Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )

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Sr No : 1000538
Scripture Name( English ): Acharang Translated Scripture Name : आचारांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Section : Translated Section :
Sutra Number : 538 Category : Ang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अहावरं तच्चं भंते! महव्वयंपच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादानंसे गामे वा, नगरे वा, अरण्णे वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गेण्हिज्जा, नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा, अन्नंपि अदिन्नं गेण्हंतं समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणंमणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति तत्थिमा पढमा भावणाअणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइ-मिओग्गहजाई केवली बूयाअणणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, अदिन्नं गेण्हेज्जा अणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइमिओग्गहजाई त्ति पढमा भावणा अहावरा दोच्चा भावणा अणुण्णवियपाणभोयणभोई से निग्गंथे, णोअणणुण्णवियपाणभोयणभोई केवली बूया अणणुण्णवियपाणभोयणभोई से निग्गंथे अदिन्नं भुंजेज्जा, तम्हा अणुण्णवियपाण-भोयणभोई से निग्गंथे, नो अणणुण्णवियपाणभोयणभोई त्ति दोच्चा भावणा अहावरा तच्चा भावणानिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि एतावताव ओग्गहणसीलए सिया केवली बूयानिग्गंथे णं ओग्गहंसि अणोग्गहियंसि एतावताव अणोग्गहणसीलो अदिन्नं ओगिण्हेज्जा निग्गंथेणं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि एता-वताव ओग्गहणसीलए सियत्ति तच्चा भावणा अहावरा चउत्था भावणानिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं-अभिक्खण ओग्गहणसीलए सिया केवली बूयानिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं-अभिक्खणं अणोग्गहणसीले अदिन्नं गिण्हेज्जा निग्गंथे ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं-अभिक्खणं ओग्गहणसीलए सियत्ति चउत्था भावणा अहावरा पंचमा भावणाअणुवीइमितोग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु, णोअणणुवीइमिओग्गहजाई केवली बूयाअणणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु अदिन्नं ओगिण्हेज्जा अणुवीइमिओग्गह- जाई से निग्गंथे साहम्मिएसु, णोअणणुवीइमिओग्गहजाईइइ पंचमा भावणा एतावताव महव्वए सम्मं काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ तच्चे भंते महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! इसके पश्चात्‌ अब मैं तृतीय महाव्रत स्वीकार करता हूँ, इसके सन्दर्भ में मैं सब प्रकार से अदत्ता दान का प्रत्याख्यान करता हूँ वह इस प्रकार वह (ग्राह्य पदार्थ) चाहे गाँव में हो, नगर में हो या अरण्य में हो, थोड़ा हो या बहुत, सूक्ष्म हो या स्थूल, सचेतन हो या अचेतन; उसे उसके स्वामी के बिना दिये तो स्वयं ग्रहण करूँगा, दूसरे से ग्रहण कराऊंगा और ही अदत्त ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करूँगा, यावज्जीवन तीन करणों से तथा मन वचन काया से यह प्रतिज्ञा करता हूँ साथ ही मैं पूर्वकृत अदत्तादानरूप पाप का प्रतिक्रमण करता हूँ, आत्मनिन्दा करता हूँ, गर्हा करता हूँ और अपनी आत्मा से अदत्तादान पाप का व्युत्सर्ग करता हूँ उस तीसरे महाव्रत की ये पाँच भावनाएं हैं उसमें प्रथम भावना इस प्रकार है जो साधक पहले विचार करके परिमित अवग्रह की याचना करता है, वह निर्ग्रन्थ है, किन्तु बिना विचार किये परिमित अवग्रह की याचना करने वाला नहीं केवली भगवान कहते हैं जो बिना विचार किये मितावग्रह की याचना करता है, वह निर्ग्रन्थ अदत्त ग्रहण करता है अतः तदनुरूप चिन्तन करके परिमित अवग्रह की याचना करने वाला साधु निर्ग्रन्थ कहलाता है, कि बिना विचार किये मर्यादित अवग्रह की याचना करने वाला इसके अनन्तर दूसरी भावना यह है गुरुजनों की अनुज्ञा लेकर आहार पानी आदि सेवन करने वाला निर्ग्रन्थ होता है, अनुज्ञा लिये बिना आहार पानी आदि का उपभोग करने वाला नहीं केवली भगवान कहते हैं कि जो निर्ग्रन्थ गुरु आदि की अनुज्ञा प्राप्त किये बिना पान भोजनादि का उपभोग करता है, वह अदत्तादान का