Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000459 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 459 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय-छिंदिय, विकुज्जिय-विकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय-वहाए गच्छेज्जा। ‘जहेयं’ पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु’। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा। सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा रुक्खाणि वा, गुच्छाणि वा, गुम्माणि वा, लयाओ वा, वल्लीओ वा, तणाणि वा गहणाणि वा, हरियाणि वा, अवलंबिय-अवलंबिय उत्तरेज्जा, जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति, ते पाणी जाएज्जा, तओ संजयामेव अवलंबिय-अवलंबिय उत्तरेज्जा, तओ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा, सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा, से णं वा विरूवरूवं सन्निविट्ठ पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। से णं परो सेनागओ वएज्जा–आउसंतो! एस णं समणे सेणाए अभिणिचारियं करेइ। से णं बाहाए गहाय आगसह। से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा। तं नो सुमणे सिया, नो दुम्मणे सिया, नो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, नो तेसिं बालाण घाताए वहाए समुट्ठेज्जा। अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी गीली मिट्टी एवं कीचड़ से भरे हुए अपने पैरों से हरितकाय का बार – बार छेदन करके तथा हरे पत्तों को मोड़ – मोड़ कर या दबा कर एवं उन्हें चीर – चीर कर मसलता हुआ मिट्टी न उतारे और न हरितकाय की हिंसा करने के लिए उन्मार्ग में इस अभिप्राय से जाए कि ‘पैरों पर लगी हुई इस कीचड़ और गीली मिट्टी को यह हरियाली अपने आप हटा देगी’, ऐसा करने वाला साधु मायास्थान का स्पर्श करता है। साधु को इस प्रकार नहीं करना चाहिए। वह पहले ही हरियाली से रहित मार्ग का प्रतिलेखन करे, और तब उसी मार्ग से यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरे। ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी के मार्ग में यदि टेकरे हों, खाइयाँ, या नगर के चारों ओर नहरें हों, किले हों, या नगर के मुख्य द्वार हों, अर्गलाएं हों, आगल दिये जाने वाले स्थान हों, गड्ढे हों, गुफाएं हों या भूगर्भ – मार्ग हों तो अन्य मार्ग के होने पर उसी अन्य मार्ग से यतनापूर्वक गमन करे, लेकिन ऐसे सीधे मार्ग से गमन न करे। केवली भगवान कहते हैं – यह मार्ग कर्मबन्ध का कारण है। ऐसे विषम मार्ग से जाने से साधु – साध्वी का पै आदि फिसल सकता है, वह गिर सकता है। शरीर के किसी अंग – उपांग को चोट लग सकती है, त्रसजीव की भी विराधना हो सकती है, सचित्त वृक्ष आदि का अवलम्बन ले तो भी अनुचित है। वहाँ जो भी वृक्ष, गुच्छ, झाड़ियाँ, लताएं, बेलें, तृण अथवा गहन आदि हो, उन हरितकाय का सहारा ले लेकर चले या ऊतरे अथवा वहाँ जो पथिक आ रहे हों, उनका हाथ माँगे। उनके हाथ का सहारा मिलने पर उसे पकड़ कर यतनापूर्वक चले या ऊतरे। इस प्रकार साधु या साध्वी को संयमपूर्वक ही ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार कर रहे हों, मार्ग में यदि जौ, गेहूँ आदि धान्यों के ढेर हों, बैलगाड़ियाँ या रथ पड़े हों, स्वदेश – शासक या परदेश – शासक की सेना के नाना प्रकार के पड़ाव पड़े हों, तो उन्हें देखकर यदि कोई दूसरा मार्ग हो तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए, किन्तु उस सीधे, (किन्तु दोषापत्तियुक्त) मार्ग से न जाए। उसे देखकर कोई सैनिक किसी दूसरे सैनिक से कहे – ‘‘आयुष्मन् ! यह श्रमण हमारी सेना का गुप्त भेद ले रहा है, अतः इसकी बाँहें पकड़ कर खींचो। उसे घसीटो।’’ इस पर वह सैनिक साधु को बाँहें पकड़ कर खींचने या घसीटने लगे, उस समय साधु को अपने मन में न हर्षित होना चाहिए, न रुष्ट; बल्कि उसे समभाव एवं समाधिपूर्वक सह लेना चाहिए। इस प्रकार उसे यतनापूर्वक एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते रहना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va gamanugamam duijjamane no mattiyamaehim paehim hariyani chhimdiya-chhimdiya, vikujjiya-vikujjiya, viphaliya-viphaliya, ummaggenam hariya-vahae gachchhejja. ‘jaheyam’ paehim mattiyam khippameva hariyani avaharamtu’. Maitthanam samphase, no evam karejja. Se puvvameva appahariyam maggam padilehejja, tao samjayameva gamanugamam duijjejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va