Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001645 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 645 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | से बेमि–पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तेसिं च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया। सतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। असतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। जे ते सतो वा असतो वा नायओ ‘य उवगरणं च’ विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया, पुव्वमेव तेहिं णातं भवति–इह खलु पुरिसे ‘अन्नमण्णं ममट्ठाए’ एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा–खेत्तं मे वत्थू मे हिरण्णं मे सुवण्णं मे ‘धणं मे’ धण्णं मे कंसं मे दूसं मे विपुल-धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावतेयं मे सद्दा मे रूवा मे गंधा मे फासा मे। एते खलु मे कामभोगा, अहमवि एतेसिं। से मेहावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा–इह खलु मम अन्नतरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा–अणिट्ठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे नो सुहे। से हंता! भयंतारो! कामभोगा! मम अन्नतरं दुक्खं रोगायंकं परियाइयह–अनिट्ठं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं नो सुहं। माऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा। इमाओ मे अन्नतराओ दुक्खओ रोगातंकाओ पडिमोयह–अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ। ‘एवमेव नो लद्धपुव्वं’ भवति। इह खलु कामभोगा नो ताणाए वा नो सरणाए वा। पुरिसे वा एगया पुव्विं कामभोगे विप्पजहइ, कामभोगा वा एगया पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति। अन्ने खलु कामभोगा, अण्णो अहमंसि। से किमंग पुन वयं अन्नमण्णेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं कामभोगे विप्पजहिस्सामो। से मेहावी जाणेज्जा–बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं, तं जहा–माता मे पिता मे भाया मे ‘भगिणी मे भज्जा मे’ पुत्ता मे ‘णत्ता मे धूया मे पेसा मे सहा मे’ सुही मे सयणसंगंथसंथुया मे। एते खलु मम नायओ, अहमवि एएसिं। से मेहावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा–इह खलु ममं अन्नयरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा–अणिट्ठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे नो सुहे। से हंता! भयंतारो! नायओ! इमं मम अन्नयरं दुक्खं रोगातंकं परियाइयह– अनिट्ठं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अम-णामं दुक्खं नो सुहं। माऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा। इमाओ मे अन्नत-राओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोयह– अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ। एवमेव नो लद्धपुव्वं भवइ। तेसिं वा वि भयंताराणं मम नाययाणं अन्नयरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा–अनिट्ठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे नो सुहे। से हंता! अहमेतेसिं भयंताराणं नाययाणं इमं अन्नतरं दुक्खं रोगातंकं परियाइयामि–अनिट्ठं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं नो सुहं, ‘मा मे दुक्खंतु वा सोयंतु वा जूरंतु वा तिप्पंतु वा पीडंतु वा परितप्पंतु वा। इमाओ णं अन्नयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोएमि–अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ एवमेव नो लद्धपुव्वं भवति। अन्नस्स दुक्खं अण्णो नो परियाइयइ, अन्नेन कतं अण्णो नो पडिसंवेदेइ, पत्तेयं जायइ, पत्तेयं मरइ, पत्तेयं