Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001641 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 641 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा –आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राय भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, ‘नागा नागपुत्ता’, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं च णं एगइए सड्ढी भवति। कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु गमणाए। ‘तत्थ अन्नतरेणं’ धम्मेणं पण्णत्तारो, ‘वयं इमेणं’ धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते सुपन्नत्ते भवइ, तं जहा –उड्ढं पायतला, अहे केसग्गमत्थया, तिरियं तयपरियंते जीवे। एस ‘आया पज्जवे’ कसिणे। एस जीवे जीवति, एस मए नो जीवति। सरीरे धरमाणे धरति, विणट्ठम्मि य नो धरति। एययंतं जीवियं भवति। आदहणाए परेहिं णिज्जइ। अगणिज्झामिए सरीरे कवोतवण्णाणि अट्ठीणि भवंति। आसंदीपंचमा पुरिसा गामं पच्चागच्छंति। एवं असंते असंविज्जमाणे। ‘जेसिं तं’ सुयक्खायं भवति–अण्णो भवइ जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा, ते ‘णो एवं’ विप्पडिवेदेंति अयमाउसो! आया दीहे ति वा हस्से ति वा। परिमंडले ति वा वट्टे ति वा तंसे ति वा चउरंसे ति वा आयते ति वा ‘छलंसे ति वा’। किण्हे ति वा णीले ति वा लोहिए ति वा हालिद्दे ति वा सुक्किल्ले ति वा। सुब्भिगंधे ति वा दुब्भिगंधे ति वा। तित्ते ति वा कडुए ति वा कसाए ति वा अंबिले ति वा महुरे ति वा। कक्खडे ति वा मउए ति वा गरुए ति वा लहुए ति वा सीए ति वा उसिणे ति वा णिद्धे ति वा लुक्खे ति वा। एवं असंते असंविज्जमाणे। जेसिं तं सुयक्खायं भवइ–अण्णो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा ते नो एवं उवलभंति– से जहानामए केइ पुरिसे कोसीओ असिं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! असी, अयं कोसी। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टिता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, ‘अयं सरीरे’। से जहानामए केइ पुरिसे मुंजाओ इसियं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! मुंजे ‘[इमा?] इसिया’। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, ‘अयं सरीरे’। से जहानामए केइ पुरिसे मंसाओ अट्ठिं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! मंसे, अयं अट्ठी। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। से जहानामए केइ पुरिसे करतलाओ आमलकं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! करतले, अयं आमलए। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। से जहानामए केइ पुरिसे दहीओ णवणीयं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! णवणीयं, अयं दही। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। से जहानामए केइ पुरिसे तिलेहिंतो तेल्लं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! तेल्लं, अयं पिण्णाए। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। से जहानामए केइ पुरिसे इक्खूओ खोयरस अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! खोयरसे, अयं छोए। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। से जहानामए केइ पुरिसे अरणीओ अग्गिं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा–अयमाउसो! अरणी, अयं अग्गी। एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो–अयमाउसो! आया, अयं सरीरे। एवं असंते असंविज्जमाणे। जेसिं तं सुयक्खायं भवइ, तं जहा–अण्णो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा, तं मिच्छा। से हंता हणह खणह छणह डहह पयह आलुंपह विलुंपह सहसक्कारेह विपरामुसह। एतावताव जीवे, नत्थि परलोए। ते नो एवं विप्पडिवेदेंति, तं जहा–किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा निरए इ वा अनिरए इ वा। एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए। एवं एगे पागब्भिया निक्खम्म मामगं धम्मं पण्णवेंति। तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुयक्खाते समणेति! वा माहणेति वा। कामं खलु आउसो! तुमं पूययामो, तं जहा–असणेन वा पाणेन वा खाइमेन वा साइमेन वा ‘वत्थेन