Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )

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Sr No : 1000396
Scripture Name( English ): Acharang Translated Scripture Name : आचारांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

Section : उद्देशक-११ Translated Section : उद्देशक-११
Sutra Number : 396 Category : Ang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ। तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा–असंसट्ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते–तहप्पगारेण असंसट्ठेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा [पाणं वा] खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पिंडेसणा। अहावरा दोच्चा पिंडेसणा–संसट्ठे हत्थे संसट्ठे मत्ते–तहप्पगारेण संसट्ठेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–दोच्चा पिंडेसणा। अहावरा तच्चा पिंडेसणा–इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्म-करा वा, कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं अन्नतरेसु विरूवरूवेसु भायण-जाएसु उवनिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा–थालंसि वा, पिढरंसि वा, सरगंसि वा, परगंसि वा, वरगंसि वा। अह पुणेवं जाणेज्जा–असंसट्ठे हत्थे संसट्ठे मत्ते, संसट्ठे वा हत्थे असंसट्ठे मत्ते। से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भगिनि! त्ति वा एएणं तुमं असंसट्ठेण हत्थेण संसट्ठेण मत्तेण, संसट्ठेण वा हत्थेण असंसट्ठेण मत्तेण, अस्सिं पडिग्गहगंसि वा पाणिंसि वा णिहट्टु उवित्तु दलयाहि। तहप्पगारं भोयण-जायं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा –फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–तच्चा पिंडेसणा। अहावरा चउत्था पिंडेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथुं वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए, तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउल-पलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–चउत्था पिंडेसणा। अहावरा पंचमा पिंडेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु-पविट्ठे समाणे उव-हितमेव भोयण-जायं जाणेज्जा, तं जहा–सरावंसि वा, डिंडिमंसि वा, कोसगंसि वा। अह पुण एवं जाणेज्जा–बहुपरियावन्ने पाणीसु दगलेवे। तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पंचमा पिंडेसणा। अहावरा छट्ठा पिंडेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे पग्गहियमेव भोयण-जायं जाणेज्जा–जं च सयट्ठाए पग्गहियं, जं च परट्ठाए पग्गहियं, तं पाय-परियावन्नं, तं पाणि-परियावण्णं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–छट्ठा पिंडेसणा। अहावरा सत्तमा पिंडेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे बहुउज्झिय-धम्मियं भोयण-जायं जाणेज्जा–जं चण्णे बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा नावकखंति, तहप्पगारं उज्झिय-धम्मियं भोयण-जायं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगा-हेज्जा–सत्तमा पिंडेसणा। इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ। अहावराओ सत्त पाणेसणाओ। तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा–असंसट्ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते। अहावरा दोच्चा पाणेसणा–संसट्ठे हत्थे संसट्ठे मत्ते। अहावरा तच्चा पाणेसणा–इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति। अहावरा चउत्था पाणेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा–तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे, अप्पे पज्जवजाए। तहप्पगारं तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्ध वियडं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। अहावरा पंचमा पाणेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे उव-हितमेव पाणग-जायं जाणेज्जा। अहावरा छट्ठा पाणेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे पग्गहि-यमेव पाणग-जायं जाणेज्जा। अहावरा सत्तमा पाणेसणा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे बहु-उज्झिय-धम्मिय पाणग-जायं जाणेज्जा।