gamanugamam duijjamane amtara se vappani va, phalihani va, pagarani va, toranani va, aggalani va, aggala-pasagani va, gaddao va, dario va. Sai parakkame samjayameva parakkamejja, no ujjuyam gachchhejja. Kevali buya ayanameyam se tattha parakkamamane payalejja va pavadejja va. Se tattha payalamane va pavadamane va rukkhani va, guchchhani va, gummani va, layao va, vallio va, tanani va gahanani va, hariyani va, avalambiya-avalambiya uttarejja, je tattha padipahiya uvagachchhamti, te pani jaejja, tao samjayameva avalambiya-avalambiya uttarejja, tao gamanugamam duijjejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va gamanugamam duijjamane amtara se javasani va, sagadani va, rahani va, sachakkani va, parachakkani va, se nam va viruvaruvam sannivittha pehae, sai parakkame samjayameva parakkamejja, no ujjuyam gachchhejja. Se nam paro senagao vaejja–ausamto! Esa nam samane senae abhinichariyam karei. Se nam bahae gahaya agasaha. Se nam paro bahahim gahaya agasejja. Tam no sumane siya, no dummane siya, no uchchavayam manam niyachchhejja, no tesim balana ghatae vahae samutthejja. Appussue abahilesse egamtagaenam appanam viyosejja samahie, tao samjayameva gamanugamam duijjejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Gramanugrama vicharana karate hue sadhu ya sadhvi gili mitti evam kichara se bhare hue apane pairom se haritakaya ka bara – bara chhedana karake tatha hare pattom ko mora – mora kara ya daba kara evam unhem chira – chira kara masalata hua mitti na utare aura na haritakaya ki himsa karane ke lie unmarga mem isa abhipraya se jae ki ‘pairom para lagi hui isa kichara aura gili mitti ko yaha hariyali apane apa hata degi’, aisa karane vala sadhu mayasthana ka sparsha karata hai. Sadhu ko isa prakara nahim karana chahie. Vaha pahale hi hariyali se rahita marga ka pratilekhana kare, aura taba usi marga se yatanapurvaka gramanugrama vichare. Gramanugrama vihara karate hue sadhu ya sadhvi ke marga mem yadi tekare hom, khaiyam, ya nagara ke charom ora naharem hom, kile hom, ya nagara ke mukhya dvara hom, argalaem hom, agala diye jane vale sthana hom, gaddhe hom, guphaem hom ya bhugarbha – marga hom to anya marga ke hone para usi anya marga se yatanapurvaka gamana kare, lekina aise sidhe marga se gamana na kare. Kevali bhagavana kahate haim – yaha marga karmabandha ka karana hai. Aise vishama marga se jane se sadhu – sadhvi ka pai adi phisala sakata hai, vaha gira sakata hai. Sharira ke kisi amga – upamga ko chota laga sakati hai, trasajiva ki bhi viradhana ho sakati hai, sachitta vriksha adi ka avalambana le to bhi anuchita hai. Vaham jo bhi vriksha, guchchha, jhariyam, lataem, belem, trina athava gahana adi ho, una haritakaya ka sahara le lekara chale ya utare athava vaham jo pathika a rahe hom, unaka hatha mamge. Unake hatha ka sahara milane para use pakara kara yatanapurvaka chale ya utare. Isa prakara sadhu ya sadhvi ko samyamapurvaka hi gramanugrama vihara karana chahie. Sadhu ya sadhvi gramanugrama vihara kara rahe hom, marga mem yadi jau, gehum adi dhanyom ke dhera hom, bailagariyam ya ratha pare hom, svadesha – shasaka ya paradesha – shasaka ki sena ke nana prakara ke parava pare hom, to unhem dekhakara yadi koi dusara marga ho to usi marga se yatanapurvaka jae, kintu usa sidhe, (kintu doshapattiyukta) marga se na jae. Use dekhakara koi sainika kisi dusare sainika se kahe – ‘‘ayushman ! Yaha shramana hamari sena ka gupta bheda le raha hai, atah isaki bamhem pakara kara khimcho. Use ghasito.’’ isa para vaha sainika sadhu ko bamhem pakara kara khimchane ya ghasitane lage, usa samaya sadhu ko apane mana mem na harshita hona chahie, na rushta; balki use samabhava evam samadhipurvaka saha lena chahie. Isa prakara use yatanapurvaka eka grama se dusare grama vicharana karate rahana chahie. |