Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000535 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 535 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि।’ तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हेत्ता ‘वोसट्ठकाए चत्तदेहे’ दिवसे मुहुत्तसेसे कम्मारं गामं समणुपत्ते। तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसट्ठचत्तदेहे अनुत्तरेणं आलएणं, अनुत्तरेणं विहारेणं, अनुत्तरेणं संजमेणं, अनुत्तरेणं पग्गहेणं, अनुत्तरेणं संवरेणं, अनुत्तरेणं तवेणं, अनुत्तरेणं बंभचेरवासेणं, अनुत्तराए खंतीए, अनुत्तराए मोत्तीए, अनुत्तराए तुट्ठीए, अनुत्तराए समितीए, अनुत्तराए गुत्तीए, अनुत्तरेणं ठाणेणं, अनुत्तरेणं कम्मेणं, अनुत्तरेणं सुचरियफलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। एवं विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुपज्जिंसु– दिव्वा वा माणुसा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाणे अनाइले अव्वहिए अदीन-माणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारसवासा विइक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे–वइसाहसुद्धे, तस्सणं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं, हत्थुत्तराहि णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, पाईण-गामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, जंभियगामस्स नगरस्स बहिया णईए उजुवालिया उत्तरे कूले, सामागस्स गाहावइस्स कट्ठकरणंसि, वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, सालरु-क्खस्स अदूरसामंते, उक्कुडुयस्स, गोदोहियाए आयावणाए आयावेमाणस्स, छट्ठेणं भत्तेणं अपाणएणं, उड्ढंजाणु-अहोसिरस्स, धम्मज्झाणोवगयस्स, ज्झाणकोट्ठोवगयस्स, सुक्कज्झाणं-तरियाए वट्टमाणस्स, निव्वाणे, कसिणे, पडिपुण्णे, अव्वाहए, णिरावरणे, अनंते, अनुत्तरे, केवलवर-नाणदंसणे समुप्पण्णे। से भगवं अरिहं जिणे जाए, केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी, सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पज्जाए जाणइ, तं जहा – आगतिं गतिं ठितिं चयणं उववायं भुत्तं पीयं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं लवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाइं जाणमाणे पासमाणे, एवं च णं विहरइ। जण्णं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स णिव्वाणे कसिणे पडिपुण्णे अव्वाहए णिरावरणे अणंते अनुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे तण्णं दिवसं भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सन्निवाते देव-कहक्कहे उप्पिं-जलगभूए यावि होत्था। तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमेक्ख पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्खति तओ पच्छा मणुस्साणं। तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं पंच महव्वयाइं सभावणाइं छज्जीवनिकायाइं आइक्खइ भासइ परूवेइ, तं जहा–पुढविकाए आउकाए, तेउकाए, वाउकाए, वणस्सइकाए, तसकाए। | ||
Sutra Meaning : | श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग को प्रतिवि – सर्जित करके इस प्रकार का अभिग्रह धारण किया कि, ‘‘मैं आज से बारह वर्ष तक अपने शरीर का व्युत्सर्ग करता हूँ। इस अवधि में दैविक, मानुषिक या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उन सब समुत्पन्न उपसर्गों को मैं सम्यक् प्रकार से या समभाव से सहूँगा, क्षमाभाव रखूँगा, शान्ति से झेलूँगा।’’ इस प्रकार का अभिग्रह धारण करने के पश्चात् काया का व्युत्सर्ग एवं काया के प्रति ममत्व का त्याग किये हुए श्रमण भगवान महावीर दिन का मुहूर्त्त शेष रहते कर्मार ग्राम पहुँच गए। उसके पश्चात् काया का व्युत्सर्ग एवं देहाध्यास का त्याग किये हुए श्रमण भगवान महावीर अनुत्तर वसति के सेवन से, अनुपम विहार से, एवं अनुत्तर संयम, उपकरण, संवर, तप, ब्रह्मचर्य, क्षमा, निर्लोभता, संतुष्टि, समिति, गुप्ति, कायोत्सर्गादि स्थान, तथा अनुपम क्रियानुष्ठान से एवं सुचरित के फलस्वरूप निर्वाण और मुक्ति मार्ग के सेवन से युक्त होकर आत्मा को प्रभावित करते हुए विहार करने लगे। इस प्रकार विहार करते हुए त्यागी श्रमण भगवान महावीर को दिव्य, मानवीय और तिर्यंचसम्बन्धी जो कोई उपसर्ग प्राप्त होते, वे उन सब उपसर्गों के आने पर उन्हें अकलुषित, अव्यथित, अदीनमना एवं मन – वचन – काया की त्रिविध प्रकार की गुप्तियों से गुप्त होकर सम्यक् प्रकार के समभावपूर्वक सहन करते, उपसर्गदाताओं को क्षमा करते, सहिष्णुभाव धारण करते तथा शान्ति और धैर्य से झेलते थे। श्रमण भगवान महावीर को इस प्रकार से विचरण करते हुए बारह वर्ष व्यतीत हो गए, तेरहवे वर्ष के मध्य में ग्रीष्म ऋतु में दूसरे मास और चौथे पक्ष से अर्थात् वैशाख सुदी में, दशमी के दिन, सुव्रत नामक दिवस में विजय मुहूर्त्त में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग आने पर, पूर्वगामिनी छाया होने पर दिन के दूसरे प्रहर में जृम्भकग्राम नगर के बाहर ऋजुबालिका नदी के उत्तर तट पर श्यामाकगृहपति के काष्ठकरण क्षेत्र में वैयावृत्यचैत्य के ईशानकोण में शालवृक्ष से न अति दूर, न अति निकट, उत्कटुक होकर गोदोहासन से सूर्य की आतापना लेते हुए, निर्जल षष्ठभक्त से युक्त, ऊपर घुटने और नीचा सिर करके धर्मध्यानयुक्त, ध्यानकोष्ठ में प्रविष्ट हुए जब शुक्ल – ध्यानान्तरिका में प्रवर्तमान थे, तभी उन्हें अज्ञान दुःख से निवृत्ति दिलाने वाले, सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण अव्याहत निरावरण अनन्त अनुत्तर श्रेष्ठ केवलज्ञान – केवलदर्शन उत्पन्न हुए। वे अब भगवान अर्हत्, जिन, ज्ञायक, केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी हो गए। अब वे देवों, मनुष्यों और असुरों सहित समस्त लोक के पर्यायों को जानने लगे। जैसे कि जीवों की आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, उनके भुक्त और पीत सभी पदार्थों को तथा उनके द्वारा कृत प्रतिसेवित, प्रकट एवं गुप्त सभी कर्मों को तथा उनके द्वारा बोले हुए, कहे हुए तथा मन के भावों को जानते, देखते थे। वे सम्पूर्ण लोक में स्थित सब जीवों के समस्त भावों को तथा समस्त परमाणु पुद्गलों को जानते – देखते हुए विचरण करने लगे। जिस दिन श्रमण भगवान महावीर को अज्ञान – दुःख – निवृत्तिदायक सम्पूर्ण यावत् अनुत्तर केवलज्ञान – केवलदर्शन उत्पन्न हुआ, उस दिन भवन – पति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं विमानवासी देव और देवियों के आने – जाने से एक महान दिव्य देवोद्योत हुआ, देवों का मेला – सा लग गया, देवों का कल – कल नाद होने लगा, वहाँ का सारा आकाशमंडल हलचल से व्याप्त हो गया। तदनन्तर अनुत्तर ज्ञान – दर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर ने केवलज्ञान द्वारा अपनी आत्मा और लोक को सम्यक् प्रकार से जानकर पहले देवों को, तत्पश्चात् मनुष्यों को धर्मोपदेश दिया। तत्पश्चात् केवलज्ञान – केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण – निर्ग्रन्थों को भावना सहित पंच – महाव्रतों और षड्जीवनिकायों के स्वरूप का व्याख्यान किया। सामान्य – विशेष रूप से प्ररूपण किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tao nam samanassa bhagavao mahavirassa samaiyam khaovasamiyam charittam padivannassa manapajjavanane namam nane samuppanne–addhaijjehim divehim dohi ya samuddehim sanninam pamchemdiyanam pajjattanam viyattamanasanam manogayaim bhavaim janei. Tao nam samane bhagavam mahavire pavvaite samane mitta-nati-sayana-sambamdhivaggam padivisajjeti, padivisajjetta imam eyaruvam abhiggaham abhiginhai– ‘barasavasaim vosatthakae chattadehe je kei uvasagga uppajjamti, tam jaha–divva va, manusa va, terichchhiya va, te savve uvasagge samuppanne samane ‘anaile avvahite addinamanase tivihamanavayanakayagutte’ sammam sahissami khamissami ahiyasaissami.’ Tao nam samane bhagavam mahavire imeyaruvam abhiggaham abhiginhetta ‘vosatthakae chattadehe’ divase muhuttasese kammaram gamam samanupatte. Tao nam samane bhagavam mahavire vosatthachattadehe anuttarenam alaenam, anuttarenam viharenam, anuttarenam samjamenam, anuttarenam paggahenam, anuttarenam samvarenam, anuttarenam tavenam, anuttarenam bambhacheravasenam, anuttarae khamtie, anuttarae mottie, anuttarae tutthie, anuttarae samitie, anuttarae guttie, anuttarenam thanenam, anuttarenam kammenam, anuttarenam suchariyaphalanivvanamuttimaggenam appanam bhavemane viharai. Evam viharamanassa je kei uvasagga samupajjimsu– divva va manusa va terichchhiya va, te savve uvasagge samuppanne samane anaile avvahie adina-manase tivihamanavayanakayagutte sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei. Tao nam samanassa bhagavao mahavirassa eenam viharenam viharamanassa barasavasa viikkamta, terasamassa ya vasassa pariyae vattamanassa je se gimhanam dochche mase chautthe pakkhe–vaisahasuddhe, tassanam vaisahasuddhassa dasamipakkhenam, suvvaenam divasenam vijaenam muhuttenam, hatthuttarahi nakkhattenam jogovagatenam, paina-gaminie chhayae, viyattae porisie, jambhiyagamassa nagarassa bahiya naie ujuvaliya uttare kule, samagassa gahavaissa katthakaranamsi, veyavattassa cheiyassa uttarapuratthime disibhae, salaru-kkhassa adurasamamte, ukkuduyassa, godohiyae ayavanae ayavemanassa, chhatthenam bhattenam apanaenam, uddhamjanu-ahosirassa, dhammajjhanovagayassa, jjhanakotthovagayassa, sukkajjhanam-tariyae vattamanassa, nivvane, kasine, padipunne, avvahae, niravarane, anamte, anuttare, kevalavara-nanadamsane samuppanne. Se bhagavam ariham jine jae, kevali savvannu savvabhavadarisi, sadevamanuyasurassa loyassa pajjae janai, tam jaha – agatim gatim thitim chayanam uvavayam bhuttam piyam kadam padiseviyam avikammam rahokammam laviyam kahiyam manomanasiyam savvaloe savvajivanam savvabhavaim janamane pasamane, evam cha nam viharai. Jannam divasam samanassa bhagavao mahavirassa nivvane kasine padipunne avvahae niravarane anamte anuttare kevalavarananadamsane samuppanne tannam divasam bhavanavai-vanamamtara-joisiya-vimanavasidevehi ya devihi ya ovayamtehi ya uppayamtehi ya ege maham divve devujjoe deva-sannivate deva-kahakkahe uppim-jalagabhue yavi hottha. Tao nam samane bhagavam mahavire uppannananadamsanadhare appanam cha logam cha abhisamekkha puvvam devanam dhammamaikkhati tao pachchha manussanam. Tao nam samane bhagavam mahavire uppannananadamsanadhare goyamainam samananam niggamthanam pamcha mahavvayaim sabhavanaim chhajjivanikayaim aikkhai bhasai paruvei, tam jaha–pudhavikae aukae, teukae, vaukae, vanassaikae, tasakae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Shramana bhagavana mahavira ko kshayopashamika samayikacharitra grahana karate hi manahparyavajnyana samutpanna hua; ve arhai dvipa aura do samudrom mem sthita paryapta samjnyipamchendriya, vyakta mana vale jivom ke manogata bhavom ko spashta janane lage. Udhara shramana bhagavana mahavira ne pravrajita hote hi apane mitra, jnyati, svajana – sambandhi varga ko prativi – sarjita karake isa prakara ka abhigraha dharana kiya ki, ‘‘maim aja se baraha varsha taka apane sharira ka vyutsarga karata hum. Isa avadhi mem daivika, manushika ya tiryamcha sambandhi jo koi bhi upasarga utpanna homge, una saba samutpanna upasargom ko maim samyak prakara se ya samabhava se sahumga, kshamabhava rakhumga, shanti se jhelumga.’’ isa prakara ka abhigraha dharana karane ke pashchat kaya ka vyutsarga evam kaya ke prati mamatva ka tyaga kiye hue shramana bhagavana mahavira dina ka muhurtta shesha rahate karmara grama pahumcha gae. Usake pashchat kaya ka vyutsarga evam dehadhyasa ka tyaga kiye hue shramana bhagavana mahavira anuttara vasati ke sevana se, anupama vihara se, evam anuttara samyama, upakarana, samvara, tapa, brahmacharya, kshama, nirlobhata, samtushti, samiti, gupti, kayotsargadi sthana, tatha anupama kriyanushthana se evam sucharita ke phalasvarupa nirvana aura mukti marga ke sevana se yukta hokara atma ko prabhavita karate hue vihara karane lage. Isa prakara vihara karate hue tyagi shramana bhagavana mahavira ko divya, manaviya aura tiryamchasambandhi jo koi upasarga prapta hote, ve una saba upasargom ke ane para unhem akalushita, avyathita, adinamana evam mana – vachana – kaya ki trividha prakara ki guptiyom se gupta hokara samyak prakara ke samabhavapurvaka sahana karate, upasargadataom ko kshama karate, sahishnubhava dharana karate tatha shanti aura dhairya se jhelate the. Shramana bhagavana mahavira ko isa prakara se vicharana karate hue baraha varsha vyatita ho gae, terahave varsha ke madhya mem grishma ritu mem dusare masa aura chauthe paksha se arthat vaishakha sudi mem, dashami ke dina, suvrata namaka divasa mem vijaya muhurtta mem uttaraphalguni nakshatra ke satha chandrama ka yoga ane para, purvagamini chhaya hone para dina ke dusare prahara mem jrimbhakagrama nagara ke bahara rijubalika nadi ke uttara tata para shyamakagrihapati ke kashthakarana kshetra mem vaiyavrityachaitya ke ishanakona mem shalavriksha se na ati dura, na ati nikata, utkatuka hokara godohasana se surya ki atapana lete hue, nirjala shashthabhakta se yukta, upara ghutane aura nicha sira karake dharmadhyanayukta, dhyanakoshtha mem pravishta hue jaba shukla – dhyanantarika mem pravartamana the, tabhi unhem ajnyana duhkha se nivritti dilane vale, sampurna, pratipurna avyahata niravarana ananta anuttara shreshtha kevalajnyana – kevaladarshana utpanna hue. Ve aba bhagavana arhat, jina, jnyayaka, kevali, sarvajnya, sarvabhavadarshi ho gae. Aba ve devom, manushyom aura asurom sahita samasta loka ke paryayom ko janane lage. Jaise ki jivom ki agati, gati, sthiti, chyavana, upapata, unake bhukta aura pita sabhi padarthom ko tatha unake dvara krita pratisevita, prakata evam gupta sabhi karmom ko tatha unake dvara bole hue, kahe hue tatha mana ke bhavom ko janate, dekhate the. Ve sampurna loka mem sthita saba jivom ke samasta bhavom ko tatha samasta paramanu pudgalom ko janate – dekhate hue vicharana karane lage. Jisa dina shramana bhagavana mahavira ko ajnyana – duhkha – nivrittidayaka sampurna yavat anuttara kevalajnyana – kevaladarshana utpanna hua, usa dina bhavana – pati, vanavyantara, jyotishka evam vimanavasi deva aura deviyom ke ane – jane se eka mahana divya devodyota hua, devom ka mela – sa laga gaya, devom ka kala – kala nada hone laga, vaham ka sara akashamamdala halachala se vyapta ho gaya. Tadanantara anuttara jnyana – darshana ke dharaka shramana bhagavana mahavira ne kevalajnyana dvara apani atma aura loka ko samyak prakara se janakara pahale devom ko, tatpashchat manushyom ko dharmopadesha diya. Tatpashchat kevalajnyana – kevaladarshana ke dharaka shramana bhagavana mahavira ne gautama adi shramana – nirgranthom ko bhavana sahita pamcha – mahavratom aura shadjivanikayom ke svarupa ka vyakhyana kiya. Samanya – vishesha rupa se prarupana kiya. |