चयइ, पत्तेयं उववज्जइ, पत्तेयं ज्झंज्झा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं मण्णा, पत्तेयं विण्णू, पत्तेयं वेदणा। इति खलु नातिसंजोगा नो ताणाए वा नो सरणाए वा। पुरिसे वा एगया पुव्विं नाइसंजोगे विप्पजहइ, नाइसंजोगा वा एगया पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति। अन्ने खलु नातिसंजोगा, अण्णो अहमंसि। से किमंग पुन वयं अन्नमण्णेहिं नाइसंजोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं नातिसंजोगे विप्पजहिस्सामो। से मेहावी जाणेज्जा–बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं, तं जहा–हत्था मे पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीसं मे आउं मे बलं मे वण्णो मे तया मे छाया मे सोयं मे चक्खुं मे घान मे जिब्भा मे फासा मे ममाति, वयाओ परिजूरइ, तं जहा–आऊओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ चक्खूओ घाणाओ जिब्भाओ फासाओ। सुसंधिता संधी विसंधीभवति, वलितरंगे गाए भवति, किण्हा केसा पालिया भवंति। जं पि य इमं सरीरगं उरालं आहारोवचियं, एयं पि य मे अनुपुव्वेणं विप्पज-हियव्वं भविस्सति। एयं संखाए से भिक्खु भिक्खायरियाए समुट्ठिए दुहओ लोगं जाणेज्जा, तं जहा–जीवा चेव, अजीवा चेव। तसा चेव, थावरा चेव। | ||
Sutra Meaning : | मैं ऐसा कहता हूँ कि पूर्व आदि चारों दिशाओं में नाना प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं, जैसे कि कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य होते हैं, यावत् कोई कुरूप। उनके पास खेत और मकान आदि होते हैं, उनके अपने जन तथा जनपद परिगृहीत होते हैं, जैसे कि किसी का परिग्रह थोड़ा और किसी का अधिक। इनमें से कोई पुरुष पूर्वोक्त कुलों में जन्म लेकर विषय – भोगों की आसक्ति छोड़कर भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए उद्यत होते हैं। कईं विद्यमान ज्ञातिजन, अज्ञातिजन तथा उपकरण को छोड़कर भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए समुद्यत होते हैं, अथवा कईं अविद्यमान ज्ञातिजन, अज्ञातिजन एवं उपकरण का त्याग करके भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए समुद्यत होते हैं। जो विद्यमान अथवा अविद्यमान ज्ञातिजन, अज्ञातिजन एवं उपकरण का त्याग करके भिक्षाचर्या के लिए समुत्थित होते हैं, इन दोनों प्रकार के ही साधकों को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि इस लोक में पुरुषगण अपने से भिन्न वस्तुओं को उद्देश्य करके झूठमूठ ही ऐसा मानते हैं कि ये मेरी है, मेरे उपभोग में आएंगी, जैसे कि – यह खेत मेरा है, यह मकान मेरा है, यह चाँदी मेरी है, यह सोना मेरा है, यह धन – धान्य मेरा है, यह काँसे के बर्तन मेरे हैं, यह बहुमूल्य वस्त्र या लोह आदि धातु मेरा है, यह प्रचुर धन यह बहुत – सा कनक, ये रत्न, मणि, मोती, शंखशिला, प्रवाल, रक्तरत्न, पद्मराग आदि उत्तमोत्तम मणियाँ और पैत्रिक नकद धन, मेरे हैं, ये वीणा, वेणु आदि वाद्य मेरे हैं, ये सुन्दर और रूपवान् पदार्थ मेरे हैं, ये सुगन्धित पदार्थ मेरे हैं, ये उत्तमोत्तम स्वादिष्ट एवं सरस खाद्य पदार्थ मेरे हैं, ये कोमल – कोमल स्पर्श वाले गद्दे, तोशक आदि पदार्थ मेरे हैं। ये पूर्वोक्त पदार्थ – समूह मेरे कामभोग के साधन हैं, मैं इनका योगक्षेम करने वाला हूँ, अथवा उपभोग करने में समर्थ हूँ। वह मेघावी साधक स्वयं पहले से ही यह भलीभाँति जान ले कि ‘‘इस संसार में जब मुझे कोई राग या आतंक उत्पन्न होता है, जो कि मुझे इष्ट नहीं है, कान्त नहीं है, प्रिय नहीं है, अशुभ है, अमनोज्ञ है, अधिक पीड़ाकारी है, दुःखरूप है, भय का अन्त करने वाले मेरे धनधान्य आदि कामभोगों ! मेरे इस अनिष्ट, अकान्त, अशुभ, अमनोज्ञ, अतीव दुःखद, दुःखरूप