Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1000539 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 539 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरं चउत्थं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं–से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं गच्छावेज्जा, अन्नंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा। अहावरा दोच्चा भावणा–नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराइं इंदियाइं आलोएत्तए णिज्झाइत्तए सिया। केवली बूया– निग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराइं इंदियाइं आलोएमाणे णिज्झाएमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संति-केवली पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णोनिग्गंथे इत्थीणं मणोहराइं इंदियाइं आलोएत्तए णिज्झाइत्तए सियत्ति दोच्चा भावणा। अहावरा तच्चा भावणा– नो निग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाइं सरित्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाइं सरमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णोनिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाइं सरित्तए सियत्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा– नाइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे, णोपणीयरसभोयणभोई। केवली बूया–अइमत्तपा-णभोयणभई से निग्गंथे पणीयरसभोयणभोई त्ति, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो अतिमत्त-पाणभोयणभोई से निग्गंथे नो पणीयरसभोयणभोई त्ति चउत्था भावणा। अहावरा पंचमा भावणा–नो निग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयणासणाइं सेवित्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयणासणाइं सेवेमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। णोनिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयणासणाइं सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा। एतावताव महव्वए धम्मं काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ। चउत्थे भंते! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं। | ||
Sutra Meaning : | इसके पश्चात् भगवन् ! मैं चतुर्थ महाव्रत स्वीकार करता हूँ, समस्त प्रकार के मैथुन – विषय सेवन का प्रत्या – ख्यान करता हूँ। देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धी और तिर्यंच – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन नहीं करूँगा, न दूसरे से मैथुन – सेवन कराऊंगा और न ही मैथुनसेवन करने वाले का अनुमोदन करूँगा। शेष समस्त वर्णन अदत्तादान – विरमण महाव्रत में यावत् व्युत्सर्ग करता हूँ तक के पाठ अनुसार समझना। उस चतुर्थ महाव्रत की ये पाँच भावनाएं हैं – उन में पहली भावना यह है – निर्ग्रन्थ साधु बार – बार स्त्रियों की कामजनक कथा न कहे। केवली भगवान कहते हैं – बार – बार स्त्रियों की कथा कहने वाला निर्ग्रन्थ साधु शान्तिरूप चारित्र का और शान्तिरूप ब्रह्मचर्य का भंग करने वाला होता है, तथा शान्तिरूप केवली – प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ साधु को स्त्रियों की कथा बार – बार नहीं करनी चाहिए। इसके पश्चात् दूसरी भावना यह है – निर्ग्रन्थ साधु काम – राग से स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को सामान्य रूप से या विशेषरूप से न देखे। केवली भगवान कहते हैं – स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों का कामराग – पूर्वक सामान्य या विशेष रूप से अवलोकन करने वाला साधु शान्तिरूप चारित्र का नाश तथा शान्तिरूप ब्रह्मचर्य का भंग करता है, तथा शान्तिरूप केवली – प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ को स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों का कामरागपूर्वक सामान्य या विशेष रूप से अवलोकन नहीं करना चाहिए। इसके अनन्तर तीसरी भावना इस प्रकार है कि निर्ग्रन्थ साधु स्त्रियों के साथ की हुई पूर्वरति एवं पूर्व काम क्रीड़ा का स्मरण न करे। केवली