Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )

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Sr No : 1001642
Scripture Name( English ): Sutrakrutang Translated Scripture Name : सूत्रकृतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 642 Category : Ang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं च णं एगइए सड्ढी भवति। कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु गमणाए। तत्थ अन्नतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते सुपन्नत्ते भवति–इह खलु पंचमहब्भूया जेहिं नो कज्जइ किरिया इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा निरए इ वा अनिरए इ वा, ‘अवि अंतसो’ तणमायमवि। तं च पदोद्देसेणं पुढोभूतसमवायं जाणेज्जा, तं जहा–पुढवी एगे महब्भूते, आऊ दुच्चे महब्भूते, तेऊ तच्चे महब्भूते वाऊ चउत्थे महब्भूते, आगासे पंचमे महब्भूते। इच्चेते पंच महब्भूया अनिम्मिया अनिम्माविया अकडा नो कित्तिमा ‘णो कडगा’ अणादिया अणिधणा अवंज्झा अपुरोहिता सतंता सासया। आयछट्ठा पुन एगे एवमाहु–सतो नत्थि विणासो, असतो नत्थि संभवो। एताव ताव जीवकाए, एताव ताव अत्थि काए, एताव ताव सव्वलोए, एतं मुहं लोगस्स करणयाए, अवि अंतसो तणमायमवि। से किणं किणावेमाणे, हणं घायमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि विक्किणित्ता घायइत्ता, ‘एत्थं पि जाणाहि’ नत्थित्थ दोसो। ते नो एवं विप्पडिवेदेंति, तं जहा–किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा निरए इ वा अनिरए इ वा। ‘एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूव-रूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए’। एवं ते अनारिया विप्पडिवण्णा [मामगं धम्मं पण्णवेंति?] । तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुय-क्खाते समणेति वा माहणे ति! वा। कामं खलु आउसो! तुमं पूययामो, तं जहा–असणेन वा पाणेन वा खाइमेन वा साइमेन वा वत्थेन वा पडिग्गहेन वा कंबलेन वा पायपुंछणेन वा। तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिंसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु। पुव्वामेव तेसिं णायं भवइ– समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्मं नो करिस्सामो समुट्ठाए। ते अप्पणा अप्पडिविरिया भवंति। सयमाइयंति, अन्ने वि आइयावेंति अन्नं पि आइयंतं समणुजाणंति। एवामेव ते इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा। ते नो अप्पाणं समुच्छेदेंति, नो परं समुच्छेदेंति, नो अन्नाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समुच्छेदेंति। पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता– इति ते नो हव्वाएनो पाराए, ‘अंतरा कामभोगेसु विसण्णा’। दोच्चे पुरिसजाते पंचमहब्भूइए त्ति आहिए।
Sutra Meaning : पूर्वोक्त प्रथम पुरुष से भिन्न दूसरा पुरुष पञ्चमहाभूतिक कहलाता है। इस मनुष्यलोक की पूर्व आदि दिशाओं में मनुष्य रहते हैं। वे क्रमशः नाना रूपों में मनुष्यलोक में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि – कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य। यावत्‌ कोई कुरूप आदि होते हैं। उन मनुष्यों में से कोई एक महान पुरुष राजा होता है। यावत्‌ उन सभासदों में से कोई पुरुष धर्मश्रद्धालु होता है। वे श्रमण और माहन उसके पास जाने का निश्चय करते हैं। वे किसी एक धर्म की शिक्षा देने वाले अन्यतीर्थिक श्रमण और माहन राजा आदि से कहते हैं – ‘‘हम आपको उत्तम धर्म की शिक्षा देंगे।’’ हे भयत्राताओ ! मैं जो भी उत्तम धर्म का उपदेश आपको दे रहा हूँ, वही पूर्वपुरुषों द्वारा सम्यक्‌ प्रकार से कथित और सुप्रज्ञप्त है।’’ इस जगत में पंचमहाभूत ही सब कुछ हैं। जिनसे हमारी क्रिया या अक्रिया, सुकृत अथवा दुष्कृत, कल्याण या पाप, अच्छा या बूरा, सिद्धि या असिद्धि, नरकगति या नरक के अतिरिक्त अन्य गति; अधिक कहाँ तक कहें, तिनके से हिलने जैसी क्रिया भी होती है। उस भूत – समवाय को पृथक्‌ – पृथक्‌ नाम से जानना। पृथ्वी एक महाभूत है, जल दूसरा महाभूत है, तेज तीसरा महाभूत है, वायु चौथा महाभूत है और आकाश पाँचवा महाभूत है। ये पाँच महाभूत निर्मित नहीं हैं, न ही ये निर्मापित हैं, ये कृत नहीं है, न ही ये कृत्रिम हैं, और न ये अपनी उत्पत्ति के लिए किसी की अपेक्षा रखते हैं। ये पाँचों महाभूत आदि एवं अन्त रहित हैं तथा अवश्य कार्य करने वाले हैं। इन्हें प्रवृत्त करने वाला दूसरा पदार्थ नहीं है, ये स्वतंत्र एवं शाश्वत है। कोई पंचमहाभूत और छठे आत्मा को मानते हैं। कहते हैं कि सत्‌ का विनाश नहीं होता और असत्‌ की उत्पत्ति नहीं होती। ‘‘इतना ही जीवकाय है, इतना ही अस्तिकाय है, इतना ही समग्र जीवलोक है। ये पंचमहाभूत ही लोक के प्रमुख कारण हैं, यहाँ तक कि तृण का कम्पन भी इन पंचमहाभूतों के कारण होता है।’’ (इस दृष्टि से) स्वयं खरीदता हुआ, दूसरे से खरीद कराता हुआ, एवं प्राणियों का स्वयं घात करता हुआ तथा दूसरे से घात कराता हुआ, स्वयं पकाता और दूसरों से पकवाता हुआ, यहाँ तक कि किसी पुरुष को खरीद कर घात करने वाला पुरुष भी दोष का भागी नहीं होता क्योंकि इन सब कार्यों में कोई दोष नहीं है, यह समझ लो।’’ वे क्रिया से लेकर नरक से भिन्न गति तक के पदार्थों को नहीं मानते। वे नाना प्रकार के सावद्य कार्यों के द्वारा कामभोगों की प्राप्ति के लिए सदा आरम्भ – समारम्भ में प्रवृत्त रहते हैं। अतः वे अनार्य, तथा विपरीत विचार वाले हैं। इन पंचमहाभूतवादियों के धर्म में श्रद्धा रखने वाले एवं इनके धर्म को सत्य मानने वाले राजा आदि इनकी पूजा – प्रशंसा तथा आदर सत्कार करते हैं, विषयभोग – सामग्री इन्हें भेंट करते हैं। इस प्रकार सावद्य अनुष्ठान में भी अधर्म न मानने वाले वे पंचमहाभूतवादी स्त्री सम्बन्धी कामभोगों में मूर्च्छित होकर न तो इहलोक के रहते हैं और न ही परलोक के। उभयभ्रष्ट होकर बीच में ही कामभोगों में फँस कर कष्ट पाते हैं। यह दूसरा पुरुष पाञ्चमहाभूतिक कहा गया है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ahavare dochche purisajae pamchamahabbhuie tti ahijjai– iha khalu painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti anupuvvenam logam uvavanna, tam jaha–ariya vege anariya vege, uchchagoya vege niyagoya vege, kayamamta vege hassamamta vege, suvanna vege duvanna vege, suruva vege duruva vege. Tesim cha nam manuyanam ege raya bhavati– mahahimavamta-malaya-mamdara-mahimdasare java pasamtadimbadamaram rajjam pasahemane viharati. Tassa nam ranno parisa bhavati–ugga uggaputta, bhoga bhogaputta, ikkhaga ikkhagaputta, naga nagaputta, koravva koravvaputta, bhatta bhattaputta, mahana mahanaputta, lechchhai lechchhaiputta, pasattharo pasatthaputta, senavai senavaiputta. Tesim cha nam egaie saddhi bhavati. Kamam tam samana va mahana va sampaharimsu gamanae. Tattha annatarenam dhammenam pannattaro, vayam imenam dhammenam pannavaissamo. Se evamayanaha bhayamtaro! Jaha me esa dhamme suyakkhate supannatte bhavati–iha khalu pamchamahabbhuya jehim no kajjai kiriya i va sahu i va asahu i va siddhi i va asiddhi i va nirae i va anirae i va, ‘avi amtaso’ tanamayamavi. Tam cha padoddesenam pudhobhutasamavayam janejja, tam jaha–pudhavi ege mahabbhute, au duchche mahabbhute, teu tachche mahabbhute vau chautthe mahabbhute, agase pamchame mahabbhute. Ichchete pamcha mahabbhuya animmiya animmaviya akada no kittima ‘no kadaga’ anadiya anidhana avamjjha apurohita satamta sasaya. Ayachhattha puna ege evamahu–sato natthi vinaso, asato natthi sambhavo. Etava tava jivakae, etava tava atthi kae, etava tava savvaloe, etam muham logassa karanayae, avi amtaso tanamayamavi. Se kinam kinavemane, hanam ghayamane, payam payavemane, avi amtaso purisamavi vikkinitta ghayaitta, ‘ettham pi janahi’ natthittha doso. Te no evam vippadivedemti, tam jaha–kiriya i va akiriya i va sukade i va dukkade i va kallane i va pavae i va sahu i va asahu i va siddhi i va asiddhi i va nirae i va anirae i va. ‘evam te viruvaruvehim kammasamarambhehim viruva-ruvaim kamabhogaim samarambhamti bhoyanae’. Evam te anariya vippadivanna [mamagam dhammam pannavemti?]. Tam saddahamana tam pattiyamana tam roemana sadhu suya-kkhate samaneti va mahane ti! Va. Kamam khalu auso! Tumam puyayamo, tam jaha–asanena va panena va khaimena va saimena va vatthena va padiggahena va kambalena va payapumchhanena va. Tatthege puyanae samauttimsu, tatthege puyanae nikaimsu. Puvvameva tesim nayam bhavai– samana bhavissamo anagara akimchana aputta apasu paradattabhoino bhikkhuno, pavam kammam no karissamo samutthae. Te appana appadiviriya bhavamti. Sayamaiyamti, anne vi aiyavemti annam pi aiyamtam samanujanamti. Evameva te itthikamabhogehim muchchhiya giddha gadhiya ajjhovavanna luddha ragadosavasatta. Te no appanam samuchchhedemti, no param samuchchhedemti, no annaim panaim bhuyaim jivaim sattaim samuchchhedemti. Pahina puvvasamjoga ariyam maggam asampatta– iti te no havvaeno parae, ‘amtara kamabhogesu visanna’. Dochche purisajate pamchamahabbhuie tti ahie.
