Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001703 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 703 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिट्ठंते य असण्णिदिट्ठंते य। से किं तं सण्णिदिट्ठंते? सण्णिदिट्ठंते– जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।एतेसि णं छज्जीवणिकाए पडुच्च, पइण्णं कुज्जा? से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से ‘य तेणं’ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से य तेणं आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ आउकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ तेउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं तेउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से य तेणं तेउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ तेउ-कायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ वाउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं वाउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से य तेणं वाउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ वाउकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ वणस्सइकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं वणस्सइकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से य तेणं वणस्सइकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ वणस्सइकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ तसकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं तसकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से य तेणं तसकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ तस-कायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ छज्जीवणिकाएहिं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एव भवइ–एवं खलु छज्जीवणिकाएहिं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेहिं वा इमेहिं वा। से य तेहिं छहिं जीवणिकाएहिं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तेहिं छहिं जीवणिकाएहिं असंजय-अविरय-अप्पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे, तं जहा– ‘पाणाइवाए जाव मिच्छादंसण-सल्ले’। एस खलु भगवया अक्खाए अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे सुविणमवि ‘न पस्सइ’ पावे य से कम्मे कज्जइ। –से तं सण्णिदिट्ठंते। से किं तं असण्णिदिट्ठंते? असण्णिदिट्ठंते–जे इमे असण्णिणो पाणा, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया छट्ठा वेगइया तसा पाणा। जेसिं नो तक्का इ वा पण्णा इ वा मणे इ वा वई इ वा सयं वा करणाए, अन्नेहिं वा कारवेत्तए, करेंतं वा समणुजाणित्तए, ते वि णं बाला सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं दिया वा राओ वा सुत्ता वा जागरमाणा अमित्तभूया मिच्छासंठिया निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडा, तं जहा– ‘पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले’। इच्चेवं जाणे नो चेव मणो नो चेव वई पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्ट-णयाए परितप्पणयाए, ते दुक्खण-सोयन जुरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति। इति खलु ते असण्णिणो वि संता अहोणिसं पाणाइवाए उवक्खाइज्जंति जाव अहोणिसं मिच्छा-दंसणसल्ले उवक्खाइज्जंति। सव्वजोणिया वि खलु सत्ता–सण्णिणो हुच्चा असण्णिणो होंति, असण्णिणो हुच्चा सण्णिणो होंति, होच्चा सण्णी अदुवा असण्णी। तत्थ से अविविचित्ता अविधूणित्ता असंमुच्छित्ता अणणुतावित्ता असण्णिकायाओ वा सण्णिकायं संकमंति, सण्णि कायाओ वा असण्णिकायं संकमंति, सण्णिकायाओ वा सण्णिकायं संकमंति, असण्णिकायाओ वा असण्णिकायं संकमंति। जे एए सण्णी वा असण्णी वा सव्वे ते मिच्छायारा निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडा, तं जहा– ‘पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले’। एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे सकिरिए असंबुडे एगंतदंडे एगंत-बाले एगंतसुत्ते। से बाले अवियारमण-वयण-काय-वक्के सुविणमवि न पासइ, पावे य से कम्मे कज्जइ। | ||