भगवान कहते हैं कि स्त्रियों के साथ में की हुई पूर्वरति पूर्वकृत – कामक्रीड़ा का स्मरण करने वाला साधु शान्तिरूप चारित्र का नाश तथा शान्तिरूप ब्रह्मचर्य का भंग करने वाला होता है तथा शान्तिरूप धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ साधु स्त्रियों के साथ की हुई पूर्वरति एवं कामक्रीड़ा का स्मरण न करे। चौथी भावना है – निर्ग्रन्थ अतिमात्रा में आहार – पानी का सेवन न करे, और न ही सरस स्निग्ध – स्वादिष्ट भोजन का उपभोग करे। केवली भगवान कहते हैं कि जो निर्ग्रन्थ प्रमाण से अधिक आहार – पानी का सेवन करता है तथा स्निग्ध – सरस – स्वादिष्ट भोजन करता है, वह शान्तिरूप चारित्र का नाश करने वाला, यावत् भ्रष्ट हो सकता है। इसलिए अतिमात्रा में आहार – पानी का सेवन या सरस स्निग्ध भोजन नहीं करना चाहिए। इसके अनन्तर पंचम भावना है – निर्ग्रन्थ स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन आदि का सेवन न करे। केवली भगवान कहते हैं – जो निर्ग्रन्थ स्त्री – पशु – नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन आदि का सेवन करता है, वह शान्तिरूप चारित्र को नष्ट कर देता है, यावत् भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए निर्ग्रन्थ को स्त्री – पशु – नपुंसक संसक्त शय्या और आसन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार इन पंच भावनाओं से विशिष्ट एवं स्वीकृत मैथुन – विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत का सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्श करने यावत् भगवदाज्ञा के अनुरूप सम्यक् आराधक हो जाता है। भगवन् ! यह मैथुन – विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavaram chauttham bhamte! Mahavvayam–pachchakkhami savvam mehunam–se divvam va, manusam va, tirikkhajoniyam va, neva sayam mehunam gachchhejja, nevannehim mehunam gachchhavejja, annampi mehunam gachchhamtam na samanujjanejja javajjivae tiviham tivihenam–manasa vayasa kayasa, tassa bhamte! Padikkamami nimdami garihami appanam vosirami. Tassimao pamcha bhavanao bhavamti. Tatthima padhama bhavana–no niggamthe abhikkhanam-abhikkhanam itthinam kaham kahaittae siya. Kevali buya–niggamthe nam abhikkhanam-abhikkhanam itthinam kaham kahamane, samtibheda samtivibhamga samtikevali-pannattao dhammao bhamsejja. No niggamthe abhikkhanam-abhikkhanam itthinam kaham kahittae siyatti padhama bhavana. Ahavara dochcha bhavana–no niggamthe itthinam manoharaim imdiyaim aloettae nijjhaittae siya. Kevali buya– niggamthe nam itthinam manoharaim imdiyaim aloemane nijjhaemane, samtibheya samtivibhamga samti-kevali pannattao dhammao bhamsejja. Noniggamthe itthinam manoharaim imdiyaim aloettae nijjhaittae siyatti dochcha bhavana. Ahavara tachcha bhavana– no niggamthe itthinam puvvarayaim puvvakiliyaim sarittae siya. Kevali buya–niggamthe nam itthinam puvvarayaim puvvakiliyaim saramane, samtibheya samtivibhamga samtikevalipannattao dhammao bhamsejja. Noniggamthe itthinam puvvarayaim puvvakiliyaim sarittae siyatti tachcha bhavana. Ahavara chauttha bhavana– naimattapanabhoyanabhoi se niggamthe, nopaniyarasabhoyanabhoi. Kevali buya–aimattapa-nabhoyanabhai se niggamthe paniyarasabhoyanabhoi tti, samtibheda samtivibhamga samtikevali pannattao dhammao bhamsejja. No atimatta-panabhoyanabhoi se niggamthe no paniyarasabhoyanabhoi tti chauttha bhavana. Ahavara pamchama bhavana–no niggamthe itthipasupamdagasamsattaim sayanasanaim sevittae siya. Kevali buya–niggamthe nam itthipasupamdagasamsattaim sayanasanaim sevemane, samtibheya samtivibhamga samtikevalipannattao dhammao bhamsejja. Noniggamthe itthipasupamdagasamsattaim sayanasanaim sevittae siyatti pamchama