Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003101
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय-१

Translated Chapter :

समवाय-१

Section : Translated Section :
Sutra Number : 1 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियट्ट-च्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्व-दरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउका- मेणं इमे दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विवाहपन्नत्ती नायधम्म-कहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए तत्थ णं जे से चउत्थे अंगे समवाएत्ति आहिते, तस्स णं अयमट्ठे, तं जहा– [सूत्र] एगे आया। एगे अणाया। एगे दंडे। एगे अदंडे। एगा किरिआ। एगा अकिरिआ। एगे लोए। एगे अलोए। एगे धम्मे। एगे अधम्मे। एगे पुण्णे। एगे पावे। एगे बंधे। एगे मोक्खे। एगे आसवे। एगे संवरे। एगा वेयणा। एगा निज्जरा। जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते। अप्पइट्ठाणे नरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते पालए जाणविमाने एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते। सव्वट्ठसिद्धे महाविमाने एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खेभेणं पन्नत्ते। अद्दानक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते। चित्तानक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते। सातिनक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। दोच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। असुरकुमारिंदवज्जियाणं भामिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियसन्निमणयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पन्नत्ता। सोहम्मे कप्पे देवाणं जहन्नेणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सावरोवमं ठिई पन्नत्ता। ईसाणे कप्पे देवाणं जहन्नेणं साइरेगं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंतं भवं मणुं माणुसोत्तरं लोगहियं विमानं देवत्ताए उववन्ना, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। ते णं देवा एगस्स अद्धमासस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा। तेसि णं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारट्ठे समुपज्जइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एगेणं भवग्गहणेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्व दुक्खाणमंतं करिस्संति।
Sutra Meaning : हे आयुष्मन्‌ ! उन भगवान ने ऐसा कहा है, मैने सूना है। [इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के अन्तिम समय में विद्यमान उन श्रमण भगवान महावीर ने द्वादशांग गणिपिटक कहा है, वे भगवान] – आचार आदि श्रुतधर्म के आदिकर हैं (अपने समय में धर्म के आदि प्रणेता हैं), तीर्थंकर हैं, (धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक हैं)। स्वयं सम्यक्‌ बोधि को प्राप्त हुए हैं। पुरुषों में रूपातिशय आदि विशिष्ट गुणों के धारक होने से, एवं उत्तम वृत्ति वाले होने से पुरुषोत्तम हैं। सिंह के समान पराक्रमी होने से पुरुषसिंह हैं, पुरुषों में उत्तम सहस्रपत्र वाले श्वेत कमल के समान श्रेष्ठ होने से पुरुषवर – पुण्डरीक हैं। पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती जैसे हैं, जैसे गन्धहस्ती के मद की गन्ध से बड़े – बड़े हाथी भाग जाते हैं, उसी प्रकार आपके नाम की गन्धमात्र से बड़े – बड़े प्रवादी रूपी हाथी भाग खड़े होते हैं। वे लोकोत्तम हैं, क्योंकि ज्ञानातिशय आदि असाधारण गुणों से युक्त हैं और तीनों लोकों के स्वामियों द्वारा नमस्कृत हैं, इसीलिए तीनों लोको के नाथ हैं और अधिप अर्थात्‌ स्वामी हैं क्योंकि जो प्राणियों के योग – क्षेम को करता है, वही नाथ और स्वामी कहा जाता है। लोक के हित करने से – उनका उद्धार करने से – लोकहीतकर हैं। लोक में प्रकाश और उद्योत करने से लोक – प्रदीप और लोक – प्रद्योतकर हैं। जीवमात्र को अभयदान के दाता हैं, अर्थात्‌ प्राणीमात्र पर अभया (दया और करुणा) के धारक हैं, चक्षु का दाता जैसे महान उपकारी होता है, उसी प्रकार भगवान महावीर अज्ञान रूप अन्धकार में पड़े प्राणियों को सन्मार्ग के प्रकाशक होने से चक्षु – दाता हैं और सन्मार्ग पर लगाने से मार्गदाता हैं, बिना किसी भेद – भाव के प्राणीमात्र के शरणदाता हैं, जन्म – मरण के चक्र से छुड़ाने के कारण अक्षय जीवन के दाता हैं, सम्यक्‌ बोधि प्रदान करने वाले हैं, दुर्गतियों में गिरते हुए जीवों को बचाने के कारण धर्म – दाता हैं, सद्धर्म के उपदेशक हैं, धर्म के नायक हैं, धर्मरूप रथ के संचालन करने से धर्म के सारथी हैं। धर्मरूप चक्र के चतुर्दिशाओं में और चारों गतियों में प्रवर्तन करने से धर्मवर – चातुरन्त चक्रवर्ती हैं। प्रतिघात – रहित निरावरण