Sutra Meaning : | आचार्य ने कहा – इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने दो दृष्टान्त कहे हैं, एक संज्ञिदृष्टान्त और दूसरा असंज्ञिदृष्टान्त। (प्रश्न – ) यह संज्ञी का दृष्टान्त क्या है ? (उत्तर – ) संज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – जो ये प्रत्यक्ष दृष्टि – गोचर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक षड्जीवनिकाय के जीवों में से यदि कोई पुरुष पृथ्वीकाय से ही अपना आहारादि कृत्य करता है, कराता है, तो उसके मनमें ऐसा विचार होता है कि मैं पृथ्वीकाय से अपना कार्य करता भी हूँ और कराता भी हूँ, उसे उस समय ऐसा विचार नहीं होता कि वह इस या इस (अमुक) पृथ्वी (काय) से ही कार्य करता है, कराता है, सम्पूर्ण पृथ्वी से नहीं। वह पृथ्वीकाय से ही कार्य करता है और कराता है। इसलिए वह व्यक्ति पृथ्वीकाय का असंयमी, उससे अविरत, तथा उसकी हिंसा का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किया हुआ नहीं है। इसी प्रकार त्रसकाय तक के जीवों के विषय में कहना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति छह काया के जीवों से कार्य करता है, कराता भी है, तो वह यही विचार करता है कि मैं छह काया के जीवों से कार्य करता हूँ, कराता भी हूँ। उस व्यक्ति को ऐसा विचार नहीं होता कि वह अमुक – अमुक जीवों से ही कार्य करता और कराता है, क्योंकि वह सामान्यरूप से उन छहों जीवनिकायों से कार्य करता है और कराता भी है इस कारण वह प्राणी उन छहों जीवनिकायों के जीवों की हिंसा से असंयत, अविरत है, और उनकी हिंसा आदि से जनित पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किया हुआ नहीं है। इस कारण वह प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के सभी पापों का सेवन करता है। तीर्थंकर भगवान ने ऐसे प्राणी को असंयत, अविरत, पापकर्मों का नाश तथा प्रत्याख्यान से निरोध न करने वाला कहा है। चाहे वह प्राणी स्वप्न भी न देखता हो, तो भी वह पापकर्म करता है। (प्रश्न – ) ‘वह असंज्ञीदृष्टान्त क्या है?’ (उत्तर – ) असंज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – ‘पृथ्वीकायिक जीवों से लेकर वनस्पतिकायिक जीवों तक पाँच स्थावर एवं छठे जो त्रससंज्ञक अमनस्क जीव हैं, वे असंज्ञी हैं, जिनमें न तर्क है, न संज्ञा है, न प्रज्ञा है, न मन है, न वाणी है और जो न तो स्वयं कर सकते हैं और न ही दूसरे से करा सकते हैं, और न करते हुए को अच्छा समझ सकते हैं; तथापि वे अज्ञानी प्राणी भी समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के दिन – रात सोते या जागते हर समय शत्रु – से बने रहते हैं, उन्हें धोखा देने में तत्पर रहते हैं, उनके प्रति सदैव हिंसात्मक चित्तवृत्ति रखते हैं, इसी कारण वे प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक अठारह ही पापस्थानों में सदा लिप्त रहते हैं। इस प्रकार यद्यपि असंज्ञी जीवों के मन नहीं होता, और न ही वाणी होती है, तथापि वे समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख देने, शोक उत्पन्न करने, विलाप कराने, रुलाने, पीड़ा देने, वध करने, तथा परिताप देने अथवा उन्हें एक ही साथ दुःख, शोक, विलाप, रुदन, पीड़न, संताप, वध – बन्धन, परिक्लेश आदि करने से विरत नहीं होते, अपितु पापकर्म में सदा रत रहते हैं। इस प्रकार वे प्राणी असंज्ञी होते हुए भी अहर्निश प्राणातिपात में मृषावाद आदि से लेकर परिग्रह तक में तथा मिथ्यादर्शन शल्य तक के समस्त पापस्थानों में प्रवृत्त कहे जाते हैं। सभी योनियों के प्राणी निश्चित रूप से संज्ञी होकर असंज्ञी हो जाते हैं, तथा असंज्ञी होकर संज्ञी हो जाते हैं। वे संज्ञी या असंज्ञी होकर यहाँ पापकर्मों को अपने से अलग न करके, तथा उन्हें न झाड़कर उनका उच्छेद न करके तथा उनके लिए पश्चात्ताप न करके वे संज्ञी के शरीर से संज्ञी के शरीर में आते हैं, अथवा संज्ञी के शरीर से असंज्ञी के शरीर में संक्रमण करते हैं, अथवा असंज्ञीकाय से संज्ञीकाय में संक्रमण करते हैं अथवा असंज्ञी की काया से असंज्ञी की काया में आते हैं। जो ये संज्ञी अथवा असंज्ञी प्राणी होते हैं, वे सब मिथ्याचारी और सदैव शठतापूर्ण हिंसात्मक चित्तवृत्ति धारण करते हैं। अतएव वे प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक पापस्थानों का सेवन करने वाले हैं। इसी कारण से ही भगवान महावीर ने इन्हें असंयत, अविरत, पापों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान न करने वाले, अशुभक्रियायुक्त, संवररहित, एकान्त हिंसक, एकान्त बाल और एकान्त सुप्त कहा है। वह अज्ञानी जीव भले ही मन, वचन, काया और वाक्य का प्रयोग विचारपूर्वक न करता हो, तथा (हिंसा का) स्वप्न भी न देखता हो, फिर भी पापकर्म (का बन्ध) करता रहता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] acharya aha–tattha khalu bhagavaya duve ditthamta pannatta, tam jaha–sanniditthamte ya asanniditthamte ya. Se kim tam sanniditthamte? Sanniditthamte– je ime sannipamchimdiya pajjattagA.Etesi nam chhajjivanikae paduchcha, painnam kujja? Se egaio pudhavikaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham pudhavikaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ‘ya tenam’ pudhavikaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao pudhavikayao asamjaya-aviraya-appadihayapachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio aukaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham aukaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ya tenam aukaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao aukayao asamjaya-aviraya-appadihayapachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio teukaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham teukaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ya tenam teukaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao teu-kayao asamjaya-aviraya-appadihayapachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio vaukaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham vaukaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ya tenam vaukaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao vaukayao asamjaya-aviraya-appadihayapachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio vanassaikaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham vanassaikaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ya tenam vanassaikaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao vanassaikayao asamjaya-aviraya-appadihaya-pachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio tasakaenam kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam evam bhavai–evam khalu aham tasakaenam kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imena va imena va. Se ya tenam tasakaenam kichcham karei vi karavei vi. Se ya tao tasa-kayao asamjaya-aviraya-appadihayapachchakkhaya-pavakamme yavi bhavai. Se egaio chhajjivanikaehim kichcham karei vi karavei vi. Tassa nam eva bhavai–evam khalu chhajjivanikaehim kichcham karemi vi karavemi vi. No cheva nam se evam bhavai–imehim va imehim va. Se ya tehim chhahim jivanikaehim kichcham karei vi karavei vi. Se ya tehim chhahim jivanikaehim asamjaya-aviraya-appadihaya-pachchakkhaya-pavakamme, tam jaha– ‘panaivae java michchhadamsana-salle’. Esa khalu bhagavaya akkhae assamjae avirae appadihayapachchakkhaya-pavakamme suvinamavi ‘na passai’ pave ya se kamme kajjai. –se tam sanniditthamte. Se kim tam asanniditthamte? Asanniditthamte–je ime asannino pana, tam jaha–pudhavikaiya aukaiya teukaiya vaukaiya vanassaikaiya chhattha vegaiya tasa pana. Jesim no takka i va panna i va mane i va vai i va sayam va karanae, annehim va karavettae, karemtam va samanujanittae, te vi nam bala savvesim pananam savvesim bhuyanam savvesim jivanam savvesim sattanam diya va rao va sutta va jagaramana amittabhuya michchhasamthiya nichcham pasadha-viovaya-chittadamda, tam jaha– ‘panaivae java michchhadamsanasalle’. Ichchevam jane no cheva mano no cheva vai pananam bhuyanam jivanam sattanam dukkhanayae soyanayae juranayae tippanayae pitta-nayae paritappanayae, te dukkhana-soyana jurana-tippana-pittana-paritappana-vaha-bamdha-parikilesao appadiviraya bhavamti. Iti khalu te asannino vi samta ahonisam panaivae uvakkhaijjamti java ahonisam michchha-damsanasalle uvakkhaijjamti. Savvajoniya vi khalu satta–sannino huchcha asannino homti, asannino huchcha sannino homti, hochcha sanni aduva asanni. Tattha se avivichitta avidhunitta asammuchchhitta ananutavitta asannikayao va sannikayam samkamamti, sanni kayao va asannikayam samkamamti, sannikayao va sannikayam samkamamti, asannikayao va asannikayam samkamamti. Je ee sanni va asanni va savve te michchhayara nichcham pasadha-viovaya-chittadamda, tam jaha– ‘panaivae java michchhadamsanasalle’. Evam khalu bhagavaya akkhae asamjae avirae appadihaya-pachchakkhaya-pavakamme sakirie asambude egamtadamde egamta-bale egamtasutte. Se bale aviyaramana-vayana-kaya-vakke suvinamavi na pasai, pave ya se kamme kajjai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Acharya ne kaha – isa vishaya mem bhagavana mahavira svami ne do drishtanta kahe haim, eka samjnyidrishtanta aura dusara asamjnyidrishtanta. (prashna – ) yaha samjnyi ka drishtanta kya hai\? (uttara – ) samjnyi ka drishtanta isa prakara hai – jo ye pratyaksha drishti – gochara samjnyi pamchendriya paryaptaka jiva haim, inamem prithvikaya se lekara trasakaya taka shadjivanikaya ke jivom mem se yadi koi purusha prithvikaya se hi