वा’ पडिग्गहेन वा कंबलेन वा पायपुंछणेन वा। तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिंसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु। पुव्वामेव तेसिं णायं भवइ–समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्मं नो करिस्सामो समुट्ठाए। ते अप्पणा अप्पडिविरया भवंति। सयमाइयंति, अन्ने वि आइयावेंति, अन्नं पि आइयंतं समणुजाणंति। एवामेव ते इत्थि-कामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा। ते नो अप्पाणं समुच्छेदेंति, नो परं समुच्छेदेंति, नो अन्नाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समुच्छेदेंति। पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता– इति ते मो हव्वाए नो पाराए, अंतरा कामभोगेहिं विसण्णा। इति पढमे पुरिसजाए तज्जीवतस्सरीरिए आहिए। | ||
Sutra Meaning : | इस मनुष्य लोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उत्पन्न कईं प्रकार के मनुष्य होते हैं, जैसे कि – उन मनुष्यों में कईं आर्य होते हैं अथवा कईं अनार्य होते हैं, कईं उच्चगोत्रीय होते हैं, कईं नीचगोत्रीय। उनमें से कोई भीमकाय होता है, कईं ठिगने कद के होते हैं। कोई सुन्दर वर्ण वाले होते हैं, तो कोई बूरे वर्ण वाले। कोई सुरूप होते हैं तो कोई कुरूप होते हैं। उन मनुष्यों में कोई एक राजा होता है। वह महान हिमवान् मलयाचल, मन्दराचल तथा महेन्द्र पर्वत के समान सामर्थ्यवान होता है। वह अत्यन्त विशुद्ध राजकुल के वंश में जन्मा हुआ होता है। उसके अंग राजलक्षणों से सुशोभित होते हैं। उसकी पूजा – प्रतिष्ठा अनेक जनों द्वारा बहुमानपूर्वक की जाती है, वह गुणों से समृद्ध होता है, वह क्षत्रिय होता है। सदा प्रसन्न रहता है। राज्याभिषेक किया हुआ होता है। वह अपने माता – पिता का सुपुत्र होता है। उसे दया प्रिय होती है। वह सीमंकर तथा सीमंधर होता है। वह क्षेमंकर तथा क्षेमंधर होता है। वह मनुष्यों में इन्द्र, जनपद का पिता, और जनपद का पुरोहित होता है। वह अपने राज्य या राष्ट्र की सुख – शांति के लिए सेतुकर और केतुकर होता है। वह मनुष्यों में श्रेष्ठ, पुरुषों में वरिष्ठ, पुरुषों में सिंहसम, पुरुषों में आसीविष सर्प समान, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक तुल्य, पुरुषों में श्रेष्ठ मत्तगन्धहस्ती के समान होता है। वह अत्यन्त धनाढ्य, दीप्तिमान एवं प्रसिद्ध पुरुष होता है। उसके पास विशाल विपुल भवन, शय्या, आसन, यान तथा वाहन की प्रचुरता रहती है। उसके कोष प्रचुर धन, सोना, चाँदी से भरे रहते हैं। उसके यहाँ प्रचुर द्रव्य की आय होती है, और व्यय भी बहुत होता है। उसके यहाँ से बहुत – से लोगों को पर्याप्त मात्रा में भोजन – पानी दिया जाता है। उसके यहाँ बहुत – से दासी – दास, गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि पशु रहते हैं। उसके धान्य का कोठार अन्न से, धन के कोश प्रचुर द्रव्य से और आयुधागार विविध शस्त्रास्त्रों से भरा रहता है। वह शक्तिशाली होता है। वह अपने शत्रुओं को दुर्बल बनाए रखता है। उसके राज्य में कंटक – चोरों, व्यभिचारियों, लूटेरों तथा उपद्रवियों एवं दुष्टों का नाश कर दिया जाता है, उनका मानमर्दन कर दिया जाता है, उन्हें कुचल दिया जाता है, उनके पैर उखाड़ दिये जाते हैं, जिससे उसका राज्य निष्कण्टक हो जाता है। उसके राज्य पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को नष्ट कर दिया जाता है, उन्हें उखेड़ दिया जाता है, उनका मानमर्दन कर दिया जाता है, अथवा उनके पैर उखाड़ दिये जाते हैं, उन शत्रुओं को जीत लिया जाता है, उन्हें हरा दिया जाता है। उसका राज्य दर्भिक्ष और महामारी आदि के भय से विमुक्त होता है। यहाँ से लेकर ‘‘जिसमें स्वचक्र – परचक्र का भय शान्त हो गया है, ऐसे राज्य का प्रशासन – पालन करता हुआ वह राजा विचरण करता है।’’ उस राजा की परीषद् होती है। उसके सभासद – उग्र – उग्रपुत्र, भोग तथा भोगपुत्र, इक्ष्वाकु तथा इक्ष्वाकुपुत्र, ज्ञात तथा ज्ञातपुत्र, कौरव तथा कौरवपुत्र, सुभट तथा सुभटपुत्र, ब्राह्मण तथा ब्राह्मणपुत्र, लिच्छवी तथा लिच्छवी – पुत्र, प्रशास्तागण तथा प्रशास्तृपुत्र, सेनापति और सेनापतिपुत्र। इनमें से कोई एक धर्म में श्रद्धालु होता है। उस धर्म – श्रद्धालु पुरुष के पास श्रमण या ब्राह्मण धर्म प्राप्ति की ईच्छा से जाने का निश्चय करते हैं। किसी एक धर्म की शिक्षा देने वाले वे श्रमण और ब्राह्मण यह निश्चय करते हैं कि हम इस धर्मश्रद्धालु पुरुष के समक्ष अपने इस धर्म की प्ररूपणा करेंगे। वे उस धर्मश्रद्धालु पुरुष के पास जाकर कहते हैं – हे संसारभीरु धर्मप्रेमी ! अथवा भय से जनता के रक्षक महाराज ! मैं जो भी उत्तम धर्म की शिक्षा आप को दे रहा हूँ उसे ही आप पूर्वपुरुषों द्वारा सम्यक् प्रकार से कथित और सुप्रज्ञप्त समझें।’’ वह धर्म इस प्रकार है – पादतल से ऊपर और मस्तक के केशों के अग्रभाग से नीचे तक तथा तीरछा – चमड़ी तक जो शरीर है, वही जीव है। यह शरीर ही जीव का समस्त पर्याय है। इस शरीर के जीने तक ही यह जीव जीता रहता है, शरीर के मरने पर यह नहीं जीता, शरीर के स्थित रहने तक जीव स्थित रहता है और शरीर के नष्ट हो जाने पर यह नष्ट हो जाता है। इसलिए जब तक शरीर है, तभी तक यह जीवन है। शरीर जब मर जाता है तब दूसरे लोग उसे जलाने ले जाते हैं, आग से शरीर के जल जाने पर हड्डियाँ कपोत वर्ण की हो जाती है। इसके पश्चात् मृत व्यक्ति को श्मशान भूमि में पहुँचाने वाले जघन्य चार पुरुष मृत शरीर को ढोने वाली मंचिका को लेकर अपने गाँवमें लौट आते हैं। ऐसी स्थितिमें यह स्पष्ट हो जाता है कि शरीर से भिन्न कोई जीव नामक पदार्थ नहीं है। जो लोग युक्तिपूर्वक यह प्रतिपादन करते हैं कि जीव पृथक् है और शरीर पृथक् है, वे इस प्रकार पृथक् पृथक् करके नहीं बता सकते कि – यह आत्मा दीर्घ है, यह ह्रस्व है, यह चन्द्रमा के समान परिमण्डलाकार है, अथवा गेंद की तरह गोल है, यह त्रिकोण है, या चतुष्कोण है, या यह षट्कोण या अष्टकोण है, यह आयत है, यह काला, नीला, लाल, पीला या श्वेत है; यह सुगन्धित है या दुर्गन्धित है, यह तिक्त है या कड़वा है अथवा कसैला, खट्टा या मीठा है; अथवा यह कर्कश है या कोमल है अथवा भारी है या हलका अथवा शीतल है या उष्ण है, स्निग्ध है अथवा रूक्ष है। इसलिए जो लोग जीव को शरीर से भिन्न नहीं मानते, उनका मत ही युक्तिसंगत है। जिन लोगों का यह कथन है कि जीव अन्य है, और शरीर अन्य है, वे जीव को उपलब्ध नहीं करा पाते – (१) जैसे कि कोई व्यक्ति म्यान से तलवार को बाहर नीकाल कर कहता है – यह तलवार है, और यह म्यान है। इसी प्रकार कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर से जीव को पृथक् करके दिखला सके कि यह आत्मा है और यह शरीर है (२) जैसे कि कोई पुरुष मुंज नामक घास के इषिका को बाहर नीकाल कर बतला देता है कि यह मुंज है, और यह इषिका है। इसी प्रकार ऐसा कोई उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो यह बता सके कि यह आत्मा है और यह शरीर है। (३) जैसे कोई पुरुष माँस से हड्डी को अलग करके बतला देता है कि यह माँस है और यह हड्डी है। इसी तरह कोई ऐसा उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को अलग करके दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है। (४) जैसे कोई पुरुष हथेली से आँबले को बाहर नीकाल कर दिखला देता है कि यह हथेली है, और यह आँवला है। इसी प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को पृथक् करके दिखा दे कि यह आत्मा है, और यह शरीर है। (५) जैसे कोई पुरुष दहीं से नवनीत को अलग नीकाल कर दिखला देता है कि ‘‘आयुष्मन् ! यह नवनीत है और यह दहीं है।’’ इस प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है। (६) जैसे कोई पुरुष तिलों से तेल नीकाल कर प्रत्यक्ष दिखला देता है कि ‘‘आयुष्मन् ! यह तेल है और यह तिलों की खली है,’’ वैसे कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर को आत्मा से पृथक् करके दिखा सके कि यह आत्मा है, और यह उससे भिन्न शरीर है। (७) जैसे कि कोई पुरुष ईख से उसका रस नीकाल कर दिखा देता है कि ‘‘आयुष्मन् ! यह ईख का रस है और यह उसका छिलका है;’’ इसी प्रकार ऐसा कोई पुरुष नहीं है जो शरीर और आत्मा को अलग – अलग करके दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है। (८) जैसे कि कोई पुरुष अरणि की लकड़ी से आग नीकाल कर प्रत्यक्ष दिखला देता है कि – यह अरणि है और यह आग है, इसी प्रकार कोई ऐसा