Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )

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Sr No : 1000480
Scripture Name( English ): Acharang Translated Scripture Name : आचारांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

Section : उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Translated Section : उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि
Sutra Number : 480 Category : Ang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भगिनि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नतरं वत्थं? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–दोच्चा पडिमा। अहावरा तच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा–अंतरिज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा –तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–तच्चा पडिमा। अहावरा चउत्था पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय-धम्मियं वत्थं जाएज्जा, ज चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा नावकंखंति, तहप्पगारं उज्झिय-धम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एस-णिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–चउत्था पडिमा। इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अन्नयरं पडिमं पडिवज्जमाणे नो एवं वएज्जा–मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने। जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया, अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति। सिया णं एयाए एसणाए एसमाणं परो वएज्जा–आउसंतो! समणा! एज्जाहि तुमं मासेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा, तो ते वयं आउसो! अन्नयरं वत्थं दाहामो। एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि। से सेवं परो वएज्जा–आउसंतो! समणा! अनुगच्छाहि, तो ते वयं अन्नतरं वत्थं दाहामो। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुनेत्तए, अभिकंखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि। से सेवं परो नेत्ता वदेज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो। अवियाइं वयं पच्छावि अप्पनो सयट्ठाए पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स वत्थं चेइस्सामो। एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। सिया णं परो नेत्ता वएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा आहरेयं वत्थं–सिनाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो।’ एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिनाणेण वा जाव आघंसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि।’ से सेवं वयंतस्स परो सिनाणेण वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से णं परो नेत्ता वएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा आहरेयं वत्थं–सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा, पधोवेत्ता वा समणस्स णं दासामो।’ एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहिं वा पधोवेहिं वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि।’ से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोवेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से णं परो नेत्ता वएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा आहरेयं वत्थं–कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।’ एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा– ‘आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसो-हेहि, नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए।’ से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मण्ण-माणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। सिया से परो नेत्ता वत्थं निसिरेज्जा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोअंतेणं पडिलेहिस्सामि। केवली बूया आयाणमेयं– ‘वत्थंतेण उ’ बद्धे सिया कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, हिरण्णे वा, सुवण्णे वा, कडगाणि वा, तुडयाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कनगावली वा रयनावली वा, पाणे वा, बीए वा, हरिए वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं पुव्वामेव वत्थं अंतोअंतेण पडिलेहिज्जा।