श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक हैं। छद्म अर्थात्‌ आवरण और छल – प्रपंच से सर्वथा निवृत्त होने के कारण व्यावृत्तछद्म हैं। विषय – कषायों को जीतने से स्वयं जिन हैं और दूसरों के भी विषय – कषायों के छुड़ाने से और उन पर विजय प्राप्त कराने का मार्ग बताने से ज्ञापक हैं या जय – प्रापक हैं। स्वयं संसार – सागर से उत्तीर्ण हैं और दूसरों के उतारक हैं। स्वयं बोध को प्राप्त होने से बुद्ध हैं और दूसरों को बोध देने से बोधक हैं। स्वयं कर्मों से मुक्त हैं और दूसरों के भी कर्मों के मोचक हैं। जो सर्व जगत के जानने से सर्वज्ञ और सर्वलोक के देखने से सर्वदर्शी हैं। जो अचल, अरुज, (रोग – रहित) अनन्त, अक्षय, अव्याबाध (बाधाओं से रहित) और पुनः आगमन से रहित ऐसी सिद्ध – गति नाम के अनुपम स्थान को प्राप्त करने वाले हैं। ऐसे उन भगवान महावीर ने यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक कहा है। वह इस प्रकार है – आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्या – प्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्त – कृतदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाक – श्रुत और दृष्टिवाद। उस द्वादशांग श्रुतरूप गणिपिटक में यह समवायांग चौथा अंग कहा गया है, उसका अर्थ इस प्रकार है – आत्मा एक है, अनात्मा एक है, दण्ड एक है, अदण्ड एक है, क्रिया एक है, अक्रिया एक है, लोक एक है, अलोक एक है, धर्मास्तिकाय एक है, अधर्मास्तिकाय एक है, पुण्य एक है, पाप एक है, बन्ध एक है, मोक्ष एक है, आस्रव एक है, संवर एक है, वेदना एक है और निर्जरा एक है। जम्बूद्वीप नामक यह प्रथम द्वीप आयाम (लम्बाई) और विष्कम्भ (चौड़ाई) की अपेक्षा शतसहस्र (एक लाख) योजन विस्तीर्ण कहा गया है। सौधर्मेन्द्र का पालक नाम का यान (यात्रा के समय उपयोग में आने वाला पालक नाम के आभियोग्य देव की विक्रिया से निर्मित विमान) एक लाख योजन आयाम – विष्कम्भ वाला कहा गया है। सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर महाविमान एक लाख योजन आयाम – विष्कम्भ वाला कहा गया है। आर्द्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। चित्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। स्वाति नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। इसी रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असुरकुमार देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक एक सागरोपम कही गई है। असुरकुमारेन्द्रों को छोड़कर शेष भवनवासी कितनेक देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क गर्भोपक्रान्तिक संज्ञी मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। वाणव्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम कही गई है। ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष से अधिक एक पल्योपम कही गई है। सौधर्मकल्प में देवों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम कही गई है। सौधर्मकल्प में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है। ईशानकल्प में देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम कही गई है। ईशानकल्प में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है। जो देव सागर, सुसागर, सागरकान्त, भव, मनु, मानुषोत्तर और लोकहित नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम कही गई है। वे देव एक अर्धमास में (पन्द्रह दिन में) आन – प्राण अथवा उच्छ्‌वास – निःश्वास लेते हैं। उन देवों के एक हजार वर्ष में आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो एक मनुष्य भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] suyam me ausam! Tenam bhagavaya evamakkhayam– Iha khalu samanenam bhagavaya mahavirenam adigarenam titthagarenam sayamsambuddhenam purisottamenam purisasihenam purisavarapomdarienam purisavaragamdhahatthina logottamenam loganahenam logahienam logapaivenam loga-pajjoyagarenam abhayadaenam chakkhudaenam maggadaenam saranadaenam jivadaenam dhammadaenam dhammadesaenam dhammanayagenam dhammasarahina dhammavarachauramtachakkavattina appadihayavarananadamsanadharenam viyatta-chchhaumenam jinenam javaenam tinnenam taraenam buddhenam bohaenam muttenam moyagenam savvannuna savva-darisina sivamayalamaruyamanamtamakkhayamavvabahamapunaravattayam siddhigainamadheyam thanam sampaviuka- menam ime duvalasamge ganipidage pannatte, tam jaha–ayare suyagade thane samavae vivahapannatti nayadhamma-kahao uvasagadasao amtagadadasao anuttarovavaiyadasao panhavagaranaim vivagasue ditthivae Tattha nam je se chautthe amge samavaetti ahite, tassa