सेवन करता है इसलिए जो अनुज्ञा प्राप्त करके आहार पानी आदि का उपभोग करता है, वह निर्ग्रन्थ कहलाता है, अनुज्ञा ग्रहण किये बिना आहार पानी आदि का सेवन करने वाला नहीं अब तृतीय भावना इस प्रकार है निर्ग्रन्थ साधु को क्षेत्र और काल के प्रमाणपूर्वक अवग्रह की याचना करनी चाहिए केवली भगवान कहते हैं जो निर्ग्रन्थ इतने क्षेत्र और इतने काल की मर्यादापूर्वक अवग्रह की अनुज्ञा नहीं करता, वह अदत्त का ग्रहण करता है अतः निर्ग्रन्थ साधु क्षेत्र काल की मर्यादा खोल कर अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करने वाला होता है, अन्यथा नहीं इसके अनन्तर चौथी भावना यह है निर्ग्रन्थ अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करने के पश्चात्‌ बार बार अवग्रह अनुज्ञा ग्रहणशील होना चाहिए क्योंकि केवली भगवान कहते हैं जो निर्ग्रन्थ अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण कर लेने पर बार बार अवग्रह की अनुज्ञा नहीं लेता, वह अदत्तादान दोष का भागी होता है अतः निर्ग्रन्थ को एक बार अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण कर लेने पर भी पुनः पुनः अवग्रहानुज्ञा ग्रहणशील होना चाहिए इसके पश्चात्‌ पाँचवी भावना यह है जो साधक साधर्मिकों से भी विचार करके मर्यादित अवग्रह की याचना करता है, वह निर्ग्रन्थ है, बिना विचारे परिमित अवग्रह की याचना करने वाला नहीं केवली भगवान का कथन है बिना विचार किये जो साधर्मिकों से परिमित अवग्रह की याचना करता है, उसे साधर्मिकों का अदत्त ग्रहण करने का दोष लगता है अतः जो साधक साधर्मिकों से भी विचारपूर्वक मर्यादित अवग्रह की याचना करता है, वही निर्ग्रन्थ कहलाता है बिना विचारे साधर्मिकों से मर्यादित अवग्रहयाचक नहीं इस प्रकार पंच भावनाओं से विशिष्ट एवं स्वीकृत अदत्तादान विरमणरूप तृतीय महाव्रत का सम्यक्‌ प्रकार से काया से स्पर्श करने, यावत्‌ अंत तक अवस्थित रहने पर भगवदाज्ञा का सम्यक्‌ आराधक हो जाता है भगवन्‌ ! यह अदत्तादान विरमणरूप तृतीय महाव्रत है
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ahavaram tachcham bhamte! Mahavvayampachchakkhami savvam adinnadanamse game va, nagare va, aranne va, appam va, bahum va, anum va, thulam va, chittamamtam va, achittamamtam va neva sayam adinnam genhijja, nevannehim adinnam genhavejja, annampi adinnam genhamtam na samanujanijja javajjivae tiviham tivihenammanasa vayasa kayasa, tassa bhamte! Padikkamami nimdami garihami appanam vosirami. Tassimao pamcha bhavanao bhavamti. Tatthima padhama bhavanaanuviimioggahajai se niggamthe, noananuvii-mioggahajai. Kevali buyaananuviimioggahajai se niggamthe, adinnam genhejja. Anuviimioggahajai se niggamthe, noananuviimioggahajai tti padhama bhavana. Ahavara dochcha bhavana anunnaviyapanabhoyanabhoi se niggamthe, noananunnaviyapanabhoyanabhoi. Kevali buya ananunnaviyapanabhoyanabhoi se niggamthe adinnam bhumjejja, tamha anunnaviyapana-bhoyanabhoi se niggamthe, no ananunnaviyapanabhoyanabhoi tti dochcha bhavana. Ahavara tachcha bhavananiggamthe nam oggahamsi oggahiyamsi etavatava oggahanasilae siya. Kevali buyaniggamthe nam oggahamsi anoggahiyamsi etavatava anoggahanasilo adinnam oginhejja. Niggamthenam oggahamsi oggahiyamsi eta-vatava oggahanasilae siyatti tachcha bhavana. Ahavara chauttha bhavananiggamthe nam oggahamsi oggahiyamsi abhikkhanam-abhikkhana oggahanasilae siya. Kevali buyaniggamthe nam oggahamsi oggahiyamsi abhikkhanam-abhikkhanam anoggahanasile adinnam ginhejja. Niggamthe oggahamsi oggahiyamsi abhikkhanam-abhikkhanam oggahanasilae siyatti chauttha bhavana. Ahavara pamchama bhavanaanuviimitoggahajai se niggamthe sahammiesu, noananuviimioggahajai. Kevali buyaananuviimioggahajai se niggamthe sahammiesu adinnam oginhejja. Anuviimioggaha- jai se niggamthe sahammiesu, noananuviimioggahajaiii pamchama bhavana. Etavatava mahavvae sammam kaena phasie palie tirie kittie avatthie anae arahie yavi bhavai. Tachche bhamte mahavvae adinnadanao veramanam.