Sutra Meaning : इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण करे। दूसरी प्रतिमा – वह साधु या साध्वी वस्त्र को पहले देखकर गृह – स्वामी यावत्‌ नौकरानी आदि से उसकी याचना करे। आयुष्मन्‌ गृहस्थ भाई ! अथवा बहन ! क्या तुम इन वस्त्रों में से किसी एक वस्त्र को मुझे दोगे/दोगी ? इस प्रकार साधु या साध्वी पहले स्वयं वस्त्र की याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो प्रासुक एवं एषणीय होने पर ग्रहण करे। तीसरी प्रतिमा – साधु या साध्वी वस्त्र के सम्बन्ध में जाने, जैसे कि – अन्दर पहनने के योग्य या ऊपर पहनने के योग्य। तदनन्तर इस प्रकार के वस्त्र की याचना करे या गृहस्थ उसे दे तो उस वस्त्र को प्रासुक एवं एषणीय होने पर मिलने पर ग्रहण करे। चौथी प्रतिमा – वह साधु या साध्वी उज्झितधार्मिक वस्त्र की याचना करे। जिस वस्त्र को बहुत से अन्य शाक्यादि भिक्षु यावत्‌ भिखारी लोग भी लेना न चाहें, ऐसे वस्त्र की याचना करे अथवा वह गृहस्थ स्वयं ही साधु को दे तो उस वस्तु को प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण कर ले। इन चारों प्रतिमाओं के विषय में जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन किया गया है, वैसे ही यहाँ समझ लेना चाहिए। कदाचित्‌ इन (पूर्वोक्त) वस्त्र – एषणाओं से वस्त्र की गवेषणा करने वाले साधु को कोई गृहस्थ कहे कि – आयुष्मन्‌ श्रमण ! तुम इस समय जाओ, एक मास, या दस या पाँच रात के बाद अथवा कल या परसों आना, तब हम तुम्हें एक वस्त्र देंगे। ऐसा सूनकर हृदय में धारण करके वह साधु विचार कर पहले ही कह दे मेरे लिए इस प्रकार का संकेतपूर्वक वचन स्वीकार करना कल्पनीय नहीं है। अगर मुझे वस्त्र देना चाहते हो तो दे दो। उस साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि वह गृहस्थ यों कहे कि – आयुष्मन्‌ श्रमण ! अभी तुम जाओ। थोड़ी देर बाद आना, हम तुम्हें एक वस्त्र दे देंगे। इस पर वह पहले मन में विचार करके उस गृहस्थ से कहे मेरे लिए इस प्रकार से संकेतपूर्वक वचन स्वीकार करना कल्पनीय नहीं है। अगर मुझे देना चाहते हो तो इसी समय दे दो। साधु के इस प्रकार कहने पर यदि वह गृहस्थ घर के किसी सदस्य को यों कहे कि ‘वह वस्त्र लाओ, हम उसे श्रमण को देंगे। हम तो अपने निजी प्रयोजन के लिए बाद में भी समारम्भ करके और उद्देश्य करके यावत्‌ और वस्त्र बनवा लेंगे। ऐसा सूनकर विचार करके उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। कदाचित्‌ गृहस्वामी घर के किसी व्यक्ति से यों कहे कि ‘‘वह वस्त्र लाओ, तो हम उसे स्नानीय पदार्थ से, चन्दन आदि उद्वर्तन द्रव्य से, लोघ्र से, वर्ण से, चूर्ण से या पद्म आदि सुगन्धित पदार्थों से, एक बार या बार – बार घिसकर श्रमण को देंगे। ऐसा सूनकर एवं उस पर विचार करके वह साधु पहले से ही कह दे – तुम इस वस्त्र को स्नानीय पदार्थों से यावत्‌ पद्म आदि सुगन्धित द्रव्यों से आघर्षण या प्रघर्षण मत करो। यदि मुझे वह वस्त्र देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो। साधु के द्वारा इस प्रकार कहने पर भी वह गृहस्थ स्नानीय सुगन्धित द्रव्यों से एक बार या बार – बार घिसकर उस वस्त्र को देने लगे तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर भी ग्रहण न करे। कदाचित्‌ गृहपति घर के किसी सदस्य से कहे कि ‘‘उस वस्त्र को लाओ, हम उसे प्रासुक शीतल जल से या प्रासुक उष्ण जल से एक बार या कईं बार धोकर श्रमण को देंगे।’’ इस प्रकार की बात सूनकर एवं उस पर विचार करके वह पहले ही दाता से कह दे – ‘‘इस वस्त्र को तुम प्रासुक शीतल जल से या प्रासुक उष्ण जल से एक बार या कईं बार मत धोओ। यदि मुझे इसे देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो। इस प्रकार कहने पर भी यदि वह गृहस्थ उस वस्त्र को ठण्डे या गर्म जल से एक बार या कईं बार धोकर साधु को देने लगे तो वह उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। यदि वह गृहस्थ अपने घर के किसी व्यक्ति से यों कहे कि ‘‘उस वस्त्र को लाओ, हम उसमें से कन्द यावत्‌ हरी नीकालकर साधु को देंगे।’’ इस प्रकार की बात सूनकर, उस पर विचार करके वह पहले ही दाता से कह दे – ‘‘इस वस्त्र में से कन्द यावत्‌ हरी मत नीकालो, मेरे लिए इस प्रकार का वस्त्र ग्रहण करना कल्पनीय नहीं है।’’ साधु के द्वारा इस प्रकार कहने पर भी वह गृहस्थ कन्द यावत्‌ हरी वस्तु को नीकाल कर देने लगे तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय समझकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। कदाचित्‌ वह गृहस्वामी वस्त्र को दे, तो वह पहले ही विचार करके उससे कहे – तुम्हारे ही इस वस्त्र को मैं अन्दर – बाहर चारों ओर से भलीभाँति देखूँगा, क्योंकि केवली भगवान कहते हैं – वस्त्र को प्रतिलेखना किये बिना लेना कर्मबन्धन का कारण है। कदाचित्‌ उस वस्त्र के सिरे पर कुछ बँधा हो, कोई कुण्डल बँधा हो, या धागा, चाँदी, सोना, मणिरत्न, यावत्‌ रत्नों की माला बँधी हो, या कोई प्राणी, बीज या हरी वनस्पति बँधी हो। इसीलिए तीर्थंकर आदि आप्तपुरुषों ने पहले से ही इस प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि साधु वस्त्रग्रहण से पहले ही उस वस्त्र की अन्दर – बाहर चारों ओर से प्रतिलेखना करे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ichcheyaim ayatanaim uvaikamma, aha bhikkhu janejja chauhim padimahim vattham esittae. Tattha khalu ima padima–se bhikkhu va bhikkhuni va uddisiya-uddisiya vattham jaejja, tam jaha–jamgiyam va, bhamgiyam va, sanayam va, pottayam va, khomiyam va, tulakadam va–tahappagaram vattham sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejjapadhama padima. Ahavara dochcha padima–se bhikkhu va bhikkhuni va pehae vattham jaejja, tam jaha–gahavaim va, gahavai-bhariyam va, gahavai-bhaginim va, gahavai-puttam va, gahavai-dhuyam va, sunham va, dhaim va, dasam va, dasim va, kammakaram va, kammakarim va. Se puvvameva aloejja–auso! Tti va bhagini! Tti va dahisi me etto annataram vattham? Tahappagaram vattham sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–dochcha padima. Ahavara tachcha padima–se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna vattham janejja, tam jaha–amtarijjagam va uttarijjagam va –tahappagaram vattham sayam va nam jaejja paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–tachcha padima. Ahavara chauttha padima–se bhikkhu va bhikkhuni va ujjhiya-dhammiyam vattham jaejja, ja channe bahave samana-mahana-atihi-kivana-vanimaga navakamkhamti, tahappagaram ujjhiya-dhammiyam vattham sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esa-nijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–chauttha padima. Ichcheyanam chaunham padimanam annayaram padimam padivajjamane no evam vaejja–michchha padivanna khalu ete bhayamtaro, ahamege sammam padivanne. Je ete bhayamtaro eyao padimao padivajjittanam viharamti, jo ya ahamamsi eyam padimam padivajjittanam viharami, savve ve te u jinanae uvatthiya, annonnasamahie evam cha nam viharamti. Siya nam eyae esanae esamanam paro vaejja–ausamto! Samana! Ejjahi tumam masena va, dasaraena va, pamcharaena va, sue va, suyatare va, to te vayam auso! Annayaram vattham dahamo. Eyappagaram nigghosam sochcha nisamma se puvvameva aloejja–auso! Tti va bhaini! Tti va no khalu me kappai eyappagare samgara-vayane padisunittae, abhikamkhasi me daum? Iyanimeva dalayahi. Se sevam paro vaejja–ausamto! Samana! Anugachchhahi, to te vayam annataram vattham dahamo. Se puvvameva aloejja–auso! Tti va bhaini! Tti va no khalu me kappai eyappagare samgara-vayane padisunettae, abhikamkhasi me daum? Iyanimeva dalayahi. Se sevam paro netta vadejja–auso! Tti va bhaini! Tti va ahareyam vattham samanassa dahamo. Aviyaim vayam pachchhavi appano sayatthae panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samuddissa vattham cheissamo. Eyappagaram nigghosam sochcha nisamma tahappagaram vattham–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Siya nam paro netta vaejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ahareyam vattham–sinanena va, kakkena va, loddhena va, vannena va, chunnena va, paumena va aghamsitta va, paghamsitta va samanassa nam dasamo.’ eyappagaram nigghosam sochcha nisamma se puvvameva aloejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ma eyam tumam vattham sinanena va java aghamsahi va paghamsahi va, abhikamkhasi me daum? Emeva dalayahi.’ Se sevam vayamtassa paro sinanena va java aghamsitta va paghamsitta va dalaejja, tahappagaram vattham–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se nam paro netta vaejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ahareyam vattham–siodaga-viyadena va, usinodaga-viyadena va uchchholetta va, padhovetta va samanassa nam dasamo.’ eyappagaram nigghosam sochcha nisamma se puvvameva aloejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ma eyam tumam vattham siodaga-viyadena va, usinodaga-viyadena va uchchholehim va padhovehim va, abhikamkhasi me daum? Emeva dalayahi.’ Se sevam vayamtassa paro siodaga-viyadena va, usinodaga-viyadena va uchchholetta va padhovetta va dalaejja, tahappagaram vattham–aphasuyam anesanijjam ti mannamane labhe samte no padigahejja. Se nam paro netta vaejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ahareyam vattham–kamdani va, mulani va, [tayani va?], pattani va, pupphani va, phalani va, biyani va, hariyani va visohitta samanassa nam dasamo.’ eyappagaram nigghosam sochcha nisamma se puvvameva aloejja– ‘auso! Tti va bhaini! Tti va ma eyani tumam kamdani va java hariyani va viso-hehi, no khalu me kappai eyappagare vatthe padigahittae.’ Se sevam vayamtassa paro kamdani va java hariyani va visohitta dalaejja, tahappagaram vattham–aphasuyam anesanijjam ti manna-mane labhe samte no padigahejja. Siya se paro netta vattham nisirejja. Se puvvameva aloejja–auso! Tti va bhaini! Tti va tumam cheva nam samtiyam vattham amtoamtenam padilehissami. Kevali buya ayanameyam– ‘vatthamtena u’ baddhe siya kumdale va, gune va, mani va, mottie va, hiranne va, suvanne va, kadagani va, tudayani va, tisaragani va, palambani va, hare va, addhahare va, egavali va, muttavali va, kanagavali va rayanavali va, pane va, bie va, harie va. Aha bhikkhunam puvvovadittha esa painna, esa heu, esa karanam, esa uvaeso, jam puvvameva vattham amtoamtena padilehijja.
Sutra Meaning Transliteration : Ina doshom ke ayatanom ko chhorakara chara pratimaom se vastraishana karani chahie. Pahali pratima – vaha sadhu ya sadhvi mana mem pahale samkalpa kiye hue vastra ki yachana kare, jaise ki – jamgamika, bhamgika, sanaja, potraka, kshaumika ya tulanirmita vastra, usa prakara ke vastra ki svayam yachana kare athava grihastha svayam de to prasuka aura eshaniya hone para grahana kare. Dusari pratima – vaha sadhu ya sadhvi vastra ko pahale dekhakara griha – svami yavat naukarani adi se usaki yachana kare. Ayushman grihastha bhai ! Athava bahana ! Kya tuma ina vastrom mem se kisi eka vastra ko mujhe doge/dogi\? Isa prakara sadhu ya sadhvi pahale svayam vastra ki yachana kare athava vaha grihastha de to prasuka evam eshaniya hone para grahana kare. Tisari pratima – sadhu ya sadhvi vastra ke sambandha mem jane, jaise ki – andara pahanane ke yogya ya upara pahanane ke yogya. Tadanantara isa prakara ke vastra ki yachana kare ya grihastha use de to usa vastra ko prasuka evam eshaniya hone para milane para grahana kare. Chauthi pratima – vaha sadhu ya sadhvi ujjhitadharmika vastra ki yachana kare. Jisa vastra ko bahuta se anya shakyadi bhikshu yavat bhikhari loga bhi lena na chahem, aise vastra ki yachana kare athava vaha grihastha svayam hi sadhu ko de to usa vastu ko prasuka aura eshaniya janakara grahana kara le. Ina charom pratimaom ke vishaya mem jaise pindaishana adhyayana mem varnana kiya gaya hai, vaise hi yaham samajha lena chahie. Kadachit ina (purvokta) vastra – eshanaom se vastra ki gaveshana karane vale sadhu ko koi grihastha kahe ki – ayushman shramana ! Tuma isa samaya jao, eka