chhatthe amge do suakkhamdha egunatisam ajjhayana, te samasao duviha pannatta, tam jaha–charita ya kappiya yadasa dhammakahanam vagga. Tattha nam egamegae dhammakahae pamcha-pamcha akkhaiyasayaim. Egamegae akkhaiyae pamcha-pamcha uvakkha iyasayaim. Egamegae uvakkhaiyae pamcha-pamcha akkhaiyauvakkhaiyasayaim– evameva sapuvvavarenam addhutthao akkhaiyakodio bhavamtiti makkhayao. Egunatisam uddesanakala egunatisam samuddesanakala samkhejjaim payasaya-sahassai payaggenam, samkhejja akkhara anamta gama anamta pajjava paritta tasa anamta thavara sasaya kada nibaddha nikaiya jinapannattabhava aghavijjamti pannavijjamti paruvijjamti damsijjamti nidamsijjamti uvadamsijjamti. Se evam aya evam naya evam vinnaya evam charana-karana-paruvanaya aghavijjati pannavijjati paruvijjati damsijjati nidamsijjati uvadamsijjati. Settam nayadhammakahao.
Sutra Meaning Transliteration : Jnyatadharmakatha kya hai – isamem kya varnana hai\? Jnyatadharmakatha mem jnyata arthat udaharanarupa meghakumara adi purushom ke nagara, udyana, chaitya, vanakhamda, raja, mata – pita, samavasarana, dharmacharya, dharmakatha, ihalaukika – paralaukika riddhi – vishesha, bhoga – parityaga, pravrajya, shruta – parigraha, tapa – upadhana, dikshaparyaya, samlekhana, bhaktapratyakhyana, padapopagamana, devaloka – gamana, sukula mem punarjanma, punah bodhilabha aura antakriyaem kahi jati haim. Inaki prarupana ki gai hai, darshayi gai hai, nidarshita ki gai hai aura upadarshita ki gai hai. Jnyatadharmakatha mem pravrajita purushom ke vinaya – karana – pradhana, pravara jina bhagavana ke shasana ki samyama – parijnya ke palana karane mem jinaki dhriti (dhirata) mati (buddhi) aura vyavasaya (purushartha) durbala hai, tapashcharana ka niyama aura tapa ka paripalana karane rupa rana (yuddha) ke durdhara bhara ko vahana karane se bhagna hai – parangmukha ho gae haim, ata eva atyanta ashakta hokara samyama – palana karane ka samkalpa chhorakara baitha gae haim, ghora parishahom se parajita ho chuke haim isalie samyama ke satha prarambha kiye gae moksha – marga ke avaruddha ho jane se jo siddhalaya ke karanabhuta mahamulya jnyanadi se patita haim, jo indriyom ke tuchchha vishaya – sukhom ki asha ke vasha hokara ragadi doshom se murchchhita ho rahe haim, charitra, jnyana, darshana svarupa yati – gunom se unake vividha prakarom ke abhava se jo sarvatha nihsara aura shunya haim, jo samsara ke apara duhkhom ki aura naraka, tiryamchadi nana durgatiyom ki bhava – parampara se prapamcha mem pare hue haim, aise patita purushom ki kathaem haim. Tatha jo dhira vira haim, parishahom aura kashayom ki sena ko jitane vale haim, dhairya ke dhani haim, samyama mem utsaha rakhane aura bala – virya ke prakata karane mem drirha nishchaya vale haim, jnyana, darshana, charitra aura samadhi – yoga ki jo aradhana karane vale haim, mithyadarshana, maya aura nidanadi shalyom se rahita hokara shuddha nirdosha siddhalaya ke marga ki ora abhimukha haim, aise mahapurushom ki kathaem isa amga mem kahi gai haim. Tatha jo samyama – paripalana kara devaloka mem utpanna ho deva – bhavanom aura deva – vimanom ke anupama sukhom ko aura divya, mahamulya, uttama bhoga – upabhogom ko chira – kala taka bhogakara kalakrama ke anusara vaham se chyuta ho punah yatha – yogya mukti ke marga ko prapta kara antakriya ke samadhimarana ke samaya karma – vasha vichalita ho gae haim, unako devom aura manushyom ke dvara dhairya dharana karane mem karanabhuta, sambodhanom aura anushasanom ko, samyama ke guna aura samyama se patita hone ke dosha – darshaka drishtantom ko, tatha pratyayom ko, arthat bodhi ke karanabhuta vakyom ko sunakara shukapari – vrajaka adi laukika munijana bhi jara – marana ka nasha karane vale jina – shasana mem jisa prakara se sthita hue, unhomne jisa prakara se samyama ki aradhana ki, punah devaloka mem utpanna hue, vaham se akara manushya ho jisa prakara shashvata sukha ko aura sarvaduhkha vimoksha ko prapta kiya, unaki tatha isi prakara ke anya mahapurushom ki kathaem isa amga mem vistara se kahi gai haim. Jnyatadharmakatha mem parita vachanaem haim, samkhyata anuyogadvara haim, samkhyata pratipattiyam haim, samkhyata verha haim, samkhyata shloka haim, samkhyata niryuktiyam haim aura samkhyata samgrahaniyam haim. Yaha jnyatadharmakatha amgarupa se chhatha amga hai. Isamem do shrutaskandha haim aura unnisa adhyayana haim. Ve samkshepa se do prakara ke kahe gae haim – charita aura kalpita. Dharmakathaom ke dasha varga haim. Unamem se eka – eka dharmakatha mem pamcha – pamcha sau akhyayikaem haim, eka – eka akhyayika mem pamcha – pamcha sau upakhyayikaem haim, eka – eka upakhyayika mem pamcha – pamcha sau akhyayika – upakhya – yikaem haim. Isa prakara ye saba purvapara se gunita hokara eka sau ikkisa karora, pachasa lakha hoti haim. Dharmakatha vibhaga ke dasha varga kahe gae haim. Atah ukta rashi ko dasha se gunita karane para eka sau pachchisa karora samkhya hoti hai. Usamem samana lakshana vali punarukta kathaom ko ghata dene para sarhe tina karora apunarukta kathaem haim. Jnyatadharmakatha mem unatisa uddeshana kala haim, unatisa samuddeshana – kala haim, pada – ganana ki apeksha samkhyata hajara pada haim, samkhyata akshara haim, ananta gama haim, parita trasa haim, ananta sthavara haim. Ye saba shashvata, krita, nibaddha, nikachita, jina – prajnyapta bhava isa jnyatadharmakatha mem kahe gae haim, prajnyapita kiye gae haim, nidarshita kiye gae haim, aura upadarshita kiye gae haim. Isa amga ke dvara atma jnyata hota hai, vijnyata hota hai. Isa prakara charana aura karana ki prarupana ke dvara (kathaom ke madhyama se) vastu – svarupa ka kathana, prajnyapana, prarupana, nidarshana aura upadarshana kiya gaya hai. Yaha chhathe jnyatadharmakatha amga ka parichaya hai.