या असुखरूप रोग, आतंक आदि को तुम बाँट कर ले लो; क्योंकि मैं इस पीड़ा, रोग या आतंक से बहुत दुःखी हो रहा हूँ, मैं चिन्ता या शोक से व्याकुल हूँ, इनके कारण मैं बहुत चिन्ताग्रस्त हूँ, मैं अत्यन्त पीड़ित हूँ, मैं बहुत ही वेदना पा रहा हूँ, या अतिसंतप्त हूँ। अतः तुम सब मुझे इस अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अवमान्य, दुःखरूप या असुखरूप मेरे किसी एक दुःख से या रोगांतक से मुझे मुक्त करा दो। तो वे पदार्थ उक्त प्रार्थना सून कर दुःखादि से मुक्त करा दे, ऐसा कभी नहीं होता। इस संसार में वास्तव में, कामभोग दुःख से पीड़ित उस व्यक्ति की रक्षा करने या शरण देने में समर्थ नहीं होते। इन कामभोगों का उपभोक्ता किसी समय तो पहले से ही स्वयं इन कामभोग पदार्थों को छोड़ देता है, अथवा किसी समय पुरुष को कामभोग पहले ही छोड़ देते हैं। इसलिए ये कामभोग मेरे से भिन्न हैं, मैं इनसे भिन्न हूँ। फिर हम क्यों अपने से भिन्न इन कामभोगों में मूर्च्छित – आसक्त हों। इस प्रकार इन सबका ऐसा स्वरूप जानकर हम इन कामभोगों का परित्याग कर देंगे। बुद्धिमान साधक जान ले, ये सब कामभोगादि पदार्थ बहिरंग हैं, मेरी आत्मा से भिन्न हैं। इनसे तो मेरे निकटतर ये ज्ञातिजन हैं – जैसे कि ‘‘यह मेरी माता है, मेरे पिता हैं, मेरा भाई है, मेरी बहन है, मेरी पत्नी है, मेरे पुत्र हैं, मेरी पुत्री है, ये मेरे दास हैं, यह मेरा नाती है, मेरी पुत्र – वधू है, मेरा मित्र है, ये मेरे पहले और पीछे के स्वजन एवं परिचित सम्बन्धी है। ये मेरे ज्ञातिजन है, और मैं भी इनका आत्मीयजन हूँ। बुद्धिमान साधक को स्वयं पहले से ही सम्यक् प्रकार से जान लेना चाहिए कि इस लोक में मुझे किसी प्रकार का कोई दुःख या रोग – आतंक पैदा होने पर मैं अपने ज्ञातिजनों से प्रार्थना करूँ कि हे भय का अन्त करने वाले ज्ञातिजनों ! मेरे इस अनिष्ट, अप्रिय यावत् दुःखरूप या असुखरूप दुःख या रोगांतक को आप लोग बराबर बाँट ले, ताकि मैं इस दुःख से दुःखित, चिन्तित यावत् अतिसंतप्त न होऊं। आप सब मुझे इस अनिष्ट यावत् उत्पीड़क दुःख या रोगांतक से मुक्त करा दें। इस पर वे ज्ञातिजन मेरे दुःख और रोगांतक को बाँट कर ले ले, या मुझे इस दुःख या रोगांतक से मुक्त करा दे, ऐसा कदापि नहीं होता। अथवा भय से मेरी रक्षा करने वाले उन मेरे ज्ञातिजनों को ही कोई दुःख या रोग उत्पन्न हो जाए, जो अनिष्ट, अप्रिय यावत् असुखकर हो, तो मैं उन भयत्राता ज्ञातिजनों के अनिष्ट, यावत् दुःख या रोगांतक को बाँट कर ले लूँ, ताकि वे मेरे ज्ञातिजन दुःख न पाए यावत् वे अतिसंतप्त न हों, तथा मैं उनके किसी अनिष्ट यावत् दुःख या रोगांतक से मुक्त कर दूँ, ऐसा भी कदापि नहीं होता। (क्योंकि) दूसरे के दुःख को दूसरा व्यक्ति बाँट कर नहीं ले सकता। दूसरे के द्वारा कृत कर्म का फल दूसरा नहीं भोग सकता। प्रत्येक प्राणी अकेला ही जन्मता है, अकेला ही मरता है, प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही त्याग करता है, अकेला ही उपभोग या स्वीकार करता है, प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही झंझा आदि कषायों को ग्रहण करता है, अकेला ही पदार्थों का परिज्ञान करता है, प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही मनन – चिन्तन करता है, प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही विद्वान होता है, प्रत्येक व्यक्ति अपने – अपने सुख – दुःख का वेदन करता है। अतः पूर्वोक्त प्रकार से मनुष्य को पहले छोड़ देता है। अतः ‘ज्ञातिजनसंयोग मेरे से भिन्न है, मैं भी ज्ञातिजनसंयोग से भिन्न हूँ।’ तब फिर अपने से पृथक् इस ज्ञातिजनसंयोगमें क्यों आसक्त हों? यह भलीभाँति जानकर अब हम ज्ञातिसंयोग का परित्याग कर देंगे। परन्तु मेघावी साधक को यह निश्चित रूप से जान लेना चाहिए कि ज्ञातिजनसंयोग तो बाह्य वस्तु है ही, इनसे भी निकटतर सम्बन्धी ये सब हैं, जिन पर प्राणी ममत्व करता है, जैसे कि – ये मेरे हाथ हैं, ये मेरे पैर हैं, ये मेरी बाँहें हैं, ये मेरी जाँघें हैं, यह मेरा मस्तक है, यह मेरा शील है, इसी तरह मेरी आयु, मेरा बल, मेरा वर्ण, मेरी चमड़ी, मेरी छाया, मेरे कान, मेरे नेत्र, मेरी नासिका, मेरी जिह्वा, मेरी स्पर्शेन्द्रिय, इस प्रकार प्राणी ‘मेरा मेरा’ करता है। आयु अधिक होने पर ये सब जीर्ण – शीर्ण हो जाते हैं। जैसे कि आयु से, बल से, वर्ण से, त्वचा से, कान से तथा स्पर्शेन्द्रियपर्यन्त सभी शरीर सम्बन्धी पदार्थों से क्षीण – हीन हो जाता है। उसकी सुघटित दृढ़ सन्धियाँ ढीली हो जाती है, उसके शरीर की चमड़ी सिकुड़ कर नसों के जाल से वेष्टित हो जाती है। उसके काले केश सफेद हो जाते हैं, यह जो आहार से उपचित औदारिक शरीर है, वह भी क्रमशः अवधि पूर्ण होने पर छोड़ देना पड़ेगा। यह जान कर भिक्षाचर्या स्वीकार करने हेतु प्रव्रज्या के लिए समुद्यत साधु लोक को दोनों प्रकार से जान ले, जैसे कि – लोक जीवरूप है और अजीवरूप है, तथा त्रसरूप है और स्थावररूप है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Se bemi–painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti, tam jaha–ariya vege anariya vege, uchchagoya vege niyagoya vege, kayamamta vege hassamamta vege, suvanna vege duvanna vege, suruva vege duruva vege. Tesim cha nam khettavatthuni pariggahiyani bhavamti, tam jaha–‘appayara va bhujjayara’ va. Tesim cha nam janajanavayaim pariggahiyaim bhavamti, tam jaha–‘appayara va bhujjayara’ va. Tahappagarehim kulehim agamma abhibhuya ege bhikkhayariyae samutthiya. Sato va vi ege nayao ya uvagaranam cha vippajahaya bhikkhayariyae samutthiya. Asato va vi ege nayao ya uvagaranam cha vippajahaya bhikkhayariyae samutthiya. Je te sato va asato va nayao ‘ya uvagaranam cha’ vippajahaya bhikkhayariyae samutthiya, puvvameva tehim natam bhavati–iha khalu purise ‘annamannam mamatthae’ evam vippadivedeti, tam jaha–khettam me vatthu me hirannam me suvannam me ‘dhanam me’ dhannam me kamsam me dusam me vipula-dhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-rattarayana-samta-sara-savateyam me sadda me ruva me gamdha me phasa me. Ete khalu me kamabhoga, ahamavi etesim. Se mehavi puvvameva appana evam samabhijanejja–iha khalu mama annatare dukkhe rogatamke samuppajjejja–anitthe akamte appie asubhe amanunne amaname dukkhe no suhe. Se hamta! Bhayamtaro! Kamabhoga! Mama annataram dukkham rogayamkam pariyaiyaha–anittham akamtam appiyam asubham amanunnam amanamam dukkham no suham. Maham dukkhami va soyami va jurami va tippami va pidami va paritappami va. Imao me annatarao dukkhao rogatamkao padimoyaha–anitthao akamtao appiyao asubhao amanunnao amanamao dukkhao no suhao. ‘evameva no laddhapuvvam’ bhavati. Iha khalu kamabhoga no tanae va no saranae va. Purise va egaya puvvim kamabhoge vippajahai, kamabhoga va egaya puvvim purisam vippajahamti. Anne khalu kamabhoga, anno ahamamsi. Se kimamga puna vayam annamannehim kamabhogehim muchchhamo? Iti samkhae nam vayam kamabhoge vippajahissamo. Se mehavi janejja–bahiragameyam, inameva uvaniyataragam, tam jaha–mata me pita me bhaya me ‘bhagini me bhajja me’ putta