nam ayamatthe, tam jaha– [sutra] ege aya. Ege anaya. Ege damde. Ege adamde. Ega kiria. Ega akiria. Ege loe. Ege aloe. Ege dhamme. Ege adhamme. Ege punne. Ege pave. Ege bamdhe. Ege mokkhe. Ege asave. Ege samvare. Ega veyana. Ega nijjara. Jambuddive dive egam joyanasayasahassam ayamavikkhambhenam pannatte. Appaitthane narae egam joyanasayasahassam ayamavikkhambhenam pannatte Palae janavimane egam joyanasayasahassam ayamavikkhambhenam pannatte. Savvatthasiddhe mahavimane egam joyanasayasahassam ayamavikkhebhenam pannatte. Addanakkhatte egatare pannatte. Chittanakkhatte egatare pannatte. Satinakkhatte egatare pannatte. Imise nam rayanappabhae pudhavie atthegaiyanam neraiyanam egam paliovamam thii pannatta. Imise nam rayanappabhae pudhavie neraiyanam ukkosenam egam sagarovamam thii pannatta. Dochchae nam pudhavie neraiyanam jahannenam egam sagarovamam thii pannatta. Asurakumaranam devanam atthegaiyanam egam paliovamam thii pannatta. Asurakumaranam devanam ukkosenam egam sahiyam sagarovamam thii pannatta. Asurakumarimdavajjiyanam bhamijjanam devanam atthegaiyanam egam paliovamam thii pannatta. Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniyanam atthegaiyanam egam paliovamam thii pannatta. Asamkhejjavasauyagabbhavakkamtiyasannimanayanam atthegaiyanam egam paliovamam thii pannatta. Vanamamtaranam devanam ukkosenam egam paliovamam thii pannatta. Joisiyanam devanam ukkosenam egam paliovamam vasasayasahassamabbhahiyam thii pannatta. Sohamme kappe devanam jahannenam egam paliovamam thii pannatta. Sohamme kappe devanam atthegaiyanam egam savarovamam thii pannatta. Isane kappe devanam jahannenam sairegam egam paliovamam thii pannatta. Isane kappe devanam atthegaiyanam egam sagarovamam thii pannatta. Je deva sagaram susagaram sagarakamtam bhavam manum manusottaram logahiyam vimanam devattae uvavanna, tesi nam devanam ukkosenam egam sagarovamam thii pannatta. Te nam deva egassa addhamasassa anamamti va panamamti va usasamti va nisasamti va. Tesi nam devanam egassa vasasahassassa aharatthe samupajjai. Samtegaiya bhavasiddhiya jiva, je egenam bhavaggahanenam sijjhissamti bujjhissamti muchchissamti parinivvaissamti savva dukkhanamamtam karissamti.
Sutra Meaning Transliteration : He ayushman ! Una bhagavana ne aisa kaha hai, maine suna hai. [isa avasarpini kala ke chauthe are ke antima samaya mem vidyamana una shramana bhagavana mahavira ne dvadashamga ganipitaka kaha hai, ve bhagavana] – achara adi shrutadharma ke adikara haim (apane samaya mem dharma ke adi praneta haim), tirthamkara haim, (dharmarupa tirtha ke pravartaka haim). Svayam samyak bodhi ko prapta hue haim. Purushom mem rupatishaya adi vishishta gunom ke dharaka hone se, evam uttama vritti vale hone se purushottama haim. Simha ke samana parakrami hone se purushasimha haim, purushom mem uttama sahasrapatra vale shveta kamala ke samana shreshtha hone se purushavara – pundarika haim. Purushom mem shreshtha gandhahasti jaise haim, jaise gandhahasti ke mada ki gandha se bare – bare hathi bhaga jate haim, usi prakara apake nama ki gandhamatra se bare – bare pravadi rupi hathi bhaga khare hote haim. Ve lokottama haim, kyomki jnyanatishaya adi asadharana gunom se yukta haim aura tinom lokom ke svamiyom dvara namaskrita haim, isilie tinom loko ke natha haim aura adhipa arthat svami haim kyomki jo praniyom ke yoga – kshema ko karata hai, vahi natha aura svami kaha jata hai. Loka ke hita karane se – unaka uddhara karane se – lokahitakara haim. Loka mem prakasha aura udyota karane se loka – pradipa aura loka – pradyotakara haim. Jivamatra ko abhayadana ke data haim, arthat pranimatra para abhaya (daya aura karuna) ke dharaka haim, chakshu ka data jaise mahana upakari hota hai, usi prakara bhagavana mahavira ajnyana rupa andhakara mem pare praniyom ko sanmarga ke prakashaka hone se chakshu – data haim aura sanmarga para lagane se margadata haim, bina kisi bheda – bhava ke pranimatra ke sharanadata haim, janma – marana ke chakra se chhurane ke karana akshaya jivana ke data haim, samyak bodhi pradana karane vale haim, durgatiyom