masa, ya dasa ya pamcha rata ke bada athava kala ya parasom ana, taba hama tumhem eka vastra demge. Aisa sunakara hridaya mem dharana karake vaha sadhu vichara kara pahale hi kaha de mere lie isa prakara ka samketapurvaka vachana svikara karana kalpaniya nahim hai. Agara mujhe vastra dena chahate ho to de do. Usa sadhu ke isa prakara kahane para bhi yadi vaha grihastha yom kahe ki – ayushman shramana ! Abhi tuma jao. Thori dera bada ana, hama tumhem eka vastra de demge. Isa para vaha pahale mana mem vichara karake usa grihastha se kahe mere lie isa prakara se samketapurvaka vachana svikara karana kalpaniya nahim hai. Agara mujhe dena chahate ho to isi samaya de do. Sadhu ke isa prakara kahane para yadi vaha grihastha ghara ke kisi sadasya ko yom kahe ki ‘vaha vastra lao, hama use shramana ko demge. Hama to apane niji prayojana ke lie bada mem bhi samarambha karake aura uddeshya karake yavat aura vastra banava lemge. Aisa sunakara vichara karake usa prakara ke vastra ko aprasuka evam anaishaniya janakara grahana na kare. Kadachit grihasvami ghara ke kisi vyakti se yom kahe ki ‘‘vaha vastra lao, to hama use snaniya padartha se, chandana adi udvartana dravya se, loghra se, varna se, churna se ya padma adi sugandhita padarthom se, eka bara ya bara – bara ghisakara shramana ko demge. Aisa sunakara evam usa para vichara karake vaha sadhu pahale se hi kaha de – tuma isa vastra ko snaniya padarthom se yavat padma adi sugandhita dravyom se agharshana ya pragharshana mata karo. Yadi mujhe vaha vastra dena chahate ho to aise hi de do. Sadhu ke dvara isa prakara kahane para bhi vaha grihastha snaniya sugandhita dravyom se eka bara ya bara – bara ghisakara usa vastra ko dene lage to usa prakara ke vastra ko aprasuka evam anaishaniya janakara bhi grahana na kare. Kadachit grihapati ghara ke kisi sadasya se kahe ki ‘‘usa vastra ko lao, hama use prasuka shitala jala se ya prasuka ushna jala se eka bara ya kaim bara dhokara shramana ko demge.’’ isa prakara ki bata sunakara evam usa para vichara karake vaha pahale hi data se kaha de – ‘‘isa vastra ko tuma prasuka shitala jala se ya prasuka ushna jala se eka bara ya kaim bara mata dhoo. Yadi mujhe ise dena chahate ho to aise hi de do. Isa prakara kahane para bhi yadi vaha grihastha usa vastra ko thande ya garma jala se eka bara ya kaim bara dhokara sadhu ko dene lage to vaha usa prakara ke vastra ko aprasuka evam anaishaniya janakara milane para bhi grahana na kare. Yadi vaha grihastha apane ghara ke kisi vyakti se yom kahe ki ‘‘usa vastra ko lao, hama usamem se kanda yavat hari nikalakara sadhu ko demge.’’ isa prakara ki bata sunakara, usa para vichara karake vaha pahale hi data se kaha de – ‘‘isa vastra mem se kanda yavat hari mata nikalo, mere lie isa prakara ka vastra grahana karana kalpaniya nahim hai.’’ sadhu ke dvara isa prakara kahane para bhi vaha grihastha kanda yavat hari vastu ko nikala kara dene lage to usa prakara ke vastra ko aprasuka evam anaishaniya samajhakara prapta hone para bhi grahana na kare. Kadachit vaha grihasvami vastra ko de, to vaha pahale hi vichara karake usase kahe – tumhare hi isa vastra ko maim andara – bahara charom ora se bhalibhamti dekhumga, kyomki kevali bhagavana kahate haim – vastra ko pratilekhana kiye bina lena karmabandhana ka karana hai. Kadachit usa vastra ke sire para kuchha bamdha ho, koi kundala bamdha ho, ya dhaga, chamdi, sona, maniratna, yavat ratnom ki mala bamdhi ho, ya koi prani, bija ya hari vanaspati bamdhi ho. Isilie tirthamkara adi aptapurushom ne pahale se hi isa pratijnya, hetu, karana aura upadesha ka nirdesha kiya hai ki sadhu vastragrahana se pahale hi usa vastra ki andara – bahara charom ora se pratilekhana kare.