Sutra Meaning : अब संयमशील साधु को सात पिण्डैषणाएं और सात पानैषणाएं जान लेनी चाहिए। (१) पहली पिण्डैषणा – असंसृष्ट हाथ और असंसृष्ट पात्र। हाथ और बर्तन (सचित्त) वस्तु से असंसृष्ट हो तो उनसे अशनादि आहार की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। यह पहली पिण्डैषणा है। (२) दूसरी पिण्डैषणा है – संसृष्ट हाथ और संसृष्ट पात्र। यदि दाता का हाथ और बर्तन (अचित्त वस्तु से) लिप्त है तो उनसे वह अशनादि आहार की स्वयं याचना करे या वह गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। यह दूसरी पिण्डैषणा है। (३) तीसरी पिण्डैषणा है – इस क्षेत्र में पूर्व, आदि चारों दिशाओं में कईं श्रद्धालु व्यक्ति रहते हैं, जैसे कि वे गृहपति, यावत्‌ नौकरानियाँ हैं। उनके यहाँ अनेकविध बर्तनों में पहले से भोजन रखा हुआ होता है, जैसे कि थाल में, तपेली या बटलोई में, सरक में, परक में, वरक में। फिर साधु यह जाने कि गृहस्थ का हाथ तो (देय वस्तु से) लिप्त नहीं है, बर्तन लिप्त है, अथवा हाथ लिप्त है, बर्तन अलिप्त है, तब वह पात्रधारी या पाणिपात्र साधु पहले ही उसे देखकर कहे तुम मुझे असंसृष्ट हाथ में संसृष्ट बर्तन से अथवा संसृष्ट हाथ से असंसृष्ट बर्तन से, हमारे पात्र में या हाथ पर वस्तु लाकर दो। उस प्रकार के भोजन को या तो वह साधु स्वयं माँग ले, या फिर बिना माँगे ही गृहस्थ लाकर दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय समझकर मिलने पर ले ले। यह तीसरी पिण्डैषणा है। (४) चौथी पिण्डैषणा है – भिक्षु यह जाने कि यहाँ कटकर तुष अलग किये हुए चावल आदि अन्न है, यावत्‌ भुने शालि आदि चावल हैं, जिनके ग्रहण करने पर पश्चात्‌ – कर्म की सम्भावना नहीं है और न ही तुष आदि गिराने पड़ते हैं, इस प्रकार के धान्य यावत्‌ भुने शालि आदि चावल या तो साधु स्वयं माँग ले; या फिर गृहस्थ बिना माँगे ही उसे दे तो प्रासुक एवं एषणीय समझकर प्राप्त होने पर ले ले। यह चौथी पिण्डैषणा है। (५) पाँचवी पिण्डैषणा है – साधु यह जाने कि गृहस्थ के यहाँ अपने खाने के लिए किसी बर्तन में या भोजन रखा हुआ है, जैसे कि सकोरे में, काँसे के बर्तन में, या मिट्टी के किसी बर्तन में ! फिर यह भी जान जाए कि उसके हाथ और पात्र जो सचित्त जल से धोए थे, अब कच्चे पानी से लिप्त नहीं है। उस प्रकार के आहार को प्रासुक जानकर या तो साधु स्वयं माँग ले या गृहस्थ स्वयं देने लगे तो वह ग्रहण कर ले। यह पाँचवी पिण्डैषणा है। (६) छठी पिण्डैषणा है – भिक्षु यह जाने कि गृहस्थ ने अपने लिए या दूसरे के लिए बर्तन में से भोजन नीकाला है, परन्तु दूसरे ने अभी तक उस आहार को ग्रहण नहीं किया है, तो उस प्रकार का भोजन गृहस्थ के पात्र में हो या उसके हाथ में हो, उसे प्रासुक और एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे। यह छठी पिण्डैषणा है। (७) सातवीं पिण्डैषणा है – गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी वहाँ बहु – उज्झित – धर्मिक भोजन जाने, जिसे अन्य बहुत से द्विपद – चतुष्पद श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र और भिखारी लोग नहीं चाहते, उस प्रकार के भोजन की स्वयं याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ले ले। यह सातवीं पिण्डैषणा है। (८) इसके पश्चात्‌ सात पानैषणाएं हैं। इन सात पानैषणाओं में से प्रथम पानैषणा इस प्रकार है – असंसृष्ट हाथ और असंसृष्ट पात्र। इसी प्रकार शेष सब पानैषणाओं का वर्णन समझना। इतना विशेष है कि चौथी पानैषणा में नानात्व का निरूपण है – वह भिक्षु या भिक्षुणि जिन पान के प्रकारों के सम्बन्ध में जाने, यथा – तिल का धोवन, तुष का धोवन, जौ का धोवन (पानी), चावल आदि का पानी, कांजी का पानी या शुद्ध उष्णजल। इनमें से किसी भी प्रकार के पानी के ग्रहण करने पर निश्चय ही पश्चात्कर्म नहीं लगता हो तो उस प्रकार के पानी को प्रासुक और एषणीय मानकर ग्रहण कर ले।