me ‘natta me dhuya me pesa me saha me’ suhi me sayanasamgamthasamthuya me. Ete khalu mama nayao, ahamavi eesim. Se mehavi puvvameva appana evam samabhijanejja–iha khalu mamam annayare dukkhe rogatamke samuppajjejja–anitthe akamte appie asubhe amanunne amaname dukkhe no suhe. Se hamta! Bhayamtaro! Nayao! Imam mama annayaram dukkham rogatamkam pariyaiyaha– anittham akamtam appiyam asubham amanunnam ama-namam dukkham no suham. Maham dukkhami va soyami va jurami va tippami va pidami va paritappami va. Imao me annata-rao dukkhao rogatamkao parimoyaha– Anitthao akamtao appiyao asubhao amanunnao amanamao dukkhao no suhao. Evameva no laddhapuvvam bhavai. Tesim va vi bhayamtaranam mama nayayanam annayare dukkhe rogatamke samuppajjejja–anitthe akamte appie asubhe amanunne amaname dukkhe no suhe. Se hamta! Ahametesim bhayamtaranam nayayanam imam annataram dukkham rogatamkam pariyaiyami–anittham akamtam appiyam asubham amanunnam amanamam dukkham no suham, ‘ma me dukkhamtu va soyamtu va juramtu va tippamtu va pidamtu va paritappamtu va. Imao nam annayarao dukkhao rogatamkao parimoemi–anitthao akamtao appiyao asubhao amanunnao amanamao dukkhao no suhao evameva no laddhapuvvam bhavati. Annassa dukkham anno no pariyaiyai, annena katam anno no padisamvedei, patteyam jayai, patteyam marai, patteyam chayai, patteyam uvavajjai, patteyam jjhamjjha, patteyam sanna, patteyam manna, patteyam vinnu, patteyam vedana. Iti khalu natisamjoga no tanae va no saranae va. Purise va egaya puvvim naisamjoge vippajahai, naisamjoga va egaya puvvim purisam vippajahamti. Anne khalu natisamjoga, anno ahamamsi. Se kimamga puna vayam annamannehim naisamjogehim muchchhamo? Iti samkhae nam vayam natisamjoge vippajahissamo. Se mehavi janejja–bahiragameyam, inameva uvaniyataragam, tam jaha–hattha me paya me baha me uru me udaram me sisam me aum me balam me vanno me taya me chhaya me soyam me chakkhum me ghana me jibbha me phasa me mamati, vayao parijurai, tam jaha–auo balao vannao tayao chhayao soyao chakkhuo ghanao jibbhao phasao. Susamdhita samdhi visamdhibhavati, valitaramge gae bhavati, kinha kesa paliya bhavamti. Jam pi ya imam sariragam uralam aharovachiyam, eyam pi ya me anupuvvenam vippaja-hiyavvam bhavissati. Eyam samkhae se bhikkhu bhikkhayariyae samutthie duhao logam janejja, tam jaha–jiva cheva, ajiva cheva. Tasa cheva, thavara cheva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Maim aisa kahata hum ki purva adi charom dishaom mem nana prakara ke manushya nivasa karate haim, jaise ki koi arya hote haim, koi anarya hote haim, yavat koi kurupa. Unake pasa kheta aura makana adi hote haim, unake apane jana tatha janapada parigrihita hote haim, jaise ki kisi ka parigraha thora aura kisi ka adhika. Inamem se koi purusha purvokta kulom mem janma lekara vishaya – bhogom ki asakti chhorakara bhikshavritti dharana karane ke lie udyata hote haim. Kaim vidyamana jnyatijana, ajnyatijana tatha upakarana ko chhorakara bhikshavritti dharana karane ke lie samudyata hote haim, athava kaim avidyamana jnyatijana, ajnyatijana evam upakarana ka tyaga karake bhikshavritti dharana karane ke