Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Sr No : | 1000398 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 398 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं। तहप्पगारे उवस्सए नो ‘ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा’। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं। तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समु-द्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अनासेविते वा नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपरिसंतरकडे वा, अत्त-ट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अनासेविते वा नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए एगं साहम्मिणिं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समु-द्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अनासेविते वा नो ठाणं वा सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्त-ट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा आसेविते वा अनासेविते वा नो ठाणं वा, सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तह-प्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविए वा अनासेविए वा नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तहप्पगारे उवस्सए अपु-रिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अनासेविए नो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडे, अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अस्संजए भिक्खु-पडियाए कडिए वा, उक्कंबिए वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घट्ठे वा, मट्ठे वा, संमट्ठे वा, संपधूमिए वा। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अनासेविए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडे, अत्तट्ठिए परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत् राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान, शय्या और निषीधिका न करे। वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों यावत् मकड़ी के जाले आदि से रहित जाने; वैसे उपाश्रय का यतनापूर्वक प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके उसमें कार्योत्सर्ग, संस्तारक एवं स्वाध्याय करे। यदि साधु ऐसा उपाश्रय जाने, जो कि इसी प्रतिज्ञा से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ करके बनाया गया है, उसीके उद्देश्य से खरीदा गया है, उधार लिया गया है, निर्बल से छीना गया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना लिया गया है, तो ऐसा उपाश्रय; चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत यावत् स्वामी द्वारा आसेवित हो या अनासेवित, उसमें कायोत्सर्ग, शय्या – संस्तारक या स्वाध्याय न करे। वैसे ही बहुत – से साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी, बहुत – सी साधर्मिणी साध्वीयों के उद्देश्य से बनाये हुए आदि उपाश्रय में कायोत्स – र्गादि का निषेध समझना चाहिए। वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो बहुत – से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखारियों के उद्देश्य से प्राणी आदि का समारम्भ करके बनाया गया है, वह अपुरुषान्तरकृत आदि हो, तो ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्ग आदि न करे। वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने; जो कि बहुत – से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखमंगों के खास उद्देश्य से बनाया तथा खरीदा आदि गया है, ऐसा उपाश्रय अपुरुषान्तरकृत आदि हो, अनासेवित हो तो, ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्गादि न करे। इसके विपरीत यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो श्रमणादि को गिन – गिन कर या उनके उद्देश्य से बनाया आदि गया हो, किन्तु वह पुरुषान्तरकृत है, उसके मालिक द्वारा अधिकृत है, परिभुक्त तथा आसेवित है तो उसका प्रति – लेखन तथा प्रमार्जन करके उसमें यतनापूर्वक कायोत्सर्ग, शय्या या स्वाध्याय करे। वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसा उपाश्रय जाने कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के निमित्त बनाया है, काष्ठादि लगा कर संस्कृत किया है, बाँस आदि से बाँधा है, घास आदि से आच्छादित किया है, गोबर आदि से लीपा है, संवारा है, घिसा है, चिकना किया है, या ऊबड़खाबड़ स्थान को समतल बनाया है, सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया है, ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उनमें कायोत्सर्ग, शय्यासंस्तारक और स्वाध्याय न करे। यदि वह यह जान जाए कि ऐसा उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित है तो प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक उसमें स्थान आदि क्रिया करे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va abhikamkhejja uvassayam esittae, anupavisitta gamam va, nagaram va, khedam va, kabbadam va, madambam va, pattanam va, donamuham va, agaram va, nigamam va, asamam va, sannivesam va, rayahanim va, sejjam puna uvassayam janejja–saamdam sapanam sabiyam sahariyam sausam saudayam sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanayam. Tahappagare uvassae no ‘thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja’. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uvassayam janejja–appamdam appapanam appabiyam appahariyam apposam appudayam apputtimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanagam. Tahappagare uvassae padilehitta pamajjitta tao samjayameva thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Sejjam puna uvassayam janejja–assimpadiyae egam sahammiyam samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samu-ddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheteti. Tahappagare uvassae purisamtarakade va apurisamtarakade va, attatthie va anattatthie va, paribhutte va aparibhutte va, asevite va anasevite va no thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Sejjam puna uvassayam janejja–assimpadiyae bahave sahammiya samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samuddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheteti. Tahappagare uvassae purisamtarakade va aparisamtarakade va, atta-tthie va anattatthie va, paribhutte va aparibhutte va, asevite va anasevite va no thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Sejjam puna uvassayam janejja–assimpadiyae egam sahamminim samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samu-ddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheteti. Tahappagare uvassae purisamtarakade va apurisamtarakade va, attatthie va anattatthie va, paribhutte va aparibhutte va, asevite va anasevite va no thanam va sejjam va, nisihiyam va chetejja. Sejjam puna uvassayam janejja–assimpadiyae bahave sahamminio samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samuddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheteti. Tahappagare uvassae purisamtarakade va apurisamtarakade va, atta-tthie va anattatthie va, paribhutte va aparibhutte va asevite va anasevite va no thanam va, sejjam va nisihiyam va chetejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uvassayam janejja–bahave samana-mahana-atihi-kivana-vanimae paganiya-paganiya samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samuddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheei. Taha-ppagare uvassae purisamtarakade va apurisamtarakade va, attatthie va anattatthie va, paribhutte va aparibhutte va, asevie va anasevie va no thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uvassayam janejja–bahave samana-mahana-atihi-kivana-vanimae samuddissa panaim bhuyaim jivaim sattaim samarabbha samuddissa kiyam pamichcham achchhejjam anisattham abhihadam ahattu cheei. Tahappagare uvassae apu-risamtarakade, anattatthie, aparibhutte, anasevie no thanam va sejjam va nisihiyam va chetejja. Aha punevam janejja–purisamtarakade, attatthie, paribhutte, asevie padilehitta pamajjitta tao samjayameva thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uvassayam janejja–assamjae bhikkhu-padiyae kadie va, ukkambie va, chhanne va, litte va, ghatthe va, matthe va, sammatthe va, sampadhumie va. Tahappagare uvassae apurisamtarakade, anattatthie, aparibhutte, anasevie no thanam va, sejjam va, nisihiyam va chetejja. Aha punevam janejja–purisamtarakade, attatthie paribhutte, asevie padilehitta pamajjitta tao samjayameva thanam va, sejjam va, nisohiyam va chetejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sadhu ya sadhvi upashraya ki gaveshana karana chahe to grama ya nagara yavat rajadhani mem pravesha karake sadhu ke yogya upashraya ka anveshana karate hue yadi yaha jane ki vaha upashraya amdom se yavat makari ke jalom se yukta hai to vaise upashraya mem vaha sadhu ya sadhvi sthana, shayya aura nishidhika na kare. Vaha sadhu ya sadhvi jisa upashraya ko amdom yavat makari ke jale adi se rahita jane; vaise upashraya ka yatanapurvaka pratilekhana evam pramarjana karake usamem karyotsarga, samstaraka evam svadhyaya kare. Yadi sadhu aisa upashraya jane, jo ki isi pratijnya se prani, bhuta, jiva aura sattva ka samarambha karake banaya gaya hai, usike uddeshya se kharida gaya hai, udhara liya gaya hai, nirbala se chhina gaya hai, usake svami ki anumati ke bina liya gaya hai, to aisa upashraya; chahe vaha purushantarakrita ho ya apurushantarakrita yavat svami dvara asevita ho ya anasevita, usamem kayotsarga, shayya – samstaraka ya svadhyaya na kare. Vaise hi bahuta – se sadharmika sadhuom, eka sadharmini sadhvi, bahuta – si sadharmini sadhviyom ke uddeshya se banaye hue adi upashraya mem kayotsa – rgadi ka nishedha samajhana chahie. Vaha sadhu ya sadhvi yadi aisa upashraya jane, jo bahuta – se shramanom, brahmanom, atithiyom, daridrom evam bhikhariyom ke uddeshya se prani adi ka samarambha karake banaya gaya hai, vaha apurushantarakrita adi ho, to aise upashraya mem kayotsarga adi na kare. Vaha sadhu ya sadhvi yadi aisa upashraya jane; jo ki bahuta – se shramanom, brahmanom, atithiyom, daridrom evam bhikhamamgom ke khasa uddeshya se banaya tatha kharida adi gaya hai, aisa upashraya apurushantarakrita adi ho, anasevita ho to, aise upashraya mem kayotsargadi na kare. Isake viparita yadi aisa upashraya jane, jo shramanadi ko gina – gina kara ya unake uddeshya se banaya adi gaya ho, kintu vaha purushantarakrita hai, usake malika dvara adhikrita hai, paribhukta tatha asevita hai to usaka prati – lekhana tatha pramarjana karake usamem yatanapurvaka kayotsarga, shayya ya svadhyaya kare. Vaha bhikshu ya bhikshuni yadi aisa upashraya jane ki asamyata grihastha ne sadhuom ke nimitta banaya hai, kashthadi laga kara samskrita kiya hai, bamsa adi se bamdha hai, ghasa adi se achchhadita kiya hai, gobara adi se lipa hai, samvara hai, ghisa hai, chikana kiya hai, ya ubarakhabara sthana ko samatala banaya hai, sugandhita dravyom se suvasita kiya hai, aisa upashraya yadi apurushantarakrita yavat anasevita ho to unamem kayotsarga, shayyasamstaraka aura svadhyaya na kare. Yadi vaha yaha jana jae ki aisa upashraya purushantarakrita yavat asevita hai to pratilekhana evam pramarjana karake yatanapurvaka usamem sthana adi kriya kare. |