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Isake pashchat aba maim tritiya mahavrata svikara karata hum, isake sandarbha mem maim saba prakara se adatta dana ka pratyakhyana karata hum. Vaha isa prakara vaha (grahya padartha) chahe gamva mem ho, nagara mem ho ya aranya mem ho, thora ho ya bahuta, sukshma ho ya sthula, sachetana ho ya achetana; use usake svami ke bina diye na to svayam grahana karumga, na dusare se grahana karaumga aura na hi adatta grahana karane vale ka anumodana karumga, yavajjivana tina karanom se tatha mana vachana kaya se yaha pratijnya karata hum. Satha hi maim purvakrita adattadanarupa papa ka pratikramana karata hum, atmaninda karata hum, garha karata hum aura apani atma se adattadana papa ka vyutsarga karata hum. Usa tisare mahavrata ki ye pamcha bhavanaem haim Usamem prathama bhavana isa prakara hai jo sadhaka pahale vichara karake parimita avagraha ki yachana karata hai, vaha nirgrantha hai, kintu bina vichara kiye parimita avagraha ki yachana karane vala nahim. Kevali bhagavana kahate haim jo bina vichara kiye mitavagraha ki yachana karata hai, vaha nirgrantha adatta grahana karata hai. Atah tadanurupa chintana karake parimita avagraha ki yachana karane vala sadhu nirgrantha kahalata hai, na ki bina vichara kiye maryadita avagraha ki yachana karane vala. Isake anantara dusari bhavana yaha hai gurujanom ki anujnya lekara ahara pani adi sevana karane vala nirgrantha hota hai, anujnya liye bina ahara pani adi ka upabhoga karane vala nahim. Kevali bhagavana kahate haim ki jo nirgrantha guru adi ki anujnya prapta kiye bina pana bhojanadi ka upabhoga karata hai, vaha adattadana ka sevana karata hai. Isalie jo anujnya prapta karake ahara pani adi ka upabhoga karata hai, vaha nirgrantha kahalata hai, anujnya grahana kiye bina ahara pani adi ka sevana karane vala nahim. Aba tritiya bhavana isa prakara hai nirgrantha sadhu ko kshetra aura kala ke pramanapurvaka avagraha ki yachana karani chahie. Kevali bhagavana kahate haim jo nirgrantha itane kshetra aura itane kala ki maryadapurvaka avagraha ki anujnya nahim karata, vaha adatta ka grahana karata hai. Atah nirgrantha sadhu kshetra kala ki maryada khola kara avagraha ki anujnya grahana karane vala hota hai, anyatha nahim. Isake anantara chauthi bhavana yaha hai nirgrantha avagraha ki anujnya grahana karane ke pashchat bara bara avagraha anujnya grahanashila hona chahie. Kyomki kevali bhagavana kahate haim jo nirgrantha avagraha ki anujnya grahana kara lene para bara bara avagraha ki anujnya nahim leta, vaha adattadana dosha ka bhagi hota hai. Atah nirgrantha ko eka bara avagraha ki anujnya grahana kara lene para bhi punah punah avagrahanujnya grahanashila hona chahie. Isake pashchat pamchavi bhavana yaha hai jo sadhaka sadharmikom se bhi vichara karake maryadita avagraha ki yachana karata hai, vaha nirgrantha hai, bina vichare parimita avagraha ki yachana karane vala nahim. Kevali bhagavana ka kathana hai bina vichara kiye jo sadharmikom se parimita avagraha ki yachana karata hai, use sadharmikom ka adatta grahana karane ka dosha lagata hai. Atah jo sadhaka sadharmikom se bhi vicharapurvaka maryadita avagraha ki yachana karata hai, vahi nirgrantha kahalata hai. Bina vichare sadharmikom se maryadita avagrahayachaka nahim. Isa prakara pamcha bhavanaom se vishishta evam svikrita adattadana viramanarupa tritiya mahavrata ka samyak prakara se kaya se sparsha karane, yavat amta taka avasthita rahane para bhagavadajnya ka samyak aradhaka ho jata hai. Bhagavan ! Yaha adattadana viramanarupa tritiya mahavrata hai.