lie samudyata hote haim. Jo vidyamana athava avidyamana jnyatijana, ajnyatijana evam upakarana ka tyaga karake bhikshacharya ke lie samutthita hote haim, ina donom prakara ke hi sadhakom ko pahale se hi yaha jnyata hota hai ki isa loka mem purushagana apane se bhinna vastuom ko uddeshya karake jhuthamutha hi aisa manate haim ki ye meri hai, mere upabhoga mem aemgi, jaise ki – yaha kheta mera hai, yaha makana mera hai, yaha chamdi meri hai, yaha sona mera hai, yaha dhana – dhanya mera hai, yaha kamse ke bartana mere haim, yaha bahumulya vastra ya loha adi dhatu mera hai, yaha prachura dhana yaha bahuta – sa kanaka, ye ratna, mani, moti, shamkhashila, pravala, raktaratna, padmaraga adi uttamottama maniyam aura paitrika nakada dhana, mere haim, ye vina, venu adi vadya mere haim, ye sundara aura rupavan padartha mere haim, ye sugandhita padartha mere haim, ye uttamottama svadishta evam sarasa khadya padartha mere haim, ye komala – komala sparsha vale gadde, toshaka adi padartha mere haim. Ye purvokta padartha – samuha mere kamabhoga ke sadhana haim, maim inaka yogakshema karane vala hum, athava upabhoga karane mem samartha hum. Vaha meghavi sadhaka svayam pahale se hi yaha bhalibhamti jana le ki ‘‘isa samsara mem jaba mujhe koi raga ya atamka utpanna hota hai, jo ki mujhe ishta nahim hai, kanta nahim hai, priya nahim hai, ashubha hai, amanojnya hai, adhika pirakari hai, duhkharupa hai, bhaya ka anta karane vale mere dhanadhanya adi kamabhogom ! Mere isa anishta, akanta, ashubha, amanojnya, ativa duhkhada, duhkharupa ya asukharupa roga, atamka adi ko tuma bamta kara le lo; kyomki maim isa pira, roga ya atamka se bahuta duhkhi ho raha hum, maim chinta ya shoka se vyakula hum, inake karana maim bahuta chintagrasta hum, maim atyanta pirita hum, maim bahuta hi vedana pa raha hum, ya atisamtapta hum. Atah tuma saba mujhe isa anishta, akanta, apriya, ashubha, amanojnya, avamanya, duhkharupa ya asukharupa mere kisi eka duhkha se ya rogamtaka se mujhe mukta kara do. To ve padartha ukta prarthana suna kara duhkhadi se mukta kara de, aisa kabhi nahim hota. Isa samsara mem vastava mem, kamabhoga duhkha se pirita usa vyakti ki raksha karane ya sharana dene mem samartha nahim hote. Ina kamabhogom ka upabhokta kisi samaya to pahale se hi svayam ina kamabhoga padarthom ko chhora deta hai, athava kisi samaya purusha ko kamabhoga pahale hi chhora dete haim. Isalie ye kamabhoga mere se bhinna haim, maim inase bhinna hum. Phira hama kyom apane se bhinna ina kamabhogom mem murchchhita – asakta hom. Isa prakara ina sabaka aisa svarupa janakara hama ina kamabhogom ka parityaga kara demge. Buddhimana sadhaka jana le, ye saba kamabhogadi padartha bahiramga haim, meri atma se bhinna haim. Inase to mere nikatatara ye jnyatijana haim – jaise ki ‘‘yaha meri mata hai, mere pita haim, mera bhai hai, meri bahana hai, meri patni hai, mere putra haim, meri putri hai, ye mere dasa haim, yaha mera nati hai, meri putra – vadhu hai, mera mitra hai, ye mere pahale aura pichhe ke svajana evam parichita sambandhi hai. Ye mere jnyatijana hai, aura maim bhi inaka atmiyajana hum. Buddhimana