नहीं है जो शरीर और आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है। इसलिए आत्मा शरीर से पृथक् उपलब्ध नहीं होती, यही बात युक्तियुक्त है। इस प्रकार जो पृथगात्मवादी बारबार प्रतिपादन करते हैं, कि आत्मा अलग है, शरीर अलग है, पूर्वोक्त कारणों से उनका कथन मिथ्या है। इस प्रकार तज्जीवतच्छरीरवादी स्वयं जीवों का हनन करते हैं, तथा इन जीवों को मारो, यह पृथ्वी खोद ड़ालो, यह वनस्पति काटो, इसे जला दो, इसे पकाओ, इन्हें लूँट लो या इनका हरण कर लो, इन्हें काट दो या नष्ट कर दो, बिना सोचे विचारे सहसा कर डालो, इन्हें पीड़ित करो इत्यादि। इतना (शरीरमात्र) ही जीव है, परलोक नहीं है। वे शरीरात्मवादी नहीं मानते कि – सत्क्रिया या असत्क्रिया, सुकृत या दुष्कृत, कल्याण या पाप, भला या बूरा, सिद्धि या असिद्धि, नरक या स्वर्ग आदि। इस प्रकार वे शरीरात्मवादी अनेक प्रकार के कर्मसमारम्भ करके विविध प्रकार के कामभोगों का सेवन करते हैं। इस प्रकार शरीर से भिन्न आत्मा न मानने की धृष्टता करने वाले कोई प्रव्रज्या धारण करके ‘मेरा ही धर्म सत्य है,’ ऐसी प्ररूपणा करते हैं। इस शरीरात्मवाद में श्रद्धा, प्रतीति, रुचि रखते हुए कोई राजा आदि उस शरीरा – त्मवादी से कहते हैं – ‘हे श्रमण या ब्राह्मण ! आपने हमें यह तज्जीव – तच्छरीरवाद रूप उत्तम धर्म बताकर बहुत ही अच्छा किया, हे आयुष्मन् ! अतः हम आपकी पूजा करते हैं, हम अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य अथवा वस्त्र, पात्र, कम्बल अथवा पाद – प्रोंछन आदि के द्वारा आपका सत्कार – सम्मान करते हैं। यों कहते हुए कईं राजा आदि उनकी पूजा में प्रवृत्त होते हैं, और उन स्वमतस्वीकृत राजा आदि को अपनी पूजा – प्रतिष्ठा के लिए अपने मत – सिद्धान्त में दृढ़ कर देते हैं। इन शरीरात्मवादियों ने पहले तो वह प्रतिज्ञा की होती है कि ‘हम अनगार, अकिंचन, अपुत्र, अपशु, परदत्त भोजी, भिक्षु एवं श्रमण बनेंगे, अब हम पापकर्म नहीं करेंगे,’ ऐसी प्रतिज्ञा के साथ वे स्वयं दीक्षा ग्रहण करके भी पापकर्मों से विरत नहीं होते, वे स्वयं परिग्रह को ग्रहण करते हैं, दूसरे से ग्रहण कराते हैं और परिग्रह ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करते हैं, इसी प्रकार वे स्त्री तथा अन्य कामभोगों में आसक्त, गृद्ध, ईच्छा और लालसा से युक्त, लुब्ध, राग – द्वेष के वशीभूत एवं आर्त्त रहते हैं। वे न तो अपनी आत्मा को संसार से या कर्मपाश से मुक्त कर पाते हैं, न वे दूसरों को मुक्त कर सकते हैं, और न वे अन्य प्राणीयों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को मुक्त कर सकते हैं। वे अपने स्त्री – पुत्र, धन धान्य आदि पूर्वसंयोग से प्रभ्रष्ट हो चूके हैं, और आर्यमार्ग को नहीं पा सके हैं। अतः वे न तो इस लोक के होते हैं, और न ही पर लोक के होते हैं। बीच में कामभोगों में आसक्त हो जाते हैं। इस प्रकार प्रथम पुरुष तज्जीव – तच्छरीरवादी कहा गया है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] iha khalu painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti anupuvvenam logam uvavanna, tam jaha –ariya vege anariya vege, uchchagoya vege niyagoya vege, kayamamta vege hassamamta vege, suvanna vege duvanna vege, suruva vege duruva vege. Tesim cha nam manuyanam ege raya bhavati–mahahimavamta-malaya-mamdara-mahimdasare java pasamtadimbadamaram rajjam pasahemane viharati. Tassa nam ranno parisa bhavati–ugga uggaputta, bhoga bhogaputta, ikkhaga ikkhagaputta, ‘naga nagaputta’, koravva koravvaputta, bhatta bhattaputta, mahana mahanaputta, lechchhai lechchhaiputta, pasattharo pasatthaputta, senavai senavaiputta. Tesim cha nam egaie saddhi bhavati. Kamam tam samana va mahana va sampaharimsu gamanae. ‘tattha annatarenam’ dhammenam pannattaro, ‘vayam imenam’ dhammenam pannavaissamo. Se evamayanaha bhayamtaro! Jaha me esa dhamme suyakkhate supannatte bhavai, tam jaha –uddham payatala, ahe kesaggamatthaya, tiriyam tayapariyamte jive. Esa ‘aya pajjave’ kasine. Esa jive jivati, esa mae no