bhavana. Etavatava mahavvae dhammam kaena phasie palie tirie kittie avatthie anae arahie yavi bhavai. Chautthe bhamte! Mahavvae mehunao veramanam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake pashchat bhagavan ! Maim chaturtha mahavrata svikara karata hum, samasta prakara ke maithuna – vishaya sevana ka pratya – khyana karata hum. Deva – sambandhi, manushya – sambandhi aura tiryamcha – sambandhi maithuna ka svayam sevana nahim karumga, na dusare se maithuna – sevana karaumga aura na hi maithunasevana karane vale ka anumodana karumga. Shesha samasta varnana adattadana – viramana mahavrata mem yavat vyutsarga karata hum taka ke patha anusara samajhana. Usa chaturtha mahavrata ki ye pamcha bhavanaem haim – una mem pahali bhavana yaha hai – nirgrantha sadhu bara – bara striyom ki kamajanaka katha na kahe. Kevali bhagavana kahate haim – bara – bara striyom ki katha kahane vala nirgrantha sadhu shantirupa charitra ka aura shantirupa brahmacharya ka bhamga karane vala hota hai, tatha shantirupa kevali – prarupita dharma se bhrashta ho jata hai. Atah nirgrantha sadhu ko striyom ki katha bara – bara nahim karani chahie. Isake pashchat dusari bhavana yaha hai – nirgrantha sadhu kama – raga se striyom ki manohara evam manorama indriyom ko samanya rupa se ya vishesharupa se na dekhe. Kevali bhagavana kahate haim – striyom ki manohara evam manorama indriyom ka kamaraga – purvaka samanya ya vishesha rupa se avalokana karane vala sadhu shantirupa charitra ka nasha tatha shantirupa brahmacharya ka bhamga karata hai, tatha shantirupa kevali – prarupita dharma se bhrashta ho jata hai. Atah nirgrantha ko striyom ki manohara evam manorama indriyom ka kamaragapurvaka samanya ya vishesha rupa se avalokana nahim karana chahie. Isake anantara tisari bhavana isa prakara hai ki nirgrantha sadhu striyom ke satha ki hui purvarati evam purva kama krira ka smarana na kare. Kevali bhagavana kahate haim ki striyom ke satha mem ki hui purvarati purvakrita – kamakrira ka smarana karane vala sadhu shantirupa charitra ka nasha tatha shantirupa brahmacharya ka bhamga karane vala hota hai tatha shantirupa dharma se bhrashta ho jata hai. Atah nirgrantha sadhu striyom ke satha ki hui purvarati evam kamakrira ka smarana na kare. Chauthi bhavana hai – nirgrantha atimatra mem ahara – pani ka sevana na kare, aura na hi sarasa snigdha – svadishta bhojana ka upabhoga kare. Kevali bhagavana kahate haim ki jo nirgrantha pramana se adhika ahara – pani ka sevana karata hai tatha snigdha – sarasa – svadishta bhojana karata hai, vaha shantirupa charitra ka nasha karane vala, yavat bhrashta ho sakata hai. Isalie atimatra mem ahara – pani ka sevana ya sarasa snigdha bhojana nahim karana chahie. Isake anantara pamchama bhavana hai – nirgrantha stri, pashu aura napumsaka se samsakta shayya aura asana adi ka sevana na kare. Kevali bhagavana kahate haim – jo nirgrantha stri – pashu – napumsaka se samsakta shayya aura asana adi ka sevana karata hai, vaha shantirupa charitra ko nashta kara deta hai, yavat bhrashta ho jata hai. Isalie nirgrantha ko stri – pashu – napumsaka samsakta shayya aura asana adi ka sevana nahim karana chahie. Isa prakara ina pamcha bhavanaom se vishishta evam svikrita maithuna – viramana rupa chaturtha mahavrata ka samyak prakara se kaya se sparsha karane yavat bhagavadajnya ke anurupa samyak aradhaka ho jata hai. Bhagavan ! Yaha maithuna – viramana rupa chaturtha mahavrata hai. |