sadhaka ko svayam pahale se hi samyak prakara se jana lena chahie ki isa loka mem mujhe kisi prakara ka koi duhkha ya roga – atamka paida hone para maim apane jnyatijanom se prarthana karum ki he bhaya ka anta karane vale jnyatijanom ! Mere isa anishta, apriya yavat duhkharupa ya asukharupa duhkha ya rogamtaka ko apa loga barabara bamta le, taki maim isa duhkha se duhkhita, chintita yavat atisamtapta na houm. Apa saba mujhe isa anishta yavat utpiraka duhkha ya rogamtaka se mukta kara dem. Isa para ve jnyatijana mere duhkha aura rogamtaka ko bamta kara le le, ya mujhe isa duhkha ya rogamtaka se mukta kara de, aisa kadapi nahim hota. Athava bhaya se meri raksha karane vale una mere jnyatijanom ko hi koi duhkha ya roga utpanna ho jae, jo anishta, apriya yavat asukhakara ho, to maim una bhayatrata jnyatijanom ke anishta, yavat duhkha ya rogamtaka ko bamta kara le lum, taki ve mere jnyatijana duhkha na pae yavat ve atisamtapta na hom, tatha maim unake kisi anishta yavat duhkha ya rogamtaka se mukta kara dum, aisa bhi kadapi nahim hota. (kyomki) dusare ke duhkha ko dusara vyakti bamta kara nahim le sakata. Dusare ke dvara krita karma ka phala dusara nahim bhoga sakata. Pratyeka prani akela hi janmata hai, akela hi marata hai, pratyeka vyakti akela hi tyaga karata hai, akela hi upabhoga ya svikara karata hai, pratyeka vyakti akela hi jhamjha adi kashayom ko grahana karata hai, akela hi padarthom ka parijnyana karata hai, pratyeka vyakti akela hi manana – chintana karata hai, pratyeka vyakti akela hi vidvana hota hai, pratyeka vyakti apane – apane sukha – duhkha ka vedana karata hai. Atah purvokta prakara se manushya ko pahale chhora deta hai. Atah ‘jnyatijanasamyoga mere se bhinna hai, maim bhi jnyatijanasamyoga se bhinna hum.’ taba phira apane se prithak isa jnyatijanasamyogamem kyom asakta hom? Yaha bhalibhamti janakara aba hama jnyatisamyoga ka parityaga kara demge. Parantu meghavi sadhaka ko yaha nishchita rupa se jana lena chahie ki jnyatijanasamyoga to bahya vastu hai hi, inase bhi nikatatara sambandhi ye saba haim, jina para prani mamatva karata hai, jaise ki – ye mere hatha haim, ye mere paira haim, ye meri bamhem haim, ye meri jamghem haim, yaha mera mastaka hai, yaha mera shila hai, isi taraha meri ayu, mera bala, mera varna, meri chamari, meri chhaya, mere kana, mere netra, meri nasika, meri jihva, meri sparshendriya, isa prakara prani ‘mera mera’ karata hai. Ayu adhika hone para ye saba jirna – shirna ho jate haim. Jaise ki ayu se, bala se, varna se, tvacha se, kana se tatha sparshendriyaparyanta sabhi sharira sambandhi padarthom se kshina – hina ho jata hai. Usaki sughatita drirha sandhiyam dhili ho jati hai, usake sharira ki chamari sikura kara nasom ke jala se veshtita ho jati hai. Usake kale kesha sapheda ho jate haim, yaha jo ahara se upachita audarika sharira hai, vaha bhi kramashah avadhi purna hone para chhora dena parega. Yaha jana kara bhikshacharya svikara karane hetu pravrajya ke lie samudyata sadhu loka ko donom prakara se jana le, jaise ki – loka jivarupa hai aura ajivarupa hai, tatha trasarupa hai aura sthavararupa hai. |