jivati. Sarire dharamane dharati, vinatthammi ya no dharati. Eyayamtam jiviyam bhavati. Adahanae parehim nijjai. Aganijjhamie sarire kavotavannani atthini bhavamti. Asamdipamchama purisa gamam pachchagachchhamti. Evam asamte asamvijjamane. ‘jesim tam’ suyakkhayam bhavati–anno bhavai jivo annam sariram, tamha, te ‘no evam’ vippadivedemti ayamauso! Aya dihe ti va hasse ti va. Parimamdale ti va vatte ti va tamse ti va chauramse ti va ayate ti va ‘chhalamse ti va’. Kinhe ti va nile ti va lohie ti va halidde ti va sukkille ti va. Subbhigamdhe ti va dubbhigamdhe ti va. Titte ti va kadue ti va kasae ti va ambile ti va mahure ti va. Kakkhade ti va maue ti va garue ti va lahue ti va sie ti va usine ti va niddhe ti va lukkhe ti va. Evam asamte asamvijjamane. Jesim tam suyakkhayam bhavai–anno jivo annam sariram, tamha te no evam uvalabhamti– Se jahanamae kei purise kosio asim abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Asi, ayam kosi. Evameva natthi kei purise abhinivvattita nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ‘ayam sarire’. Se jahanamae kei purise mumjao isiyam abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Mumje ‘[ima?] isiya’. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ‘ayam sarire’. Se jahanamae kei purise mamsao atthim abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Mamse, ayam atthi. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Se jahanamae kei purise karatalao amalakam abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Karatale, ayam amalae. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Se jahanamae kei purise dahio navaniyam abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Navaniyam, ayam dahi. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Se jahanamae kei purise tilehimto tellam abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Tellam, ayam pinnae. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Se jahanamae kei purise ikkhuo khoyarasa abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Khoyarase, ayam chhoe. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Se jahanamae kei purise aranio aggim abhinivvattitta nam uvadamsejja–ayamauso! Arani, ayam aggi. Evameva natthi kei purise abhinivvattitta nam uvadamsettaro–ayamauso! Aya, ayam sarire. Evam asamte asamvijjamane. Jesim tam suyakkhayam bhavai, tam jaha–anno jivo annam sariram, tamha, tam michchha. Se hamta hanaha khanaha chhanaha dahaha payaha alumpaha vilumpaha sahasakkareha viparamusaha. Etavatava jive, natthi paraloe. Te no evam vippadivedemti, tam jaha–kiriya i va akiriya i va sukade i va dukkade i va kallane i va pavae i va sahu i va asahu i va siddhi i va asiddhi i va nirae i va anirae i va. Evam te viruvaruvehim kammasamarambhehim viruvaruvaim kamabhogaim samarambhamti bhoyanae. Evam ege pagabbhiya nikkhamma mamagam dhammam pannavemti. Tam saddahamana tam pattiyamana tam roemana sadhu suyakkhate samaneti! Va mahaneti va. Kamam khalu auso! Tumam puyayamo, tam jaha–asanena va panena va khaimena va saimena va ‘vatthena va’ padiggahena va kambalena va payapumchhanena va. Tatthege puyanae samauttimsu, tatthege puyanae nikaimsu. Puvvameva tesim nayam bhavai–samana bhavissamo anagara akimchana aputta apasu paradattabhoino bhikkhuno, pavam kammam no karissamo samutthae. Te appana appadiviraya bhavamti. Sayamaiyamti, anne vi aiyavemti, annam pi aiyamtam samanujanamti. Evameva te itthi-kamabhogehim muchchhiya giddha gadhiya ajjhovavanna luddha ragadosavasatta. Te no appanam samuchchhedemti, no param samuchchhedemti, no annaim panaim bhuyaim jivaim sattaim samuchchhedemti. Pahina puvvasamjoga ariyam maggam asampatta– iti te mo havvae no parae, amtara kamabhogehim visanna. Iti padhame purisajae tajjivatassaririe ahie. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa manushya loka mem purva, pashchima, uttara aura dakshina dishaom mem utpanna kaim prakara ke manushya hote haim, jaise ki – una manushyom mem kaim arya hote haim athava kaim anarya hote haim, kaim uchchagotriya hote haim, kaim nichagotriya. Unamem se koi bhimakaya hota hai, kaim thigane kada ke hote haim. Koi sundara varna vale hote haim, to koi bure varna vale. Koi surupa hote haim to koi kurupa hote haim. Una manushyom mem koi eka raja hota hai. Vaha mahana himavan malayachala, mandarachala tatha mahendra parvata ke samana samarthyavana hota hai. Vaha atyanta vishuddha rajakula ke vamsha mem janma hua hota hai. Usake amga rajalakshanom se sushobhita hote haim. Usaki puja – pratishtha aneka janom dvara bahumanapurvaka ki jati hai, vaha gunom se samriddha hota hai, vaha kshatriya hota hai. Sada prasanna rahata hai. Rajyabhisheka kiya hua hota hai. Vaha apane mata – pita ka suputra hota hai. Use daya priya hoti hai. Vaha simamkara tatha simamdhara hota hai. Vaha kshemamkara tatha kshemamdhara hota hai. Vaha manushyom mem indra, janapada ka pita, aura janapada ka purohita hota hai. Vaha apane rajya ya rashtra ki sukha – shamti ke lie setukara aura ketukara hota hai. Vaha manushyom mem shreshtha, purushom mem varishtha, purushom mem simhasama, purushom mem asivisha sarpa samana, purushom mem shreshtha pundarika tulya, purushom mem shreshtha mattagandhahasti ke samana hota hai. Vaha atyanta dhanadhya, diptimana evam prasiddha purusha hota hai. Usake pasa vishala vipula bhavana, shayya, asana, yana tatha vahana ki prachurata rahati hai. Usake kosha prachura dhana, sona, chamdi se bhare rahate haim. Usake yaham prachura dravya ki aya hoti hai, aura vyaya bhi bahuta hota hai. Usake yaham se bahuta – se logom ko paryapta matra mem bhojana – pani diya jata hai. Usake yaham bahuta – se dasi – dasa, gaya, baila, bhaimsa, bakari adi pashu rahate haim. Usake dhanya ka kothara anna se, dhana ke kosha prachura dravya se aura ayudhagara vividha shastrastrom se bhara rahata hai. Vaha shaktishali hota hai. Vaha apane shatruom ko durbala banae rakhata hai. Usake rajya mem kamtaka – chorom, vyabhichariyom, luterom tatha upadraviyom evam dushtom ka nasha kara diya jata hai, unaka manamardana kara diya jata hai, unhem kuchala diya jata hai, unake paira ukhara diye jate haim, jisase usaka rajya nishkantaka ho jata hai. Usake rajya para akramana karane vale shatruom ko nashta kara diya jata hai, unhem ukhera diya jata hai, unaka manamardana kara diya jata hai, athava unake paira ukhara diye jate haim, una shatruom ko jita liya jata hai, unhem hara diya jata hai. Usaka rajya darbhiksha aura mahamari adi ke bhaya se vimukta hota hai. Yaham se lekara ‘‘jisamem svachakra – parachakra ka bhaya shanta ho gaya hai, aise rajya ka prashasana – palana karata hua vaha raja vicharana karata hai.’’ Usa raja ki parishad hoti hai. Usake sabhasada – ugra – ugraputra, bhoga tatha bhogaputra, ikshvaku tatha ikshvakuputra, jnyata tatha jnyataputra, kaurava tatha kauravaputra, subhata tatha subhataputra, brahmana tatha brahmanaputra, lichchhavi tatha lichchhavi – putra, prashastagana tatha prashastriputra, senapati aura senapatiputra. Inamem se koi eka dharma mem shraddhalu hota hai. Usa dharma – shraddhalu purusha ke pasa shramana ya brahmana dharma prapti ki ichchha se jane ka nishchaya karate haim. Kisi eka dharma ki shiksha dene vale ve shramana aura brahmana yaha nishchaya karate haim ki hama isa dharmashraddhalu purusha ke samaksha apane isa dharma ki prarupana karemge. Ve usa dharmashraddhalu purusha ke pasa jakara kahate haim – he samsarabhiru dharmapremi ! Athava bhaya se janata ke rakshaka maharaja ! Maim jo bhi uttama dharma ki shiksha apa ko de raha hum use hi apa purvapurushom dvara samyak prakara se kathita aura suprajnyapta samajhem.’’ Vaha dharma isa prakara hai – padatala se upara aura mastaka ke keshom ke agrabhaga se niche taka tatha tirachha – chamari taka jo sharira hai, vahi jiva hai. Yaha sharira hi jiva ka samasta paryaya hai. Isa sharira ke jine taka hi yaha jiva jita rahata hai, sharira ke marane para yaha nahim jita, sharira ke sthita rahane taka jiva sthita rahata hai aura sharira ke nashta ho jane para yaha nashta ho jata hai. Isalie jaba taka sharira hai, tabhi taka yaha jivana hai. Sharira jaba mara jata hai taba dusare loga use jalane le jate haim, aga se sharira ke jala jane para haddiyam kapota varna ki ho jati hai. Isake pashchat mrita vyakti ko shmashana bhumi mem pahumchane vale jaghanya chara purusha mrita sharira ko dhone vali mamchika ko lekara apane gamvamem lauta ate haim. Aisi sthitimem yaha spashta ho jata hai ki sharira se bhinna koi jiva namaka padartha nahim hai. Jo loga yuktipurvaka yaha pratipadana karate haim ki jiva prithak hai aura sharira prithak hai, ve isa prakara prithak prithak karake nahim bata sakate ki – yaha atma dirgha hai, yaha hrasva hai, yaha chandrama ke samana parimandalakara hai, athava gemda ki taraha gola hai, yaha trikona hai, ya chatushkona hai, ya yaha shatkona ya ashtakona hai, yaha ayata hai, yaha kala, nila, lala, pila ya shveta hai; yaha sugandhita hai ya durgandhita hai, yaha tikta hai ya karava hai athava kasaila, khatta ya mitha hai; athava yaha karkasha hai ya komala hai athava bhari hai ya halaka athava shitala hai ya ushna hai, snigdha hai athava ruksha hai. Isalie jo loga jiva ko sharira se bhinna nahim manate, unaka mata hi yuktisamgata hai. Jina logom ka yaha kathana hai ki jiva anya hai, aura sharira anya hai, ve jiva ko upalabdha nahim kara pate – (1) jaise ki koi vyakti myana se talavara ko bahara nikala kara kahata hai – yaha talavara hai, aura yaha myana hai. Isi prakara koi purusha aisa nahim hai, jo sharira se jiva ko prithak karake dikhala sake ki yaha atma hai aura yaha sharira hai (2) jaise ki koi purusha mumja namaka ghasa ke ishika ko bahara nikala kara batala deta hai ki yaha mumja hai, aura yaha ishika hai. Isi prakara aisa koi upadarshaka purusha nahim hai, jo yaha bata sake ki yaha atma hai aura yaha sharira hai. (3) jaise koi purusha mamsa se haddi ko alaga karake batala deta hai ki yaha mamsa hai aura yaha haddi hai. Isi taraha koi aisa upadarshaka purusha nahim hai, jo sharira se atma ko alaga karake dikhala de ki yaha atma hai aura yaha sharira hai. (4) jaise koi purusha hatheli se ambale ko bahara nikala kara dikhala deta hai ki yaha hatheli hai, aura yaha amvala hai. Isi prakara koi aisa purusha nahim hai, jo sharira se atma ko prithak karake dikha de ki yaha atma hai, aura yaha sharira hai. (5) jaise koi purusha dahim se navanita ko alaga nikala kara dikhala deta hai ki ‘‘ayushman ! Yaha navanita hai aura yaha dahim hai.’’ isa prakara koi aisa purusha nahim hai, jo sharira se atma ko prithak karake dikhala de ki yaha atma hai aura yaha sharira hai. (6) jaise