Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000449 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 449 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्सुगाय-तणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरि-भोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेवं–ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ‘अच्छिंदेज्ज वा’, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णोतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि दस्सुगायतणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्ण-वणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिले तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्मबोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागने वाले, कुसमय में खाने – पीने वाले मनुष्यों के स्थान मिले तो अन्य ग्राम आदि में विहार हो सकता है या अन्य आर्यजनपद विद्यमान हो, तो प्रासुक – भोजी साधु उन म्लेच्छादि के स्थान में विहार करने की दृष्टि से जाने का मन में संकल्प न करे। केवली भगवान कहते हैं – वहाँ जाना कर्मबन्ध का कारण है, क्योंकि वे म्लेच्छ अज्ञानी लोग साधु को देखकर – ‘यह चोर है, यह हमारे शत्रु के गाँव से आया है’, यों कहकर वे उस भिक्षु को गाली – गलौच करेंगे, कोसेंगे, रस्सों से बाँधेंगे, कोठरी में बंद कर देंगे, डंडों से पीटेंगे, अंगभंग करेंगे, हैरान करेंगे, यहाँ तक कि प्राणों से रहित भी कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त वे दुष्ट उसके वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद – प्रोंछन आदि उपकरणों को तोड़ – फोड़ डालेंगे, अपहरण कर लेंगे या उन्हें कहीं दूर फेंक देंगे। इसीलिए तीर्थंकर आदि आप्त पुरुषों द्वारा भिक्षुओं के लिए पहले से ही निर्दिष्ट यह प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश है कि भिक्षु उन सीमा – प्रदेशवर्ती दस्युस्थानों तथा म्लेच्छ, अनार्य, दुर्बोध्य आदि लोगों के स्थानों में, अन्य आर्य जनपदों तथा आर्य ग्रामों के होते हुए जाने का संकल्प भी न करे। अतः इन स्थानों को छोड़कर संयमी साधु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va gamanugamam duijjamane amtara se viruvaruvani pachchamtikani dassugaya-tanani milakkhuni anariyani dussannappani duppannavanijjani akalapadibohini akalapari-bhoini, sati ladhe viharae, samtharamanehim janavaehim, no vihara-vattiyae pavajjejja gamanae. Kevali buya ayanamevam–te nam bala ‘ayam tene’ ‘ayam uvacharae’ ‘ayam tao agae’ tti kattu tam bhikkhum akkosejja va, bamdhejja va, rumbhejja va, uddavejja va. Vattham padiggaham kambalam payapumchhanam ‘achchhimdejja va’, avaharejja va, paribhavejja va. Aha bhikkhunam puvvovadittha esa painna, esa heu, esa karanam, esa uvaeso, jam notahappagarani viruvaruvani pachchamtiyani dassugayatanani milakkhuni anariyani dussannappani duppanna-vanijjani akalapadibohini akalaparibhoini, sati ladhe viharae, samtharamanehim janavaehim, vihara-vattiyae pavajjejja gamanae, tao samjayameva gamanugamam duijjejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Gramanugrama vicharana karate hue sadhu ya sadhvi ko marga mem vibhinna deshom ki sima para rahane vale dasyuom ke, mlechchhom ke ya anaryom ke sthana mile tatha jinhem bari kathinata se aryom ka achara samajhaya ja sakata hai, jinhem duhkha se, dharmabodha dekara anaryakarmom se hataya ja sakata hai, aise akala mem jagane vale, kusamaya mem khane – pine vale manushyom ke sthana mile to anya grama adi mem vihara ho sakata hai ya anya aryajanapada vidyamana ho, to prasuka – bhoji sadhu una mlechchhadi ke sthana mem vihara karane ki drishti se jane ka mana mem samkalpa na kare. Kevali bhagavana kahate haim – vaham jana karmabandha ka karana hai, kyomki ve mlechchha ajnyani loga sadhu ko dekhakara – ‘yaha chora hai, yaha hamare shatru ke gamva se aya hai’, yom kahakara ve usa bhikshu ko gali – galaucha karemge, kosemge, rassom se bamdhemge, kothari mem bamda kara demge, damdom se pitemge, amgabhamga karemge, hairana karemge, yaham taka ki pranom se rahita bhi kara sakate haim, isake atirikta ve dushta usake vastra, patra, kambala, pada – promchhana adi upakaranom ko tora – phora dalemge, apaharana kara lemge ya unhem kahim dura phemka demge. Isilie tirthamkara adi apta purushom dvara bhikshuom ke lie pahale se hi nirdishta yaha pratijnya, hetu, karana aura upadesha hai ki bhikshu una sima – pradeshavarti dasyusthanom tatha mlechchha, anarya, durbodhya adi logom ke sthanom mem, anya arya janapadom tatha arya gramom ke hote hue jane ka samkalpa bhi na kare. Atah ina sthanom ko chhorakara samyami sadhu yatanapurvaka gramanugrama vihara kare. |