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] aha bhikkhu janejja satta pimdesanao, satta panesanao. Tattha khalu ima padhama pimdesana–asamsatthe hatthe asamsatthe matte–tahappagarena asamsatthena hatthena va, mattena va asanam va [panam va] khaimam va saimam va sayam va nam jaejja, paro va se dejja– phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–padhama pimdesana. Ahavara dochcha pimdesana–samsatthe hatthe samsatthe matte–tahappagarena samsatthena hatthena va, mattena va asanam va panam va khaimam va saimam va sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–dochcha pimdesana. Ahavara tachcha pimdesana–iha khalu painam va, padinam va, dahinam va, udinam va samtegaiya saddha bhavamti–gahavai va, gahavainio va, gahavai-putta va, gahavai-dhuyao va, gahavai-sunhao va, dhaio va, dasa va, dasio va, kamma-kara va, kammakario va. Tesim cha nam annataresu viruvaruvesu bhayana-jaesu uvanikkhittapuvve siya, tam jaha–thalamsi va, pidharamsi va, saragamsi va, paragamsi va, varagamsi va. Aha punevam janejja–asamsatthe hatthe samsatthe matte, samsatthe va hatthe asamsatthe matte. Se ya padiggahadhari siya panipadiggahae va, se puvvameva aloejja–auso! Tti va bhagini! Tti va eenam tumam asamsatthena hatthena samsatthena mattena, samsatthena va hatthena asamsatthena mattena, assim padiggahagamsi va panimsi va nihattu uvittu dalayahi. Tahappagaram bhoyana-jayam sayam va nam jaejja, paro va se dejja –phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–tachcha pimdesana. Ahavara chauttha pimdesana–se bhikkhu va bhikkhuni va, gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane sejjam puna janejja–pihuyam va bahurajam va, bhujjiyam va, mamthum va, chaulam va, chaula-palambam va. Assim khalu padiggahiyamsi appe pachchhakamme appe pajjavajae, tahappagaram pihuyam va java chaula-palambam va sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–chauttha pimdesana. Ahavara pamchama pimdesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anu-pavitthe samane uva-hitameva bhoyana-jayam janejja, tam jaha–saravamsi va, dimdimamsi va, kosagamsi va. Aha puna evam janejja–bahupariyavanne panisu dagaleve. Tahappagaram asanam va panam va khaimam va saimam va sayam va nam jaejja paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–pamchama pimdesana. Ahavara chhattha pimdesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane paggahiyameva bhoyana-jayam janejja–jam cha sayatthae paggahiyam, jam cha paratthae paggahiyam, tam paya-pariyavannam, tam pani-pariyavannam–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja–chhattha pimdesana. Ahavara sattama pimdesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane bahuujjhiya-dhammiyam bhoyana-jayam janejja–jam channe bahave dupaya-chauppaya-samana-mahana-atihi-kivana-vanimaga navakakhamti, tahappagaram ujjhiya-dhammiyam bhoyana-jayam sayam va nam jaejja paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padiga-hejja–sattama pimdesana. Ichcheyao satta pimdesanao. Ahavarao satta panesanao. Tattha khalu ima padhama panesana–asamsatthe hatthe asamsatthe matte. Ahavara dochcha panesana–samsatthe hatthe samsatthe matte. Ahavara tachcha panesana–iha khalu painam va, padinam va, dahinam va, udinam va samtegaiya saddha bhavamti. Ahavara chauttha panesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane sejjam puna panaga-jayam janejja, tam jaha–tilodagam va, tusodagam va, javodagam va, ayamam va, soviram va, suddhaviyadam va. Assim khalu padiggahiyamsi appe pachchhakamme, appe pajjavajae. Tahappagaram tilodagam va, tusodagam va, javodagam va, ayamam va, soviram va, suddha viyadam va sayam va nam jaejja, paro va se dejja–phasuyam esanijjam ti mannamane labhe samte padigahejja. Ahavara pamchama panesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane uva-hitameva panaga-jayam janejja. Ahavara chhattha panesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane paggahi-yameva panaga-jayam janejja. Ahavara sattama panesana–se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane bahu-ujjhiya-dhammiya panaga-jayam janejja.