apana aharadi kritya karata hai, karata hai, to usake manamem aisa vichara hota hai ki maim prithvikaya se apana karya karata bhi hum aura karata bhi hum, use usa samaya aisa vichara nahim hota ki vaha isa ya isa (amuka) prithvi (kaya) se hi karya karata hai, karata hai, sampurna prithvi se nahim. Vaha prithvikaya se hi karya karata hai aura karata hai. Isalie vaha vyakti prithvikaya ka asamyami, usase avirata, tatha usaki himsa ka pratighata aura pratyakhyana kiya hua nahim hai. Isi prakara trasakaya taka ke jivom ke vishaya mem kahana chahie. Yadi koi vyakti chhaha kaya ke jivom se karya karata hai, karata bhi hai, to vaha yahi vichara karata hai ki maim chhaha kaya ke jivom se karya karata hum, karata bhi hum. Usa vyakti ko aisa vichara nahim hota ki vaha amuka – amuka jivom se hi karya karata aura karata hai, kyomki vaha samanyarupa se una chhahom jivanikayom se karya karata hai aura karata bhi hai isa karana vaha prani una chhahom jivanikayom ke jivom ki himsa se asamyata, avirata hai, aura unaki himsa adi se janita papakarmom ka pratighata aura pratyakhyana kiya hua nahim hai. Isa karana vaha pranatipata se lekara mithyadarshana shalya taka ke sabhi papom ka sevana karata hai. Tirthamkara bhagavana ne aise prani ko asamyata, avirata, papakarmom ka nasha tatha pratyakhyana se nirodha na karane vala kaha hai. Chahe vaha prani svapna bhi na dekhata ho, to bhi vaha papakarma karata hai. (prashna – ) ‘vaha asamjnyidrishtanta kya hai?’ (uttara – ) asamjnyi ka drishtanta isa prakara hai – ‘prithvikayika jivom se lekara vanaspatikayika jivom taka pamcha sthavara evam chhathe jo trasasamjnyaka amanaska jiva haim, ve asamjnyi haim, jinamem na tarka hai, na samjnya hai, na prajnya hai, na mana hai, na vani hai aura jo na to svayam kara sakate haim aura na hi dusare se kara sakate haim, aura na karate hue ko achchha samajha sakate haim; tathapi ve ajnyani prani bhi samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ke dina – rata sote ya jagate hara samaya shatru – se bane rahate haim, unhem dhokha dene mem tatpara rahate haim, unake prati sadaiva himsatmaka chittavritti rakhate haim, isi karana ve pranatipata se lekara mithyadarshana shalya taka atharaha hi papasthanom mem sada lipta rahate haim. Isa prakara yadyapi asamjnyi jivom ke mana nahim hota, aura na hi vani hoti hai, tathapi ve samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ko duhkha dene, shoka utpanna karane, vilapa karane, rulane, pira dene, vadha karane, tatha paritapa dene athava unhem eka hi satha duhkha, shoka, vilapa, rudana, pirana, samtapa, vadha – bandhana, pariklesha adi karane se virata nahim hote, apitu papakarma mem sada rata rahate haim. Isa prakara ve prani asamjnyi hote hue bhi aharnisha pranatipata mem mrishavada adi se lekara parigraha taka mem tatha mithyadarshana shalya taka ke samasta papasthanom mem pravritta kahe jate haim. Sabhi yoniyom ke prani nishchita rupa se samjnyi hokara asamjnyi ho jate haim, tatha asamjnyi hokara samjnyi ho jate haim. Ve samjnyi ya asamjnyi hokara yaham papakarmom ko apane se alaga na karake, tatha unhem na jharakara unaka uchchheda na karake tatha unake lie pashchattapa na karake ve samjnyi ke sharira se samjnyi ke sharira mem ate haim, athava samjnyi ke sharira se asamjnyi ke sharira mem samkramana karate haim, athava asamjnyikaya se samjnyikaya mem samkramana karate haim athava asamjnyi ki kaya se asamjnyi ki kaya mem ate haim. Jo ye samjnyi athava asamjnyi prani hote haim, ve saba mithyachari aura sadaiva shathatapurna himsatmaka chittavritti dharana karate haim. Ataeva ve pranatipata se lekara mithyadarshana shalya taka papasthanom ka sevana karane vale haim. Isi karana se hi bhagavana mahavira ne inhem asamyata, avirata, papom ka pratighata aura pratyakhyana na karane vale, ashubhakriyayukta, samvararahita, ekanta himsaka, ekanta bala aura ekanta supta kaha hai. Vaha ajnyani jiva bhale hi mana, vachana, kaya aura vakya ka prayoga vicharapurvaka na karata ho, tatha (himsa ka) svapna bhi na dekhata ho, phira bhi papakarma (ka bandha) karata rahata hai. |