Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1000231 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ विमोक्ष |
Section : | उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण | Translated Section : | उद्देशक-६ एकत्वभावना – इंगित मरण |
Sutra Number : | 231 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स नो एवं भवइ–बिइयं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा। अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा। नो धोएज्जा, नो रएज्जा, नो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा। अपलिउंचमाणे गामंतरेसु। ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा–उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेत्ता– ‘अदुवा अचेले’। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। | ||
Sutra Meaning : | जो भिक्षु एक वस्त्र और दूसरा पात्र रखने की प्रतिज्ञा स्वीकार कर चूका है, उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि में दूसे वस्त्र की याचना करूँगा। वह यथा – एषणीय वस्त्र की याचना करे। यहाँ से लेकर आगे ‘ग्रीष्मऋतु आ गई’ तक का वर्णन पूर्ववत्। भिक्षु यह जान जाए कि अब ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों का परित्याग करे। यथा – परिजीर्ण वस्त्रों का परित्याग करके वह एक शाटक में ही रहे, (अथवा) वह अचेल हो जाए। वह लाघवता का सब तरह से विचार करता हुआ (वस्त्र परित्याग करे)। वस्त्र – विमोक्ष करने वाले मुनि को सहज ही तप प्राप्त हो जाता है भगवान ने जिस प्रकार से उसका निरूपण किया है, उसे उसी रूप में निकट से जानकर यावत् समत्व को जानकर आचरण में लाए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] je bhikkhu egena vatthena parivusite payabiiena, tassa no evam bhavai–biiyam vattham jaissami. Se ahesanijjam vattham jaejja. Ahapariggahiyam vattham dharejja. No dhoejja, no raejja, no dhoya-rattam vattham dharejja. Apaliumchamane gamamtaresu. Omachelie. Eyam khu vatthadharissa samaggiyam. Aha puna evam janejja–uvaikkamte khalu hemamte, gimhe padivanne, ahaparijunnam vattham paritthavejja, ahaparijunnam vattham paritthavetta– ‘aduva achele’. Laghaviyam agamamane. Tave se abhisamannagae bhavati. Jameyam bhagavata paveditam, tameva abhisamechcha savvato savvattae samattameva samabhijaniya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo bhikshu eka vastra aura dusara patra rakhane ki pratijnya svikara kara chuka hai, usake mana mem aisa adhyavasaya nahim hota ki mem duse vastra ki yachana karumga. Vaha yatha – eshaniya vastra ki yachana kare. Yaham se lekara age ‘grishmaritu a gai’ taka ka varnana purvavat. Bhikshu yaha jana jae ki aba grishma ritu a gai hai, taba vaha yathaparijirna vastrom ka parityaga kare. Yatha – parijirna vastrom ka parityaga karake vaha eka shataka mem hi rahe, (athava) vaha achela ho jae. Vaha laghavata ka saba taraha se vichara karata hua (vastra parityaga kare). Vastra – vimoksha karane vale muni ko sahaja hi tapa prapta ho jata hai Bhagavana ne jisa prakara se usaka nirupana kiya hai, use usi rupa mem nikata se janakara yavat samatva ko janakara acharana mem lae. |