Sutra Meaning Transliteration : Aba samyamashila sadhu ko sata pindaishanaem aura sata panaishanaem jana leni chahie. (1) pahali pindaishana – asamsrishta hatha aura asamsrishta patra. Hatha aura bartana (sachitta) vastu se asamsrishta ho to unase ashanadi ahara ki svayam yachana kare athava grihastha de to use prasuka janakara grahana kara le. Yaha pahali pindaishana hai. (2) dusari pindaishana hai – samsrishta hatha aura samsrishta patra. Yadi data ka hatha aura bartana (achitta vastu se) lipta hai to unase vaha ashanadi ahara ki svayam yachana kare ya vaha grihastha de to use prasuka janakara grahana kara le. Yaha dusari pindaishana hai. (3) tisari pindaishana hai – isa kshetra mem purva, adi charom dishaom mem kaim shraddhalu vyakti rahate haim, jaise ki ve grihapati, yavat naukaraniyam haim. Unake yaham anekavidha bartanom mem pahale se bhojana rakha hua hota hai, jaise ki thala mem, tapeli ya bataloi mem, saraka mem, paraka mem, varaka mem. Phira sadhu yaha jane ki grihastha ka hatha to (deya vastu se) lipta nahim hai, bartana lipta hai, athava hatha lipta hai, bartana alipta hai, taba vaha patradhari ya panipatra sadhu pahale hi use dekhakara kahe tuma mujhe asamsrishta hatha mem samsrishta bartana se athava samsrishta hatha se asamsrishta bartana se, hamare patra mem ya hatha para vastu lakara do. Usa prakara ke bhojana ko ya to vaha sadhu svayam mamga le, ya phira bina mamge hi grihastha lakara de to use prasuka evam eshaniya samajhakara milane para le le. Yaha tisari pindaishana hai. (4) chauthi pindaishana hai – bhikshu yaha jane ki yaham katakara tusha alaga kiye hue chavala adi anna hai, yavat bhune shali adi chavala haim, jinake grahana karane para pashchat – karma ki sambhavana nahim hai aura na hi tusha adi girane parate haim, isa prakara ke dhanya yavat bhune shali adi chavala ya to sadhu svayam mamga le; ya phira grihastha bina mamge hi use de to prasuka evam eshaniya samajhakara prapta hone para le le. Yaha chauthi pindaishana hai. (5) pamchavi pindaishana hai – sadhu yaha jane ki grihastha ke yaham apane khane ke lie kisi bartana mem ya bhojana rakha hua hai, jaise ki sakore mem, kamse ke bartana mem, ya mitti ke kisi bartana mem ! Phira yaha bhi jana jae ki usake hatha aura patra jo sachitta jala se dhoe the, aba kachche pani se lipta nahim hai. Usa prakara ke ahara ko prasuka janakara ya to sadhu svayam mamga le ya grihastha svayam dene lage to vaha grahana kara le. Yaha pamchavi pindaishana hai. (6) chhathi pindaishana hai – bhikshu yaha jane ki grihastha ne apane lie ya dusare ke lie bartana mem se bhojana nikala hai, parantu dusare ne abhi taka usa ahara ko grahana nahim kiya hai, to usa prakara ka bhojana grihastha ke patra mem ho ya usake hatha mem ho, use prasuka aura eshaniya janakara milane para grahana kare. Yaha chhathi pindaishana hai. (7) satavim pindaishana hai – grihastha ke ghara mem bhiksha ke lie pravishta hua sadhu ya sadhvi vaham bahu – ujjhita – dharmika bhojana jane, jise anya bahuta se dvipada – chatushpada shramana, brahmana, atithi, daridra aura bhikhari loga nahim chahate, usa prakara ke bhojana ki svayam yachana kare athava vaha grihastha de to use prasuka evam eshaniya janakara milane para le le. Yaha satavim pindaishana hai. (8) isake pashchat sata panaishanaem haim. Ina sata panaishanaom mem se prathama panaishana isa prakara hai – asamsrishta hatha aura asamsrishta patra. Isi prakara shesha saba panaishanaom ka varnana samajhana. Itana vishesha hai ki chauthi panaishana mem nanatva ka nirupana hai – vaha bhikshu ya bhikshuni jina pana ke prakarom ke sambandha mem jane, yatha – tila ka dhovana, tusha ka dhovana, jau ka dhovana (pani), chavala adi ka pani, kamji ka pani ya shuddha ushnajala. Inamem se kisi bhi prakara ke pani ke grahana karane para nishchaya hi pashchatkarma nahim lagata ho to usa prakara ke pani ko prasuka aura eshaniya manakara grahana kara le.