Sutra Meaning Transliteration : Purvokta prathama purusha se bhinna dusara purusha panchamahabhutika kahalata hai. Isa manushyaloka ki purva adi dishaom mem manushya rahate haim. Ve kramashah nana rupom mem manushyaloka mem utpanna hote haim, jaise ki – koi arya hote haim, koi anarya. Yavat koi kurupa adi hote haim. Una manushyom mem se koi eka mahana purusha raja hota hai. Yavat una sabhasadom mem se koi purusha dharmashraddhalu hota hai. Ve shramana aura mahana usake pasa jane ka nishchaya karate haim. Ve kisi eka dharma ki shiksha dene vale anyatirthika shramana aura mahana raja adi se kahate haim – ‘‘hama apako uttama dharma ki shiksha demge.’’ he bhayatratao ! Maim jo bhi uttama dharma ka upadesha apako de raha hum, vahi purvapurushom dvara samyak prakara se kathita aura suprajnyapta hai.’’ Isa jagata mem pamchamahabhuta hi saba kuchha haim. Jinase hamari kriya ya akriya, sukrita athava dushkrita, kalyana ya papa, achchha ya bura, siddhi ya asiddhi, narakagati ya naraka ke atirikta anya gati; adhika kaham taka kahem, tinake se hilane jaisi kriya bhi hoti hai. Usa bhuta – samavaya ko prithak – prithak nama se janana. Prithvi eka mahabhuta hai, jala dusara mahabhuta hai, teja tisara mahabhuta hai, vayu chautha mahabhuta hai aura akasha pamchava mahabhuta hai. Ye pamcha mahabhuta nirmita nahim haim, na hi ye nirmapita haim, ye krita nahim hai, na hi ye kritrima haim, aura na ye apani utpatti ke lie kisi ki apeksha rakhate haim. Ye pamchom mahabhuta adi evam anta rahita haim tatha avashya karya karane vale haim. Inhem pravritta karane vala dusara padartha nahim hai, ye svatamtra evam shashvata hai. Koi pamchamahabhuta aura chhathe atma ko manate haim. Kahate haim ki sat ka vinasha nahim hota aura asat ki utpatti nahim hoti. ‘‘itana hi jivakaya hai, itana hi astikaya hai, itana hi samagra jivaloka hai. Ye pamchamahabhuta hi loka ke pramukha karana haim, yaham taka ki trina ka kampana bhi ina pamchamahabhutom ke karana hota hai.’’ (isa drishti se) svayam kharidata hua, dusare se kharida karata hua, evam praniyom ka svayam ghata karata hua tatha dusare se ghata karata hua, svayam pakata aura dusarom se pakavata hua, yaham taka ki kisi purusha ko kharida kara ghata karane vala purusha bhi dosha ka bhagi nahim hota kyomki ina saba karyom mem koi dosha nahim hai, yaha samajha lo.’’ Ve kriya se lekara naraka se bhinna gati taka ke padarthom ko nahim manate. Ve nana prakara ke savadya karyom ke dvara kamabhogom ki prapti ke lie sada arambha – samarambha mem pravritta rahate haim. Atah ve anarya, tatha viparita vichara vale haim. Ina pamchamahabhutavadiyom ke dharma mem shraddha rakhane vale evam inake dharma ko satya manane vale raja adi inaki puja – prashamsa tatha adara satkara karate haim, vishayabhoga – samagri inhem bhemta karate haim. Isa prakara savadya anushthana mem bhi adharma na manane vale ve pamchamahabhutavadi stri sambandhi kamabhogom mem murchchhita hokara na to ihaloka ke rahate haim aura na hi paraloka ke. Ubhayabhrashta hokara bicha mem hi kamabhogom mem phamsa kara kashta pate haim. Yaha dusara purusha panchamahabhutika kaha gaya hai.