koi purusha tilom se tela nikala kara pratyaksha dikhala deta hai ki ‘‘ayushman ! Yaha tela hai aura yaha tilom ki khali hai,’’ vaise koi purusha aisa nahim hai, jo sharira ko atma se prithak karake dikha sake ki yaha atma hai, aura yaha usase bhinna sharira hai. (7) jaise ki koi purusha ikha se usaka rasa nikala kara dikha deta hai ki ‘‘ayushman ! Yaha ikha ka rasa hai aura yaha usaka chhilaka hai;’’ isi prakara aisa koi purusha nahim hai jo sharira aura atma ko alaga – alaga karake dikhala de ki yaha atma hai aura yaha sharira hai. (8) jaise ki koi purusha arani ki lakari se aga nikala kara pratyaksha dikhala deta hai ki – yaha arani hai aura yaha aga hai, isi prakara koi aisa nahim hai jo sharira aura atma ko prithak karake dikhala de ki yaha atma hai aura yaha sharira hai. Isalie atma sharira se prithak upalabdha nahim hoti, yahi bata yuktiyukta hai. Isa prakara jo prithagatmavadi barabara pratipadana karate haim, ki atma alaga hai, sharira alaga hai, purvokta karanom se unaka kathana mithya hai. Isa prakara tajjivatachchhariravadi svayam jivom ka hanana karate haim, tatha ina jivom ko maro, yaha prithvi khoda ralo, yaha vanaspati kato, ise jala do, ise pakao, inhem lumta lo ya inaka harana kara lo, inhem kata do ya nashta kara do, bina soche vichare sahasa kara dalo, inhem pirita karo ityadi. Itana (shariramatra) hi jiva hai, paraloka nahim hai. Ve shariratmavadi nahim manate ki – satkriya ya asatkriya, sukrita ya dushkrita, kalyana ya papa, bhala ya bura, siddhi ya asiddhi, naraka ya svarga adi. Isa prakara ve shariratmavadi aneka prakara ke karmasamarambha karake vividha prakara ke kamabhogom ka sevana karate haim. Isa prakara sharira se bhinna atma na manane ki dhrishtata karane vale koi pravrajya dharana karake ‘mera hi dharma satya hai,’ aisi prarupana karate haim. Isa shariratmavada mem shraddha, pratiti, ruchi rakhate hue koi raja adi usa sharira – tmavadi se kahate haim – ‘he shramana ya brahmana ! Apane hamem yaha tajjiva – tachchhariravada rupa uttama dharma batakara bahuta hi achchha kiya, he ayushman ! Atah hama apaki puja karate haim, hama ashana, pana, khadya, svadya athava vastra, patra, kambala athava pada – promchhana adi ke dvara apaka satkara – sammana karate haim. Yom kahate hue kaim raja adi unaki puja mem pravritta hote haim, aura una svamatasvikrita raja adi ko apani puja – pratishtha ke lie apane mata – siddhanta mem drirha kara dete haim. Ina shariratmavadiyom ne pahale to vaha pratijnya ki hoti hai ki ‘hama anagara, akimchana, aputra, apashu, paradatta bhoji, bhikshu evam shramana banemge, aba hama papakarma nahim karemge,’ aisi pratijnya ke satha ve svayam diksha grahana karake bhi papakarmom se virata nahim hote, ve svayam parigraha ko grahana karate haim, dusare se grahana karate haim aura parigraha grahana karane vale ka anumodana karate haim, isi prakara ve stri tatha anya kamabhogom mem asakta, griddha, ichchha aura lalasa se yukta, lubdha, raga – dvesha ke vashibhuta evam artta rahate haim. Ve na to apani atma ko samsara se ya karmapasha se mukta kara pate haim, na ve dusarom ko mukta kara sakate haim, aura na ve anya praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ko mukta kara sakate haim. Ve apane stri – putra, dhana dhanya adi purvasamyoga se prabhrashta ho chuke haim, aura aryamarga ko nahim pa sake haim. Atah ve na to isa loka ke hote haim, aura na hi para loka ke hote haim. Bicha mem kamabhogom mem asakta ho jate haim. Isa prakara prathama purusha tajjiva – tachchhariravadi kaha gaya hai. |