mem girate hue jivom ko bachane ke karana dharma – data haim, saddharma ke upadeshaka haim, dharma ke nayaka haim, dharmarupa ratha ke samchalana karane se dharma ke sarathi haim. Dharmarupa chakra ke chaturdishaom mem aura charom gatiyom mem pravartana karane se dharmavara – chaturanta chakravarti haim. Pratighata – rahita niravarana shreshtha kevalajnyana aura kevaladarshana ke dharaka haim. Chhadma arthat avarana aura chhala – prapamcha se sarvatha nivritta hone ke karana vyavrittachhadma haim. Vishaya – kashayom ko jitane se svayam jina haim aura dusarom ke bhi vishaya – kashayom ke chhurane se aura una para vijaya prapta karane ka marga batane se jnyapaka haim ya jaya – prapaka haim. Svayam samsara – sagara se uttirna haim aura dusarom ke utaraka haim. Svayam bodha ko prapta hone se buddha haim aura dusarom ko bodha dene se bodhaka haim. Svayam karmom se mukta haim aura dusarom ke bhi karmom ke mochaka haim. Jo sarva jagata ke janane se sarvajnya aura sarvaloka ke dekhane se sarvadarshi haim. Jo achala, aruja, (roga – rahita) ananta, akshaya, avyabadha (badhaom se rahita) aura punah agamana se rahita aisi siddha – gati nama ke anupama sthana ko prapta karane vale haim. Aise una bhagavana mahavira ne yaha dvadashanga rupa ganipitaka kaha hai. Vaha isa prakara hai – achara, sutrakrita, sthana, samavaya, vyakhya – prajnyapti, jnyatadharmakatha, upasakadasha, anta – kritadasha, anuttaraupapatikadasha, prashnavyakarana, vipaka – shruta aura drishtivada. Usa dvadashamga shrutarupa ganipitaka mem yaha samavayamga chautha amga kaha gaya hai, usaka artha isa prakara hai – atma eka hai, anatma eka hai, danda eka hai, adanda eka hai, kriya eka hai, akriya eka hai, loka eka hai, aloka eka hai, dharmastikaya eka hai, adharmastikaya eka hai, punya eka hai, papa eka hai, bandha eka hai, moksha eka hai, asrava eka hai, samvara eka hai, vedana eka hai aura nirjara eka hai. Jambudvipa namaka yaha prathama dvipa ayama (lambai) aura vishkambha (chaurai) ki apeksha shatasahasra (eka lakha) yojana vistirna kaha gaya hai. Saudharmendra ka palaka nama ka yana (yatra ke samaya upayoga mem ane vala palaka nama ke abhiyogya deva ki vikriya se nirmita vimana) eka lakha yojana ayama – vishkambha vala kaha gaya hai. Sarvarthasiddha namaka anuttara mahavimana eka lakha yojana ayama – vishkambha vala kaha gaya hai. Ardra nakshatra eka tara vala kaha gaya hai. Chitra nakshatra eka tara vala kaha gaya hai. Svati nakshatra eka tara vala kaha gaya hai. Isi ratnaprabha prithvi mem kitaneka narakom ki sthiti eka palyopama kahi gai hai. Kitaneka asurakumara devom ki sthiti eka palyopama kahi gai hai. Asurakumara devom ki utkrishta sthiti kuchha adhika eka sagaropama kahi gai hai. Asurakumarendrom ko chhorakara shesha bhavanavasi kitaneka devom ki sthiti eka palyopama kahi gai hai. Kitaneka asamkhyata varshayushka samjnyi pamchendriya tiryagyonika jivom ki sthiti eka palyopama kahi gai hai. Kitaneka asamkhyata varshayushka garbhopakrantika samjnyi manushyom ki sthiti eka palyopama kahi gai hai. Vanavyantara devom ki utkrishta sthiti eka palyopama kahi gai hai. Jyotishka devom ki utkrishta sthiti eka lakha varsha se adhika eka palyopama kahi gai hai. Saudharmakalpa mem devom ki jaghanya sthiti eka palyopama kahi gai hai. Saudharmakalpa mem kitaneka devom ki sthiti eka sagaropama kahi gai hai. Ishanakalpa mem devom ki jaghanya sthiti kuchha adhika eka palyopama kahi gai hai. Ishanakalpa mem kitaneka devom ki sthiti eka sagaropama kahi gai hai. Jo deva sagara, susagara, sagarakanta, bhava, manu, manushottara aura lokahita nama ke vishishta vimanom mem deva rupa se utpanna hote haim, una devom ki utkrishta sthiti eka sagaropama kahi gai hai. Ve deva eka ardhamasa mem (pandraha dina mem) ana – prana athava uchchhvasa – nihshvasa lete haim. Una devom ke eka hajara varsha mem ahara ki ichchha utpanna hoti hai. Kitaneka bhavyasiddhika jiva aise haim jo eka manushya bhava grahana karake siddha homge, buddha homge, karmom se mukta homge, parama nirvana ko prapta homge aura sarva duhkhom ka anta karemge.